एनसीआर का पानी, नदी और ग्रीन ट्रिब्युनल

Submitted by Hindi on Sat, 05/23/2015 - 16:17

दिल्ली में प्रदूषित यमुनाराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दायरा फैला; आबादी बढी; साथ-साथ पर्यावरण की चिन्ता की लकीरें भी। कहना न होगा कि पानी और नदी के मोर्चे पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली ने काफी कुछ खोया है। दिल्ली, पानी के मामले में एक परजीवी शहर है। नोएडा और गुड़गाँव के कदम भी इस पराश्रिता की ओर बढ़ चुके हैं और ग्रेटर नोएडा के पानी में प्रदूषण से पैदा कैंसर के मरीज। साबी नदी का नाम हमने नजफगढ़ नाला रख ही दिया है। हिंडन और यमुना, को भी इसी दिशा में जाते प्रवाह हैं। चेत गये हाथों ने गुहार लगाई। लगाई गुहार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल का भरोसा मिला। इस भरोसे ने उम्मीद जगाई है और चेतना भी। सम्भव है कि इससे हमारा स्वार्थ शर्मा जाये और हमारी नदियाँ जिन्दा हो जायें; हमारा भू-जल लौट आये। देखिये, पानी के प्रति हमारी चेतना और अनुशासन का आह्वान करते कुछ हरित फैसले:

 

अरावली की जमीन


अरावली की पहाड़ियों को हरियाली चाहिए और इनकी तराई, जल संचयन के लिए मुफीद जगह हैं। इन पर अतिक्रमण, प्रकृति की हकदारी पर अतिक्रमण है। अरावली पहाड़ियों पर हरियाणा के हिस्से में भू-माफिया द्वारा किए जा रहे अवैध निर्माण को सरकार द्वारा न रोकने को लेकर दायर एक याचिका में न्यायाधिकरण ने हरियाणा सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने को कहा।

 

पक्षियों के हिस्से का पानी


आकाश वशिष्ठ द्वारा पेश आवेदन ( मूल सं. 121/2013) में अकबरपुर पर्यावास को पर्यावरणीय दृष्टि से संरक्षित क्षेत्र घोषित करने तथा इसे प्रभावित करने वाले क्षेत्र में निर्माणरत शिवनादर यूनिवर्सिटी परियोजना की मन्जूरी रद्द करने की माँग की गई थी। उल्लेखनीय है कि अकबरपुर स्थित दादरी जलसंरचना काफी विशाल है और पेश सूची के मुताबिक दुर्लभ प्रजाति के 240 प्रवासी पक्षियों का बसेरा है। न्यायाधिकरण ने जलक्षेत्र संरक्षण व प्रबन्धन नियम - 2010 का हवाला देते हुए जल-संरचना के सर्वोच्च जलस्तर बिन्दु के चारो आरे 500 मीटर के दायरे में निर्माण पर रोक का आदेश तो दिया ही, पालना व पालना की जाँच की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित करने हेतु एक समिति का भी गठन किया।

 

भू-जल दोहन-प्रदूषण


लोहिया नगर: लोहिया नगर के भू-जल में क्रोमियम जैसे खतरनाक रसायन की उपस्थिति को लेकर हिंडन जलबिरादरी के संयोजक और पेशे से वकील विक्रांत शर्मा ने पानी को लेकर तत्कालीन पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश को भी ज्ञापन दिया। याचिका अदालत पहुँची, तो लोनी, लोहिया नगर, डासना, पिलखुआ तथा औद्योगिक इलाकों में भूमिगत जल की चिन्ता शुरू हो गई। न्यायाधिकरण ने तेवर तल्ख किए। प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से प्रदूषित करने वाली इकाइयों की सूची तथा उन पर पिछले तीन साल के दौरान हुई कार्रवाई की सूचना माँगी। सूची 17 मई को प्रस्तुत करनी थी।

बिल्डरों पर नकेल: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3(3) की अधिसूचना एस. ओ. 38 ई दिनांक 14 जनवरी, 1997 के तहत केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण की स्थापना करते वक्त अपेक्षा की गई थी कि भू-जल प्राधिकरण देश में अंधाधुंध बोरिंग आदि पर लगाम लगाकर भू-जल दोहन को विनियमित करेगा। भू-जल का संरक्षित व सुरक्षित करने के दृष्टिकोण से आवश्यक विनियामक दिशा-निर्देश जारी करेगा। केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण की स्थापना के उद्देश्य यही थे। क्रियान्वयन सुनिश्चित न हो पाने के कारण प्रदूषण के लिए स्थापित केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की तरह भू-जल प्राधिकरण भी कागजी रिकार्ड रखने वाले दफ्तरी से ज्यादा कुछ साबित नहीं हुआ। इन दोनों के पास आज अनुसंधान हैं, आँकड़े हैं, बजट है, अमला है। सब कुछ है, लेकिन जमीनी कार्रवाई नहीं है। दोनों अपनी जिम्मेदारियाँ स्थानान्तरित करने में माहिर हैं। हरित न्यायाधिकरण ने भी यही पाया। अतः नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बिल्डर्स द्वारा निर्माण व अन्य कार्यों में अंधाधुंध दोहन को देखते हुए हरित न्यायाधिकरण ने मूल आवेदन संख्या 59/2012 पर 11 जनवरी, 2013 को एक आदेश दिया। गुड़गाँव में भी बिल्डरों द्वारा जलदोहन नियन्त्रण प्रतिबंध का आदेश है।

आदेश के अनुसार, नोएडा व ग्रेटर नोएडा.. दोनों प्राधिकरण व केन्द्रीय भू-जल आयोग की अनुमति/लाइसेंस के बिना बिल्डर्स द्वारा भू-जल निकासी पर रोक लगा दी। अगले निर्णय तक के लिए स्थनगनादेश जारी करते हुए स्थगनादेश की पालना न करने वाले बिल्डर्स की बिजली आपूर्ति आदि बंद कर देने की कार्रवाई का अधिकार भी प्रशासन को दिया। किन्तु आदेश कागजी ही साबित हुए, तो विक्रांत तोंगड़ न्यायाधिकरण पहुँच गये।

विक्रांत तोंगड़ बनाम यूनियन आॅफ इंडिया (मुख्य आवेदन सं. 203/2013) मामला न्यायाधिकरण के उक्त आदेश की पालना नहीं करने के सम्बन्ध में ही है। न्यायाधिकरण ने सम्बन्धित विभागों द्वारा कोई कार्रवाई करने में स्वयं को असमर्थ बताने पर नाराजगी प्रकट की। हकीकत जाँचने के लिए पाँच वकीलों को स्थानीय आयुक्त नियुक्त किया: सर्व श्री पोटाराजू, विक्रमजीत, आनंद शर्मा, गुरिन्दर जीत और सुमित कुमार घोष। इन्हें जाँच की सभी शक्तियाँ देते हुए न्यायाधिकरण ने स्थानीय पुलिस द्वारा सुरक्षा व प्रशासन द्वारा हर सम्भव सहायता देने का निर्देश भी दिया।

नतीजा यह हुआ कि स्थानीय आयुक्तों ने एक दिन में 12 इकाइयों की जाँच की और सभी को आदेश के उल्लंघन का दोषी पाया। उन्होंने पाया कि ये जलापूर्ति का कोई स्वतन्त्र स्रोत का उपयोग नहीं कर रहे हैं और न ही उनके पास भू-जल निकासी की कोई अनुमति है। न्यायाधिकरण ने सभी 12 इकाइयों के प्रमुखों का कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि उनके द्वारा किए गये उल्लंघन व पर्यावरणीय नुकसान के लिए क्यों न उन पर सजा व जुर्माना किया जाय। केन्द्रीय भू-जल आयोग से भी रिपोर्ट माँगी गई। पाया गया कि लोग रिहायिश से ज्यादा, निवेश के लिए मकान खरीद रहे हैं। आयोग ने अनुरोध किया कि नोएडा में किसी को एक से ज्यादा घर खरीदने की अनुमति न हो। निगरानी जारी है।

 

नदी प्रदूषण


यमुना और हिंडन, कहने को ये दो नाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की नदियाँ हैं। किन्तु क्षेत्र के भीतर गुजरते हुए इनकी हालत ऐसी है कि आप इन्हें जीवन-रेखा कहने की बजाय मृत्यु-रेखा कह सकते हैं। दोनो को लेकर न्यायाधिकरण ने कई आदेश दिए।

 

हिंडन


पुल: करैहड़ा गाँव और मेरठ बाइपास को जोड़ने के नाम पर मोहन नगर के पास हिंडन नदी पर एक पुल बनाने का काम शुरु हुआ। पुल, खम्भों पर बनता, तो हिंडन को कोई नुकसान न होता। इस पुल की ज्यादातर लम्बाई भरवां बनाकर हिंडन के प्रवाह को सिकोड़ने की कोशिश हुई, तो वकील विक्रांत शर्मा, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण जा पहुँचे। न्यायाधिकरण ने अफसरों को बुलाकर डाँट तो खूब मारी, किन्तु अन्ततः पुल जैसा बनना था, वैसा ही बना। असफलता में दोस्तों ने हौसला बढ़ाया; सो निराश नहीं हुए। प्रदूषण के मोर्चे पर कमान कसने में लग गये। हिंडन जलबिरादरी के प्रांतीय समन्वयक कृष्णपाल सिंह के जरिये हिंडन में कचरा फेंके जाने को लेकर याचिका दायर कर दी। कृष्णपाल सिंह की याचिका पर हाल ही में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने उत्तर प्रदेश शासन, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग और भारत सरकार के पर्यावरण मन्त्रालय को नोटिस जारी कर दिए हैं। ‘सोसाइटी फाॅर प्रोटेक्शन आॅफ एन्वायरन्मेंट एण्ड बायोडायवर्सिटी’ ने याचिका दायर कर सहारनपुर से गौतमबुद्ध नगर तक 172 फैक्टरियाँ, हिंडन में कचरा डाल रही हैं। याचिकाकर्ता ने ऐसी फैक्टरियों को बंद कर हिंडन स्वच्छता हेतु कार्य योजना बनाये जाने की माँग की है। न्यायाधिकरण ने सम्बन्धित सरकारों व विभागों को 25 मई तक जवाब देने को कहा।

नहर: वसुंधरा एन्कलेव के निवासी श्री जेपी शर्मा ने हिंडन नहर में कचरे को लेकर याचिका दायर की। शिकायत थी कि निगम के अलावा अन्य स्त्रोतों द्वारा फेंका जा रहा है। श्री शर्मा की याचिका पर आदेश देते हुए न्यायाधिकरण ने हिंडन नहर विशेष में कचरा फेंकने पर प्रतिबंध लगा दिया है। आदेश में कहा गया है कि यह आदेश उत्तर प्रदेश के लोगों व सार्वजनिक प्राधिकरणों पर समान रूप से लागू होगा। लेख लिखे जाने तक प्राप्त जानकारी के अनुसार, अगली तारीख सभी पक्षों को न्यायाधिकरण में पेश होने का आदेश दिया गया। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने चिन्ता व्यक्त की थी कि जिम्मेदारियों को लेकर सभी विभाग एक-दूसरे पर डालते रहते हैं; लिहाजा, स्थानीय निगम, प्राधिकरण, सार्वजनिक संस्थान, इनके कर्मचारी तथा अधिकारी सभी अपने-अपने स्तर इसके लिए जिम्मेदार माने जायेंगे। हिंडन में कचरा डाले जाने की जाँच तथा कचरा रोकने के उपाय सुझाने के लिए एक समिति भी गठित की गई है। दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, पूर्वी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त, दिल्ली लोक निर्माण विभाग, दिल्ली जल बोर्ड तथा उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा नामित अधिकारियों को इस समिति का सदस्य बनाया गया है।

आपात्कालीन योजना चाहिए: जयहिन्द नामक एक संस्था द्वारा ग्रीन ट्रिब्युनल में पेश एक अन्य याचिका में भी हिंडन और सहायक नदियों की चिन्ता की गई है। वकील गौरव कुमार बंसल के माध्यम से दायर यह याचिका में आरोप लगाया गया है कि चीनी मिलों, कागज कारखानों, रासायनिक उद्योगों तथा बूचड़खानों की वजह से उक्त नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं। याचिका में केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा दिए गये उस हलफनामें का भी जिक्र है, जिसमें बोर्ड ने हिंडन, काली और कृष्णी नदी में आ रहे औद्योगिक कचरे के कारण जल गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव की बात स्वीकारी है। याचिका में माँग की गई है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नदियों में प्रदूषण रोकने की आपात्कालीन योजना तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन को निर्देश दिए जाएं।

सुखद है कि ग्रीन ट्रिब्युनल ने माँग का जवाब देने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और उत्तर प्रदेश शासन को नोटिस जारी कर दिए गये हैं। यह नोटिस 14 मई, 2015 दिन गुरूवार को ग्रीन ट्रिब्युनल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा जारी किए गये। सुखद यह भी है कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के दखल के बाद हिंडन को लेकर भी उत्तर प्रदेश शासन कुछ कदम उठाने पर मजबूर हुआ है। आप थोड़े सन्तुष्ट हो सकते हैं कि देर से ही सही, उत्तर प्रदेश शासन ने हिंडन के प्रदूषण पर नजर रखने का निर्णय ले लिया है। तय किया है कि नालों की सेटेलाइट मैपिंग की जायेगी। रिमोट सेंसिंग एजेंसी को सौंपी जिम्मेदारी से अपेक्षा की गई है कि आगामी दो माह के भीतर एजेंसी अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। सम्भव है कि यह सभी हो। किन्तु उस बयान का क्या करेंगे, जो कहता है कि प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड सिर्फ जानकारी दे सकता है; कार्रवाई तो शासन-प्रशासन ही कर सकता है।

यमुना
यमुना को लेकर न्यायाधिकरण पहला अहम आदेश नदी में मलवा-कचरा डंप करने को लेकर आया। इस आदेश में मलवा डालने वालों से पाँच लाख का जुर्माना वसूलने की बात कही गई थी। दूसरी अहम बात, उनके खर्च पर मलवा उठाने के निर्देश भी दिए गये थे। याचिकाकर्ता ने खुद निगरानी की। समय-समय पर सरकार तथा न्यायाधिकरण को सूचित किया। लिहाजा, नतीजे बेहतर आये। फिर यमुना के बाढ क्षेत्र के सीमांकन और यमुना की जमीन पर स्थित इन्द्रप्रस्थ बस अड्डे को लेकर आदेश हुए। यमुना पर श्री मनोज मिश्र की कई और याचिकायें चर्चा में आई। न्यायाधिकरण के आदेश के बाद सरकार हरकत में भी आई। कार्यबल बनाया।

पर्यावरण मुआवजा: जानकारी मिली है कि यमुना पुनर्जीवन हेतु कार्य योजना भी अब बन गई है। इसी बीच सफाई के नाम पर यमुना में गैर कानूनी खुदाई की शिकायत करते हुए राहुल नागर ने याचिका दायर की। दलील के बाद न्यायाधिकरण ने जगतपुर और वजीराबाद बाँध पर खुदाई की अनुमति तो दे दी; किन्तु कहा कि खुदाई में निकाले माल की एवज में खुदाई ठेकेदार, 500 रुपये प्रति क्युबिक मीटर अदा करे। भुगतान सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी, दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों को दी गई। दिल्ली प्रदूषण नियन्त्रण समिति को खुदाई के स्थान के नमूने नियमित तौर पर उठाने का निर्देश भी दिया।

‘मैली से निर्मल यमुना पुनर्जीवन योजना - 2017’ की देख-रेख को लेकर दायर एक याचिका में न्यायाधिकरण ने कहा है कि इसके तहत पर्यावरण मुआवजे को लेकर 45 दिन के भीतर कार्ययोजना बनाकर न्यायाधिकरण के पास जमा की जाए। यह समय सीमा बढ़ाई नहीं जायेगी। यदि योजना में कुछ कमी हुई, तो सम्बन्धित अधिकारी को जिम्मेदार माना जायेगा। न्यायाधिकरण ने इस योजना को वर्ष 2016 से पहले लागू करने को कहा है।

8 मई को जारी एक अन्य बहुचर्चित आदेश में न्यायाधिकरण ने घरों से निकलने वाले सीवेज की एवज में राजधानी वासियों को 100 से 500 रुपये तक पर्यावरण मुआवजा देना होगा। कहा है कि सम्पत्ति कर अथवा पानी का बिल, जो भी अधिक हो, उसके बराबर मुआवजा देना होगा। यह सभी को देना होगा, चाहे सीवर हो या न हो। बिजली कम्पनियों को भी प्रदूषण भुगतान सिद्धान्त के तहत पर्यावरण मुआवजा लेने के लिए कहा है। इससे असहमति हो सकती थी; कारण कि दिल्ली जल बोर्ड, पहले ही सीवेज की एवज में जलशुल्क का 60 प्रतिशत वसूलता है। किन्तु इसे लेकर कोई असहमति मुखर नहीं हुई।

एक समग्र योजना आदेश: दिल्ली नालों में कूड़े पर रोक के जरिये यमुना निर्मल बनाने की एक पहल, न्यायाधिकरण ने समग्र योजना आदेश देकर की। रोक को न मानने वाला चाहे सरकारी हो या निजी, पाँच हजार रुपये जुर्माना वसूला जाये। नालों के पास अतिक्रमण, अवैध निर्माण, बूचड़खाने तथा कपड़ा धोने वालों के खिलाफ कार्रवाई का जिम्मेदारी नगर निगम, लोक निर्माण विभाग, दिल्ली विकास प्राधिकरण समेत सभी सम्बन्धित एजेंसियों को दी गई है। नगर निगम को आदेश दिया कि नालों से सीवेज तथा कचरा साफ करे। दिल्ली राज्य औद्योगिक एवम बुनियादी ढाँचा विकास निगम को जिम्मेदारी सौंपी कि वह सुनिश्चित करें कि फैक्टरियों का कचरा नालों में न जाकर, सीधे शोधन संयन्त्र में जाये।

दिल्ली प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को कहा कि वह सामुदायिक अवजल शोधन संयन्त्रों की क्षमता और व्यवहार पर रिपोर्ट तैयार करे। दिल्ली जल बोर्ड को कहा कि पक्का करे कि मल शोधन संयन्त्र अपनी पूरी क्षमता के अनुकूल शोधन कर रहे हैं। नजफगढ नाला और दिल्ली गेट नाला, दिल्ली में यमुना में 63 प्रतिशत प्रदूषण के कारण हैं। न्यायाधिकरण ने कहा कि योजना-2017 से पहले इन्हें सुधार लें। सम्बन्धित एजेंसियों को चार सप्ताह के भीतर, उन जमीनों का कब्जा लेने को कहा, जहाँ मल शोधन संयन्त्र बनाये जाने हैं। केन्द्र सरकार को कहा कि वह मल शोधन संयन्त्र के निर्माण के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली जल बोर्ड को धन मुहैया कराये। दिल्ली जल बोर्ड और दिल्ली औद्योगिक एवम बुनियादी ढाँचा विकास निगम को संयन्त्रों की आॅनलाइन निगरानी तथा रिपोर्ट को आॅनलाइन सार्वजनिक करने सम्बन्धी व्यवस्था बनाने के आदेश भी दिए। दिल्ली जल बोर्ड को भी कहा कि वह ऐसे वाहन मुहैया कराये, जिनसे सीवेज घरों से सीधे संयन्त्रों तक पहुँचे। इन वाहनों में ‘ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम’ लगा हो, ताकि निगरानी सम्भव हो।

इस आखिरी आदेश को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण किस तैयारी और समग्र सोच के साथ से आदेश दे रहा है। वह सिर्फ नालों में कूड़े पर रोक लगाकर सन्तुष्ट नहीं हुआ; उसने इसके लिए किए जाने विविध कदमों का उल्लेख कर यह सुनिश्चित करने की भी हरसम्भव कोशिश की है कि यह हो। वह अपने आदेश की पालना की जिम्मेदार एजेंसी को सीधे निर्देश कर रहा है। यही राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की खूबी है। आवश्यक है कि हम इस खूबी का लाभ, पंचतत्वों के नाम योग से बने भगवान और इस भगवान द्वारा बनाये अनगिनत जीवों के शरीर की सेहत की रक्षा के लिए उठायें। यह तभी हो सकता है कि जब हम पहले खुद भागवदप्रेमी बन जायें यानी पंचतत्वों से प्रेम करें।