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नवोदय टाइम्स, 7 जनवरी 2015
यदि आपको भी समय की धूल में छिपे प्रमाणों को खोज कर उनके आधार पर इतिहास का निर्माण करना लुभाता है, ऐतिहासिक अवशेषों के आधार पर प्राचीन सभ्यता और संस्कृति से जुड़े तथ्यों और जानकारियों को दुनिया के सामने लाने का चुनौतीपूर्ण कार्य करने को आप तत्पर रहते हैं तो एपिग्राफी के क्षेत्र में एक उम्दा करियर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
आज के कम्प्यूटर इंजीनियरिंग तथा इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के दौर में विज्ञान की एक शाखा है जो हमारे शानदार इतिहास के बारे में जानने के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। यह है विभिन्न प्राचीन भाषाओं तथा संकेतों वाली रहस्यमयी हस्तलिपियों को पढ़ने की कला। इसी को एपिग्राफी यानी पुरालेख विद्या के नाम से भी जाना जाता है। एपिग्राफी पाषाण, ताम्र थालियों, लकड़ी आदि पर लिखी प्राचीन व अनजानी हस्तलिपियों को खोजने तथा उन्हें समझने का विज्ञान है। एपिग्राफ्स इतिहास के स्थायी तथा सर्वाधिक प्रमाणिक दस्तावेज हैं। वे ऐतिहासिक घटनाओं की तिथि, सम्राटों के नाम, उनकी पदवियों, उनकी सत्ता के काल, साम्राज्य की सीमाओं से लेकर वंशावली तक के बारे में सटीक व सही सूचना के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
विभिन्न पदार्थों पर उकेर कर लिखे ये पुरालेख विबिन्न भाषाओं व लिपियों के उद्भव तथा विकास के साथ-साथ प्राचीन भाषाओं के साहित्य के रुझानों तथा इतिहास के विभिन्न पहलुओं के बारे में भी सटीक जानकारी प्रदान करते हैं।
इनकी मदद से हम इतिहास के अनजाने तथ्यों से परिचित हो सकते हैं और पहले से परिचित इतिहास की घटनाओं पर और करीब से रोशनी भी डाल सकते हैं। जो भी इतिहास हम पुस्तकों में पढ़ते हैं वह सारा पुरालेखों पर ही आधारित है।
आर्कियोलॉजी की विभिन्न शाखाओं में से एक एपिग्राफी के तहत किलों, धार्मिक स्थलों, समाधियों, मकबरों जैसे विभिन्न स्मारकों में पुरालेखों या शिलालेखों की खोज की जाती है। इन्हें फोटोग्राफी या स्याही रगड़ कर कागज पर उतार लिया जाता है। इसके बाद इन्हें बेहद ध्यान से समझने का प्रयास किया जाता है। इस दौरान इनमें दिए गए तथ्यों एवं जानकारी की मदद से उनमें जिन लोगों, घटनाओं, तिथियों, स्थानों आदि का जिक्र होता है, उनका पता लगाया जाता है।
ऐसी सभी जानकारी को वार्षिक ‘इंडियन एपिग्राफी रिपोर्ट’ में पेश किया जाता है और महत्वपूर्ण खोजों को वार्षिक ‘इंडियन आर्कियोलॉजी जर्नल’ में प्रमुखता से छापा जाता है। अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व के पुरालेखों को सम्पादित विवरण के साथ हूबहू ‘एपिग्राफिया इंडिका’ में छापा जाता है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ए.एस.आई.) की स्थापना 1861 में की गई थी। तब से ही पुरालेखों की खोज, उनकी पड़ताल तथा उनका संरक्षण ए.एस.आई. की प्रमुख गतिविधियों में से एक है। पुरालेखों के अध्ययन के लिए सर्वे की एक अलग शाखा है। संस्कृत तथा द्रविड़ियन पुरालेखों व सिक्कों के अध्ययन के लिए इसका मुख्यालय मैसूर और अरबी व फारसी पुरालेखों व सिक्कों के अध्ययन के लिए मुख्यालय नागपुर में है। ये दोनों मुख्यालय दो अलग निदेशकों के नेतृत्व में कार्य करते हैं एपिग्राफी शाखा के जोनल दफ्तर लखनऊ तथा चेन्नई में हैं।
ए.एस.आई. की एपिग्राफी शाखा में संस्कृत, अरबी, फारसी, तेलगु, कन्नड़, तमिल तथा मलयालम भाषा में विभिन्न पद हैं। अनेक राज्य सरकारों के यहां भी आर्कियोलॉजी डिपार्टमैंट्स हैं जहां एपिग्राफिस्ट्स के पद हैं।
इनके अलावा सभी प्रमुख संग्रहालयों में क्यूरेटर तथा कीपर/डिप्टी कीपर/गैलरी असिस्टैंट्स आदि के पद होते हैं जिनके लिए एपिग्राफिस्ट्स की भी जरूरत होती है। नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय, कोलकाता में भारतीय संग्रहालय, नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया तथा विभिन्न राज्य सरकारों के आर्काइव्स को भी अपने कार्यों के लिए एपिग्राफिस्ट्स की जरूरत होती है।
ग्रैजुएशन (जिसमें इतिहास एक विषय हो) सहित उपरोक्त वर्णित विषयों में से किसी एक में प्रथम क्षेणी मास्टर डिग्री अथवा इतिहास में मास्टर डिग्री सहित ग्रैजुएशन में उपरोक्त वर्णित विषयों में से किसी एक का अध्ययन जरूरी योग्यता है।
कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धारवाड़ तथा तमिल यूनिवर्सिटी तंजावुर पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा कोर्स इन एपिग्राफी भी करवाती हैं जो चुने जाने के लिए एक अतिरिक्त योग्यता बन सकती है।
एक अच्छे एपिग्राफिस्ट साबित होने के लिए संबंधित भाषा में पकड़ के साथ-साथ इतिहास का अच्छा ज्ञान, विश्लेषणात्मकता और तार्किक सोच होना लाजमी है। पढ़ने और नवीनतम जानकारी प्राप्त करते रहने की आदत भी करियर में तरक्की दिलाती है। गौरतलब है कि एपिग्राफी सहित पुरातत्व की सभी शाखाओं में करियर संवारने के लिए फील्ड में कार्य तथा शोध करना जरूरी होता है जिस पर घर से दूर रह कर काफी मेहनत करनी पड़ती है।
इस करियर के लिए तन और मन, दोनों का मजबूत होना जरूरी है। अगर आप शारीरिक रूप से स्वस्थ और ताकतवर नहीं हैं तो काम के दौरान होने वाली थकान को सहन करना आपके लिए मुश्किल होगा। एपिग्राफिस्ट्स की जॉब मेहनत और समय, दोनों की मांग करती है। खराब मौसम हो या मुश्किल परिस्थितियां जरूरत पड़ने पर एपिग्राफिस्ट्स को हर तरह के हालात में काम करना पड़ता है।
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
जीवाजी यूनिवर्सिटी, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी, रीवा, मध्य प्रदेश
डैक्कन कॉलेज, पुणे, महाराष्ट्र
महराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा गुजरात
आंध्र यूनिवर्सिटी, विशाखापत्त्तनम, आंध्र प्रदेश
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इडिया, जनपथ, नई दिल्ली
www.asi.nic.in
नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया, जनपथ, नई दिल्ली
www.nationalarchives.nic.in
इंडियन कॉऊंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च, 35, फिरोजशाह रोड़, नई दिल्ली
www.ichrindia.org
क्या है एपिग्राफी?
आज के कम्प्यूटर इंजीनियरिंग तथा इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के दौर में विज्ञान की एक शाखा है जो हमारे शानदार इतिहास के बारे में जानने के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। यह है विभिन्न प्राचीन भाषाओं तथा संकेतों वाली रहस्यमयी हस्तलिपियों को पढ़ने की कला। इसी को एपिग्राफी यानी पुरालेख विद्या के नाम से भी जाना जाता है। एपिग्राफी पाषाण, ताम्र थालियों, लकड़ी आदि पर लिखी प्राचीन व अनजानी हस्तलिपियों को खोजने तथा उन्हें समझने का विज्ञान है। एपिग्राफ्स इतिहास के स्थायी तथा सर्वाधिक प्रमाणिक दस्तावेज हैं। वे ऐतिहासिक घटनाओं की तिथि, सम्राटों के नाम, उनकी पदवियों, उनकी सत्ता के काल, साम्राज्य की सीमाओं से लेकर वंशावली तक के बारे में सटीक व सही सूचना के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
विभिन्न पदार्थों पर उकेर कर लिखे ये पुरालेख विबिन्न भाषाओं व लिपियों के उद्भव तथा विकास के साथ-साथ प्राचीन भाषाओं के साहित्य के रुझानों तथा इतिहास के विभिन्न पहलुओं के बारे में भी सटीक जानकारी प्रदान करते हैं।
इनकी मदद से हम इतिहास के अनजाने तथ्यों से परिचित हो सकते हैं और पहले से परिचित इतिहास की घटनाओं पर और करीब से रोशनी भी डाल सकते हैं। जो भी इतिहास हम पुस्तकों में पढ़ते हैं वह सारा पुरालेखों पर ही आधारित है।
पुरालेखों को खोजने व समझने की विधि
आर्कियोलॉजी की विभिन्न शाखाओं में से एक एपिग्राफी के तहत किलों, धार्मिक स्थलों, समाधियों, मकबरों जैसे विभिन्न स्मारकों में पुरालेखों या शिलालेखों की खोज की जाती है। इन्हें फोटोग्राफी या स्याही रगड़ कर कागज पर उतार लिया जाता है। इसके बाद इन्हें बेहद ध्यान से समझने का प्रयास किया जाता है। इस दौरान इनमें दिए गए तथ्यों एवं जानकारी की मदद से उनमें जिन लोगों, घटनाओं, तिथियों, स्थानों आदि का जिक्र होता है, उनका पता लगाया जाता है।
ऐसी सभी जानकारी को वार्षिक ‘इंडियन एपिग्राफी रिपोर्ट’ में पेश किया जाता है और महत्वपूर्ण खोजों को वार्षिक ‘इंडियन आर्कियोलॉजी जर्नल’ में प्रमुखता से छापा जाता है। अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व के पुरालेखों को सम्पादित विवरण के साथ हूबहू ‘एपिग्राफिया इंडिका’ में छापा जाता है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एपिग्राफी शाखा
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ए.एस.आई.) की स्थापना 1861 में की गई थी। तब से ही पुरालेखों की खोज, उनकी पड़ताल तथा उनका संरक्षण ए.एस.आई. की प्रमुख गतिविधियों में से एक है। पुरालेखों के अध्ययन के लिए सर्वे की एक अलग शाखा है। संस्कृत तथा द्रविड़ियन पुरालेखों व सिक्कों के अध्ययन के लिए इसका मुख्यालय मैसूर और अरबी व फारसी पुरालेखों व सिक्कों के अध्ययन के लिए मुख्यालय नागपुर में है। ये दोनों मुख्यालय दो अलग निदेशकों के नेतृत्व में कार्य करते हैं एपिग्राफी शाखा के जोनल दफ्तर लखनऊ तथा चेन्नई में हैं।
करियर की सम्भावनाएं
ए.एस.आई. की एपिग्राफी शाखा में संस्कृत, अरबी, फारसी, तेलगु, कन्नड़, तमिल तथा मलयालम भाषा में विभिन्न पद हैं। अनेक राज्य सरकारों के यहां भी आर्कियोलॉजी डिपार्टमैंट्स हैं जहां एपिग्राफिस्ट्स के पद हैं।
इनके अलावा सभी प्रमुख संग्रहालयों में क्यूरेटर तथा कीपर/डिप्टी कीपर/गैलरी असिस्टैंट्स आदि के पद होते हैं जिनके लिए एपिग्राफिस्ट्स की भी जरूरत होती है। नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय, कोलकाता में भारतीय संग्रहालय, नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया तथा विभिन्न राज्य सरकारों के आर्काइव्स को भी अपने कार्यों के लिए एपिग्राफिस्ट्स की जरूरत होती है।
योग्यता
ग्रैजुएशन (जिसमें इतिहास एक विषय हो) सहित उपरोक्त वर्णित विषयों में से किसी एक में प्रथम क्षेणी मास्टर डिग्री अथवा इतिहास में मास्टर डिग्री सहित ग्रैजुएशन में उपरोक्त वर्णित विषयों में से किसी एक का अध्ययन जरूरी योग्यता है।
कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धारवाड़ तथा तमिल यूनिवर्सिटी तंजावुर पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा कोर्स इन एपिग्राफी भी करवाती हैं जो चुने जाने के लिए एक अतिरिक्त योग्यता बन सकती है।
कौशल एवं गुण
एक अच्छे एपिग्राफिस्ट साबित होने के लिए संबंधित भाषा में पकड़ के साथ-साथ इतिहास का अच्छा ज्ञान, विश्लेषणात्मकता और तार्किक सोच होना लाजमी है। पढ़ने और नवीनतम जानकारी प्राप्त करते रहने की आदत भी करियर में तरक्की दिलाती है। गौरतलब है कि एपिग्राफी सहित पुरातत्व की सभी शाखाओं में करियर संवारने के लिए फील्ड में कार्य तथा शोध करना जरूरी होता है जिस पर घर से दूर रह कर काफी मेहनत करनी पड़ती है।
इस करियर के लिए तन और मन, दोनों का मजबूत होना जरूरी है। अगर आप शारीरिक रूप से स्वस्थ और ताकतवर नहीं हैं तो काम के दौरान होने वाली थकान को सहन करना आपके लिए मुश्किल होगा। एपिग्राफिस्ट्स की जॉब मेहनत और समय, दोनों की मांग करती है। खराब मौसम हो या मुश्किल परिस्थितियां जरूरत पड़ने पर एपिग्राफिस्ट्स को हर तरह के हालात में काम करना पड़ता है।
प्रमुख संस्थान
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
जीवाजी यूनिवर्सिटी, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी, रीवा, मध्य प्रदेश
डैक्कन कॉलेज, पुणे, महाराष्ट्र
महराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा गुजरात
आंध्र यूनिवर्सिटी, विशाखापत्त्तनम, आंध्र प्रदेश
संबंधित संस्थान
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इडिया, जनपथ, नई दिल्ली
www.asi.nic.in
नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया, जनपथ, नई दिल्ली
www.nationalarchives.nic.in
इंडियन कॉऊंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च, 35, फिरोजशाह रोड़, नई दिल्ली
www.ichrindia.org