बिहार में जलवायु संकट से बढ़े हीट वेव से निपटने का बना एक्शन प्लान 

Submitted by Shivendra on Mon, 09/13/2021 - 16:17
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मीडिया स्कैन

हीट वेव और वज्रपात,फोटो:इंडिया वाटर पोर्टल

बिहार में जलवायु संकट के कारण बढ़ रहे हीट वेव और वज्रपात को रोकने और उसका आकलन करने के लिए ‘मीडिया कलेक्टिव फॉर क्लाइमेट इन बिहार’ ने  गैर सरकारी संस्था ‘असर’ के साथ मिलकर एक  मीडिया रिपोर्ट जारी की है।  इस 67 पन्ने की रिपोर्ट में  जहां एक तरफ यह बताया गया है कि इस अध्ययन की  जरूरत क्यों पड़ी तो वही दूसरी और जमीनी चुनौतियों पर भी चिंतन किया गया साथ ही  इस स्थिति  से कैसे निपटा जाये  उस  पर भी  कई  सुझाव दिए  गए है ।  

क्यों  किया गया ये अध्ययन  ?

कई दशको से बिहार प्राकृतिक आपदाओं की कई चुनौतियां का सामना कर रहा है। जिसमें बाढ़ सबसे प्रमुख है । इसके अलावा  सूखा, वज्रपात, अग्निकांड, शीतलहर और लू (गर्म हवाएं) भी ऐसी आपदाएं हैं, जो हर साल राज्य के एक बड़ी आबादी को प्रभावित  करती है। जिससे यह राज्य विकास की दौड़ में काफी पिछड़ गया है।  बिहार में हीट वेव और वज्रपात के असर को गहराई से समझने के लिए सरकारी हस्तक्षेपों और उसकी जमीनी पड़ताल का आकलन किया गया ताकि इससे एक बेहतर  समाधान निकल सके। इस अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हीट वेव और वज्रपात बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है साथ ही यह भी बताया गया है ये  दोनों आपदाएं जलवायु संकट के सबसे बड़े करक में से एक है , जिससे आज पूरा विश्व प्रभवित हो रहा है।  

अध्ययन में क्या पता लगा ?

अध्ययन में यह साफ़ कहा गया है   कि बिहार जलवायु संकट के खतरे की और बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण  संसाधनों में कमी और बेहतर प्रशासनिक क्षमता का ना होना है। हर वर्ष बाढ़ के बाद हीट वेव और वज्रपात ही ऐसी आपदा हैं, जिससे बिहार सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है।अध्ययन में पाया कि राज्य में 2015-2019 के बीच हीट वेव के चलते करीब 534 लोगों की जान गयी। यानी औसतन हर साल 106.8 लोगों की मौत हुई है। वही राज्य के 38 में से 33 जिले में हीट वेव  सामान्य से काफी अधिक गई ।  जिनमें राज्य के 4  जिले खगड़िया, जमुई, पूर्णिया और बांका शामिल है।  ये टाइप टू वाली श्रेणी में आते हैं। राहत की बात है कि अभी तक कोई जिला अति उच्च ताप भेद्यता वाली टाइप वन में नहीं आ रहा है। लेकिन ये  तथ्य  भी वास्तक़िता को बताने वाला है कि खगड़िया और पूर्णिया जैसे उत्तर बिहार के जिलों में हीट वेव का संकट कई अधिक बढ़ गया है जबकि वहां के लोग और  प्रशासन भी अमूमन इस खतरे से अनजान  नजर आ रहा है । वज्रपात के मामले में हूबहू यही स्थिति  है।  मध्य प्रदेश और बिहार देश के ऐसे दो ऐसे राज्य है जहां वज्रपात के कारण  सबसे अधिक मौतें होती  हैं।

एनसीआरबी के आंकड़े बताते है कि  2015 से 2019 में  बिहार में ही  केवल वज्रपात की वजह से ही  256 लोगों की जान जा चुकी है । जबकि इसी दौरान  देश में कुल 14074 लोगों की मौत हुई यानी हर साल 2814.8 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी है।इस हिसाब से देखे तो वज्रपात से मरने वालों की संख्या पूरे देश में हर सौ लोगों में नौ लोग बिहार के थे।वही वज्रपात की कुल घटनाओं के आंकड़े देखे तो उससे यह मालूम चलता है कि बिहार का देश में दसवां स्थान है। जबकि  ओड़िशा और बंगाल में वज्रपात की सबसे अधिक घटनाएं हुई हैं, लेकिन यहाँ की  राज्य सरकारों के बेहतर प्रबंधन ने इस पर काबू पाया है और लोगों को मरने से बचाया है।

बिहार सरकार  द्वारा 2019 में हीट वेव एक्शन प्लान तैयार किया  गया था। वही इससे पूर्व वर्ष  2015 से हर साल राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग मार्च महीने में सभी जिलों को हीट वेव से बचाव के निर्देश जारी करता है। इस योजना में राज्य के लगभग 18 विभागों को शामिल कर उन्हें अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई है  मगर जमीनी हकीकत यह बयां करती है कि  इनमें से अधिकतर निर्देशों को लागू नहीं किया जाता।

 

जमीनी हकीकत

  • ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में आइसोलेशन बेड की सुविधा नही है 
  • लोगों को जागरूक करने के लिये जो प्रचार प्रसार किया जाता है वह मात्र औपचारिकता ही रह जाती है। 
  • स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों में बचाव के लिये दवाएं और संसाधन भारी कमी है ।
  • मनरेगा और श्रम संसाधन विभाग की और से  मजदूरों के लिए कार्यस्थल पर पीने का पानी और ओआरएस, आइसपैक वगैरह नहीं रखवाता। उनके काम के वक्त में बदलाव नहीं किया जाता।
  • नगर निकायों को शहर में जगह-जगह पीने के पानी की  व्यवस्था करनी चाहिए  है। लेकिन यह  कार्य मात्र खानापूर्ति की तरह  रहता  है। धूप से बचाव के लिए शेड की कोई व्यवस्था नहीं है ।
  • तापमान 40 डिग्री से अधिक होने पर लोगों को रिलीफ देने के लिये कई तरह के उपायों को करना होता है लेकिन वह किया नही जाता है। 
  • किसी बस में पीने के पानी और ओआरएस की व्यवस्था नहीं होती है ।
  • इस संकट को समझने के लिए  राज्य की स्वास्थ्य सुविधाएं  अपर्याप्त हैं। खास तौर पर अस्पतालों में मैनपावर की भारी कमी है जिसके कारण लोगों को  समय से उपचार नहीं मिल पाता है। और  इसकी चपेट में  अधिक से अधिक लोग आ जाते है ।
  • वज्रपात के संकट का सामना करने के लिये राज्य सरकार के  अभी तक ऐसा कोई एक्शन प्लान नही है जिससें हीट वेब पर काबू पाया जा सके। हालांकि आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि वह एक एक्शन प्लान बहुत जल्द तैयार करके लागू करने वाले हैं।
  •  चेतावनी का तंत्र भी व्यवस्थित नहीं है। इंद्रवज्र नामक एक एप बना है, जो बहुत कारगर नहीं है।एसएमएस के माध्यम एक बहुत सामान्य चेतावनी जारी की जाती है, जो इतनी  प्रभावी नहीं  होती है।
  •  फिलहाल सरकार सिर्फ अखबारों में विज्ञापन  जारी करने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रही है।  
  • हीट वेव और वज्रपात के जिस स्तर के खतरे का बिहार सामना कर रहा है, उसे लेकर  ना ही लोगों  और सरकार में  गंभीरता है । जिससे यह खतरा लगातार बढ़ रहा है।

 

हीट वेव और वज्रपात के संकट से ऐसे निपटा जायें 

  • हीट वेव और वज्रपात का संकट बेहद बड़ा है इससे निपटने के लिए लोगों और प्रशासन की बीच अच्छी समझ होनी जरूरी है । ऐसा एक उदाहरण पूर्णिया जिला का है  जो हीट वेव के खतरे की उच्च श्रेणी में है, लेकिन वहाँ प्रशासन इस बात को खारिज करता है इसलिए सबसे अधिक जरूरी इस खतरे के बारे में प्रशासन को प्रशिक्षित और संवेदित किया जाए । और उन्हें  नियमित सेमिनार और कार्यशालाओं से यह बताना होगा कि राज्य किस स्तर के खतरे का सामना कर रहा है। 
  • हीट वेव को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ानी होगी ताकि वह  इस खतरे के वास्तविक स्वरूप को समझ लें और  इस संकट से अपना बचाव  कर सके। लोगों को अधिक से अधिक जागरूक करने के लिए  प्रचार प्रसार का काम गंभीरता से करना होगा और ऑनलाइन माध्यमों से कहीं अधिक होर्डिंग, माइकिंग और नुक्कड़ नाटकों जैसे पारंपरिक माध्यमों को अपनाना होगा, जो बिहार जैसे राज्य के लिए एकदम सटीक  हैं, जहां अभी भी एक बड़ी आबादी के पास  स्मार्टफोन उपब्धता नहीं है।
  • हीट वेव एक्शन प्लान की तरह जल्द से जल्द  वज्रपात का एक्शन प्लान भी  बनाना चाहिए ताकि अधिक इसे अधिक लोगों को इससे बचाया जा सके। देश के कई राज्य ऐसे है जहाँ  जिलावार एक्शन प्लान बने हैं। बिहार में भी इसके खतरे  को देखते हुए सबसे अधिक प्रभावित जिलों को उनकी परिस्थितियों के अनुकूल एक एक्शन प्लान बनाना चाहिए। 
  • एक्शन प्लान और नीतियों को बनाने के लिय स्थानीय उन विशेषज्ञों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए  जो स्थानीय भूगोल और पर्यावरण को अच्छी तरह से  समझते हों।
  • यह भी  ध्यान रखा जाना चाहिये  जाये कि जो एक्शन प्लान और दिशानिर्देश बनाये गए है उनका  जमीनी स्तर पर ठीक से पालन किया जा रहा या नहीं। कम से कम दिशा निर्देशों का 60 फीसदी पालन तो जरूर हो।
  • इस संकट का सामना करने में सरकारी स्वास्थ्य तंत्र का अहम रोल होता है ऐसे में जरूरी है कि  ग्रामीण और दूरदराज के अस्पतालों को सुविधा, दवा और मैनपावर से युक्त बनाया जाये और उसकी बेहतर व्यवस्था की जाए। 
  •  ऊर्जा के साधनों के रूप में सोलर को भी अपनाया जाये ताकि आपदा के  समय मे  अस्पताल  क्रियाशील रहे
  • शहरों के कंकरीट एरिया को कम करें, पेड़ों को कटने से रोकें और पर्यावरण को बेहतर बनायें।

 

 वैसे तो मीडिया कलेक्टिव फॉर क्लाइमेट इन बिहार’ और गैर सरकारी संस्था ‘असर’ द्वारा यह अध्ययन किय गया है।  जिसमें  अध्ययन की टीम मेंसीटू तिवारी, सत्यम कुमार झा, मनीष शांडिल्य, पुष्यमित्र शामिल थे। वही इस अध्ययन  की रिपोर्ट तैयार करने में सौरभ मोहन ठाकुर, संजीत भारती, बासुमित्र ने सहयोग  किया है ।