अल्लाह मेघ दे.......
मेघ दे
पानी दे, गुड़धानी दे......
बूंदों के लिए भगवान से कई तरह की आराधनाएं की जाती हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में मेघ बाबा को प्रसन्न करने की अलग-अलग मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कहीं-कहीं समाज घर से खाना बनाकर गांव के बाहर किसी खेत के किनारे एकत्रित होकर एक साथ भोजन करता है। कहीं समाज का संभ्रान्त वर्ग भी पानी देवता को मनाने के लिए झोली फैलाकर अन्न मांगने निकलता है। उसी एकत्र पदार्थ से वह उस दिन अपने परिवार की पेट-पूजा कराता है। इस परम्परा के पीछे संभवतः यह मान्यता रही होगी कि समाज में कुछ लोगों के दंभ के कारण तो कहीं इन्द्र देवता बरसने से रुठे तो नहीं बैठे हैं। चलो, झोली फैलाकर इस बहाने ही सही संभ्रान्त वर्ग अपने अहं को थोड़ा तरल कर लेता है। और संगीत के माध्यम से ईश्वर की आराधना करने वालों के लिए कहा जाता है कि जब कोई सिद्ध संगीतज्ञ राग मेघ-मल्हार की तान छेड़ दे तो बादल भी पिघलकर बरसने लगते हैं।
बूंदों की पूजा की अलग-अलग परम्पराएं अनादिकाल से समाज में रच बस रही हैं, और इन पुजारियों को भी किसी देवता से कम नहीं आंका गया है। दरअसल पानी रोकने वाले खुदा के बंदे ही तो हैं। हमने बूंदों से बदलाव की खोज और शोध यात्राओं में अनेक स्थानों पर बूंदों को सन्त के रूप में पाया है। मानों किसी कस्बे में कोई सिद्ध सन्त विचरण कर रहा हो। पौराणिक सन्दर्भों के अध्याय पलटे तो पाते हैं कि बूंदों की पूजा करने वालों को हर रूप में वंदनीय माना गया है। जब हमने नर्मदाघाटी के सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र के गांवों की यात्राएं की तो यजुर्वेद के श्लोक याद आते रहे। इस ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है कि छोटी-छोटी जल संरचनाएँ किस तरह समाज के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
पानी रोको अभियान के दौरान गांव-गांव, डगर-डगर खड़े हुए समाज को देखकर भी इस ग्रन्थ के कुछ वाक्य स्मृति पटल पर उभर आये-
1. नमः काट्याय च – कुआं आदि बनाने में कुशल कारीगरों को प्रणाम।
2. नमः नीप्याय च – झरना आदि बनाने में कुशल लोगों को प्रणाम।
3. नमः कुल्याय च – नहर बनाने में निपुण लोगों को प्रणाम।
4. नमः सरस्याय च – तालाब आदि बनाने में कुशल व्यक्तियों को प्रणाम।
5. नमो नांदयाय च – नदियों की व्यवस्था करने वाले कुशल प्रबंधकों को प्रणाम।
6. नमः वैशनाय च – छोटे तालाब बनाने में कुशल व्यक्तियों के लिए नमस्कार हो।
7. नमो मेघन्य च – मेघ विज्ञान में कुशल व्यक्तियों के लिए नमस्कार हो।
8. नमो विध्याय च – असमय में मेघों के निर्माण के जानकारों को प्रणाम।
9. नमो वर्ष्याच च – वर्षा विज्ञान में कुशल लोगों को नमस्कार।
जब-जब हमने बूंदों की मनुहार के लिए जल संरचनाएँ तैयार करते जिंदा समाज को देखा तब-तब लगा जैसे कोई यज्ञ की तैयारियां की जा रही है। कन्टूर ट्रेंच नही मानों हवन कुंड बन रहे है। बोल्डर चेक्स न होकर मानों यहां के लिए समिधाएं एकत्रित की जा रही हों। अनेक गांवों में पानी के लिए गाये जा रहे लोकगीत, भजनों के समान ही लगे। मिट्टी-गारे और पसीने से सना सामाज पिताम्बर वस्त्र धारण किये नजर आया। बूंदों को प्रसन्न करने के लिए सारे जतन करने वाला यह समाज – बूंदों का पुजारी कहलाने लगा।
अब हम सिलसिलेवार जानते हैं, उन संरचनाओं के बारे में जो बूंदों की पूजा याने उनके रुके रहने के स्थान की तैयारी कर रही है।
बूँदों की मनुहार (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
|
1 |
|
2 |
|
3 |
|
4 |
|
5 |
|
6 |
|
7 |
|
8 |
|
9 |
|
10 |
|
11 |
|
12 |
|
13 |
|
14 |
|
15 |
|
16 |
|
17 |
|
18 |
|
18 |
|
20 |
|
21 |
|
22 |
|
23 |
|
24 |
|
25 |
|
26 |