लगभग 2 अरब से 4 अरब साल पहले,चंद्रमा एक ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट हुआ करता था जहां कई हज़ार ज्वालामुखी फटे और उनसे निकलने वाले सैकड़ों हज़ारों वर्ग मील का लावा बहुत बड़े पैमाने पर नदियों और झीलों में तब्दील हो गया । खगोल भौतिकी और ग्रह विज्ञान विभाग और कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी के प्रयोगशाला के सहायक प्रोफेसर पॉल हेने के मुताबिक इस प्रक्रिया ने पृथ्वी पर हुए सभी विस्फोटों को बौना बना दिया।
हालिया शोध से यह बात सामने आई है कि जब ये ज्वालामुखी फटे थे तब इनसे बहुत बड़े आकार में बादल निकले थे और शायद उनका निर्माण कार्बन मोनोऑक्साइड और पानी के वाष्प से हुआ होगा इसके साथ ही इन बादलों ने फिर एक पतला और अस्थायी वायुमंडल बना लिया होगा। जिसके बाद इनका पानी धीरे धीरे सतह पर आ गया होगा और फिर ये बर्फ बन गए होंगे जो दर्जनों से सैकड़ों फीट मोटे हो सकते है
खगोल भौतिकी और ग्रह विज्ञान विभाग में डॉक्टरेट के छात्र और मशहूर लेखक एंड्रयू विल्कोस्की का मानना है कि हम इसे चंद्रमा पर एक ठंढ के रूप में देखते हैं जिसका समय के साथ निर्माण हुआ होगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर उस दौर में इंसान होते तो हम चंद्रमा की सतह पर दिन और रात के बीच की सीमा पर एक चांदी की चमचमाती रेखा को देख पाते।
वही प्रोफेसर पॉल हेने का कहना है कि नासा का आर्टेमिस मिशन इस दशक के अंत में पहली बार चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की तैयारी कर रहा है, अगर नासा इसमें कामयाब हो गया तो वहां जमी बर्फ हमें पीने का पानी उपलब्ध करा सकती है और संसाधन के रूप में ईंधन काम आ सकती है । प्रोफेसर पॉल ने दावा किया है कि चन्द्रमा के सतह से 5 या 10 मीटर (16 से 33 फीट) नीचे बर्फ की चादरे बिछी हो सकती है ।
पिछले शोधों ने इस दावे को और प्रखर किया कि चंद्रमा में पहले की तुलना में अधिक पानी हो सकता है। हेने और उनके सहयोगियों ने 2020 में किये गए एक अध्ययन से यह अनुमान लगाया है कि चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के लगभग 6,000 वर्ग मील (15,540 वर्ग किलोमीटर) का हिस्सा बर्फ को सहेजने में सक्षम है।
वही वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पानी की उत्पत्ति कहाँ से हुई, जिसने शोधकर्ताओं को ज्वालामुखी सिद्धांत तक पहुँचाया। उन्होंने कल्पना की है कि जलवाष्प बादल चांद की सतह पर ठंड की वजह से बनते हैं, ठीक उसी तरह जैसे पृथ्वी पर ठंडी रात के बाद बनते हैं।
शोधकर्ताओं ने अरबों साल पुरानी चंद्रमा की सतह का एक मॉडल तैयार किया और उससे यह अनुमान लगाया कि चंद्रमा ने लगभग 22,000 साल में ज्वालामुखी विस्फोट का अनुभव जरूर किया होगा और उससे निकले वाले जल वाष्प के 41% भाग ने चंद्रमा की सतह पर बर्फ का निर्माण किया। एक अध्ययन के अनुसार, चंद्र में लगभग 18 क्वाड्रिलियन पाउंड यानी 8.2 क्वाड्रिलियन किलोग्राम ज्वालामुखीय पानी है जो मिशिगन झील के वर्तमान स्तर से कई अधिक है चंद्र का पानी अब धीरे-धीरे बर्फ में तब्दील हो रहा है।शायद चंद्र की मोटी ध्रुवीय बर्फ की परतें पृथ्वी से एक बार फिर दिखाई दे सकती हैं।
वही वैज्ञानिक विल्कोस्की ने दावा किया है बर्फ का अधिकांश हिस्सा आज भी चंद्रमा पर मौजूद हो सकता है, यह संभवत धूल के कई फीट नीचे दब गया होगा । ऐसे में हमें वास्तव में नीचे ड्रिल करने और इसकी तलाश करने की आवश्यकता है ।