बेहद खतरनाक है सांसों में घुलता यह जहर

Submitted by editorial on Sat, 11/17/2018 - 11:24
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दैनिक जागरण (आई नेक्स्ट), 11 नवम्बर, 2018


वायु प्रदूषण (फोटो साभार: विकिपीडिया)वायु प्रदूषण (फोटो साभार: विकिपीडिया) दिवाली से पहले ही दिल्ली, नॉर्थ व सेन्ट्रल इंडिया समेत देशभर में चिन्ताजनक स्थिति अख्तियार कर चुकी एयर क्वालिटी त्यौहार के बाद और ज्यादा खतरनाक हो गई है, यह इस बात को दर्शाता है कि पर्यावरण के प्रति हमारा रवैया कितना लापरवाही भरा बना हुआ है, जैसी चिन्ता जताई जा रही थी, ठीक वैसा ही दृश्य अब देखना आम हो गया है। दिवाली के बाद से लगातार नॉर्थ व सेट्रल इण्डिया के ज्यादातर इलाकों में जहरीली स्मॉग की चादर साफ तौर पर देखी जा सकती है, इसी स्थिति को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली में पटाखे फोड़ने पर तमाम प्रतिबन्ध भी लगाए थे मगर दिल्ली समेत पूरे देश में ही इसे धता बताते हुए खूब जमकर आतिशबाजी हुई। देश के ज्यादातर शहर गैस चैम्बर में तब्दील हो चुके हैं जहाँ हर सेकेंड सांस लेना असंख्य सिगरेट पीने जैसा है। आइए जानते हैं कैसा है एयर पॉल्यूशन का हाल, कितना खतरनाक है यह और इसे टैकल करने के लिये क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

जानते सब हैं मानता कोई नहीं

इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है कि एयर पॉल्यूशन के बारे में जानकारी होने के बावजूद आमतौर पर इस विषय को लेकर उदासीनता ही व्याप्त रहती है। जबकि सच ये है कि ये फैक्टर बेहद ही संवेदनशील है। इंसान समेेत कोई भी जीव बिना सांस लिये जीवित नहीं रह सकता। शुद्ध आबोहवा न हो तो जाने-अनजाने में शरीर ऐसे-ऐसे रोगों का घर बन जाता है जिससे जीवन नर्क बन सकता है और कई मामलों में यह मौत का कारण भी बन जाता है। दुनिया भर में 70 लाख लोग सालाना दूषित हवा में सांस लेने के कारण असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं। इसमें से 42 लाख आउटडोर एयर पॉल्यूशन से जबकि 38 लाख लोग सालाना इनडोर एयर पॉल्यूशन के कारण श्वसन सम्बन्धी गम्भीर बीमारियों की चपेट में आकर हर साल दम तोड़ देते हैं। डब्ल्यूएचओ का आकलन है कि उसके द्वारा तय किये गए एयर क्वालिटी के पैमाने से इतर दुनिया की 91 परसेंट से ज्यादा की आबादी गम्भीर एयर पॉल्यूशन का दंश झेल रही है। इस गम्भीरता को इस फैक्टर से भी समझा जा सकता है कि हार्ट डिजीजेज व स्मोकिंग से होने वाली सालाना मौतों के आँकड़े को भी एयर पॉल्यूशन से होने वाली मोतों ने पार कर लिया है। इसमें भी, पूरी दुनिया में एयर पॉल्यूशन के कारण बीमारी से ग्रस्त होने और मरने वालों में इण्डिया और चीन ही सबसे आगे हैं। ऐसे में, जब हालात इतने गम्भीर हों तो केवल साल के कुछ विशेष दिन ही नहीं बल्कि साल भर इस प्रकार के प्रयास किये जाने चाहिए जिससे आबो-हवा की स्वच्छता बनी रहे, कम-से-कम पॉल्यूशन हो और ज्यादा-से-ज्यादा इको फ्रेंडली बिहेवियर को अपनाया जाना चाहिए।

क्यों उठता है स्मॉग का जिन्न

जिस एयर पॉल्यूशन की बात को हमें सारे साल जेहन में रखना चाहिए, उसकी सबसे ज्यादा याद हमें तब आती है जब दिवाली के आस-पास ठंडक की शुरुआत होते ही धुन्ध पड़ने से पहले घने धुएँ सा स्मॉग हमारे शहरों और क्षेत्रों को अपनी आगोश में ले लेता है। इन दिनों जाहिर तौर पर इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन, पार्टिकुलेट व सस्पेंडेड पार्टिकल्स, व्हीकुलर पॉल्यूशन समेत कई कारण होते हैं जो हवा का दम घोंटने लगते हैं। इस पर भी, लाख सख्ती और अपील के बावजूद कूड़ा जलाने, पराली जलाने और पटाखे जलाने से लोग बाज नहीं आते जिससे विशेषकर हर साल ये दिन हवा की दृष्टि से बेहद हानिकारक हो जाते हैं। सच यही है कि हर साल पहले से कहीं गम्भीर रुख अख्तियार कर रही इस समस्या की विकरालता का अन्दाजा होते ही हम तमाम वादे करते हैं, उन्हें निभाने का प्रण करते हैं और फिर हालात जैसे ही सुधरते हैं वैसे ही हम भी संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन में लग जाते हैं जिससे स्थिति पहले से भी बदतर हो जाती है।

बैन है तो क्या, मानता कौन है?

ये बेहद अफसोसजनक है और चिन्ताजनक भी कि दिवाली से कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों को जलाने को लेकर कुछ निर्देश दिये थे। इसमें एक अपील ये थी कि रात को 10 बजे के बाद पटाखे न जलाए जाएँ, साथ ही, एक अपील ये की गई थी कि ग्रीन व ईको फ्रेंडली पटाखे जलाएँ, कम प्रदूषण वाले पटाखों को तरजीह दें और बहुत तेज आवाज वाले बम व पटाखों से बचें। कोर्ट ने ये भी कहा था कि इन गाइड लाइंस का पालन न करने वाले लोगों पर दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है बावजूद इसके दिल्ली समेत देश भर के इलाकों में नर्क चतुर्दशी, दीवाली, जमघट व भैयादूज के दिन देर रात तक पटाखों का शोर गूँजता रहा।

उल्लास, उत्साह का पर्व मनाने की उमंग तो जाहिर है। मगर इस बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जिस प्रकार देश की जनता ने धता बताया उससे साफ है कि कानून मानने को लेकर लोगों में न तो खौफ है और न ही किसी प्रकार की जागरुकता, उल्टे कई लोग बड़ी शान से देर रात पटाखे जलाते हुए सोशल मीडिया साइट्स पर अपनी तस्वीरें और स्टेटस डालते रहे व इस विषय में मजाक भी बनाते रहे जो कि न केवल निन्दनीय है बल्कि समाज में व्याप्त अराजकता के कुरूप चेहरे को भी दर्शाता है। हम भले ही साल भर में एक भी पेड़ न लगाएँ, मगर पटाखे जलाने को अस्मिता से जोड़कर जमकर धज्जियाँ उड़ाते हैं तो साफ है कि इसका असर भी हमें देखने को मिलेगा।

सरकार ने कसी कमर

बहरहाल, मामले की संगीनता को देखते हुए केन्द्र सरकार ने कमर कस ली है। पॉल्यूशन की समस्या के त्वरित समाधान की जरूरत को समझते हुए भारत ने 4 ग्लोबल एजेंसियों की मदद लेने का फैसला किया है। इनमें वर्ल्ड बैंक और जर्मन डेवलपमेंट एजेंसी (जीआईजेड) शामिल है जो इंडिया के 102 शहरों के पॉल्यूशन से निपटने की क्षमता को बढ़ाने के लिये काम करेगी। अन्य दो एजेंसियों में एडीबी और ब्लूमबर्ग फिलेन्थ्रॉपीज के नाम शामिल है। ये एजेंसियाँ अलग-अलग भौगोलिक इलाकों में सरकार को प्रदूषण से लड़ने में मदद करेंगी। इन चारों एजेंसियों के साथ एग्रीमेंट को अन्तिम रूप दे दिया गया है। ये एजेंसियाँ तकनीकी सहयोग देंगी और राज्यों को उनके शहरों में क्षमता विकसित करने में मदद करेंगी। हर एजेंसी को शहरों के साथ काम करने के लिये एक भौगोलिक इलाका तय करके दिया जाएगा। इन शहरों के लिये एक नये नेशनल क्लीन एयर पॉल्यूशन से व्यापक रूप से निपटने के लिये यह एक लम्बे समय की नई रणनीति होगी। इसमें विभिन्न तरीकों से पॉल्यूशन कन्ट्रोल, मैनुअल एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशन की संख्या बढ़ाना, एयर क्वालिटी पर निगरानी रखने वाले मॉनिटरिंग स्टेशनों का विस्तार और जियोग्राफिक इंफर्मेशन सिस्टम के प्लेटफॉर्म के जरिए डेटा एनालिसिस के लिये एयर इंफर्मेशन सेंटर जैसी चीजें शामिल होंगी।

एयर पॉल्यूशन का मुख्य कारण

इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्टेशन, फॉरेस्ट फायर, रेडिएशन, एरोसॉल

 

एयर पॉल्यूशन का इंसानी सेहत पर पड़ने वाला प्रभाव

बाल

हेयर डैमेज की समस्या बढ़ जाती है, बालों का गिरना, झड़ना, घनत्व कम होना और सफेदी जैसे लक्षण उबरते हैं।

आँखें,

आँखों व म्यूकस मेम्ब्रेन में जलन, व इरीटेशन

फेफड़े

फेफड़े की कार्यक्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है जिससे क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीजेज का खतरा बढ़ जाता है

बोन डैमेज

हड्डियों के कम्पोजीशन में गिरावट, हड्डियों के खोखले होने की समस्या में इजाफा

खून

खून की कार्यप्रणाली पर असर पड़ता है जिससे पार्टिकल्स ब्लड के अन्दर चलने लगते हैं

दिमाग

ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा, ब्रेन इनसोमनिया, कॉग्नीटिव डिसॉर्डर्स जैसी गम्भीर समस्याएँ हो सकती है

दिल

हार्ट फंक्शंस में चेज आना शुरू हो जाता है जिससे कार्डियोवस्कुलर डैमेजेस की रेट में इजाफा होना शुरू हो जाता है

रिप्रोडक्टिव सिस्टम

रिप्रोडक्टिव डैमेज शुरू हो जाता है इससे फर्टिलिटी प्रॉब्लम्स, प्रीमेच्चोर बर्थ, लो बर्थ वेट और सीमन में लो स्पर्म काउंट जैसी समस्याएँ होती है

लिवर सलीन व ब्लड डैमेज

इंटस्टाइनल डैमेज (रेडिएशन)

 

1. 38 लाख लोगों की हर साल इनडोर एयर पॉल्यूशन के कारण हो जाती है मौत
2. 91% दुनिया की आबादी डब्ल्यूएचओ के निर्धारित मानक से कहीं ज्यादा चिन्ताजनक स्थिति में रोजाना करती है जीवन यापन
3. 88% मौतें विकासशील देशों में हुईं जिनमें इंडिया भी है शामिल
4. 70 लाख लोगों की हर साल हो जाती है एयर पॉल्यूशन के कारण मौत दुनिया भर में
5. 42 लाख लोगों की हर साल आउटडोर एयर पॉल्यूशन के कारण हो जाती है मौत दुनिया भर में
6. 15% दुनिया में होने वाली कुल इंसानी मौतों का कारण होता है एयर पॉल्यूशन

 

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