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जनसत्ता, 16 फरवरी 2015
बकले ने ‘मेल्टडाउन इन तिब्बत : चाइनाज रेकलेस डिस्ट्रक्शन ऑफ इकोसिस्टम्स फ्रॉम हाईलैंड ऑफ तिब्बत टू द डेलटाज ऑफ एशिया’ में वैश्विक ताकत के रूप में चीन के उभरने के नकारात्मक पक्षों को सामने लाने का प्रयास किया है।
नई दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा)। एक कनाडाई पर्यावरणविद ने चेतावनी दी है कि अगर तिब्बत में नदियों पर चीन के प्रस्तावित सारे बड़े बांध चालू हो जाते हैं तो ब्रह्मपुत्र नदी कभी अपने मूल स्वरूप में नहीं रहेगी। इस विषय पर गहन अनुसंधान करने वाले कनाडाई पर्यावरणविद माइकल बकले ने कहा- फिलहाल चीनी इंजीनियर सांगपो (ब्रह्मपुत्र) के मध्यमार्ग में जलप्रपात पर पाँच बांधों का निर्माण कर रहे हैं। 540 मेगावाट क्षमता वाला बांध झांगमू पहले ही शुरू हो चुका है। यह बांध लहासा के दक्षिणपूर्व में 86 मील की दूरी पर है। इस जलप्रपात पर अन्य बांधों का निर्माण चल रहा है।उन्होंने कहा-चीन दावा करता है कि इन बांधों का नदी के निचले हिस्से पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन तथ्य यह है कि ये बांध तो बस शुरुआत हैं, उससे भी बड़े-बड़े बांधों की योजना है जैसे यारलंग सांगपो सहायक नदी पर 800 मेगावाट क्षमता वाला झांग्यू बांध। तिब्बत में सांगपो (ब्रह्मपुत्र) और उसकी सहायक नदियों पर कम से कम 20 बड़े बांध प्रस्तावित हैं। अगर सारे बांध चालू हो गए तो यह नदी फिर कभी अपने वर्तमान स्वरूप में नहीं होगी।
बकले ने ‘मेल्टडाउन इन तिब्बत : चाइनाज रेकलेस डिस्ट्रक्शन ऑफ इकोसिस्टम्स फ्रॉम हाईलैंड ऑफ तिब्बत टू द डेलटाज ऑफ एशिया’ में वैश्विक ताकत के रूप में चीन के उभरने के नकारात्मक पक्षों को सामने लाने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि चीन में ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों पर बड़े बांधों के निर्माण से असम और अरुणाचल प्रदेश की पारिस्थितिकी खतरे में है।