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मध्य प्रदेश की सरकार ने 7-8 साल पहले खंडवा के लोगों को घर-घर तक साफ और समुचित मात्रा में पानी पहुँचाने के लिये निजी कम्पनी विश्वा से अनुबन्ध कर 52 किमी दूर नर्मदा नदी से पानी लाकर एक अरब छह करोड़ की लागत से यहाँ प्रदेश का पहला निजीकरण मॉडल रखा था। लेकिन यह बुरी तरह फ्लाप रहा है। देश में इससे पहले भी जहाँ–जहाँ पानी वितरण के निजीकरण की कोशिशें की गई हैं सभी जगह असफल ही हुए हैं। एक अरब छह करोड़ रुपए की भारी-भरकम पानी के निजीकरण की योजना के बाद भी अनुबन्धित विश्वा कम्पनी खंडवा शहर के लोगों को पानी नहीं दे पा रही है। बार-बार पाइप लाइन फूटने से एक तरफ नर्मदा नदी का लाखों गैलन पानी बर्बाद हो रहा है तो दूसरी ओर यहाँ के बाशिन्दे बाल्टी-बाल्टी पानी को मोहताज हैं।
हालत ये हैं कि अब हर दिन किसी-न-किसी मोहल्ले के लोगों को पानी के लिये हंगामा करना पड़ता है। उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ जनहित याचिका भी दायर की गई है। लोकायुक्त में भी इसकी शिकायत दर्ज है। मुख्यमंत्री को भी स्थिति से अवगत कराया है लेकिन अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है।
मध्य प्रदेश की सरकार ने 7-8 साल पहले खंडवा के लोगों को घर-घर तक साफ और समुचित मात्रा में पानी पहुँचाने के लिये निजी कम्पनी विश्वा से अनुबन्ध कर 52 किमी दूर नर्मदा नदी से पानी लाकर एक अरब छह करोड़ की लागत से यहाँ प्रदेश का पहला निजीकरण मॉडल रखा था। लेकिन यह बुरी तरह फ्लाप रहा है। देश में इससे पहले भी जहाँ–जहाँ पानी वितरण के निजीकरण की कोशिशें की गई हैं सभी जगह असफल ही हुए हैं।
खंडवा के लोग बताते हैं कि उन्हें योजना से कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि पानी के मामले में पहले से भी कम पानी मिल पा रहा है। योजना की निर्माण सामग्री इतनी घटिया है कि पाइपलाइन बार-बार फूट जाती है। इससे नर्मदा का बेशकीमती लाखों गैलन पानी व्यर्थ बह जाता है और पाइपलाइन दुरुस्त होने तक लोगों को यहाँ-वहाँ से पानी का इन्तजाम करना पड़ता है।
बीते एक महीने में करीब आठ से दस बार पाइप लाइन फूट चुकी है। किसी इलाके में पानी मिलता है तो किसी में नहीं। हरसूद रोड पर सर्वोदय कालोनी के रहवासियों को जब पूरे दिन पानी नहीं मिला तो उन्होंने शाम को चक्काजाम कर दिया। मौके पर पहुँचे अफसरों को भी महिलाओं ने घेर लिया और बताया कि उनके घर में पीने का गिलास भर पानी भी नहीं बचा है, अब वे बच्चों को क्या पिलाएँ। इसी तरह राजीव नगर के लोगों को भी चक्काजाम करना पड़ा।
नवागत जिला कलेक्टर स्वाति मीणा ने अपने तेवर कड़े कर लिये हैं। उन्होंने पहली ही बैठक में विश्वा के अधिकारियों को ताकीद कर दिया है कि बकवास नहीं शहर को पानी पिलाना आपकी जवाबदारी है और किसी भी स्थिति में वे इससे मुकर नहीं सकते। उन्होंने यहाँ तक कहा कि अब लाइन फूटी तो एक्शन लूँगी और अनुबन्ध का एक-एक नट बोल्ट खोलूँगी। शासन का पैसा खाने नहीं दूँगी। आपकी डिजाइन में ही फाल्ट है। आपने सौ करोड़ लिये हैं तो हिसाब भी बताना पड़ेगा। पाइप बदलना आपका मैटर है। लोगों को पानी दीजिए बस। किसी भी तरह 50 एमएलडी पानी हर दिन दिया जाना चाहिए।
यहाँ तक कि भाजपा की परिषद होने के बाद भी भाजपा पदाधिकारी भी इसके खिलाफ हैं। महापौर सुभाष कोठारी ने भी इसके खिलाफ शिकायत की है। उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बार-बार फूट रही पाइप लाइन की स्थिति से अवगत कराया। शहर में जल वितरण के दौरान एक माह में कितनी बार पाइप लाइन फूटी इसके ब्यौरे के साथ अन्य जानकारी की फाइल बनाकर मुख्यमंत्री को सौंपी। उन्होंने मुख्यमंत्री से माँग की है कि शासन पाइपलाइन बदलवाए या विश्वा कम्पनी को इसके लिये निर्देश दें।
एक तरफ शहर के 15 वार्डों में जलसंकट की स्थिति बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर जगह-जगह पाइप लाइन फूटने से हजारों गैलन नर्मदा जल बह रहा है। सुनील चन्देल ने बताया कि बीते हफ्ते करीब एक घंटे तक सिविल लाइन क्षेत्र में दरगाह के पास पाइप लाइन से पानी बहता रहा। यहाँ नदी की तरह पानी बह निकला। सड़क पर जलभराव की स्थिति बन गई। यहाँ से गुजरते लोग इतनी बड़ी तादाद में पानी का बहाव देखकर विश्वा कम्पनी और निगम अधिकारियों को कोसते रहे। किसी ने मोबाइल पर पानी के बहाव के फोटो खींचे तो कोई इस प्रयास में लगा रहा कि कैसे अमूल्य पानी को बहने से रोका जाये।
एक घंटे तक यहाँ जलधारा बहती रही। कुछ लोगों ने निगम अधिकारियों को पाइप लाइन फूटने की जानकारी दी। इसी तरह कुछ देर बाद ही शेरमूर्ति चौराहे के पास जल वितरण के वॉल्व से अचानक फव्वारे की तरह पानी निकालना शुरू हो गया। बताया जाता है कि वॉल्व में खराबी के कारण यहाँ लीकेज की स्थिति बनी।
स्थानीय रहवासी लव जोशी बताते हैं कि बेहतर ढंग से नर्मदा जल का वितरण करने में नाकाम हो चुकी विश्वा कम्पनी के खिलाफ लोगों में आक्रोश फूट रहा है। नर्मदा जल संघर्ष समिति इसके खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाकर योजना में बिछाई गई पाइप लाइनों को बदलने की माँग कर रही है। अब तक 500 से अधिक लोगों ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
अभियान में महिलाएँ सबसे अधिक जुड़ रही हैं। उधर जलसंकट के विरोध में कांग्रेसियों ने क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है। नगर निगम के सामने कांग्रेस नेता सांकेतिक फाँसी लगाकर बैठे। कांग्रेस नेता रणधीर कैथवास ने कहा कि जनता के 106 करोड़ रुपए जिम्मेदार नेताओं ने पानी में मिला दिये। वकील खान ने कहा कि जनता पानी के लिये तरस रही है, पानी की व्यवस्था कराने में नगर निगम और कम्पनी पूरी तरह से फेल हो गई है। विश्वा के साथ साँठगाँठ करने वाले अफसरों और नेताओं पर कार्रवाई होनी चाहिए।
इसी तरह कुछ वार्डों में कम प्रेशर से पेयजल वितरित होने से अधिकांश बर्तन खाली रह जाने पर निगमायुक्त कक्ष में महिलाओं ने जमकर गुस्सा उतारा। पहले नगर निगम को 50 रुपए मासिक जलकर देना पड़ता था, जो अब चार गुना बढ़ाकर 200 रुपए कर दिया गया है।
देवेन्द्र सिंह यादव ने बताया कि चौबीस घंटे पानी उपलब्ध कराने की बात थी पर बमुश्किल एक घंटा भी नल नहीं चल पा रहे हैं बार–बार पाइप लाइन फूट रही है तो कहीं ऊँचाई तक चढ़ने के लिये प्रेशर नहीं बन रहा है। निजीकरण की योजना बनाते समय यहाँ के लोगों से जन प्रतिनिधियों ने बहुत बड़े-बड़े दावे किये थे अब इन दावों के ढोल की पोल उजागर हो गई है। लोग इससे उम्मीद पाले बैठे थे कि बरसों से पानी की किल्लत के बाद अब उन्हें निजी ही सही पर चौबीसों घंटे पानी 12 मीटर की ऊँचाई तक मिल सकेगा लेकिन यह साफ हो चुका है कि यह योजना भी उनके लिये छलावा ही साबित हुई है। अय्यूब लाला ने बताया कि जोगीबेड़ा के पास पाइप लाइन सुधरने के बाद शहर में जल वितरण तो शुरू हुआ है लेकिन 15 दिन से जलसंकट झेल रहे लोगों को राहत नहीं मिली है। गणेश तलाई, हाटकेश्वर वार्ड और आनंदनगर वार्ड के रहवासियों ने बताया कि कम प्रेशर से महज 10 से 15 मिनट जल वितरण होता है। कई लोगों के बर्तन खाली रह गए। जगदम्बापुरम में रात साढ़े 3 बजे 7 मिनट तक ही पानी आया।
कुंदन मालवीय ने बताया कि हर दिन करीब एक लाख गैलन पानी पुरानी पाइप लाइनों से होकर व्यर्थ बह जाता है। परियोजना में करीब 60 किमी नई वितरण पाइप लाइन डाले जाने का प्रस्ताव है पर अब तक करीब 50 साल पुरानी पाइप लाइनों से ही जल प्रदाय किया जा रहा है। बड़ी गड़बड़ियों में शहर से करीब 52 किमी दूर फिल्टर प्लांट बनाए जाना प्रमुख है। यहाँ से 800 एमएम की जीआई लाइन से पानी आ रहा है, जो कई बार फूट चुकी है। वितरण लाइन पुरानी होने से कई जगह लीकेज हैं। योजना में नियम कायदों को परे रखकर मनमाने बदलाव किये गए। निगम आयुक्त ने बिना एमआईसी की सहमति निविदा शर्तों में फेरबदल कर दिया। वहीं राज्यस्तरीय तकनीकी समिति ने भी पाइप लाइन मटेरियल बदलने की सहमती दी और इंटेक वेल के पास ही फिल्टर प्लांट बनाने पर आपत्ति नहीं की।
नगर निगम में पूर्व नेता प्रतिपक्ष नारायण नागर बताते हैं कि इस योजना के मूलस्वरूप को ही बदल दिया गया, इसीलिये यह असफल साबित हो रही है। न तो ठीक ढंग से सर्वे किया गया और न ही तकनीकी मानकों का ध्यान रखा गया। आज तक चौबीस घंटे पानी देने के लिये कोई टेस्टिंग तक नहीं की गई है। यही वजह है कि मैंने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका लगाई है।
पानी के निजीकरण पर लम्बे समय से काम कर रहे मंथन अध्ययन केन्द्र बड़वानी ने वर्ष 2009 में ही इस पर सवाल उठाए थे पर तब किसी ने ध्यान नहीं दिया था। केन्द्र ने इसे सार्वजनिक भी किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक उपलब्ध संसाधनों की अनदेखी कर 52 किमी दूर से नर्मदा का पानी लाना व उसे निजी हाथों में सौंपा जाना उचित नहीं है। इससे लोगों को महंगा पानी मिलेगा और इसके लिये हर महीने खर्च चुकाना नगर निगम के बूते का नहीं होगा।
2010 की जनसंख्या 2 लाख 15 हजार के लिये 29 एमएलडी पानी की जरूरत है, जबकि तब ही निगम के पास उपलब्ध पानी 15.20 एमएलडी था। मात्र 13.80 एमएलडी पानी के लिये इस तरह की योजना अविवेकपूर्ण है। अकेले भगवंतसागर से ही इतने पानी की पूर्ति सम्भव है। हर साल निगम को एक बड़ी रकम कम्पनी को देनी होगी जो किसी भी तरह निगम के लिये दे पाना सम्भव नहीं है। इससे कम लागत में तो सुक्ता आवर्धन योजना आ सकती थी।
यह भी कि योजना ही गलत ढंग से बनाई गई है और इसमें लोगों की सीधे तौर पर कोई भागीदारी नहीं है और न ही योजना बनाने से पहले जनप्रतिनिधियों या अफसरों ने उनसे कोई राय मशविरा किया है। वे बताते हैं कि यहाँ इस योजना की कोई जरूरत ही नहीं थी। शहर को पानी देने के लिये निगम को ही सक्षम बनाया जा सकता था। यहाँ केवल 13.80 एमएलडी पानी की ही जरूरत है लेकिन कृत्रिम रूप से जल संकट पैदा किया गया और फिर सात साल पहले यह योजना लागू की गई। आज ये सारे सवाल लोगों को साफ नजर आ रहे हैं।
जनता की चुनी हुई स्थानीय नगर संस्थाएँ ही अपने नागरिकों के लिये पर्याप्त और साफ पानी का इन्तजाम करें। इन्हें कहीं भी और किसी भी रूप में निजी हाथों में सौंपना न तो सरकारों, निकायों और न ही आम लोगों के हक में है। इससे उलट कई निकाय संस्थाओं ने अपने तईं किये प्रयासों से शहरों में जल वितरण को सुगम किया है। खंडवा में जिस तरह लोग परेशान हो रहे हैं, उससे सरकार और स्थानीय संस्थाओं को सबक लेने की जरूरत है।