जल संक्रमण से हमारे देश में बहुत-सी बीमारियां फैलती हैं। दूषित पेयजल और संक्रमित पेयजल की समस्या कई प्रदेशों में आज भी मौजूद है। यहां तक कि दिल्ली के कुछ इलाकों में, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले अधिकांश गांव भी इस से पीड़ित हैं। शुद्ध व निर्मल जल जहां मानव के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत जरूरी चीज है, वहीं मानव शरीर को मिलने वाले अनेक रासायनिक व पौष्टिक अवयवों का कारक भी है। मतलब यह कि शुद्ध जल स्वास्थ्य की बुनियादी आवश्यकता है। सरकार भले ही कुछ भी बातें और दावे करे, लेकिन सभी को शुद्ध जल उपलब्ध कराने की बात आज तक पूरी नहीं कर पाई है। पानी की उपलब्धता को पूरा करने के लिए कुए खोदे जाते हैं, नल लगते हैं, वॉटर पंप्स लगते हैं और यहां तक कि दूर-दूर नदियों या नहरों तक से पाइप लाइन से पीने का पानी सप्लाई किया जाता है, इन सब के बावजूद आज भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे पानी की आवश्यकता के लिए करना जरूरी है, बाकी है।
यह सर्वमान्य तथ्य है कि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, अन्य भौतिक जरूरतें भी बढ़ रही हैं तथा पानी की आवश्यकता भी कई गुना बढ़ रही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जल के स्रोत संकुचित हो रहे हैं। इसे देखते हुए कभी राज्य सरकारों में आपस में, तो कभी केंद्र और राज्य सरकारों में जल की समस्या के झगड़े तक खड़े हो रहे हैं। जल की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ने का ही परिणाम है कि सरकार को समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए सार्थक रासायनिक उपाय खोजने की बात करनी पड़ रही है। अनेक राष्ट्रों में तो इसके लिए प्रयोग भी शुरू हो चुके हैं। पिछले दिनों हमारे देश में भी अनेक वैज्ञानिक ने गोष्ठियों व सेमिनारों में इसकी जरूरत पर बल दिया, लेकिन फिर भी जल की बढ़ती मांग की पूर्ति करना मुश्किल साबित हो रहा है।
शुद्ध जल के विश्लेषण में ई-कोलाई, कोली फार्म व अन्य रसायन या लवण हो तभी उसे शुद्ध जल की संज्ञा दी जा सकती है। साधारण से कल्चर परीक्षण से ही पानी के संक्रमण का ज्ञान हो सकता है। मगर व्यक्तिगत स्तर पर इससे कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि यह बहुत अधिक महंगा पड़ता है। कायदा तो कहता है कि जो पानी हम पी रहे हैं उसकी हर 10 से 15 दिन बाद एक बार जांच की ही जानी चाहिए। पेयजल को साफ करने के बाद भी सप्लाई लाइनों का पर्याप्त रखरखाव न होना व घर में स्टोरेज टैंक का खुला रहना भी जल संक्रमण का कारण बन सकता है।
दूषित जल और स्वास्थ्य
जरूरी यह है कि जो जल इंसान को पीने को मिलेगा शुद्ध तो हो ही साथ ही कीटाणु रहित भी हो। अशुद्ध जल के सेवन से कई बीमारियां पैदा होती हैं, तो मानव ऊर्जा की दिशा सकारात्मक तो रह नहीं सकती। दूषित जल पीने से परिवार में किसी एक के बीमार पड़ने से पूरे परिवार को उसकी सेवा में लगना पड़ता है। इससे बहुत अधिक मानव श्रम व्यर्थ जाता है। दूषित पानी से खुजली, खारिश, अपच व अन्य त्वचा रोग आदि पैदा हो सकते हैं। ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ नामक स्वास्थ्य संगठन ने प्रदूषित जल पर बकायदा एक अध्ययन किया है। उनके सर्वेक्षण संबंधी आंकड़ों के अनुसार 7 करोड 30 लाख मानव कार्य दिवसों का ह्यस प्रदूषित जल के कारण होता है। सृजनात्मक कार्यों को इससे जितना अधिक नुकसान पहुंचता है, इसका सहज अंदाजा इन आंकड़ों से मिल जाता है। त्वचा रोगों व अन्य रोगों पर धन जाया होता है सो अलग। पेट में पथरी होने व रक्त संबंधी कई विकारों की वजह भी प्रदूषित जल है। कभी-कभी तो यह जल पीढ़ी दर पीढ़ी मानव को अपंग भी बना डालता है। इसके अलावा और भी अनेक त्रासदियां हैं, जिनकी वजह सिर्फ अशुद्ध जल है। पर विडंबना ही है कि इस प्राकृतिक सत्य व बुनियादी सुविधा से मानव आज तक महरूम है। जल संक्रमण से जुड़े तमाम पहलुओं से होने वाली बीमारियों पर जाने-माने चिकित्सक डॉ विजय से विस्तृत बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश........
जल संक्रमण क्या है और यह किस तरह पता चलता है कि चल संक्रमित है कि नहीं ?
पानी की शत-प्रतिशत शुद्धता की कल्पना तो खैर व्यर्थ है। दूसरी बात यह भी है कि पानी को पूरी तरह पचा पाना भी संभव नहीं है। पानी में हानिकारक विषाणुओं, बैक्टीरिया से मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रसायनों का मिला होना ही जल संक्रमण कहलाता है। शुद्ध जल के विश्लेषण में ई-कोलाई, कोली फार्म व अन्य रसायन या लवण हो तभी उसे शुद्ध जल की संज्ञा दी जा सकती है। साधारण से कल्चर परीक्षण से ही पानी के संक्रमण का ज्ञान हो सकता है। मगर व्यक्तिगत स्तर पर इससे कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि यह बहुत अधिक महंगा पड़ता है। कायदा तो कहता है कि जो पानी हम पी रहे हैं उसकी हर 10 से 15 दिन बाद एक बार जांच की ही जानी चाहिए। पेयजल को साफ करने के बाद भी सप्लाई लाइनों का पर्याप्त रखरखाव न होना व घर में स्टोरेज टैंक का खुला रहना भी जल संक्रमण का कारण बन सकता है।
इस दिशा में निजी या व्यक्तिगत प्रयासों का मतलब ?
मतलब यह है कि पेयजल को संक्रमण से बचाने का सबसे सुलभ निजी तरीका है कि आप स्वयं को उसे विषाणु व बैक्टीरिया रहित बनायें। इसके लिए फिल्टर का उपयोग बहुत जरूरी हो जाता है। 10 से 15 मिनट तक पानी उबालकर ठंडा करने के बाद पीना भी उपयोगी रहता है। पानी साफ करने हेतु रसायनिक उपाय भी है-जैसे कि ब्लीचिंग पाउडर, एचटीएफ क्लोरीन टैबलेट या आयोडीन का थोड़े-थोड़े दिन बाद नियमित इस्तेमाल। इसके अलावा पोटैशियम परमैगनेट जिसे लाल पोटाश भी कहा जाता है, का इस्तेमाल भी फायदेमंद है।
जल संक्रमण से होने वाली प्रमुख बीमारियां ?
हालांकि जल संक्रमण से किसी भी आयु के व्यक्ति को बीमारी हो सकती है, पर सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को रहता है। इससे लगने वाली बीमारियां है- त्वचा विकार, पेट में पथरी, वायरल, हेपिटाइटिस या पीलिया, हैजा, पोलियो, टाइफाइड, अतिसार, रोटा बाइरस, डायरिया और कीड़े होना। वायरल हेपेटाइटिस यानी पीलिया, कमला रोग या पांडु रोग की शिकायते बहुत देखने को मिलती हैं। यह एंटेरोवाइरस 72 (7) नामक विषाणु से लगती है। रोगी की भूख मर जाती है। लीवर सूज जाना, बुखार रहना, सिरदर्द, थकान, कमजोरी इसके प्रमुख लक्षण हैं। आँखों व पेशाब का रंग पीला पड़ जाता है। यहां तक कि रोगी की जान तक जा सकती है। मुश्किल यह है कि इसकी रोकथाम के लिए कोई भी इंजेक्शन आज तक नहीं बना है। कार्बोहाइड्रेट युक्त जल्द पचाने वाला भोजन देने से ही इसका निदान हो सकता है। मीठी चीजों में शुगर ज्यादा खिलाने से भी आराम मिलता है। संक्रमित जल का सेवन पोलियो का भी कारण बन सकता है। यह पानी में मौजूदा वायरस से ही फैलने वाला रोग है। यह बच्चे को जीवन भर के लिए अपंग कर सकता है। इसके अलावा यदि बच्चे को बुखार है और संक्रमित जल का सेवन कर रहा है तो टाइफाइड भी हो सकता है। यह एसटाईफाई बैक्टीरिया के कारण होता है। टाइफाइड के मरीज को संक्रमित जल का सेवन तो छाहर होता ही है, इसके साथ-साथ संक्रमित जल से स्नान भी बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है, इसलिए यह भी ध्यान रखने की बात है कि संक्रमित जल का सेवन ही सिर्फ हानिकारक नहीं है बल्कि उससे नहाना, हाथ धोना या उसके धुले बर्तनों में खाना खाना भी ज्यादा नुकसानदेह है। सभी चीजों के उपयोग का जल शुद्ध व संक्रमण रहित होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन व हमारे देश की स्वास्थ्य एजेंसियां देश की जनता को इसी के लिए बार-बार सचेत करती हैं, पर थोड़ी-सी असावधानी के कारण हम बड़ी-बड़ी मुश्किलों में फंस जाते हैं। जिनकी वजह हर तरह से संक्रमित जल ही होता है। हम सतर्क रहें तो यह कारण नहीं कि संक्रमित जल का सेवन हमारी नियति बन जाए, पर यह तभी संभव है जब हम इस बुनियादी और संवेदनशील पहलू पर पूरा ध्यान दें।
रोके जाने का क्या उपाय है ?
डायरिया और हैजा दोनों ही बैक्टीरिया के कारण लगने वाली बीमारियां हैं। दूषित जल का सेवन खासकर रेहड़ियां, जो गंदी रहती हैं, उनका पानी पीना इसकी मुख्य वजह है। घर से बाहर उबला हुआ है या फिल्टर किया हुआ पानी मिलना मुश्किल है, पर पूरी सफाई पर तो कम से कम ध्यान दिया ही जा सकता है। हमे टोंटी का ताजा पानी पीना चाहिए न की रेहड़ी का। जहां टोंटी का नहीं है वहां रेहडी की पूरी सफाई पर गौर किया जाना नितांत आवश्यक है। यह रोग लग ही जाए तो शरीर का निर्जलीकरण न होने दें। रोगी का जल स्तर बनाए रखें। याद रहे उसे फिल्टर किया हुआ पानी पीने को दें।
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