दामोदर नदी के प्रदूषण का खामियाजा पूरा झारखण्ड भुगत रहा है। 1974 के छात्र आन्दोलन की उपज और वर्तमान में झारखण्ड सरकार के मन्त्री वर्षों से दामोदर बचाओ मुहिम चला रहे हैं। अब उनकी कोशिशें रंग लाने लगी है। उनका कहना है कि यदि इसके प्रदूषण को रोकने की दिशा में ठोस पहल नहीं हुई तो तीन माह बाद उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। दामोदर नदी घाटी के दायरे में आने वाले झारखण्ड के नौ जिले हैं। इसके किनारे कई शहर बसे हुए हैं। इसके पानी पर लाखों लोगों का जीवन निर्भर है। औद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने इसको दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है। अब तो इसका किनारा काला रेगिस्तान बनने के कगार पर है। कभी भारत सरकार ने बहुद्देश्यीय दामोदर परियोजना की घोषणा कर सब्जबाग दिखाए थे। इसकी हकीकत को बयाँ करने के लिए नदी के किनारे बसे इलाकों की बदहाली की दास्तान काफी है। दामोदर नदी का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पीने की बात तो दूर पानी इतना काला और प्रदूषित है कि लोग नहाने से भी कतराते हैं। इस प्रदूषण के जिम्मेदार हैं यहाँ के कल-कारखाने और खदान।
हजारीबाग, बोकारो एवं धनबाद जिलों में इस नदी के दोनों किनारों पर बड़े कोलवाशरी हैं, जो प्रत्येक दिन हजारों घनलीटर कोयले का धोवन नदी में प्रवाहित करते हैं। इन कोलवाशरियों में गिद्दी, टंडवा, स्वांग, कथारा, दुगदा, बरोरा, मुनिडीह, लोदना, जामाडोबा, पाथरडीह, सुदामडीह एवं चासनाला शामिल हैं। इन जिलों में कोयला पकाने वाले बड़े-बड़े कोलभट्ठी हैं जो नदी को निरन्तर प्रदूषित करते रहते हैं।
चंद्रपुरा ताप बिजलीघर में प्रतिदिन 12 हजार मिट्रिक टन कोयले की खपत होती है और उससे प्रतिदिन निकलने वाले राख को दामोदर में प्रवाहित किया जाता है। इसके अतिरिक्त् बोकारो स्टील प्लांट का कचरा भी इसी नदी में गिरता है। नजीजतन दामोदर नदी के जल नमूने में ठोस पदार्थों का मान औसत से अधिक है। नदी निरन्तर छिछली होती जा रही है और इसके तल एवं किनारे का हिस्सा काला पड़ता जा रहा है।दामोदर नदी के जल में भारी धातु-लौह, मैगनीज, ताम्बा, लेड, निकल आदि पाये जाते हैं। प्रदूषण का आलम यह है कि नदी के जल में घुलित आॅक्सीजन की मात्रा औसत से काफी कम है। कभी इस नदी के बारे में लोकमान्यता थी कि नहाने मात्र से सभी तरह के चर्मरोग दूर हो जाते हैं। आज यह जीवनदायिनी नदी मरणासन्न है तथा लोगों की मौत का कारण बन रही है। इसके प्रदूषित होने की वजह से धनबाद और बोकारों में पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया। प्रदूषण से तरह-तरह की बीमारियों के लोग शिकार हो रहे हैं ऊपर से आजीविका भी छिन गयी।
बोकारो जिले के चंदनकियारी, चास, बेरमों, गोमिया, कसमार, पेटरवार जरीडीड आदि इलाकों में लोग डीवीसी परियोजना चालू होने से पहले खेती-बाड़ी करते थे, तरह-तरह की फसलें उपजाकर गुजर-बसर करते है। अभाव था लेकिन उम्मीद और सपने जिन्दा थे। लेकिन कल-कारखानों की स्थापना के साथ ही लाखों लोगों के जीवन में जहर घुलने लगा। इस घुलते जहर ने हजारों परिवारों से स्वरोजगार छीन लिया। नदी किनारे बड़े-बड़े उद्योगों के कारण गाँव में बसे चमार, कुम्हार, लुहार आदि समुदाय की परम्परागत कारीगरी और हस्तशिल्प पर हमला हुआ। इस हमले में परम्परागत पेशों को चौपट कर स्वरोजगार की जमीन छीन ली। परम्परागत पेशों से स्वावलंबन जीवन के तमाम अरमान बिखर गए और वे कारीगर से मजदूर बन गए।
तटवर्ती इलाकों के मछुआरे औद्योगिक विकास के जाल में फँस गए। दामोदर किनारे बसे गाँवों के हजारों लोग मछली मारने की आजीविका पर निर्भर थे। पहले मांगुर, रेहू, गवारी, टंगरा, कतला आदि मछलियाँ दामोदर नदी की लहरों पर नाचती नजर आती थी। दामोदर का पानी दर्पण सा साफ था। एक बार जाल फेंकने पर इतनी मछलियाँ हाथ आती थी कि दोबारा जाल फेंकने की आवश्यकता नहीं होती थी। पानी के जहरीला होने पर मछलियों ने इस नदी का दामन छोड़ दिया। नदी के किनारे रह रहे कुछ लोग घुटनेभर जल में कोयला चुनते है। गन्दे पानी से कोयले के चन्द टुकड़े और चुरा समेटते हैं। उसे बेचकर पेट की आग बुझाते हैं। दामोदर के प्रदूषण का असर जमीन की उर्वराशक्ति पर पड़ा है। तटवर्ती खेती की जमीन बंजरीकरण की ओर बढ़ रही है। पिछले दो-तीन दशक में खेती में पचास फीसदी की कमी आयी है। दामोदर और उसकी सहायक नदियों का भी यही हाल है। प्रदूषण से न सिर्फ नदी बल्कि तमाम जलस्रोत बर्बाद हुए हैं।
दामोदर के प्रदूषण के सवाल पर खाद्य आपूर्ति मन्त्री निरन्तर संघर्ष कर रहे है। इस मसले को उन्होंने केन्द्रीय मन्त्री पीयूष गोयल के समक्ष भी उठाया था। भारत सरकार के कोयला एवं ऊर्जा मन्त्री पीयूष गोयल ने दामोदर वैली कॉरपोरेशन तथा कोल इण्डिया की कम्पनियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि तीन माह के भीतर वे सुनिश्चित करें कि उनकी गतिविधियों से दामोदर नदी एवं इसकी सहायक नदियों का प्रदूषण नहीं होगा। उन्होंने आदेश दिया कि छाई और स्लरी युक्त पानी की एक बूँद भी दामोदर में नहीं गिरे बल्कि इसे बन्द परिपथ में रखकर इसका विविध उपयोग किया जाये। दामोदर के उद्गम स्थल चूल्हा-पानी से लेकर पंचेत तक युगांतर भारती के सहयोग से 22 समितियाँ बनी हैं, जो तीन माह के दौरान लोक उपक्रमों के प्रयास की मॉनिटरिंग करेगी। अन्तिम उपाय होगा हम सुप्रीम कोर्ट जायेंगे। हालाँकि केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्री उमा भारती ने झारखण्ड दौरे के दौरान यह आश्वासन दिया है कि दामोदर को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए केन्द्र सरकार विशेष राशि मुहैया कराएगी। गंगा के सवाल पर दिल्ली में आपात बैठक में झारखण्ड के मुख्यमन्त्री रघुवर दास ने स्पष्ट रूप से कहा था कि झारखण्ड में तीन सौ किलोमीटर लम्बी दामोदर नदी हैं। यद्यपि यह राज्य में गंगा नदी में नहीं मिलती है अतः दामोदर नदी का भी अपना महत्व है। यह सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। दामोदर नदी के किनारे केन्द्र सरकार से सम्बद्ध अनेकों कोयला उत्खनन, कोल वासरी से जुड़े संस्थान हैं जो इसे प्रभावित कर रहे हैं।