कहने को तो गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकारी स्तर पर ढेरों प्रयास हो रहे हैं, लेकिन सच तो ये है कि ये प्रयास जमीन पर उतरते नजर नहीं आ रहे हैं।
इसकी ताजा मिसाल बिहार सरकार की तरफ से नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को दी गई रिपोर्ट में देखने को मिली है। ये रिपोर्ट नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की तरफ से नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल में जमा की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार सरकार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स स्थापित करने में देर कर रही है और कई प्रोजेक्ट तो सालों से लंबित पड़े हुए हैं।
नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल में जमा की गई रिपोर्ट में 30 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की जानकारी दी गई हैं, जिनमें से ज्यादातर प्लांट्स का काम विलम्ब से चल रहा है। इन प्लांट्स के बन जाने से औद्योगिक कचरा और गंदा पानी सीधे नदियों में नहीं गिरेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम पांच स्थानों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम ट्रेंडर में देरी होने के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहा है और ऐसा तब हो रहा है जब केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय ने लगातार इसकी याद दिलाई है, जरूरी मदद व मार्गदर्शन भी दिया।
गंगा से मिलती हैं 13 सहायक नदियां
बिहार में गंगा की 13 सहायक नदियां हैं। इन नदियों में पुनपुन, रामरेखा, शिकरहाना, सिरसिया, परमार, सोन, बूढ़ी गंडक, गंडक, बागमती, कोसी, महानंद और किउल शामिल हैं। इन नदियों में शहर का गंदा पानी व औद्योगिक कचरा सीधे गिरता है, जो आखिरकार गंगा नदीं में जाकर गंगा को प्रदूषित करता है।
जर्नल ऑफ अल्ट्रा केमिस्ट्री नाम के जर्नल में छपे एक शोधपत्र के मुताबिक, रोजाना 6420 क्यूबिक मीटर घरेलू तरल कूड़ा और 48249 क्यूबिक मीटर औद्योगिक तरल कूड़ा गंगा नदी में गिरता है।
केंद्र सरकार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित कर इन्हें परिशोधित करना चाहती है। इसके लिए प्राथमिक चरण पुनपुन नदी का चयन किया था और 7 एमएलडी क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स स्थापित करने की योजना को मंजूदी दी गई थी। बाद में अन्य नदियों के लिए परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई।
जलशक्ति मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, 13 नदियों में गिरने वाले गंदे पानी और औद्योगिक कचरों के परिशोधन के लिए 30 प्लांट्स स्थापित किया जाना है, जिनकी क्षमता करीब 632 एमएलडी होगी। इसके साथ ही 1743 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन भी बिछाई जाएगी।
केंद्र सरकार ने नीतीश को लिखी चिट्ठी
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में हो रही देरी को लेकर केंद्र सरकार ने जुलाई महीने में ही बिहा के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा था। पत्र में जलशक्ति मंत्री ने लिखा, “आधिकारिक स्तर पर निर्णय में हो रहे विलंब से परियोजनाओं में आ रही बाधा हम सबके लिए चिंता का विषय है। बिहार में स्वीकृत 30 परियोजनाओं में से केवल 20 परियोजनाएं क्रियान्वयन या कांट्रैक्ट की स्थिति में हैं। 10 परियोजनाएं अभी भी निविदा प्रक्रिया में काफी समय से लंबित हैं। मुझे ये बताते हुए दुख है कि 10 लंबित परियोजनाओं में से किसी की भी निविदा प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। मैं इन परियोजनाओं में से कुछ की वर्तमान स्थिति से जुड़ी जानकारी साझा करना चाहूंगा, जिससे परियोजनाओं के क्रियान्वयन में हो रहा विलम्ब स्पष्ट हो जाएगा।”
इन प्लांट्स में हो रही देरी
नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल में जमा रिपोर्ट के मुताबिक, दानापुर, फुलवारीशरीफ, फतुहा की कुल तीन परियोजनाओं का टेंडर इस साल जनवरी में ही जारी हुआ था, लेकिन 6 महीने बाद भी कार्य का आवंटन नहीं हुआ। जबकि ये तीनों परियोजनाएं फरवरी, 2019 से पहले ही मंजूर हो गई थीं।
इसी तरह बक्सर, मुंगेर, हाजीपुर और बेगूसराय की चार परियोजनाएं 2011-2012 में ही शुरू की गई थीं, लेकिन इतने वर्षों में केवल बेगूसराय में प्लांट स्थापित करने में ही प्रगति हो पाई है और वो भी केवल कार्य का आवंटन हुआ है। हाजीपुर में दो साल पहले ही प्लांट की मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन अभी तक इस पर भी कोई काम शुरू नहीं हुआ है। वहीं, बरहिया, कहलगांव और खगड़िया में प्लांट स्थापित करने को लेकर अभी तक वित्तीय मूल्यांकन भी नहीं हुआ है।
बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को बताया है कि कई परियोजनाओं पर कोविड-19 के चलते लॉकडाउन लगने के कारण काम नहीं हो सका और देर हो गई। हालांकि, सरकार की ये दलील आधा सच ही है क्योंकि नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल में जो रिपोर्ट सौंपी गई है, उसमें ये भी कहा गया है कि कई परियोजनाएं 6-7 साल से विलम्ब चल रही हैं। इसका मतलब है कि बिहार सरकार गंभीर ही नहीं है।
बिहार सरकार गंगा नदी के किनारे के जिलों में जैविक कॉरिडोर बनाना चाह रही है। ऐसे में अगर गंगा नदी को साफ रखा जाता है, तो इससे बिहार सरकार को ही फायदा होगा। अतः जरूरी है कि बिहार सरकार युद्धस्तर पर काम करे और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का काम पूरा कराए।