भोपाल, 3 जनवरी।‘ताल तो भोपाल का और सब तलैया‘ की देश भर में मशहूर कहावत जिस झील की शान में रची गई, वह अब बेआब और बेनूर हो गई है। भोपाल की जीवनरेखा और पहचान है यहाँ की बड़ी झील। खासी हरियाली और झमाझम बरसात के लिए मशहूर भोपाल में अबकी इतनी कम बारिश हुई है कि इस विशाल झील का करीब 65 फीसदी हिस्सा सूख गया है। ज्यादातर बचा हिस्सा भी गर्मी तक सूखने के कगार पर पहुँच जाएगा। ऐसे हालात पहली दफा बने हैं। ऐसी स्थिति भी पहली बार बनी है कि जब भोपालवासियों को महीने भर से एक दिन छोड़कर जलप्रदाय किया जा रहा है। बड़ी झील से यहां की 40 फीसदी आबादी को जलप्रदाय किया जाता है। अबकी झील का स्तर डेड स्टोरेज लेवल के करीब पहुँच जाने के कारण इसमें करीब 15 किलोमीटर दूर बने कोलार डैम का पानी पाइप लाइन के जरिए डाला जा रहा है। अभी झील का जलस्तर करीब 1651 फुट है जबकि डेड स्टोरेज 1648 फुट है। इस तरह झील में जल प्रदाय के लिए फकत 3 फुट पानी बचा है। कोलार डैम का पानी झील में न पहुँचाया जाता तो इससे जल प्रदाय अब तक बंद हो चुका होता।
कोलार डैम से रोजाना चार मिलियन गैलन डिवीजन (एमजीडी) पानी बड़ी झील में डाला जा रहा है। तब जाकर रोज मात्र पाँच एमजीडी पानी भोपालवासियों को देना संभव हो पा रहा है। इतना ही पानी नलकूप, कुँए बावड़ी आदि अन्य स्थानीय स्रोतों से दिया जा रहा है। भोपाल में सर्वाधिक जलप्रदाय (35 से 40 एमजीडी) डैम से किया जा रहा है। इन सब स्रोतों से भी रोजाना करीब 50 एमजीडी जलप्रदाय ही संभव हो पा रहा है। जबकि जरूरत 70 से 80 एमजीडी पानी की है। इस तरह दैनिक आवश्यकता के मुकाबले कम से कम 20 एमजीडी पानी कम पड़ रहा है। इसी कारण नगर निगम को पहली दफा एक दिन के अन्तराल से जलप्रदाय करने का फैसला लेना पड़ा है।
इस पहाड़ी शहर की प्यास बुझाने के लिए राजा भोज ने 11वीं सदी में बड़ी झील बनवाई थी। भोज के नाम पर ही इस शहर का नाम भेजपाल पड़ा था जो बाद में घिसकर भोपाल हो गया। करीब एक हजार बरस पुरानी इस खूबसूरत झील का जल संग्रहण क्षेत्र 371 वर्ग किमी है जबकि जलभराव क्षेत्र 31 वर्ग किमी है। इसमें हमेशा इतना पानी भरा रहा है जिसके कभी खत्म होने के आसार नहीं माने जाते थे। इसीलिए यहाँ के लोग यह कह कर आशीर्वाद देते रहे हैं कि तब तक जिओ, जब तक भोपाल के ताल में पानी है। कम बारिश के कारण इस जीवनदायिनी झील में जल भराव 31 वर्ग किमी से सिकुड़ कर मात्र 7वर्ग किमी में सिमट गया है। झील का करीब 24 वर्ग किमी हिस्सा सूख गया है। शहर की गंदगी, कचरे व मिट्टी के जमाव ने झील को उथला अलग बना दिया है जिससे इसकी जल भंडारण क्षमता घट गई है। बेजा कब्जों और अवैध निर्माणों से भी झील का जल भराव क्षेत्र घटा है।
झील पर छाए अपूर्व संकट को भविष्य के लिए वरदान में बदलने के उद्देश्य से मप्र सरकार और भोपाल नगर निगम ने स्वागत योग्य पहल की है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रविवार को झील में श्रमदान कर ‘अपना सरोवर, अपनी धरोहर, बड़ा असर वाला संरक्षण अभियान‘ का शुभारम्भ किया है। इसके तहत झील की खुदाई कर इसमें जमा गंदगी और गाद को बाहर निकाला जा रहा है। इससे झील की सफाई हो रही है और जिससे जल संग्रहण क्षमता बढ़ेगी। यह अभियान छह महीने तक लगातार चलेगा। इसमें सरकारी व स्वायत्तशासी एजेंसियों के अलावा विभिन्न वर्गों और छात्र-छात्राओं को भी भागीदार बनाया जाएगा।
संरक्षण अभियान चलाने के लिए झील के जल भंडारण क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में दस स्थान चिन्हित किए गए हैं। झील संरक्षण प्रकोष्ठ के प्रभारी अधिकारी उदित गर्ग को नोडल अफसर बनाया गया है। दो पंजीयन काउंटर खोलकर उन संस्थानों और व्यक्ति समूहों के नाम दर्ज करना शुरू कर दिया गया है जो झील की सफाई व शहरीकरण के काम में हाँथ बटाना चाहते हैं। उन्हें श्रमदान के लिए गेंती, फावड़े, तगारी आदि मुहैया कराए जाएँगे। जेसीबी मशीनें भी काम करेंगी। अभियान के लिए क्लेक्टर भोपाल सहभागिता समिति के नाम बैंक ड्राफ्ट/चैक के रूप में आर्थिक सहयोग भी मांगा जा रहा है। झील की गाद को अपने खेत, बगीचे आदि में डालने के लिए किसान व अन्य लोग मुफ्त में ले जा सकेंगे।
इस गाद से जमीन का उपजाऊपन इतना बढ़ जाता है कि फसल उत्पादन में डेढ़ से दो गुना तक इजाफा हो जाता है। साथ ही खाद पर होने वाला खर्च और रासायनिक खाद से खेत बगीचे की उर्वरा शक्ति को होने वाला नुकसान भी बच जाता है। झील संरक्षण अभियान का यह अतिरिक्त लाभ हजारों खेतों तक पहुँचेगा। अगले छह माह तक रोज सुबह से शाम तक चलने वाली इस मुहिम में लाखों लोगों को भागीदार बनाने की तैयारी की जा रही है। झील के हजार बरस पुराने इतिहास में यह पहला मौका है जब इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने के लिए इतनी लंबी अवधि तक और इतने बड़े पैमाने पर जन सहभागिता सुव्यवस्थित अभियान चलाने की योजना बनाई गई है। समाचार माध्यम भी इसमें पूरा सहयोग कर रहे हैं।