मानव शरीर का लगभग 70 प्रतिशत भाग पानी है और शरीर में 5 से 20 प्रतिशत पानी की कमी घातक हो सकती है। पानी के लगभग सभी भौतिक व रासायनिक गुण प्रकृति में अपवाद है। यह सचमुच विश्व का सबसे विलक्षण द्रव्य है। अपनी विसंगत ऊर्जा पारवैद्युत वेधिता के कारण ही पानी सबसे शक्तिशाली घोलकों में से एक माना जाता है। इसका यही गुण विविधता का आधार है।
आज हमें जल की 18 विभिन्न किस्में ज्ञात हैं। जल अपनी घोलक क्रिया के कारण खनिजों व लवणों में शीघ्र दूषित हो जाता है। जल गुणवत्ता का सम्पूर्ण आकलन 60 प्रकार के गुण और विशेषताओं के विश्लेषण के आधार पर किया जाता है। अनेक प्रकार की त्रासदियों से यह प्रमाणित हुआ है कि जहाँ किसी तत्व विशेष की अल्पमात्रा स्वास्थ्यवर्धक है वहीं उसकी थोड़ी अधिक मात्रा हानिप्रद या जानलेवा भी हो सकती है।
जापान में पारा जनित मिनिमाटा त्रासदी, शीशे व जस्ते उद्योग के उच्छिष्ट से अनेक संघातिक प्रभाव, लव केनाल में दफन दशकों पूर्व विषाक्त अपशिष्टों का हजारों बच्चों और प्रवासियों पर जानलेवा प्रभाव, पश्चिमी बंगाल में पेयजल से संखिया व देश के अन्य भागों में आयोडीन की कमी से गलगण्ड आदि रोगों और पीड़ाओं के कुछ उदाहरण इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि पेयजल में किसी तत्व की कमी और अधिकता जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
फ्लोराइड भी एक ऐसा तत्व है जिसकी कमी दन्तक्षरण और हड्डियों के अपूर्ण विकास जैसे रोग पैदा कर सकती है तो दूसरी ओर इसकी 15 मि.ग्रा./ली. से अधिक की मात्रा समय के साथ शरीर में धीरे-धीरे संचित होकर दन्त और अस्थि तन्त्रीय फ्लोरोसिस पैदा करती है। आज विश्व में कई देशों अर्जटिना, अमेरिका, मोरक्को, अलजीरिया, लीबिया, मिस्र, जोर्डन, सीरिया, तुर्की, ईराक, ईरान, पाकिस्तान, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, चीन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, जापान, थाईलैण्ड, भारत, रूस, पुर्तगाल व कोरिया आदि में फ्लोरोसिस से लाखों लोग प्रभावित हो चुके हैं।
फ्लोराइड प्रदूषण एक गम्भीर पर्यावरणीय स्वास्थ्य समस्या के रूप में सामने आ रहा है। अत्यधिक फ्लोराइड युक्त भूजल अथवा खाद्य पदार्थ आदि का प्रयोग करने वाले लोग दन्त अस्थि रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। भारत में वर्ष 1937 में पहली बार आंध्र प्रदेश के नल्लौर जिले में फ्लोराइड युक्त भूजल के प्रयोग से पशुओं में दन्त अस्थि रोगों के मामले प्रकाश में आए।
राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन के अनुसार आज भारत के 15 राज्य इस समस्या से ग्रस्त हैं। ये राज्य हैं - बिहार, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान। इन राज्यों में ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में फ्लोराइड प्रदूषण पाया गया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार यहाँ के लगभग 320 लाख मनुष्य फ्लोराइड से सम्बन्धित विभिन्न विकारों से पीड़ित हैं और आने वाले वर्षों में यह संख्या लगभग दुगनी हो सकती है।
फ्लोराइड, फ्लोरीन तत्व का एक यौगिक है, फ्लोरीन हेलोजन समूह का एक अति सक्रिय अधातु तत्व है परन्तु यह प्राकृतिक अवस्था में स्वतन्त्र रूप में नहीं पाया जाता है। पृथ्वी की परत में बहुतायत से पाए जाने वाले तत्वों में इसका स्थान सत्रहवाँ है।
यह यौगिक अवस्था में कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थों के साथ पाया जाता है। जल, वायु, रेत, चट्टानों, पौधों तथा जानवरों में फ्लोराइड अलग-अलग मात्रा में पाया जाता है। प्रकृति में मुख्यतः यह निम्न तीन अयस्कों के रूप में पाया जाता है - फ्लोरस्पार, क्रायोलाइट और फ्लोराएपाटाइट।
भारत में भू गर्भीय, भौगोलिक और वातावरणीय व्यवस्थाएँ अन्य देशों में भिन्न हैं। फ्लोराइड जनित रोग फ्लोरोसिस की भारत में वर्ष 1937 में पहचान की गई थी। 1937 से 1970 की अवधि इस रोग की व्यापकता कारण और निवारण के सर्वेक्षण में बीत गई। सभी राज्य फ्लोरोसिस नियन्त्रण में आज प्रयासरत हैं।
भारत सरकार ने फ्लोरोसिस की समस्या के निवारण के लिए राष्ट्रीय तकनीकी मिशन (पेयजल) के तहत एक उप मिशन फ्लोरोसिस नियन्त्रण की स्थापना की है। भारत में 1991 से 1993 के सर्वेक्षणों के अनुसार 15 प्रान्तों के 8700 गाँवों में बसे 250 लाख व्यक्ति फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं और इसलिए इन्हें एन्डेमिक घोषित किया गया है।
राजस्थान प्रदेश भी उनमें से एक है। 1991-1993 की सर्वेक्षण गणना के अनुसार 37,889 गाँवों और 43,311 ढाणियों, मंगरों और बसावटों में से क्रमशः 9,741 और 6,819 में पेयजल स्रोतों में 1.5-3.00 मि.ग्रा./ली. से अधिक की फ्लोराइड मात्रा पाई गई है। प्रदेश के शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्र जहाँ भू-गर्भीय फ्लोराइड युक्त खनिज है। बहुधा जल स्रोतों में 3.0 मि.ग्रा./ली. से अधिक फ्लोराइड मिलता है।
प्रदेश के मुख्य रूप से प्रभावित जिलों में अजमेर, बाड़मेर, अलवर, भरतपुर, चितौड़गढ़, चूरू, दौसा, धौलपुर, जालौर, जोधपुर, झुन्झुंनू, पाली, राजसमन्द, सवाई माधोपुर, सीकर, श्रीगंगानगर व टोंक आदि हैं।
देश विदेश के स्वास्थ्य संगठनों ने पेयजल के लिए फ्लोराइड की मात्रा का निर्धारण किया है। पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा किसी भी स्थिति में इसकी अधिकतम स्वीकार्य मात्रा 2.0 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों के भूजल का विस्तृत भौतिक-रासायनिक अध्ययन कर पाया गया है कि नागौर, बाड़मेर, जालोर, पाली, सिरोही, सीकर, झुन्झुनु, तथा चूरू आदि के भूजल में फ्लोराइड की विषाक्तता हो चुकी है, एक चिन्तनीय विषय है।
राजस्थान के अलवर जिले के 20 गाँवों के पानी के विभिन्न स्रोतों के नमूनों का रासायनिक परीक्षण किया गया। यहाँ पानी की गुणवत्ता भारतीय पेयजल गुणवत्ता मानक एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित पेयजल की गुणवत्ता से बहुत अधिक फ्लोराइड मात्रा है।
फ्लोराइड प्रदूषण के स्रोत
फ्लोराइड प्रदूषण के मुख्य स्रोत भूजल, खाद्य पदार्थ, औद्योगिक कचरा, दवाइयाँ एवं टूथपेस्ट इत्यादि हैं। भूमिगत जल में अक्सर उस क्षेत्र में पाए जाने वाले खनिज कुछ मात्रा में उपस्थित होते हैं। संसाधनों के उचित प्रबन्धन के अभाव में यह उपस्थित कमी कभी अनुकूल सान्द्रता से अधिक हो जाती है और भूमिगत जल को प्रदूषित कर देती है। फ्लोराइड, आर्सनिक, पारा, निकल, टिन आदि से प्रदूषित जल इसके उदाहरण हैं।
शोध परिणामों से यह सुनिश्चित हो चुका है कि फ्लोराइड से सम्बन्धित दुष्प्रभावों का मुख्य कारण फ्लोराइडयुक्त भूजल का पेयजल के तौर पर प्रयोग किया जाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा 1.3 मिली ग्राम/लीटर निर्धारित की है लेकिन फ्लोराइड प्रदूषण प्रभावित राज्यों में यह मात्रा 39 मिली ग्राम/लीटर तक पाई गई।
भारत में प्रयोग किए जाने वाले कुछ खाद्य पदार्थ जैसे समुद्री मछली, पनीर, पान मसाला, तम्बाकू व चाय में फ्लोराइड 100 मिली ग्रा./लीटर तक पाया जाता है। बाजार में बिकने वाला कोई भी टूथपेस्ट फ्लोराइड रहित नहीं है। इन टूथपेस्ट में फ्लोराइड की मात्रा 800 से 1000 मिली ग्राम/लीटर तक पाई गई है।
विभिन्न उद्योगों जैसे तेल शोधक कारखानों, खनिजों, प्लास्टिक, आटो मोबाइल, फार्मास्युटिकल, रसायन, सौंदर्य प्रसाधन, चीनी मिट्टी उद्योग आदि में या तो फ्लोराइड मुक्त खनिज का प्रयोग होता है या फ्लोराइड युक्त पदार्थ बनाते है। इन उद्योगों से उड़ने वाली धूल में फ्लोराइड बहुतायत में होता है और जब मनुष्य इन उद्योगों के आसपास के क्षेत्र में आता है तो सांस द्वारा हवा में विद्यमान फ्लोराइड मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है।
साँस द्वारा अन्दर खींचा गया फ्लोराइड भी उतना हानिकारक होता है जितना कि पेयजल व खाद्य पदार्थ में उपस्थित फ्लोराइड। देश के विभिन्न भागों से वैज्ञानिकों द्वारा 1970 से 1980 के दशक के बीच जिन खाद्य पदार्थों में फ्लोराइड की मात्रा की जाँच की गई है उन्हें तालिका में दर्शाया गया है। इस तालिका से पता चलता है कि हमारे द्वारा प्रयोग किए जाने वाला शायद ही कोई खाद्य पदार्थ फ्लोराइड रहित है।
फ्लोराइड एक दोधारी तलवार के समान है। इसकी अधिक मात्रा शरीर में फ्लोरोसिस नामक विकार उत्पन्न करती है और कम मात्रा मसूडों की सड़न जैसे विकार उत्पन्न करती है। भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने पर जल के रंग व स्वाद पर कोई बदलाव नहीं आता, इसलिए लोग इसकी उपस्थिति से अनजान प्रदूषित जल का प्रयोग करते जाते हैं और फ्लोरोसिस का शिकार हो जाते हैं।
दाँतों के फ्लोरोसिस में दाँत अपनी चमक खो देते हैं। इन पर पीले, लाल, भूरे, या काले रंग की धारियाँ या छोटे-छोटे छिद्र पड़ जाते हैं। इस रोग का कोई उपचार नहीं है। हड्डियों के फ्लोरोसिस का उस समय तक पता नहीं चलता जब तक हड्डियाँ टेढ़ी नहीं हो जाए। कई मामलों में तो हड्डियाँ पोलियो ग्रस्त रोगी जैसी हो जाती है। हड्डियों का फ्लोरोसिस गर्दन, कोहनी, कन्धे, घुटनों, हाथों व पैरों के जोड़ों पर सबसे ज्यादा असर डालता है।
जैसे - जैसे रोग बढ़ता है वैसे-वैसे जोड़ों में शिथिलता आती जाती है। धीरे-धीरे शरीर के सारे जोड़ इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं। पेयजल में फ्लोराइड की विभिन्न सान्द्रताओं पर मानव शरीर में भिन्न भिन्न प्रकार के विकार पैदा हो जाते हैं। पहले यह माना जाता था कि फ्लोराइड केवल दाँतों व हड्डियों पर ही असर डालता है परन्तु हाल में किए गए शोध से ज्ञात हुआ है कि शरीर में अधिक फ्लोराइड खून में हीमोग्लोबिन के स्तर को कम करता है। पेट तथा अंतड़ियों के विकार पैदा करता है, तथा ज्यादा प्यास लगना, मांसपेशियों का विघटन व त्वचा के रोग पैदा करता है।
भूजल में फ्लोराइड की अधिक मात्रा से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात व नवजात शिशुओं में विकार होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
लाइलाज है फ्लोरोसिस
यह कहना उचित ही है कि एक बार फ्लोरोसिस रोग हो जाने के बाद उसका कोई प्रभावी उपचार नहीं है और न ही कोई ऐसी दवा है जो इसे ठीक कर सकें, परन्तु इसके प्रभाव की रोकथाम कर इसे नियन्त्रित किया जा सकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद के अन्तर्गत स्थापित फ्लोरोसिस नियन्त्रण प्रकोष्ठ इस दिशा में अनुकरणीय कार्य कर रहा है। यह प्रकोष्ठ राजीव गांधी पेयजल मिशन के अन्तर्गत पेय एवं सुरक्षित जल उपलब्ध करवाने, पानी का डीफ्लोरिडेशन एवं स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से इस रोग को नियन्त्रण करने का उपाय कर रहा है।
फ्लोरोसिस की रोकथाम
फ्लोरोसिस एक असाध्य रोग है। इसलिए यह जरूरी है कि इस विकार को उत्पन्न ही न होने दिया जाए। अगर हम निम्नलिखित सावधानियाँ बरतें तो स्वयं को इस रोग से बचा सकते हैं।
1. अधिक फ्लोराइड युक्त खाद्य पदार्थों, टूथपेस्टों, आदि का सीमित उपयोग।
2. पेयजल की प्रयोग के पूर्व जाँच करवाना।
3. जोड़ों, कमर, व गर्दन के दर्द के बारे में डॉक्टर से उचित सलाह लेनी चाहिए।
4. फ्लोराइड प्रदूषित क्षेत्र में रहने अथवा काम करने वालों को समय-समय पर उचित डाक्टरी सलाह लेते रहना चाहिए।
5. फ्लोराइड प्रदूषण से प्रभावित क्षेत्रों के भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल किए जाने चाहिए जिनमें कैल्शियम, विटामिन-सी अधिक मात्रा में हो, ये दोनों फ्लोराइड विकारों को पैदा होने से रोकते हैं।
6. गर्भवती महिलाओं को फ्लोराइड प्रदूषित जल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(लेखक आयुर्वेद सदन, आरोग्यधाम, दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट में कार्यरत हैं।)
फ्लोराइड का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव | |
फ्लोराइड की मात्रा (मि.ग्रा./ली.) | स्वास्थ्य पर प्रभाव |
0 | प्रजनन क्षमता पर विपरीत असर |
0-0.5 | दाँतो व मसूड़ों का सड़ना |
0.5-1.5 | दाँतों के बनने में सहायक |
1.5-4.0 | दन्त फ्लोरोसिस |
4.0-10.0 | दन्त फ्लोरोसिस, अस्थि फ्लोरोसिस, गर्दन, कमर व जोड़ों में दर्द तथा अन्य विकार |
स्रोत : राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन, नई दिल्ली। |
विभिन्न खाद्य पदार्थों में फ्लोराइड की मात्रा | |||
खाद्य पदार्थ | फ्लोराइड की मात्रा (मि.ग्रा./ली.) | खाद्य पदार्थ | फ्लोराइड की मात्रा (मि.ग्रा./ली.) |
अनाज | फल | ||
गेहूँ | 4.6 | केला | 2.9 |
चावल | 5.9 | आम | 3.2 |
मक्का | 5.6 | सेब | 5.7 |
अमरूद | 5.1 |
|
|
दलहन | पेय पदार्थ | ||
चना | 2.5 | चाय | 60-112 |
सोयाबीन | 4.0 | नारियल | 0.32-0.6 |
सब्जियाँ | मसाले | ||
टमाटर | 3.4 | धनिया | 2.3 |
खीरा | 4.1 | लहसुन | 5.0 |
भिन्डी | 4.0 | अदरक | 2.0 |
पालक | 2.0 | हल्दी | 3.3 |
पोदीना | 4.8 | मांस | |
बैंगन | 1.2 | बकरे का मांस | 3.0-3.5 |
आलू | 2.8 | गाय का मांस | 4.0-5.0 |
गाजर | 4.1 | सुअर का मांस | 3.0-4.5 |
पत्ता गोभी | 3.3 | मछली | 1.0-6.5 |
स्रोत : राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन, नई दिल्ली। |
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