फंडामेंटल्स ऑफ ज्योग्राफिक इन्फॉरमेशन सिस्टम के लेखक श्री पी.एल.एन. राजू के अनुसार, ''भू-सूचनाविज्ञान अंतरिक्ष सूचना, इसके अधिकार, इसके वर्गीकरण, योग्यता, इसके भंडारण, प्रोसेसिंग, चित्रण करने के लिए आवश्यक आधारिक संरचना से जुड़ा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी है।” साधारण शब्दों में, भू-सूचनाविज्ञान ऐसा साधन एवं प्रौद्योगिकी है जो संकलन एवं विश्लेषण के लिए अपेक्षित होती है और इसमें पृथ्वी तथा अंतरिक्ष से इसके संसाधन निहित होते हैं, अंतरिक्ष की सूचना पृथ्वी की सीमाओं, महासागर, प्राकृतिक विशेषताओं, मानव-निर्मित संरचनाओं तथा अन्य तथ्यों की भौगालिक अवस्थिति से संबंधित हो सकती है।
यह सूचना भूगोल भू-विज्ञान तथा समवर्गी इंजीनियरी क्षेत्रों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में सहायक होती है। भू-सूचनाविज्ञान इमेज की रिपोर्ट सेंसिंग, मैपिंग, मॉडलिंग, डाटा विश्लेषण, कप्यूटर प्रोग्रामिंग, भूअंतरिक्ष डाटाबेस का विकास करने तथा सूचना प्रणालियों की रूपरेखा तैयार करता है। भूसूचना विज्ञान का, व्योकप्यूटेशन तथा व्याविजुवलाइजेशन नामक तकनीकों का उपयोग करते हुए मूल्यांकन किया जाता है।
संगणन (कप्यूटेशन) एवं विश्लेषण के परिणाम प्रयोक्ताओं के अनुकूल रूप में सुरक्षित रखे जाते हैं इन्हें नियमित रूप में अद्यतन किया जाता है।
इस अंतरविषयीय विज्ञान का अनेक क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है, जिनमें सिविल इंजीनियरी, पर्यावरण इंजीनियरी, खनिज अन्वेषण, कृषि, वानिकी, लोक स्वास्थ्य, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, रक्षा, यहां तक कि वाणिज्यिक व्यवसाय जैसे क्षेत्र भी शािमल हैं। इन-कार नौचालन, प्रणालियों, ऑटोमेटिक वेहिकल अवस्थिति प्रणालियों, उड्डयन, समुद्री परिवहन तथा यातायात नेटवर्क नियोजन इसी प्रौद्योगिकी पर आधारित होते हैं।
गूगल मैप्स उपग्रह नेवीगेशन प्रणालियां तथा जीपीएस सक्ष्म कैस भू-सूचनाविज्ञान के अनुप्रयोग हैं। मौसम विज्ञान, महासागर विज्ञान, अपराधविज्ञान तथा अपराध सिमुलेशन भी इसी प्रौद्योगिकी पर निर्भर होते हैं।
भू-सूचनाविज्ञान में हुए विकास भूगोल, भू-जलवायु परिवर्तन अध्ययन, पर्यावरण मॉडलिंग तथा विश्लेषण, आपदा प्रबंधन एवं तैयारी तथा दूरसंचार क्षेत्रों में हो रही प्रगति पर भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। वास्तुकला एवं पुरातात्विक पुनर्गठन में भी इस प्रौद्योगिकी को लागू किया जाता है।
शिक्षा :
भू-सूचनाविज्ञान सामान्यत: एमएससी या एमटेक पाठ्यक्रम के रूप में स्नातकोार स्तर पर पढ़ाया जाता है। भूगोल, भू-विज्ञान, कृषि, इंजीनियरी, आईटी अथवा कप्यूटर विज्ञान की पृष्ठ भूमि रखने वाले छात्र इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं। यह पाठ्यक्रम सिद्धांत अयास तथा क्षेत्रगत अध्ययन का मिश्रण है, विज्ञान की सशक्त पृष्ठभूमि इस क्षेत्र में अतिरिक्त रूप से लाभप्रद होती है। स्नातकोत्तर योग्यता प्राप्त करने के बाद छात्र इसमें पीएचडी कर सकते हैं। कई विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान संगठन छात्रों को इस विषय में पीएचडी के लिए पंजीकरण कराने की सुविधा देते हैं।
भू-सूचनाविज्ञान विषय अल्पकालीन डिप्लोमा तथा प्रमाणपत्र पाठ्यक्रमों के रूप में भी पढ़ाया जाता है। भू-सूचनाविज्ञान के अध्ययन में प्रोजेशन प्रणालियों, एनोवेशन डायमेंशन तथा प्लाटिंग डाटाबेस प्रबंधन 3डी विजुवलाइजेशन, थिमेटिका मैपिंग, रिमोट सेंसिंग प्लेटफार्स, भौगालिक सूचना प्रणालियों एवं सार्वभौमिक स्थितिक प्रणालियों के लिए प्रयुक्त तकनीक प्रौद्योगिकी एवं मॉडल शामिल होते हैं। वेब मैपिंग, फोटोग्रामेट्री कार्टोग्राफी, ज्योडेसी, आपदा प्रबंधन, सार्वभौमिक नौचालन उपग्रह प्रणालियां, रिमोट सेंसिंग एवं भौगोलिक सूचना प्रणालियां आदि कुछ इसके विशेषज्ञता के विषय हैं। इस विषय का अध्ययन छात्रों को भू अंतरिक्ष विज्ञान तथा प्रोद्योगिकी में नवीनतम ट्रैंड्स की जानकारी देता है।
इस क्षेत्र में एक सफल कॅरिअर के लिए उमीदवार विषय में मूल रुचि रखता हो, वह सीखने का इच्छुक हो, अन्वेषण करने समाधान तलाशने की जिज्ञासा रखता हो, विश्लेषिक कौशल, सकारात्मक सोच, सृजनशीलनता, संचार कौशल अन्य ऐसे गुण हैं जो इस क्षेत्र में लाभप्रद होते हैं।
रोज़गार :
भू-सूचनाविज्ञान में व्यवसायियों के लिए केन्द्रीय एवं राज्य सरकारी संगठनों, अनुसंधान संगठनों, शैक्षिक संस्थाओं तथा निजी व्यवसाय संगठनों में रोज़गार के अवसर उपलब्ध हैं। इन व्यवसायियों को कार्य पर रखने वाले कुछ केन्द्रीय सरकारी संगठन इस प्रकार हैं:- अंतरिक्ष विभाग- राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए, हैदराबाद) पूर्वोत्तर अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र, शिलांग, क्षेत्रीय रिमोट सेंसिंग अनुप्रयोग केन्द्र खड़गपुर, देहरादून, जोधपुर, नागपुर एवं बंगलौर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन बंगलौर, उच्च डाटा प्रोसेसिंग अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र, अहमदाबाद। इसके अतिरित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान तथा भारतीय कृषि अनुसंधान संगठन में भी इन व्यवसायियों के लिए रोज़गार के अवसर हैं। राज्य सरकारी संगठनों में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एनआईसी) तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र शामिल हैं ये संगठन विशेष रूप में भूसूचनाविज्ञान के स्नातकों को क.अन.अध्येता, व.अन.अध्येता एवं वैज्ञानिक/इंजीनियर के पदों पर रखते हैं।
निजी क्षेत्र में अवसरों की बात करें तो राष्ट्रीय सर्वेक्षण एवं मैपिंग, पर्यावरण इंजीनियरी, खनिज अन्वेषण, आपात सेवाओं, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अपराध मैपिंग, परिवहन तथा आधारित संरचना, यात्रा एवं पर्यटन, बाजार सर्वेक्षण तथा ई-कॉमर्स से जुड़े संगठन भू-सूचनाविज्ञान के व्यवसायियों को रोज़गार पर रखते हैं।
बड़े नियोताओं में, गूगल, टीसीएस, रिलायंस इंडस्ट्रीज, रिलायंस कयुनिकेशन्स, रिलायंस एनर्जी, साइबर टेक सिस्टस, ज्योफाइनी सर्विसेस, तथा अन्य संगठन शामिल हैं। सरकारी रोज़गार में दिए जाने वाले कुछ पद इस प्रकार हैं:- वैज्ञानिक, परियोजना समन्वयकर्ता, परियोजना वैज्ञानिक, तकनीकी सहायक, अनुसंधान स्कॉलर, अनुसंधान एसोशिएट एसोशिएट, जीआईएस विशेषज्ञ, तथा जीआईएस पर्यावरण विशेषज्ञ। वाणिज्यिक क्षेत्र में इन्हें परियोजना प्रबंधन, वरिष्ठ प्रणाली, विश्लेषक, जीआईएस इंजीनियर, जीआईएस प्रोग्रामर तथा भू-अंतरिक्ष सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद दिए जा सकते हैं। सामान्यत: इस क्षेत्र में कार्यों में निरंतर अलग-अलग स्थानों पर जाना निहित है।
वेतन:
वेतन मुख्य रूप से कार्य-भूमिका, कार्य की प्रकृति, नियोता, स्थान तथा विषय पर निर्भर होता है। वेतन रु. 2,50,000 से लेकर रु. 500000 प्रति वर्ष तक हो सकता है।
भू-सूचनाविज्ञान अभी भी अपने प्रारंभिक चरण पर है। तथापि, उद्योगों द्वारा अपने कार्यों के प्रबंधन में अंतरिक्ष सूचना का उपयोग करने के साथ ही यह क्षेत्र तीव्र गति से विकासशील है। इस विशेषज्ञता पूर्ण क्षेत्र में कुशल व्यवसायियों का भी अत्यधिक अभाव है। इसलिए भू-सूचनाविज्ञान उपलब्ध अवसरों एवं कार्य की प्रकृति दोनों दृष्टि से आशाजनक है।
कॉलेज एवं पाठ्यक्रम
कॉलेज | पाठ्यक्रम | पात्रता | प्रवेश | वेबसाइट |
कॉलेज विश्वविद्यालय चेन्नई | भूसूचना विज्ञान में बीई | 10+2 | प्रवेश परीक्षा में प्रदर्शन | |
पेट्रोलियम एवं ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय देहरादून | भूसूचना विज्ञान इंजी. में बीटेक | हायर एवं सीनियर सेकेंडरी स्तर पर न्यूनतम 60%अंक एवं सीनियर सेकेंडरी स्तर पर भौतिकी, रसायन विज्ञान एवं गणित में न्यूनतम कुल 60%अंक. | यूपीईएस इंजीनियरी अभिरुचि परीक्षा/या एआईईईई में प्रदर्शन | |
जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद | भूसूचना विज्ञान एवं सर्वेक्षण प्रौद्योगिकी में एमटेक | संबंधित विष्य में बीई/बीटेक | प्रवेश परीक्षा एवं गेट में प्रदर्शन प्रदर्शन | |
गुरू जांभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार | भूसूचना विज्ञान में एमटेक | पृथ्वी विज्ञान/पर्यावरण विज्ञान/कृषि-मौसम विज्ञान/कृषि विज्ञान/मृदा/भौतिक/भू-भौतिकी/अनुप्रयुक्त भूविज्ञान/गणित/रिमोट सेंसिंग/कंप्यूटर विज्ञान/आईटी/सॉफ्टवेयर/भूविज्ञान/महासागर विज्ञान/शहरी एवं क्षेत्रीय नियोजन/भूगोल में एम.एससी/सिविल/आईटी/इलेक्ट्रॉनिकी एवं संचार/कंप्यूटर/यांत्रिक इंजीनियरी/कृषि इंजीनियरी/वैद्युत इंजीनियरी/इलेक्ट्रॉनिक एवं वैद्युत इंजीनियरी में एमसीए/या बीई/बीटेक तथा अर्हता परीक्षा में न्यूनतम 55%अंक | गेट या प्रवेश-परीक्षा में प्रदर्शन तथा अर्हता परीक्षा में प्राप्त अंक | |
बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान, मेसरा | भूसूचना विज्ञान में एमएससी | (क) कृषि/वायुमंडल विज्ञान/कृषि मौसम विज्ञान वनस्पति विज्ञान/रसायन विज्ञान/कंप्यूटर अनुप्रयोग/कंप्यूटर विज्ञान/मात्स्यिकी/वानिकी/भूगोल/सूचना विज्ञान/गणित/महासागर विज्ञान/मृदाविज्ञान/सांख्यिकी/नगर नियोजन/प्राणिविज्ञान/समवर्गी विषयों में स्नातक तथा न्यूनतम 60%अंक (ख) बारहवीं कक्षा/इंटरमीडिएट में भौतिकी/गणित सहित न्यूनतम 60%अंक अंकों का परिकलन भौतिकी/गणित सहित श्रेष्ठ 5 विषयों के औसत के रूप में किया जाएगा।
(ग) उम्मीदवार स्टीरियोस्कोपिक विजन एवं सामान्य रंग-दृष्टि रखता हो। |
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भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान, देहरादून | भू सूचना विज्ञान में एम.एससी | भौतिकी (कंप्यूटर विज्ञान (या अनुप्रयोग)/गणित/प्रकृति विज्ञान, भूविज्ञान, शहरी एवं क्षेत्रीय नियोजन में एमएससी/बीई/बीटेक (सीविल/इलेक्ट्रॉनिकी/कंप्यूटर) तथा बीएससी (4 वर्षीय प्रथम क्षेणी में) | अर्हता परीक्षा में प्राप्त अंक |
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यह लेख TMIE2E अकादमी करियर सेंटर, सिकंदराबाद के सौजन्य से प्राप्त हुआ है।
ईमेल. faqs@tmie2e.com