नई दिल्ली। 70 के दशक में मयूर विहार के लोगों ने अपने लिए खूबसूरत अपार्टमेंट्स का निर्माण किया, लेकिन यहां रहने वालों को उस समय ये नहीं पता था कि यहां मौजूद नाला उनके लिए मुसीबत बन जाएगा। इस नाले से निकलने वाली जहरीली गैसें इतनी तीखी हैं कि ये लोहे की धातु को गला सकती हैं।
कुछ महीनों पहले सिटीजन जर्नलिस्ट पी.जे.बी. खुराना इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड से पी एन जी कनेक्शन लेना चाहते थे लेकिन यहां के वातावरण में घुली खतरनाक गैसों की वजह से उन्होंने कनेक्शन देने से मना कर दिया। कंपनी का कहना है कि यहां के वातावरण में घुली जहरीली गैस पाइप लाइन को गला देगी। अगर पाइप लाइन का ये हाल है तो आप सोच सकते हैं कि यहां रहने वाले लोगों का क्या हाल होता होगा।
शाहदरा की तरफ से आ रहे इस नाले की चौड़ाई 120 फीट है। इस नाले में कई फैक्टरियों में कचरे के साथ-साथ दिल्ली की 500 कॉलोनियों की सीवर की गंदगी गिरती है। यहां इतनी बदबू आती है कि लोग कुछ समय रहने के बाद यहां से घर छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग किसी ना किसी बीमारी से लड़ रहे हैं। इन बीमार लोगों में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सांस की परेशानी से जूझ रहे हैं।
इस इलाके की हवा में बदबू इतनी ज्यादा घुल गई है कि इस वजह से लोगों ने अपने घरों की बालकनियां तक कवर कर दी हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने साल 2004 में एक सीवेज प्लांट बनाने के लिए 154.68 करोड़ रुपये पास किए थे, लेकिन उस पैसे का क्या हुआ किसी को नहीं मालूम। दिल्ली जल बोर्ड ने जब इस बारे में कोई ध्यान नहीं दिया तो मयूर विहार और नोएडा के निवासियों ने मिलकर दिल्ली जल बोर्ड के खिलाफ 2006 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की।
मामला इतना गंभीर था कि कोर्ट ने 6 महीने के अंदर ही फैसला सुना दिया। फैसले के मुताबिक दिल्ली जल बोर्ड को आदेश दिया कि वो जल्द से जल्द एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए। लेकिन कोर्ट का ये आदेश दिल्ली जल बोर्ड के लिए कोई मायने नहीं रखता। सिटीजन जर्नलिस्ट खुराना ने दिल्ली की मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद दिल्ली जल बोर्ड ने जवाब दिया कि दिसबंर 2009 तक इस परियोजना को पूरा कर दिया जाएगा। 2 साल बीत जाने पर भी यहां पर सीवेज प्लांट की नींव तक नहीं रखी गई है।
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आईबीएन-7