जलवायु परिवर्तन में ‘जस्ट ट्रांजिशन' विकास का नया मानदंड

Submitted by Editorial Team on Tue, 05/10/2022 - 08:56
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हस्तक्षेप, 30 Oct 2021, राष्ट्रीय सहारा

आज पूरी दुनिया के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है–जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव‚ जिसके पीछे वर्तमान विकास मॉडल और मानव जनित कारणों से पैदा हुई ग्लोबल वार्मिंग और अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन की समस्याएं हैं‚ के ठोस समाधान और वैकल्पिक विकास ढांचे पर सभी देशों के बीच सहमति के लिए ‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज' के तत्वावधान में साल–दर–साल व्यापक नीतिगत विमर्श और विजनरी एजेंडे पर बात होती रही है। इस वर्ष ग्लासगो में कोप–2६ पर क्लाइमेट विमर्श वैसा ही विचारोत्तेजक और भविष्योन्मुखी होगा। क्लाइमेट चेंज से निपटने के वैकल्पिक उपायों के संदर्भ में जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला‚ खनिज संसाधन‚ पेट्रोल–डीजल आदि पर निर्भरता कम करते हुए स्वच्छ और टिकाऊ समझी जाने वाली अक्षय ऊर्जा (सौर‚ पवन ऊर्जा आदि) पर आधारित विकास मॉडल पर जोर दिया गया है। इसी क्रम में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं‚ जैसे 20३0 तक विश्व में कुल ऊर्जा खपत में स्वच्छ ऊर्जा का योगदान ४0 फीसदी तक ले जाना। यह वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक कम करने से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है। 

जीवाश्म ईंधन पर आधारित विकास से अलग एक बेहतर और सततशील अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बेहद संभावनाशील विचार है ‘जस्ट ट्रांजिशन'‚ जो सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप वर्तमान आर्थिक मॉडल में संरचनात्मक बदलाव और समावेशी विकास पर जोर देता है‚ साथ ही डिकार्बनाइजेशन और कार्बन न्यूट्रल फ्यूचर के लिहाज से भी बेहद अहम है। दूसरे शब्दों में कहें तो इसका मूल उद्देश्य है कि जो लोग और समुदाय जीवन यापन के लिए जीवाश्म ईंधन से संचालित अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं‚ उनको भावी व्यापक परिवर्तन में अनदेखा नहीं किया जाए और उनके रोजगार एवं आजीविका को सुनिश्चित किया जाए। ज्ञात हो कि पेरिस समझौते (2015) में जस्ट ट्रांजिशन के विचार को बढ़ाते हुए काटोविच सम्मलेन (2018) में इसे महkवपूर्ण सिद्धांत के रूप में शामिल किया गया था। 

दुनिया में विकसित और संपन्न माने जाने वाले उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में इस पर सुचिंतित और नियोजित ढंग से नीतिगत पहल शुरू हो गई हैं‚ लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में इस पर तो अभी बहस की शुरु आत ही हुई है। क्लाइमेट चेंज के मामले में गंगा के मैदानी इलाकों तथा समीपवर्ती राज्यों की कमजोरी एवं संवेदनशीलता को कई शोध अध्ययनों में मुखरता से पेश किया गया है। उत्तर प्रदेश‚ बिहार‚ मध्य प्रदेश‚ झारखंड एवं छत्तीसगढ़ में बढ़ते वायु प्रदूषण‚ पर्यावरण ह्रास‚ प्राकृतिक संसाधनों के खत्म होने की आशंकाओं और विशाल आबादी के भविष्य के संदर्भ में जस्ट ट्रांजिशन पर पहल बेहद सामयिक और प्रासंगिक कदम है‚ जबकि यहां इस पर बहस ने रफ्तार नहीं पकड़ी है। 

 तस्वीर को स्पष्ट करता झारखंड

ऐसे में अगर समूचे विमर्श को झारखंड जैसे राज्य में केंद्रित किया जाए तो यह तस्वीर ज्यादा स्पष्ट होगी। झारखंड खनिज संसाधनों के लिहाज से संपन्न राज्य है‚ लेकिन बीते सालों के अध्ययन बताते हैं कि अवैज्ञानिक उत्खनन से प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण हुआ है‚ पर्यावरणीय विनाश और कृषि संकट पैदा हुआ है‚ और जल‚ थल और वायु प्रदूषण गहरा हुआ है। चूंकि इस राज्य के सामने खनिज संसाधनों की विलुप्ति का संकट मंडरा रहा है‚ ऐसे में वैकल्पिक विकास ढांचे‚ ऊर्जा सुरक्षा और आजीविका सुरक्षा के लिहाज से जस्ट ट्रांजिशन अपरिहार्य है। झारखंड में भविष्य को लेकर जो आशंकाएं दिख रही हैं‚ कुछ ऐसी ही तस्वीर आने वाले दशकों में छत्तीसगढ़‚ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की भी हो सकती है‚ इसलिए समय की मांग है कि ये राज्य अभी से इसकी तैयारी करना शुरू कर दें। देखा जाए तो देश में कई बड़े नीतिगत बदलाव और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम वर्तमान जीवाश्म आधारित आर्थिक गतिविधियों से आगे निकल कर सततशील विकास के लक्ष्यों को हासिल करने पर केंद्रित हैं। जैसे नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने पर जोर दिया गया है‚ और नेशनल सोलर मिशन के तहत अक्षय ऊर्जा के जरिए ऊर्जा के वर्तमान स्वरूप को बदलने की रूपरेखा तय की गई है।

सस्टेनेबल ट्रांसपोर्ट सिस्टम के तहत इले्ट्रिरक व्हीकल्स‚ सोलर एनर्जी संचालित कृषि गतिविधियां‚ क्लीन एवं ग्रीन डवलपमेंट मैकेनिज्म और नॉन–मोटराइज्ड ट्रांपोर्टेशन पर बल दिया जा रहा है। इस संदर्भ में नेट जीरो एमिसन जैसी विजनरी सोच को नीतियों एवं कार्यक्रमों का आधार स्तंभ बनाने पर जोर दिया जा रहा है। देखा जाए तो जस्ट ट्रांजिशन के दायरे के भीतर इनमें से कई महत्वपूर्ण बदलाव समाहित होंगे‚ जो एक फ्यूचर–रेडी इकोनॉमी के निर्माण में महती भूमिका निभाएंगे। चूंकि तीव्र आर्थिक वृद्धिदर और समावेशी विकास की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए विजनरी अप्रोच से दीर्घकालिक कदम उठाने की जरूरत है‚ इसलिए सिविल सोसाइटी संगठनों के जरिए झारखंड में टजस्ट ट्रांजिशनट की मुहिम बेहद अहम है। इसके तहत जोर दिया जा रहा है कि संसाधनों के खात्मे के दरम्यान नौकरियों के ह्रास की चुनौती को दूर करने के लिए वैकल्पिक आर्थिक क्षेत्रों एवं उद्योगों की पहचान और अर्थव्यवस्था का विविधीकरण जरूरी है‚ साथ ही नये तरह के कौशल विकास कार्यक्रमों पर ठोस ढंग से काम करने की भी आवश्यकता है। अक्षय ऊर्जा पर आधारित एनर्जी ट्रांजिशन इसमें बड़ी भूमिका निभाएगा क्योंकि स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों को अर्थव्यवस्था के सभी मोर्चों पर समावेश से आजीविका का वैकल्पिक मॉडल तैयार होगा। हालांकि अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के लिए दीर्घकालिक नीतिगत प्रयास‚ फाइनेंसिंग एवं इंवेस्टमेंट के लिए समुचित इकोसिस्टम‚ सोशल और इकनॉमिक इंफ्रास्ट्रक्चर आदि इसकी अगली कड़ी हैं‚ जो न्यायसंगत परिवर्तन को संभव बनाएंगी।

झारखंड में दूरगामी लक्ष्य साधती पहल 

झारखंड जैसे छोटे राज्य में ‘जस्ट ट्रांजिशन’ पर सामूहिक पहल असल में दूरगामी लक्ष्यों से निर्देशित है। जिस तरह से गंगा के मैदानी इलाकों में बसे राज्यों में तीव्र विकास को लेकर और समृद्ध होने की आकांक्षा है‚ शहरी एवं ग्रामीण विकास की गतिविधियों को समयानुकूल बनाने से लेकर स्वच्छ ऊर्जा एवं तकनीक पर आधारित उद्योग–धंधों को स्थापित करने और विशाल आबादी के जीविकोपार्जन से लेकर आर्थिक प्रगति को तेज बनाए रखने का जो दबाव है‚ वह असल में नये विजन‚ राजनीतिक इच्छाशक्ति और मजबूत नीति–निर्णय एवं क्रियान्वयन प्रक्रिया की आवश्यकता को दर्शाता है। ऐसे में जस्ट ट्रांजिशन को आर्थिक नीतियों के केंद्र में रखना महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपरिहार्य है।

ग्लासगो बैठक में जिन प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनने के आसार हैं‚ उनका किसी न किसी रूप में संबंध ‘जस्ट ट्रांजिशन' के व्यापक फलक से है। इसलिए बात चाहे झारखंड की हो या छत्तीसगढ़ या फिर उत्तर प्रदेश की; समावेशी विकास‚ आजीविका सुरक्षा और आÌथक खुशहाली वो बुनियादी जरूरतें हैं‚ जो किसी भी समाज‚ क्षेत्र और समुदाय को खुशहाल और संपन्न बनाने में योगदान देती हैं। ऐसे में जरूरत है कि हिंदी प्रदेशों में जस्ट ट्रांजिशन को ठोस ढंग से कार्यरूप देने के लिए व्यापक आम सहमति बने‚ राजनीतिक और नीतिगत मोर्चे पर दीर्घकालिक सोच विकसित हो और विकास के अंतिम पायदान पर ठिठके व्यक्ति को साथ लेकर इस विशाल लक्ष्य की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाए जाएं।

अंत में 

जीवाश्म ईंधन पर आधारित विकास से अलग एक बेहतर और सततशील अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बेहद संभावनाशील विचार है ‘जस्ट ट्रांजिशन'‚ जो सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप वर्तमान आर्थिक मॉडल में संरचनात्मक बदलाव और समावेशी विकास पर जोर देता है‚ साथ ही डिकार्बनाइजेशन और कार्बन न्यूट्रल फ्यूचर के लिहाज से बेहद अहम है।

लेखक ‘सेंटर फॉर एन्वायरनमेंट  एंड एनर्जी डवलपमेंट’ के सीईओ हैं।