बूंद-बूंद पानी

Submitted by admin on Sat, 11/20/2010 - 07:30
Source
अमर उजाला, 19 नवम्बर 2010
उत्तराखंड के चंपावत जिले से 45 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है, तोली। जौलाड़ी ग्रामसभा के इस गांव में करीब 24 परिवारों का बसेरा है। आज से दो दशक पहले यहां पानी की बहुत किल्लत थी। लोगों को बहुत दूर से पानी ढोना पड़ता था। लेकिन आज ऐसा नहीं है। अब हर आंगन में पानी पहुंच चुका है। गांव वालों को यह सुविधा किसी सरकारी योजना से नहीं, बल्कि इसी गांव के निवासी कृष्णानंद गहतोड़ी और पीतांबर गहतोड़ी की सूझबूझ और प्रयासों से मिली है। असल में, गांव की ऊपरी दिशा में बहने वाले कुछ बरसाती गधेरों (नालों) में बरसात को छोड़कर अन्य मौसम में पानी कम मात्रा में ही कहीं-कहीं पर बहता दिखाई देता था। लिहाजा इसी कीमती पानी का इस्तेमाल कर गहतोड़ी बंधुओं ने अपनी तकनीक के जरिये लोगों तक पहुंचा दिया। अब गांव वालों को न केवल पीने का पानी मिल रहा है, बल्कि सब्जियों की सिंचाई व मछली पालन में भी उसका बखूबी उपयोग हो रहा है।

प्लास्टिक पाइपों के जरिये पहुंच रहे इस पानी का गांव वाले सार्वजनिक उपयोग करते हैं। यह सामूहिक जल प्रबंधन की एक नई मिसाल भी है। प्रत्येक परिवार द्वारा अपने घर में छोटे-छोटे टैंक बनाए गए हैं। अगल-बगल रहने वाले तीन-चार परिवार बारी-बारी से इस पानी को अपने टैंकों में जमा कर लेते हैं। सभी परिवारों द्वारा टैंकों में पानी भर लेने के बाद बचे अतिरिक्त पानी की निकासी बड़े तालाब में कर दी जाती है। वर्तमान में गांव के करीब सात-आठ परिवारों ने इस तरह के तालाब बनाए हैं। अमूमन 100 से 250 वर्गमीटर आकार वाले ये तालाब इन परिवारों की आय का साधन भी बने हुए हैं। तालाब में एकत्रित पानी का उपयोग सब्जियों की सिंचाई व मछली पालन में किया जाता है। इतना ही नहीं, चूंकि इन तालाबों के कच्चा होने के कारण पानी रिसकर जमीन में जाता है, इसलिए ये तालाब जमीन में नमी बनाए रखने और जल स्रोतों को अक्षुण्ण रखने में भी सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

अल्मोड़ा के उत्तराखंड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान के मार्गदर्शन और आर्थिक सहयोग से संचालित पर्यावरण संरक्षण समिति के माध्यम से गहतोड़ी बंधुओं ने उत्तराखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में जल संरक्षण का यह कार्य किया है। इसके अलावा पर्यावरण, बालवाड़ी व स्वच्छ शौचालय के प्रति भी वे लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। प्लास्टिक पाइपों के जरिये बूंद-बूंद पानी के उपयोग के इस सफल प्रयोग से सीख लेकर आसपास के जौलाड़ी, बरौला, रौलामेल, बूंगा, कमलेख, पंतोला, सिमलखेत जैसे गांवों में भी लोगों ने 57 से अधिक तालाब बनाए हैं। इन तालाबों का उपयोग भी सब्जी व मछली उत्पादन में किया जाता है।