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संडे नई दुनिया, जुलाई 2010
पानी की यही राम कहानी, बिन पानी आंखों में पानी। राजस्थान, जहां पानी की मोल घी से भी ज्यादा माना जाता है, एक बार फिर से पानी के लिए तरस रहा है। दूरदराज के गांवों की बात तो दूर इस बार राजधानी जयपुर के बाशिंदे तक पानी के लिए तरसने को मजबूर हो गए हैं। गुलाबी नगरी में ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि यहां के लोग पानी के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हो रहे हैं और सरकार को पुलिस के पहरे में पानी बांटने को विवश होना पड़ रहा है।
यह सब हो रहा है अब तक की मानसून की बेरुखी के चलते। यह पहला साल नहीं है जब मानसून राजस्थान से रूठा हो। आजादी के बाद के कुछ सालों को छोड़ दें तो ज्यादातर समय राजस्थान को अकाल से मुकाबला करने को विवश होना पड़ा है। बरसात की कमी ने देश के इस सबसे बड़े राज्य के भू-जल भंडारों पर बहुत बुरा असर डाला है। भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान वैसे तो देश का सबसे बड़ा प्रांत है लेकिन यहां पर देश के कुल सतही जल का दो फीसदी से भी कम ही उपलब्ध है। ऐसे में पिछले दो दशकों में प्रदेश के भू-जल भंडारों का अत्यधिक दोहन किया गया है। इसने हालात और विकट बना दिये हैं। आज स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि प्रदेश के 240 ब्लॉकों में से दो सौ ब्लाकों में भू-जल रीतने के करीब पहुंच चुका है, लिहाजा इन ब्लॉकों को डार्क जोन घोषित कर दिया गया है। ऐसे में यहां के लोग अच्छी बरसात की आस लगाए हुए हैं लेकिन बादल हैं कि जैसे रूठकर बैठ गए हों। पिछले साल भी राजस्थान के 33 में से 27 जिलों में कम बरसात होने के कारण 33 हजार 464 गांव सूखे की चपेट में आ गए थे। बरसात की कमी के चलते राज्य के ज्यादातर इलाके पीने के पानी के लिए तरस गए थे। लिहाजा सरकार को करीब बीस हजार गांवों, शहरों और कस्बों की प्यास बुझाने के लिए रेल और टैंकरों से पानी पहुंचाना पड़ा था। इस बार भी अब तक मानसून की बेरुखी बरकरार है। ऐसे में सरकार को 15 जुलाई के बाद भी प्यासे शहर, कस्बे और गांवों के लिए पेयजल परिवहन की व्यवस्था को जारी रखने का फैसला करना पड़ा है। वैसे तो राजस्थान के ज्यादातर इलाके पानी के भीषण संकट से जूझ रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा विकट हालात जयपुर, अजमेर, टोंक और भीलवाड़ा जिलों में है। भीलवाड़ा में तो लोगों को सप्ताह में एक बार ही पानी मयस्सर हो पा रहा है। यह पानी भी चंबल नदी से रेल से लाया जा रहा है। भीलवाड़ा जिले के गांवों में तो हालात और भी ज्यादा विकट हैं। राजस्थान के दो दर्जन से ज्यादा शहर और कस्बे ऐसे हैं जहां पर पानी 48 घंटे या फिर उससे ज्यादा समय के अंतराल से दिया जा रहा है। अब तो राजधानी जयपुर भी पेयजल संकट की चपेट में आ गई है। पानी की कमी के कारण पहली बार जयपुर में पानी की राशनिंग करने का कदम उठाया गया है। जयपुर के अनेकों इलाकों को 48 घंटे में सिर्फ एक बार पानी देने का फैसला किया गया है। राजधानी में पॉश इलाकों से लेकर कच्ची बस्तियां तक पानी के गंभीर संकट से जूझ रही हैं। प्यासे लोग गुलाबी नगर की सड़कों पर उतर आए हैं। हालात की विकटता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार को गुलाबी नगरी में पुलिस के पहरे में पानी का वितरण करना पड़ रहा है। आने वाले दिनों में भी जयपुर को पानी की किल्लत से निजात मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। जयपुर की हालत इसको पानी पिलाने वाले स्रोतों के लगातार सूखते जाने के कारण हुई है। कुछ साल पहले जयपुर को पानी पिलाने का सबसे बड़ा स्रोत रामगढ़ बांध हुआ करता था लेकिन करीब एक दशक से यह बांध पानी के अभाव में रीता पड़ा है। बरसात की कमी और इस बांध के जलग्रहण क्षेत्र में अंधाधुंध एनीकट बनने के कारण यहां पानी आना तकरीबन बंद हो गया है। रामगढ़ बांध की हालत और राजधानी की तेजी से बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए सरकार ने डेढ़ दशक पहले टोंक जिले के बीसलपुर बांध से जयपुर की प्यास बुझाने की योजना पर काम करना शुरू किया था। बीसलपुर राजस्थान के सबसे बड़े बांधों में एक है। यह योजना जमीन पर उतरने में डेढ़ दशक लग गया। इस साल बीसलपुर का पानी जयपुर पहुंच भी गया लेकिन यह दुखद संयोग कहा जा सकता है कि इस बांध ने जयपुर की प्यास बुझाना शुरू ही किया था कि जुलाई महीने के आते-आते बांध रीत गया। इसकी वजह जहां बरसात की कमी थी वहीं बीसलपुर पर बढ़ता बोझ भी था। बीसलपुर बांध में भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ और राजसमंद जिलों का बरसाती पानी आता है। जहां अब तक बरसात न के बराबर हुई है। इसके साथ ही इस बांध से जयपुर के अलावा अजमेर शहर, ब्यावर, किशनगढ़, टोडारायसिंह, केकड़ी, दूदू, सांभर और फुलेरा कस्बों के अलावा अजमेर के बहुत से ग्रामीण इलाकों की प्यास भी बुझाई जा रही है। लिहाजा सरकार ने 16 जुलाई की रात से बिसलपुर से जयपुर को पानी की सप्लाई बंद करने का फैसला कर लिया। इससे जयपुर में पानी का संकट और गहरा गया। बीसलपुर से पानी की आपूर्ति बंद होने से जयपुर के हालात विकट हो चले हैं। इस बांध से जयपुर को रोजाना 1.7 करोड़ लीटर पानी मिल रहा था। ऐसे में जयपुर की पेयजल व्यवस्था का चरमराना लाजिमी था। अब जयपुर की निर्भरता पूरी तरह से जयपुर शहर और आस-पास के भू-जल स्रोतों पर आ गई है। इन स्रोतों की हालत भी कोई सुखद नहीं कही जा सकती। इस समय राजधानी को 1900 ट्यूबवेलों से पानी दिया जा रहा है। इसके साथ ही जयपुर में बड़ी संख्या में टैंकरों से पीने का पानी वितरित किया जा रहा है। जानकारों की मानें तो ये ट्यूबवेल भी लंबे समय तक जयपुर की आबादी का बोझ सह पाने में सक्षम नहीं हैं। अधिकारियों का कहना है कि जयपुर में बस तीन महीने का ही भू-जल बचा है। यानी अगर वर्तमान गति से ही यहां भू-जल का दोहन होता रहा तो तीन महीने में यहां का पानी सूख जाएगा। पूरे राजस्थान के साथ ही जयपुर में भी पिछले दो दशकों में भू-जल का अत्यधिक दोहन किया गया है। इस अवधि में यहां जमीन के नीचे का पानी औसतन 40 मीटर नीचे चला गया है। कुछ इलाकों में तो पानी 50 मीटर से भी ज्यादा नीचे जा चुका है। राजधानी का 95 फीसदी इलाका डार्क जोन में आ चुका है। ऐसे में राजधानी की प्यास बुझाने के लिए दूसरे विकल्पों पर तेजी से विचार किया जा रहा है, इनमें बीसलपुर की बांध के पेटे में ट्यूबवेल खोदने के अलावा चंबल का पानी जयपुर तक लाने के विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।
राजस्थान में पानी की कमी के साथ ही इसकी बर्बादी कोढ़ में खास सरीखी बनी हुई है। राज्य में पानी की बर्बादी अभी भी 56 फीसदी से ज्यादा बनी हुई है। जोधपुर और कोटा में पानी की बर्बादी सबसे ज्यादा है। जोधपुर और कोटा शहरों में 55-60 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है। राजधानी जयपुर की हालत भी इनसे बेहतर नहीं है। जयपुर में इस समय 40 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है। जानकारों का कहना है कि जयपुर शहर में यदि पानी की छीजत को रोक लिया जाए तो शहर के किसी भी इलाके में पानी की किल्लत नहीं रहेगी। जयपुर शहर में करीब 1500 लाख लीटर पानी हर दिन छीजत में बर्बाद हो जाता है। जलदाय विभाग यदि छीजत पर काबू पा लेता है तो शहर में हर दिन करीब 700 लाख लीटर पानी बचाया जा सकता है। यह पानी संकट के समय जयपुर शहर की प्यास बुझा सकता है।
कमजोर मानसून को देखते हुए राजस्थान सरकार भी सतर्क हो गई है। सरकार ने ऐसी स्थिति में पानी के भीषण संकट से निपटने के एहतियातन कई कदम उठाए हैं। सरकार ने जहां शहरी और ग्रामीण इलाकों में पेयजल परिवहन की सुविधा को आगे भी जारी रखने का फैसला किया है। वहीं बांधों के कैचमेंट क्षेत्रों में एनीकट बनाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है। इसके साथ ही प्रदेश के अकाल से प्रभावित जिलों में चल रही आपातकालीन पेयजल व्यवस्था को भी 31 जुलाई तक बढ़ा दिया गया है।
सरकार ने तय किया है कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में रेल और टैंकरों से पानी पहुंचाने की व्यवस्था को जारी रखा जाए। पानी की कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों अजमेर, जयपुर, भीलवाड़ा, पाली और टोंक में नए हैंडपंप लगाने और ट्यूबवेल खोदने की मंजूरी देने में कोई कमी नहीं रखी जाए वहीं सार्वजनिक पार्कों के ट्यूबवेलों का पेयजल के लिए उपयोग किया जाए। इसके बाद भी हालात काबू में नहीं हों तो निजी ट्यूबवेलों से भी पानी लेकर जनता को पेयजल का वितरण किया जाए। इसके साथ ही सरकार ने बांधों के कैचमेंट एरिया में एनीकट बनाने पर भी पूरी तरह पाबंदी लगाने का फैसला किया है। इन क्षेत्रों में धुआंधार एनीकट बनने से बांधों में पूरा पानी नहीं आ पा रहा है। इस कारण अधिकतर बांध बरसात होने के बावजूद रीते ही रह जाते हैं। इसके अलावा सरकार ने जयपुर, अजमेर, टोंक और भीलवाड़ा को पेयजल पहुंचाने के लिए बीसलपुर बांध के सूखे पेटे में भी ट्यूबवेल खोदने का फैसला किया है। सरकार ने राजस्थान के पेयजल संकट के स्थायी समाधान के लिए कई दीर्घकालीन योजना बनाकर केंद्र के पास स्वीकृति के लिए भेजने का भी निर्णय लिया है।