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आईबीएन-7, 05 अगस्त 2012
उत्तर प्रदेश के पलिया इलाके में 884 वर्गमीटर में फैले दुधवा नेशनल पार्क के टूरिस्ट जोन में घूमते समय आपको यहां सिर्फ बाघ और हिरन ही नहीं बल्कि हिस्पिड हेयर, हिमालयन सी वेट, लैपर्ड कैट और स्लोथ बेयर जैसी बेहद दुर्लभ प्रजाति के जानवर देखने को मिलते हैं। लगभग 25 साल पहले इस पार्क को प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया। इतना ही नहीं दुधवा में गैंडो के संरक्षण के लिए राइनो एरिया की भी स्थापना की गई है। लेकिन जब बात पार्क की सुविधाओं की होती है, तब सभी आंखें बंद कर लेते हैं। यहां की फाइलें सरकारी दांव-पेंच में उलझ कर रह जाती हैं। दुधवा में लाखों पेड़ सूख कर बर्बाद हो गए। वैसे तो पानी से पेड़ को जीवन मिलता है, पर यहां पानी के बाद भी पेड़ सूख कर बर्बाद हो गए। यहां जंगल के जंगल नष्ट होते जा रहे हैं और इसकी वजह है सुहेली नदी, जो नेपाल से आती है। सुहेली नदी पर बना बैराज भी तबाही की एक वजह है। मात्र दो-तीन गांव की सिंचाई का बहाना बनाकर इसके फाटक को बंद रखा जाता है, जबकि कोर्ट में अफसरों ने हलफनामा दिया है कि इसके सभी फाटक खुले रहते हैं। फाटक बंद रखे जाने की वजह से काफी सिल्ट जमा हो जाता है और बाद में यह ओवरफ्लो होने के बाद ना सिर्फ पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि इससे जंगल का ग्रास लैंड भी प्रभावित हो रहा है। इस पानी से दुधवा की सड़कों के साथ ही रेलवे लाइन भी क्षतिग्रस्त हो जाती है।