नई दिल्ली। सिटिजन जर्नलिस्ट में आज हम बात करेंगे उन लोगों की जो उम्र का एक पड़ाव पार कर चुके हैं लेकिन समाज के लिए कुछ करने का जज्बा उनमें आज भी बरकरार है। समाज में फैली बुराई के खिलाफ आज भी इनकी आवाज बुलंद है। ऐसे ही एक सिटिजन जर्नलिस्ट हैं उदय भान सिंह। दिल्ली के गोविंद पुरी इलाके में तीन बस्तियां हैं नवजीवन कैंप, नेहरु कैंप और भूमिहीन कैंप। इन तीनों बस्तियों में तकरीबन 50,000 लोग रहते हैं, जो लोग दिल्ली नगर निगम के बनाए सिर्फ 7 शौचालयों पर निर्भर हैं। नगर निगम की तरफ से ये सुविधाएं इन लोगों को निःशुल्क दी गई है, लेकिन पूरे हिन्दुस्तान में हर तरह का माफिया मौजूद है जिसमें शौचालय माफिया भी मौजूद है। इन लोगों ने इन शौचालयों को अपनी अवैध कमाई का जरिया बनाया हुआ है। ये उन लोगों की जेबों पर डाका डालते हैं जो गरीब हैं और जिनकी कोई पहुंच नहीं है।
2007 तक सुलभ शौचालयों की जिनकी स्थिति काफी अच्छी थी और हर आदमी से 50 पैसे लिए जाते थे। 2007 में सुलभ शौचालयों को एमसीडी ने अपने अधीन कर लिया और लोगों के लिए निःशुल्क कर दिया लेकिन उसके बाद इनकी हालत बदतर होने लगी और कुछ दबंग लोग शौचालय के बाहर बैठ कर 2-5 रुपया वसूलने लगे। जितनी बार लोग इन शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं उतनी बार उन्हें कीमत चुकानी पड़ती थी।
शौचालयों की इस समस्या को लेकर उदयभान सिंह ने फैसला किया कि वे इसके खिलाफ आवाज उठाएँगी। 2008 में उन्होंने दिल्ली नगर निगम में एक RTI डाली। RTI में उदयभान ने दिल्ली नगर निगम से सवाल किया कि लोगों के लिए बनाए गए ये शौचालय क्या निशुल्क हैं, साथ ही ये भी पूछा कि इन शौचालयों में सफाई की क्या व्यवस्था की गई है। RTI के जवाब में जानकारी मिली की दिल्ली नगर निगम ने हर शौचालय में दो सफाई कर्मचारी नियुक्त किए हैं और ये शौचालय निःशुल्क हैं।
हैरानी की बात है की शौचालय तो निःशुल्क हैं लेकिन कुछ लोगों ने इन्हें पूरी तरह अपने कब्जे में ले रखा है। लोगों से खुलेआम पैसे ले रहे इन माफियाओं से जब हमने सवाल पूछा तो कैमरा देखते ही इनके होश उड़ गए। बात यहीं तक खत्म नहीं हुई ये लोग अपनी गलती मानने की बजाय उदयभान को ही धमकी देने लगे। सिटिजन जर्नलिस्ट बनने के बाद उदयभान की मेहनत का परिणाम दिखाई दिया। दिल्ली नगर निगम ने तुरंत ही शौचालय माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें वहां से हटा दिया।
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आईबीएन-7