हमारे ग्रह पृथ्वी के लिये जल का महत्त्व सर्वविदित है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। तभी रहीम दास ने जल यानि पानी के महत्त्व को स्वीकारते हुए अपने दोहे में कहा है:
‘‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून,
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।”
हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है जिनमें जल भी एक है। इसका उल्लेख तुलसीदास रचित रामायण में भी आया है:
‘‘क्षिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
हाइड्रोजन और आॅक्सीजन के संयोग से ही जल बनता है। अब हाइड्रोजन को अग्नि का पर्याय तथा आॅक्सीजन को वायु का पर्याय मान लेने पर जल को अग्नि और वायु का सुमेल कहा जा सकता है। आकाश और पृथ्वी के बीच तारतम्य स्थापित करने की महती क्षमता भी जल में मानी गई है। तैतिरीय संहिता में कहा गया है:
‘‘अग्नि पूर्वरूपम। आदित्य उत्तररूपम।।
आपः संधि वैद्युत सन्धानम।”
यानि जल वह तत्व है जो अग्नि को ऊर्जा के अक्षय स्रोत सदा प्रकाशमान सूर्य के साथ एकीकृत करता है तथा विद्युत के जरिए ही यह एकीकरण सम्भव हो पाता है।
इस तरह जल की महिमा सर्वविदित है। जल के बिना धरती पर जीवन सम्भव नहीं है। जीवधारियों के शरीर का 65-70 प्रतिशत हिस्सा जल ही होता है। कोशिकाओं में पाए जाने वाले जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) का अधिकांश भाग भी जल होता है। धरती पर मौजूद विपुल जल राशि सूर्य से आने वाले विकिरणों को अवशोषित कर धरती के तापमान को जीवन के अनुकूल बनाए रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। धरती से इतर किसी ग्रह या पिण्ड में जीवन की सम्भावना को तलाश करते वैज्ञानिक भी पहले यह देखते हैं कि उस ग्रह या पिण्ड पर जल मौजूद है या नहीं क्योंकि जल के बिना जीवन का पनपना और उसका संपोषित होना असम्भव है।
जल हमारी सभ्यता और संस्कृति के साथ भी गहराई से जुड़ा रहा है। संसार की सभी सभ्यताएँ चाहे वह सिंधु घाटी की सभ्यता हो या मिस्र की, मेसोपोटामिया की सभ्यता हो या नील की नदियों तथा अन्य, जल स्रोतों के आस-पास ही विकसित हुई।
जल एक रंगहीन, स्वादहीन एवं पारदर्शी यौगिक है। यह धरती पर ठोस, द्रव एवं गैस यानि बर्फ, जल एवं जलवाष्प तीनों अवस्थाओं में ही पाया जाता है।
हिमनदों यानि ग्लेशियरों और बर्फ की टोपियों (आइस कैप्स) में जल जमे हुए बर्फ के रूप में पाया जाता है। इसके अलावा ध्रुवीय प्रदेशों में तुषार भूमि (परमाफ्राॅस्ट) और बर्फ से ढकी जमीन पर भी जल बर्फ के रूप में मौजूद होता है।
अपने वाष्प रूप में जल मृदा तथा वायुमंडल में मौजूद होता है। अपने द्रव रूप में जल को सागरों और महासागरों तथा झीलों और नदियों आदि में देखा जा सकता है।
ग्लेशियरों और बर्फ की टोपियों में मौजूद जल का परिमाण (आयतन) करीब 24,064,000 घन किलोमीटर होता है जबकि तुषार भूमि एवं बर्फ ढकी जमीन में जल का परिणाम करीब 3 लाख घन किलोमीटर है (सारणी 1)।
सारणी 1 : बर्फ के रूप में मौजूद जल | |||
क्रमांक | जल स्रोत | परिमाण (घन किलोमीटर में) | कुल उपलब्ध जल का प्रतिशत |
1. | ग्लोशियरों एवं बर्फ की टोपियां | 24,064,000 | 1.74 |
2. | तुषार भूमि एवं बर्फ ढकी जमीन | 300,000 | 0.022 |
| कुल | 24,364,000 | 1.762 |
मृदा में जलवाष्प के रूप में लगभग 16,500 घन किलोमीटर जबकि वायुमंडल में 12,900 घन किलोमीटर जल मौजूद होता है (सारणी 2)।
सारणी 2 : जल वाष्प के रूप में मौजूद जल | |||
क्रमांक | जल स्रोत | परिमाण (घन किलोमीटर में) | कुल उपलब्ध जल का प्रतिशत |
1. | मृदा | 16,500 | 0.001 |
2. | वायुमंडल | 12,900 | 0.001 |
| कुल | 29,400 | 0.002 |
सागरों एवं महासागरों में लगभग 1,338,000,000 घन किलोमीटर जल होता है। लेकिन यह धरती पर मौजूद कुल जल खारा यानी लवणीय होता है। यह 1,386,000,000 घन किलोमीटर आंका गया है, इसका 96.54 प्रतिशत है।
उल्लेखनीय है कि कुछ लवणीय जल झीलों एवं भूमिगत यानि भौमजल के रूप में भी पाया जाता है। झीलों में करीब 85,400 घन किलोमीटर लवणीय जल मौजूद होता है जबकि लवणीय भौमजल का परिमाण लगभग 12,870,000 घन किलोमीटर है। झीलों में पाया जाने वाला लवणीय जल धरती पर मौजूद कुल जल का 0.007 प्रतिशत जबकि लवणीय भौमजल का परिमाण कुल जल का 0.93 प्रतिशत है। इस तरह धरती पर मौजूद लवणीय जल कुल उपलब्ध जल का 97.477 यानी लगभग 97.5 प्रतिशत है (सारणी 3)।
सारणी 3 : कुल लवणीय जल | |||
क्रमांक | जल स्रोत | परिमाण (घन किलोमीटर में) | कुल उपलब्ध जल का प्रतिशत |
1. | सागर एवं महासागर | 1,338,000,000 | 96.540 |
2. | झीलें | 85,400 | 0.007 |
3. | भूमिगत या भौमजल | 12,870,000 | 0.930 |
| कुल | 1350,955,400 | 97.477 |
अलवणीय या स्वच्छ जल कुल उपलब्ध जल का केवल 2.5 प्रतिशत मात्र है। ग्लेशियर एवं बर्फ की टोपियां स्वच्छ जल के ही स्रोत हैं। इनमें मौजूद जल कुल स्वच्छ जल का 68.6 प्रतिशत है। भौमजल की कुल उपलब्धता 23,400,000 घन किलोमीटर है। इसमें से 12,870,000 घन किलोमीटर लवणीय तथा 10,530,000 अलवणीय यानि स्वच्छ जल है। इस तरह स्वच्छ जल के रूप में भूमिगत जल का परिमाण कुल स्वच्छ जल का 30.1 प्रतिशत है।
स्वच्छ जल झीलों और नदियों आदि में सतही जल के रूप में भी पाया जाता है। झीलों में पाए जाने वाले स्वच्छ जल का परिमाण 91,000 घन किलोमीटर जबकि नदियों में पाए जाने वाले स्वच्छ जल का परिमाण 2,120 घन किलोमीटर है। झीलों में पाया जाने वाला स्वच्छ जल कुल स्वच्छ जल का 0.26 प्रतिशत जबकि नदियों में पाया जाने वाला स्वच्छ जल कुल स्वच्छ जल का 0.006 प्रतिशत है। इस तरह झीलों और नदियों में कुल स्वच्छ जल का 0.266 यानि करीब 0.3 प्रतिशत स्वच्छ जल पाया जाता है (सारणी 4)।
सारणी 4 : कुल उपलब्ध जल का अलवणीय या स्वच्छ जल | |||
क्रमांक | जल स्रोत | परिमाण (घन किलोमीटर में) | कुल उपलब्ध जल का प्रतिशत |
1. | ग्लेशियर एवं बर्फ की टोपियां | 20,064,000 | 68.6 |
2. | भौमजल | 10,530,000 | 30.1 |
3. | सतही जल | 93,120 | 0.266 |
| (i) झीलें | 91,000 | 0.26 |
| (ii) नदियां | 2,120 | 0.006 |
ग्लेशियरों और बर्फ की टोपियों में बर्फ के रूप में मौजूद जल स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्लेशियरों से काफी परिमाण में जल एशियाई नदियों में पहुँचता है।
जल की आपूर्ति भूमिगत यानि भौमजल के माध्यम से भी होती है। झीलों और नदियों आदि से भी स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति होती है। लेेकिन ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहे हैं। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि वर्तमान सदी के अंत तक हिमालय के आधे ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के चलते अपना अस्तित्व खो बैठेंगे।
भूमिगत जल की उपलब्धता भी समय के साथ घटती जा रही है। भूमिगत जल एवं नदियों और झीलों का जल बेतरह प्रदूषित भी हो रहा है। कुल मिलाकर जल को लेकर आज स्थिति बहुत गम्भीर है। इसके पीछे मुख्य कारण है जल का दुरुपयोग। नतीजतन विश्व के 1.10 अरब लोग साफ पानी पीने को तरस रहे हैं। करीब 80 प्रतिशत लोग स्वच्छ पेय जल के अभाव में बीमारियों से जूझ रहे हैं।
भारत में लगभग 4.5 करोड़ लोग बेहद प्रदूषित जल पीने के लिये विवश हैं। अन्य विकासशील देशों की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं। इन देशों के हर तीन में से दो व्यक्तियों को उचित पेयजल नसीब नहीं होता।
पीने के अलावा जल का उपयोग नहाने-धोने तथा अन्य घरेलू कार्यों में भी होता है। कृषि, उद्योग तथा ऊर्जा आदि के क्षेत्रों में भी जल का उपयोग होता है। खासकर उद्योग तथा ऊर्जा के क्षेत्रों में जल की खपत को पूरा कर पाना अपने आप में सचमुच एक बड़ी चुनौती होगी। इस चुनौती से निपटने के लिये जल संरक्षण को हमें बढ़ावा देना ही होगा। इसके लिये मितव्यता एवं सावधानी से हमें पेयजल का इस्तेमाल करना होगा।
डाॅ. प्रदीप कुमार मुखर्जी
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