बंजर हो गई सैकड़ों बीघा उपजाऊ जमीन 

Submitted by Shivendra on Tue, 07/23/2019 - 10:00

सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन का असर - भाग 3

बलियारा गांव की 2 हजार बीघा से ज्यादा जमीन खेती के लायक नहीं बची है।बलियारा गांव की 2 हजार बीघा से ज्यादा जमीन खेती के लायक नहीं बची है।

मौसनी आइलैंड (सुंदरवन) : शेख शाहजान के पास अपनी 10 बीघा जमीन है, लेकिन वह फल-फूल बेचकर जीवनयापन कर रहे हैं। शेख शाहजान इकलौते व्यक्ति नहीं हैं, जिनके लिए जमीन अब रोजी-रोटी का जरिया नहीं रही। दक्षिण 24 परगना जिले के सुंदरवन में स्थित मौसनी आइलैंड के बलियारा गांव में ऐसे परिवारों की संख्या सैकड़ों में है। शेख शाहजान कहते हैं, ‘क्या करें, परिवार तो किसी तरह चलाना ही होगा। फल-फूल बेच कर कम कमाई होती है, तो मजदूरी भी कर लेते हैं।’

सुंदरवन में लगभग 100 द्वीप हैं। मौसनी द्वीप इन्हीं में से एक है। मौसनी आइलैंड चार गांवों को मिला कर बना है। बलियारी, कुसुमतला, बागडांगा और मौसनी पोइलाघेरी। नामखाना के 10 माइल के खेयाघाट से हर आधे घंटे पर नावें खुलती हैं, जो लोगों को मौसनी आइलैंड तक ले जाती हैं। हालांकि 10 माइल के अलावा और भी दो-तीन रूट हैं जिनसे होकर इस टापू पर पहुंचा जा सकता है। बलियारा गांव द्वीप के जिस तरफ है, वहां नदी और गंगासागर का संगम होता है, जिस कारण जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र के जलस्तर में इजाफा होने का सबसे ज्यादा असर इसी गांव में दिख रहा है। यहां की करीब 2 हजार एकड़ जमीन में गंगासागर का खारा पानी घुस चुका है, जिससे ये जमीन करीब-करीब बंजर हो गई हैं। शेख शाहजान कहते हैं, ‘पिछले 10 वर्षों से कमोबेश हर साल ही पानी खेत में प्रवेश कर जा रहा है। ये पानी इतना नमकीन है कि सूखने के बाद जमीन पर नमक की मोटी परत जम जाती है। हमने शुरुआती दिनों में कुछ फसलें लगाई थीं, लेकिन पैदावार ही नहीं हुई, तो खेत यूं ही छोड़ दिया।’

सुंदरवन बंगाल की खाड़ी से सटा हुआ है, इसलिए यहां भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। यहां समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे यहां का जीवन कठिन होता जा रहा है। समुद्र के जलस्तर में इजाफे की तस्दीक केंद्र सरकार ने भी की है। लोकसभा में पेश की गई अर्थ साइंस मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक डायमंड हार्बर जो सुंदरवन के पास स्थित है, में प्रति वर्ष 5.16 मिलीमीटर की दर से जलस्तर में इजाफा हो रहा है। ये राष्ट्रीय औसत से 4 मिलीमीटर अधिक है।  

स्थानीय लोग बताते हैं कि बलियारा की जमीन काफी उपजाऊ हुआ करती थी। धान की दूधेश्वर, बोकरा आदि प्रजातियों की खेती होती थी। एक कट्ठा खेत में डेढ़ मन से ज्यादा धान उगती थी। यहां धान की खेती सबसे ज्यादा होती थी। इसके अलावा यहां के लोग सब्जियां खूब उगाते थे। यहां की मिट्टी के उपजाऊ होने की एक वजह ये भी है कि इसका निर्माण बहुत बाद में हुआ है। 70 वर्षीय मिताई माइती ने पिछले 50 वर्षों में इस द्वीप में काफी कुछ बदलते देखा है, लेकिन पिछले एक दशक में जो सबसे बड़ा बदलाव उन्होंने देखा, वो है 2 हजार एकड़ जमीन का बंजर पड़ा रहना। मिताई माइती की अपनी दो बीघा जमीन है, जिसमें नमकीन पानी भरा हुआ है। वह उसमें एक दाना नहीं उगा पाते हैं। जलमग्न खेतों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘10 साल पहले तक इस जमीन पर खूब फसलें उगा करती थीं। लेकिन, अब यूं ही पड़ी रहती है। पिछले 10 सालों में काफी जमीन पानी में भी समा चुकी है। कई घर पानी की आगोश में समा गए।’ हालांकि, इस विषम हालत में भी कुछ किसानों ने पान की खेती करने का जोखिम उठा रखा है। इसके लिए वे पान की खेतीवाली जमीन पर मिट्टी डालकर ऊंचा कर देते हैं ताकि समुद्र का नमकीन पानी आ भी जाए, तो वह पान के खेतों पर नहीं चढ़ पाएगा। 

जलालुद्दीन शाह सागरद्वीप से यहां आए थे, लेकिन अब उन्हें अपने फैसले पर अफसोस हो रहा है।जलालुद्दीन शाह सागरद्वीप से यहां आए थे, लेकिन अब उन्हें अपने फैसले पर अफसोस हो रहा है।

बलियारी गांव की तरफ पश्चिम बंगाल सरकार ऊंचा बांध बना रही है, ताकि जलस्तर बढ़ने की सूरत में भी नमकीन पानी खेतों में न आ सके। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया पिछले तीन सालों से बांध बनाने की प्रक्रिया चल रही है। जमीन अधिग्रहण कर बांध का निर्माण किया जा रहा है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि बांध की चैड़ाई ठीक है, लेकिन ऊंचाई बहुत कम है, जिस कारण जलस्तर बढ़ने पर नमकीन पानी के खेतों में आने की गुंजाइश बनी रहेगी। कुछ द्वीपों में कुछ एनजीओ व सरकारी प्रयास से ऐसी फसलें उगाई जा रही हैं, जो खारे पानी में भी उग सकती हैं, लेकिन इस द्वीप में ऐसा कोई प्रयास अभी तक नहीं हुआ है। गौरतलब हो कि जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया के कई देशों खासकर समुद्र तट के करीब स्थित मुल्कों में सबसे ज्यादा दिख रहा है। सुंदरवन बंगाल की खाड़ी से सटा हुआ है, इसलिए यहां भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। यहां समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे यहां का जीवन कठिन होता जा रहा है। समुद्र के जलस्तर में इजाफे की तस्दीक केंद्र सरकार ने भी की है। लोकसभा में पेश की गई अर्थ साइंस मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक डायमंड हार्बर जो सुंदरवन के पास स्थित है, में प्रति वर्ष 5.16 मिलीमीटर की दर से जलस्तर में इजाफा हो रहा है। ये राष्ट्रीय औसत से 4 मिलीमीटर अधिक है।  

80 वर्षीय जलालुद्दीन शाह बलियारी के हाईस्कूल में पढ़ाते हैं। वह मूलतः सागरद्वीप के रहनेवाले हैं, लेकिन टीचर की नौकरी लगी, तो सत्तर के दशक में सागरद्वीप छोड़ कर यहां आ गए। यहां जमीन ले ली और घर बना लिया। उनकी शादी यहीं हुई। आज वह जब बलियारा को डूबते हुए देख रहे हैं, तो उन्हें अब अपने फैसले पर अफसोस हो रहा है।  वह कहते हैं, ‘कमोबेश हर साल सागर का खारा पानी गांव में घुस जा रहा है। बहुत सारी जमीन भी कट कर पानी में चली गई है। मैं जब यहां आया था, तो जमीन बहुत सस्ती थी, 13-14 बीघा जमीन खरीद ली थी, लेकिन सब पानी में चला गया। मेरी आंखों के सामने ही कई परिवार ये गांव छोड़ कर बेहतर भविष्य के लिए कहीं और चले गए, लेकिन मैं धूप, बारिश को सहते हुए यहीं पड़ा हूं।’ जब इतने परिवार अन्य जगहों पर चले गए, तो जलालुद्दीन शाह क्यों नहीं गए? ये सवाल सुनकर वह कुछ पल के लिए खामोश हो जाते हैं और फिर कहते हैं, ‘मैंने जब यह द्वीप छोड़ने का सोचा, तब तक मेरे पास उतने पैसे नहीं बचे थे कि अन्य जगह जाता।’ उनके पास अभी महज डेढ़ बीघा जमीन बची है, जिस पर थोड़ी-बहुत खेती हो जाती है। इसके अलावा उन्हें पेंशन मिलती है, जिससे किसी तरह उनका परिवार चल रहा है। वह कहते हैं, ‘जब मैं यहां आया था, तो मुझे जरा भी इल्म नहीं था कि एक वक्त ऐसा भी आएगा कि नदी द्वीप को काटना शुरू कर देगी और खेत बंजर हो जाएंगे। वरना मैं यहां नहीं आता।’ 
 
(लेखक नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया के फेलो हैं और ये स्टोरी एनएफआई फेलोशिप के तहत प्रकाशित की गई है)

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