एक नदी

Submitted by admin on Thu, 10/10/2013 - 10:15
एक नदी बाल्यावस्था
लांघ अल्हड़ यौवन का
स्पर्श मात्र ही कर पाई थी
कि बाँध दी गई
उन्मुक्तता उसकी
यह समझाकर कि
इस प्रकार कल्याण
कर पाएगी वो
जन जीवन का
नदी सहर्ष स्वीकार
करती है इस बंधन को
बिना विचारे आगत क्या है
किन्तु यह क्या
उसके संगी साथी
झरने, प्रपात,नन्ही धाराएं
सभी तो लुप्त हो गए
साथ ही लुप्त हो रहे हैं
जीवन के सब चिंह
ग्राम, वन-वृक्ष
नदी स्तब्ध है
यह सब देख
कैसा है यह जन कल्याण
एक दीवार खड़ी है आगे
उस पार जिसके
अपने क्षीण काय
शरीर को देख कर
स्वयं को भी नहीं
पहचान पाती नदी
विस्मित है यह देख कर
कि इतने जल स्रोत
अपने में विलय
करने के उपरान्त भी
क्यों क्षीण हैं
आकार व गति उसकी
महानगर जो उसके तट पर
विकसित हो मान देते थे
उससे दूर होते जा रहे हैं
श्रद्धालु जो अपना कलुष
धो लेते रहे थे
नदी में स्नानमात्र से
विमुख हो गए लगते हैं
क्योंकि जो क्षीण काय
अपना कल्याण
करने में असमर्थ है
किसी अन्य का
कल्याण कैसे करेगी
नदी सागर को
समर्पित होने पहुंची
सागर ने भी तो
तिरस्कृत कर दिया
हट और भी तो हैं
मेरे आगोश में
आने को तत्पर
नदी दुःख से
बिखर जाती है
अनगिन धाराओं में
स्व आस्तित्व ही
समाप्त कर देती है
विश्व को नव विहान
देने की इच्छा के साथ !!