बदलता मौसम - रंग-बिरंगा

Submitted by admin on Tue, 10/15/2013 - 16:18
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राधाकांत भारती की किताब 'मानसून पवन : भारतीय जलवायु का आधार'
बरसात के बाद गर्मी कम हो जाती है, रात में तापमान कम होने लगता है। यही शरद के सुहावने मौसम का संकेत है। लेकिन दक्षिण भारत के कई इलाकों में पीछे हटते हुए मानसून की वर्षा होती रहती है जो कि धान क दूसरी फसल उपजाने के लिए काफी लाभदायक होती है। शरद ऋतु भारत में उत्सव और त्योहारों का मौसम माना जाता है। विशेषकर भारत के ग्रामीण इलाकों में कई प्रकार के उत्सवों का आयोजन किया जाता है। कथन है - ‘संसार परिवर्तनशील है’- यही बात मौसम के लिए भी सत्य है। कहीं भी किसी देश में मौसम सदैव एक-सा नहीं रहता है। अलग-अलग तरह की जलवायु में अलग प्रकार की विशेषताएँ होती है, उसी प्रकार उनके मौसम भी होते हैं। प्राकृतिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव केवल मानव जीव-जंतुओं पर ही नहीं, वनस्पतियों तथा निर्जीव पदार्थों पर भी देखा जा सकता है। ऐसे प्रभावों का भावानात्मक चित्रण विश्व के कई महान साहित्यकारों ने किया है। हमारे देश में भी महाकवि कालीदास का काव्य ‘ऋतुसंहार इसका उत्तम उदाहरण है। इसके अलावा भारत के प्रायः हर भाषा में बारहमासा नाम से ऋतुओं की विशेषताएँ तथा बदलाव के गीत गाए जाते रहे हैं।

जलवायु विज्ञान के अनुसार तापमान, आर्द्रता, वर्षा, वायुभार आदि के आधार पर पूरे साल को चार मुख्य मौसमों में विभाजित कर अध्ययन किया जाता रहा है। भारतीय जलवायु में मूलतः चार मौसम इस प्रकार से है-

ग्रीष्म

अधिक तापमान का गर्म मौसम

मार्च से मई

वर्षा

मानसूनी बरसात के महीने

जून से सितंबर

शरद

कम गर्मी और ठंड की शुरुआत वर्षा की समाप्ति

अक्टूबर से नवंबर

शिशिर

शीतल हवाएं

 

ठंडक का मौसम

उत्तर पूर्वी मानसून

दिसंबर से फरवरी

 



चार मौसमों के होते हुए भी भारत में अपनी जलवायु की अलग विशेषताओं के कारण परंपरागत रूप में पांच नहीं, बल्कि छह ऋतुओं की परंपरा अपना रखी है। इसका मूल कारण यहां मानसूनी प्रकार की जलवायु का होना है, जिसके द्वारा मानसूनी बरसात के समय में तीन-चार महीनों के दौरान यहां के कई हिस्सों में घनघोर बरसात होती है

। भारत में सबसे तेज और अधिक ताप वाला मौसम है-ग्रीष्म। अप्रैल-मई के महीने में सूरज की तेज धूप पूरे दिन रहती है। इससे भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पूर्वी भागों के क्षेत्र तप्त हो उठते हैं और धरती के पास वाली हवा गर्म होकर ऊपर उठने लगती है, फलस्वरूप यहां का दबाव कम हो जाता है।

इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्ध में मई-जून सर्दियों के महीने होते हैं। यहां हवा अपेक्षाकृत ठंडी और घनी होती है, फलस्वरूप इस क्षेत्र में वायुभार अधिक हो जाता है जिसकी वजह से यहां की हवा का बहाव उत्तर की ओर का हो जाता है।

भारत भूमि में तेज गर्मी की वजह से जीव-जंतु व्याकुल हो जाते हैं। ताल-तलैये सूख जाते हैं- सरिताओं तथा कूपों में भी जल की मात्रा क्षीण होने लगती है। यह प्रकृति की विचित्र लीला है कि बरसात के मौसम में जलवर्षा देने के पहले धरती के जल को तेज धूप से सुखा डालती है।

इसके बाद आता है जून का महीना, जिसे भारतीय परंपरा के अनुसार आषाढ़ कहते हैं। जून के पहले सप्ताह में धुर दक्षिण के इलाके-केरल प्रदेश से आगमन होता है - मेघदूत मानसून का। ताप हरने वाली अमृत के समान जलवर्षा देने वाली यह हवा पश्चिमी घाट के सहारे उत्तर की ओर गतिमान होती जाती है। प्रत्येक वर्ष सूखी धरती पर किसान और बहुसंख्यक भारतवासी इसकी प्रतीक्षा बहुत आतुरता के साथ करते हैं। मानसून के आगमन के साथ ही भारत में वर्षा ऋतु का आरंभ होता है।

वर्षा ऋतु में मानसून की दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से आगे पहुंचकर तेजी के साथ उत्तर-पूर्वी भारत और फिर गंगा के मैदानी इलाकों से सिंधु घाटी तक पहुंच जाती है। इस प्रकार जुलाई तक पश्चिमोत्तर भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर मानसून संपूर्ण भारत भूमि को जलवर्षा से सराबोर कर डालता है। किंतु जैसा कि पहले भी उल्लेख किया जा चुका है मानसूनी हवाओं की चाल मतवाली होती है। इसी संदर्भ में प्रसिद्ध मौसम वैज्ञानिक डॉ. राम का कथन उल्लेखनीय है

-…..अक्सर वर्षा रानी एक छलांग लगाती है, रुकती है और फिर अगली छलांग में आगे बढ़ जाती है। लेकिन कभी-कभी यह बड़े-बड़े क्षेत्रों को भी फलांग जाती है।

भूमि का चप्पा-चप्पा हरियाली से हरा हो जाता है। यहां तक चट्टानें भी काई से हरी हो जाती है। ताल-तलैया भर जाते हैं। मच्छरों की संख्या दुगनी से चौगुनी हो जाती है। कोयल की कूक गूंजने लगती है, मेढ़क टर्राते हैं, मोर नाच उठते हैं। विरही प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से मिलने के लिए आतुर हो उठते हैं और इच्छाएं प्रबल हो जाती है।

प्रचलित कहावत के अनुसार हर अच्छी स्थिति भी एक बार समाप्त होती है। इसी प्रकार मानसूनी बरसात की समाप्ति विशेषकर उत्तरी भारत में अक्टूबर में होती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून शिथिल होकर समाप्त होता है। इस समयावधि में मानसूनी वातावरण में अनेक प्रकार के बदलाव आने लगते हैं, तभी बंगाल की खाड़ी में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का सृजन होने लगता है। ये चक्रवात कभी-कभी भयंकर समुद्री तूफान का रूप धारण कर तटीय प्रदेशों पर भयंकर मार करते हैं। इनसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और बंगाल के तटीय क्षेत्रों में तेज हवा चलती है और भारी वर्षा होती है।

बरसात के बाद गर्मी कम हो जाती है, रात में तापमान कम होने लगता है। यही शरद के सुहावने मौसम का संकेत है। लेकिन दक्षिण भारत के कई इलाकों में पीछे हटते हुए मानसून की वर्षा होती रहती है जो कि धान क दूसरी फसल उपजाने के लिए काफी लाभदायक होती है। शरद ऋतु भारत में उत्सव और त्योहारों का मौसम माना जाता है। विशेषकर भारत के ग्रामीण इलाकों में कई प्रकार के उत्सवों का आयोजन किया जाता है।

नवंबर के आगमन के साथ ही ठंड का प्रभाव बढ़ने लगता है। दिन में निर्मल आकाश तथा रात में तापमान कम होने से उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्रो में बर्फानी हवाएं बहती हैं और हिमपात भी होता है। किंतु दक्षिण भारत तथा अन्य मैदानी इलाकों में मौसम सुहावना बना रहता है।

दिसंबर के साथ हेमंत की समाप्ति के साथ शीतलता बढ़ती जाती है और शिशिर ऋतु का आरंभ होता है। उत्तरी भारत के ऊंचे स्थान बर्फ से ढंक जाते हैं। ऐसे क्षेत्रों में वनों में पतझड़ की स्थिति आ जाती है। मैदानी इलाकों में रात अधिक ठंडी हो जाती है और सुबह में ओस या पाला पड़ा रहता है पर्वतीय क्षेत्रों या नदी घाटियों में कुहरा या धुंध का प्रभाव होने लगता है। दिन छोटे और राते लंबी होती है।

भारत में फरवरी-मार्च का महीना मौसमी बहार का माना जाता है। ठंडक समाप्त होने लगती है। वनस्पतियों में नए पत्र-पुष्प आने लगते हैं। वसंत ऋतु भारत में उमंग-उत्साह और त्योहार का समय माना जाता है। इस समय संपूर्ण भारत में कई दिनों तक अनेक प्रकार के धार्मिक त्योहार मनाए जाते हैं। रबी की फसल तैयार हो जाती है और अच्छी उपज को पाकर किसान खुशी से झूम उठते हैं।