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आईबीएन-7, 21 अक्टूबर 2012
जल ही जीवन है। इसके बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती। तालाब पानी का सबसे अच्छा और परंपरागत स्रोत है लेकिन आज तालाबों पर अवैध कब्जा तथा कचरा डालने की जगह मात्र बनकर रह गया है। आधुनिक एवं भौतिकवाद की चकाचौंध के बीच जहां लोग मूलभूत सुविधाओं को प्राप्त करने के विकल्प ढूंढने में लगे हैं, वहीं पारम्परिक संसाधनों की उपेक्षा उनके लिए भारी बनी है जिनमें मुख्यत: पीने के पानी के लिए चारों ओर हा-हाकार मचा हुआ है। वर्तमान समय में उपेक्षा के शिकार तालाब सूने हो गए हैं जिनके जल से तन-मन शीतल होता था आज उनकी ओर कोई देखता तक नहीं। आम आदमी तो क्या स्वयं जिम्मेदार पंचायतें, प्रशासन एवं विभाग भी अनदेखी करने से नहीं चूक रहे हैं। यदि ऐसे ही उपेक्षा का दौर रहा तो भावी पीढ़ियों को तालाब का अर्थ ही मालूम नहीं होगा और ये चीजें उनके लिए किसी अजूबे से कम नहीं होंगी। कहते हैं प्यासे को कुएं के पास चलकर जाना पड़ता है, कुआं उसके पास नहीं आता लेकिन वर्तमान समय में यह स्थिति ठीक इसके विपरीत हो गई है। अब तो घरों में पानी पाइप लाइन के माध्यम से यानी खुद कुआं प्यासे के पास जाने लगा है।