गेहूँ और राई में वृद्धि एवं फास्फोरस उपयोग क्षमता पर उच्च कार्बन डाइऑक्साइड एवं फास्फोरस-पोषण के परस्पर-क्रियात्मक प्रभाव (Interactive effects of elevated Carbon Dioxide & phosphorus nutrition on growth & phosphorus utilization efficiency in wheat & rye)

Submitted by Hindi on Fri, 09/23/2016 - 16:34
Source
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012

सारांश:


इस अनुसंधान कार्य में गेहूँ और राई में वृद्धि एवं फास्फोरस उपयोग क्षमता पर उच्च कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) एवं फास्फोरस पोषण के परस्पर क्रियात्मक प्रभावों का अध्ययन किया गया। गेहूँ (पी.बी.डब्ल्यू- 396, पी.बी.डब्ल्यू- 233) एवं राई (डब्ल्यू.एस.पी- 540-2) को न्यून (2 माइक्रो मोलर) एवं पर्याप्त (500 माइक्रो मोलर) फास्फोरस के साथ परिवेशी (38±10 माइक्रोमोल प्रति मोल, aCO2) एवं उच्च CO2 (700 माइक्रोमोल प्रति मोल, aCO2) सान्द्रताओं के अंतर्गत उगाया गया। परिणामों से ज्ञात हुआ कि CO2 एवं फास्फोरस स्तरों द्वारा प्ररोह, जड़ एवं सकल पादप शुष्क पदार्थ संचयन तथा वितरण महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित हुए। पर्याप्त फास्फोरस के अंतर्गत उगाए गए aCO2 पौधों की तुलना में पी.डी.डब्ल्यू- 233 में aCO2 के कारण प्ररोह शुष्क पदार्थ में 27 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। न्यून फास्फोरस के साथ eCO2 के अंतर्गत उगाए गए पौधों में शुष्क पदार्थ का जड़ की ओर वितरण अधिक था जिसके परिणामस्वरूप जड़ से प्ररोह का अनुपात अधिकतम था।

राई में aCO2 की तुलना में पर्याप्त फास्फोरस सहित eCO2 के अंतर्गत उगाए गए पौधों का कुल पर्ण क्षेत्रफल 71 प्रतिशत अधिक था। aCO2 की तुलना में न्यून फास्फोरस के साथ eCO2 के अंतर्गत उगाए गए पौधों का पार्श्व जड़ घनत्व, लम्बाई एवं सतह क्षेत्रफल महत्त्वपूर्ण रूप से ज्यादा पाया गया। aCO2 की तुलना में पर्याप्त फास्फोरस सहित eCO2 के अंतर्गत पौधों को उगाने पर कुल फास्फोरस उदग्रहण में 70 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। फास्फोरस उपयोग क्षमता (फा.उ.क्ष.) में न्यून फास्फोरस सहित eCO2 में 26 प्रतिशत तक बढ़ोतरी पाई गई। न्यून फास्फोरस सहित eCO2 में उगाये गये सभी प्रजातियों में पी.बी.डब्ल्यू-396 में अधिकतम फा.उ.क्ष. देखी गई। इन परिणामों से ज्ञात हुआ कि बढ़ते हुए वातावरणीय CO2 स्तरों के अंतर्गत न्यून फास्फोरस परिस्थितियों में भी फास्फोरस पोषण एवं इसके सक्षम उपयोग की दृष्टि से अनाज अधिक अनुक्रियाशील होंगे।

Abstract


An attempt was made to study the interactive effects of phosphorus (P) nutrition and elevated CO2 on growth and P-utilization efficiency (PUE) in wheat and rye. Wheat (PBW-396, PDW-233) and rye (WSP-540-2) were grown at low (2µM) and sufficient (500 µM) P under ambient (380± 10 µmol mol-aCO2) and CO2 concentrations (700 µmol mol-aCO2) Results revealed that shoot, root and total plant dry matter accumulation and partitioning were significantly influenced by CO2 and P-levels. eCO2 increased shoot dry matter up to 27% in PDW-233 compared to aCO2 plants grown under sufficient P. Partitioning of dry matter towards root was higher in plants raised under eCO2 with low P resulting in maximum root-to-shoot ratio. Total leaf areas was 71% higher in rye under eCO2 with sufficient P compared to eCO2. Significantly higher lateral root density, length and surface area were noted in plants grown at low-P under eCO2 as compared to eCO2. The total P uptake was increased by 70% when plants were raised with sufficient P under eCO2 in comparison to aCO2 while the PUE increased by 26% in response to CO2 enrichment at low P. Among cereals grown at low. P, highest PUE was observed in PBW-396 in response to elevated CO2. These finding suggests that cereals would be more responsive to P nutrition and efficient in its utilization even at low-P conditions under rising atmospheric CO2 levels.

प्रस्तावना


खाद्य सुरक्षा एवं आर्थिक विकास की राह में जलवायु परिवर्तन और पोषण उपलबधता, दो गम्भीर चुनौतियाँ हैं। परिवेशी CO2 सान्द्रताएं जो औद्योगीकरण पूर्व समय में लगभग 280 पी.पी.एम. थी अब 398 पी.पी.एम. हो चुकी है। जीवाश्म ईंधनों के प्रज्वलन तथा बदलते भू-उपयोग ढंग के कारण यह बढ़ोतरी आगे भी जारी रहेगी। एक अनुमान के अनुसार इस शताब्दी के मध्य में CO2 का यह आंकड़ा 550 पी.पी.एम. तथा शताब्दी के अंत तक 700 पी.पी.एम. को पार कर जाएगा। दीर्घावधि में उच्च परिवेशी CO2 के प्रति पौधों की वृद्धि संबंधी अनुक्रियाएं अन्य पर्यावरणीय कारकों यथा जल, तापमान एवं पोषण उपलब्धता से सीधे प्रभावित होती हैं। बढ़ रही परिवेशी CO2 पादप वृद्धि को बढ़ा सकती है तथा पोषण संबंधी उसकी आवश्यकताओं में परिवर्तन कर सकती है। यह देखा गया है कि वातावरण में CO2 बढ़ने से माध्यमिक पोषण अपर्याप्तता के अंतर्गत प्रायः पादप वृद्धि दरों में बढोतरी होती है किंतु यह उतनी नहीं होती जितनी पर्याप्त पेाषण की परिस्थितियों में होती है। इस प्रकार से यह प्रदर्शित होता है कि पर्यावरणीय CO2 सान्द्रताओं के बढ़ने से पादप वृद्धि में बढ़ोतरी हो सकती है और उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं में परिवर्तन हो सकता है।

फास्फोरस एक अत्याआवश्यक पोषक तत्व है। जिसकी सभी जीवों को आवश्यकता होती है किंतु इसकी उपलब्धता पौधों को कम होती है क्योंकि इसका मृदा में उच्च स्तरीय स्थिरीकरण होता है। दूसरा कारण यह है कि फास्फोरस स्वतः आपूर्ति संसाधन नहीं है। एडीनोसीन ट्राइफॉस्फेट (ए.टी.पी.) के रूप में उच्च ऊर्जाबोंड्स एवं जैव झिल्लियों के बनाने में फास्फोरस का समावेश होता है। तथा अनेक उपापचयी अभिन्न घटक हैं। अकार्बनिक फास्फोरस की स्थाई कमी की अनुक्रिया में पौधों ने फास्फोरस प्रतिबल का आकारिकीय, कार्यिकीय एवं आण्विक स्तरों पर सामना करने के लिये अनेक अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित की हैं। इनमें जड़ वृद्धि एवं उनका निकलने का ढंग, उच्च-बंधुता (high-affinity) वाले फास्फोरस परिवाहकों का आवाहन, एसिड फॉस्फेटेज एन्जाइम का अधिक स्राव एवं कम अणुभार के कार्बनिक अम्ल, माइक्रोराइजा कवकों के साथ सहजीवी संबंधों तथा कई मुख्य प्रकाश संश्लेषण संबंधी एन्जाइम्स सम्मिलित हैं। यह सुझाव दिया गया है कि परिवेशी CO2 के अंतर्गत उगाये गये पौधों की तुलना में उच्च CO2 में उगाये गये पौधे की फास्फोरस आवश्यकता अधिक होगी, क्योंकि CO2 की अनुक्रिया स्वरूप पौधों विशेष रूप से C3 पौधों में प्रकाश संश्लेषण दर बढ़ जाती है। इस प्रकार से उपयुक्त तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि भविष्य की बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों में इस बात की सम्भावना है कि फास्फोरस उद्ग्रहण हेतु उच्च स्तरीय उपापचयी आवश्यकता के कारण यह पोषक तत्व अनुक्रियाशील होगा। प्रस्तुत अध्ययन में फास्फोरस पोषण एवं उच्च CO2 के पारस्परिक क्रियात्मक प्रभावों के प्रति गेहूँ एवं राई की वृद्धि अनुक्रिया के अध्ययन का प्रयास किया गया है।

चूँकि लगभग सभी उपापचयी प्रक्रियाओं में फास्फोरस का समावेश होता है इसलिये विभिन्न वृद्धि गुणों के मॉड्यूलेशन के माध्यम से यह परिकल्पना की गई कि उच्च CO2 के अंतर्गत फास्फोरस की आवश्यकता अधिक होगी। उपलब्ध मृदा फास्फोरस के पर्याप्त एवं न्यून स्तरों के अंतर्गत पहले से किए गए विविक्तकर निरीक्षण प्रयोग से गेहूँ की दो प्रजातियों पी.बी.डब्ल्यू-396 एवं पी.बी.डब्ल्यू-233 का वरण किया गया। मृदा से ऊपर जैव पदार्थ एवं दाना उपज की दृष्टि से इन दोनों प्रजातियों का प्रदर्शन अच्छा था। इस प्रयोग में राई को भी तुलना हेतु सम्मिलित किया गया क्योंकि यह सूचना है कि यह फास्फोरस उद्ग्रहण में काफी सक्षम हैं।

सामग्री एवं विधि


पादप पदार्थ एवं वृद्धि परिस्थितियाँ: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के आनुवंशिकी संभाग से गेहूँ की प्रजातियाँ, पी.बी.डब्ल्यू-396 एवं पी.डी.डब्ल्यू-233 तथा राई की प्रजाति डब्ल्यू.एस.पी-540-2 प्राप्त की गई। इन प्रजातियों का 0.1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड के साथ सतह निर्जमीकरण कर उन्हें अंकुरण कागज पर उगाया गया। प्रांकुर चोल के बर्हिगमन (बुवाई के 5-6 दिन बाद), पौध को न्यून (2 माइक्रो मोलर) एवं पर्याप्त (500 माइक्रो मोलर) फास्फोरस स्तरों वाले हॉगलैंड घोल में स्थानान्तरित कर दिया गया। प्रयोग किए गए पोषक घोल की संरचना में (मिली मोलर) : Ca(NO3)2 1.5, KNO3 5.0, NH4 (NO3) 2 1.0, MgSO4 2.0 (माइक्रो मोलर) : H3BO3 1.0, MnCI2 .4H2 O 0.5, ZnSO4. 7H2O1.0, CuSO4 .5H2O 0.2 (NH4)6 Mo7O24 .4H2O0 0.075 एवं FeC13 + EDTA थे। फास्फोरस की आपूर्ति 1.0 मोलर ऑर्थोफास्फोरस अम्ल के रूप में की गई और इस पोषक घोल का मान KOH द्वारा 5.6 रखा गया।

एक्वेरियम पम्प का उपयोग कर घोल में सतत रूप से वायु प्रवाहित की गई और एक दिन छोड़कर प्रत्येक तीसरे दिन इस घोल को ताजे घोल से बदला गया। यह सारा सेट भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के राष्ट्रीय फायटोट्रोन सुविधा केंद्र में रखा गया। इन कक्षों में CO2 को छोड़कर अन्य वृद्धि परिस्थितियाँ निम्न प्रकार से रखी गई थीं: दिन/रात का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस/12 डिग्री सेल्सियम, 450 माइक्रोमोल प्रति वर्ग मीटर प्रति एस (पी.ए.आर.) के फोटोन फ्लक्स घनत्व के साथ 10 घंटे प्रकाशावधि तथा आपेक्षिक आर्द्रता (आर.एच.) 90 प्रतिशत थी। उच्च CO2(eCO2) (700 माइक्रोमोल प्रति मोल) बनाए रखा गया तथा परिवेशी (38±10 माइक्रोमोल प्रति मोल) CO2(aCO2) थी।

वृद्धि एवं जैव रासायनिक विश्लेषण: जड़ आकारिकी तथा अन्य वृद्धि प्राचलों के अध्ययनार्थ eCO2 एवं aCO2 के अंतर्गत पर्याप्त अथवा न्यून फास्फोरस के साथ उपयुक्त विधि द्वारा 15 दिन आयु के पौधे तैयार किए गए। जड़ आकारिकी से संबंधित प्राचल जैसे कि जड़ की लम्बाई का आमापन पैमाने की सहायता से किया गया और उसे से.मी. प्रति पौधा के रूप में अभिव्यक्त किया गया तथा प्राथमिक एवं द्वितीयक जड़ों की गणना प्रति पौधा आधार पर की गई। पार्श्व जड़ों की गणना 8 दिन आयु के पौधों में की गई पार्श्विक जड़ घनत्व की गणना भी की गई जिसे प्रति इकाई जड़ लम्बाई पर पार्श्विक जड़ों की संख्या के रूप में अभिव्यक्त किया गया। इस प्रकार के निरीक्षण 10 पौधों में रिकार्ड किए गए। अंसारी एवं सहयोगी द्वारा दी गई विधि के अनुसार जड़ सतह क्षेत्रफल ज्ञात किया गया।

जड़ सतह क्षेत्रफल के आमापन हेतु 5 पौधों के समावेश वाली चार प्रतिकृतियों का उपयोग किया गया। गुणांक 40.36 माइक्रोमोल NO2- से सतह क्षेत्रफल की गणना की गई जो 100 वर्ग से.मी. जड़ तरह क्षेत्रफल के बराबर है और इसे वर्ग से.मी. प्रति पौधा के रूप में अभिव्यक्त किया गया। पौधों के जड़ एवं प्ररोह अलग-अलग कर उन्हें गर्म हवा वाले ओवन में 65 डिग्री सेल्सियस पर तब तक शुष्क किया गया जब तक एक स्थिर शुष्क भार हो गया। प्ररोह, जड़ एवं सकल पौधा जैवमात्रा प्राप्त की गई। और उसे मिग्रा. प्रति पौधा के रूप में अभिव्यक्त किया गया। जड़ एवं प्ररोह के बीच अनुपात की गणना की गई। पर्णक्षेत्र मीटर (लीफ एरिया मीटर, लाइकोर 3000) का उपयोग कर कुल पर्ण क्षेत्रफल का आमापन किया गया और उसे वर्ग सेमी. प्रति पौधा के रूप में अभिव्यक्त किया गया।

डाइ एसिड के साथ नम-पाचन कर 660 नैमी पर नील-वर्ण फॉस्फोमॉलिब्डेट कॉम्प्लेक्स के अवशोषणांक का आमापन कर जड़ एवं प्ररोह ऊतकों में फास्फोरस की सान्द्रता ज्ञात की गई। फास्फोरस उपयोग क्षमता (फा.उ.क्ष.) की गणना के लिये सकल पौधा जैव मात्रा को कुल फास्फोरस उदग्रहण प्रति पौधा से भाग कर दिया गया और उसे ग्राम शुष्क पदार्थ प्रति मिग्रा. फास्फोरस उद्ग्रहण के रूप में अभिव्यक्त किया गया।

सांख्यिकीय विश्लेषण: इस प्रयोग में तीन कृषिजोपजातियों: CO2 एवं फास्फोरस, प्रत्येक के दो स्तरों के साथ चार प्रतिकृतियों का समावेश था। तीन फैक्टर फैक्टोरियल सहित पूर्णतया यादृच्छिक डिजाइन (सी.आर.डी.) में यह प्रयोग किया गया। एम.एस.टी.ए.ठी. प्रोग्राम का उपयोग कर आंकड़ों का प्रसरण विश्लेषण किया गया। 5 एवं 1 प्रतिशत संभाविता (P

परिणाम एवं विवेचना


विभिन्न प्रजातियों, फास्फोरस एवं CO2 स्तरों के मध्य, प्ररोह, जड़ एवं कुल पादप शुष्क पदार्थ की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भिन्नताएं थीं। CO2 एवं फास्फोरस उपचारों में पी.डी.डब्ल्यू-233 एवं राई की तुलना में पी.बी.डब्ल्यू-396 ने अधिकतम औसत प्ररोह शुष्क मात्रा दर्शायी (सारणी-1) उन प्रजातियों के पौधों में औसत प्ररोह शुष्क मात्रा अधिकतम थी जिन्हें पर्याप्त फास्फोरस के साथ eCO2 के अंतर्गत उगाया गया। पी.बी.डब्ल्यू-396, पी.डी.डब्ल्यू-233 एवं राई, तीनों के प्ररोहों में शुष्क मात्रा के संचयन में पर्याप्त फास्फोरस एवं aCO2 के अंतर्गत उगाये गये पौधों की तुलना में उच्च CO2 के कारण क्रमशः 26, 27 एवं 14 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। CO2 एवं फास्फोरस स्तरों पर औसत जड़ शुष्क पदार्थ, पी.बी.डब्ल्यू-396, में अधिकतम और राई में न्यूनतम था (सारणी 1) aCO2 की तुलना में eCO2 के अंतर्गत न्यून फास्फोरस के साथ उगाए गए पौधों के जड़ शुष्क पदार्थ में एक महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी (49 प्रतिशत) रिकॉर्ड की गई। पर्याप्त फास्फोरस आपूर्ति के अंतर्गत कुल पादप शुष्क भार संचयन पर उच्च CO2 का धनात्मक प्रभाव देखा गया (सारणी 2) पर्याप्त फास्फोरस के साथ उगाए गए पौधों में उच्च CO2 की अनुक्रिया स्वरूप प्रति पौधा कुल शुष्क पदार्थ में बढ़ोतरी (23 प्रतिशत) देखी गई।

वैसे जब प्रजातियों एवं फास्फोरस स्तरों से संबंधित औसत देखा जाय तो aCO2 के अंतर्गत उगाए गए पौधों की तुलना में eCO2 की अनुक्रिया के परिणामस्वरूप प्ररोह, जड़ एवं कुल पादप शुष्क पदार्थ में क्रमशः 33, 38 एवं 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी पायी गई। सभी प्रजातियों में न्यून फास्फोरस के साथ CO2 स्तरों से अप्रभावित अधिक जड़ से प्ररोह का अनुपात अधिक रिकार्ड किया गया (सारणी-2)। राई में aCO2 की तुलना में eCO2 के अंतर्गत न्यून फास्फोरस के साथ जड़ की ओर शुष्क पदार्थ का वितरण अधिक हुआ जिससे जड़ से प्ररोह अनुपात में 60 प्रतिशत बढ़ोतरी हुईं। पहले की सूचनाएं भी बताती हैं कि यदि खनिज पोषण आपूर्ति पर्याप्त हो तो CO2 आपूर्ति दोगुना करने का विभिन्न प्रजातियों में शुष्क पदार्थ संचयन पर प्रभाव अधिकतम होता है। इसी प्रकार की परिस्थितियों में गेहूँ एवं जौ पर किए गए प्रयोग भी हमारे परिणामों की पुष्टि करते हैं, हालाँकि राई के विषय में ऐसी सूचनाएं उपलब्ध नहीं हैं।

यह सर्वविदित है कि सीमित फास्फोरस आपूर्ति के अंतर्गत, जड़ वृद्धि में बढ़ोतरी होती है जिसके परिणामस्वरूप जड़ से प्ररोह का अनुपात बढ़ जाता है। इस अध्ययन में भी सीमित फास्फोरस आपूर्ति के अंतर्गत शुष्क पदार्थ संचयन जड़ वृद्धि के अनुकुल रहा जिसमें उच्च CO2 के अंतर्गत और अधिक बढ़ोतरी हुई। फास्फोरस एवं eCO2 के विभिन्न स्तरों के साथ धान के पौधों के विषय में भी ऐसी ही सूचनाएं हैं जिनमें न्यून फास्फोरस एवं उच्च CO2 से जड़ों की ओर शुष्क पदार्थ का वितरण बढ़ गया। जड़ से प्ररोह अनुपात में बढोतरी का कारण नियंत्रित पोषक तत्व संबंधी उपचारों में जड़ शुष्क पदार्थ की तुलना में प्ररोह शुष्क पदार्थ का काफी हद तक सीमित संचयन था पोषण की कमी की अनुक्रिया में जड़ वृद्धि का अधिक होना पौधे के लिये लाभकारी है जो उपलब्ध खनिज आपूर्ति को पौधे द्वारा प्राप्त कर उपयोग करने में सहायक होता है।

Sarni-1Sarni-2Sarni-3पर्याप्त फास्फोरस के साथ उच्च CO2 के अंतर्गत सम्पूर्ण पादप पर्ण क्षेत्रफल में महत्त्वपूर्ण बढोतरी पायी गई (सारणी 3)। CO2 एवं फास्फोरस उपचारों में, पी.डी.डब्ल्यू-233 में औसत कुल पर्ण क्षेत्रफल अधिकतम रिकार्ड किया गया। पर्याप्त फास्फोरस के साथ उगाए गए पौधों में aCO2 की तुलना में eCO2 के अंतर्गत पर्ण क्षेत्रफल में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। सभी प्रजातियों में CO2 स्तर से अप्रभावित, न्यून फास्फोरस की तुलना में पर्याप्त फास्फोरस के साथ पर्ण क्षेत्रफल अधिक देखा गया। सभी प्रजातियों में पर्याप्त फास्फोरस के साथ eCO2 की अनुक्रिया से कुल पर्ण क्षेत्रफल में अधिकतम बढोतरी राई में (71 प्रतिशत) थी वैसे eCO2 के अंतर्गत न्यून फास्फोरस के साथ उगाए गए पौधों में भी वर्ण क्षेत्रफल में बढोतरी देखी गई। यह सर्वविदित है कि मक्का में फास्फोरस की कमी से पत्तियों का फैलाव कम हो जाता है जिससे पर्ण क्षेत्रफल घट जाता है। सीमित फास्फोरस आपूर्ति के अंतर्गत कोशिका विभाजन की दर एवं कोशिका फैलाव में कमी के कारण ही पर्ण फैलाव सीमित होता है।

aCO2 की तुलना में eCO2 की अनुक्रिया के परिणामस्वरूप पर्याप्त फास्फोरस के साथ तीनों प्रजातियों में कुल पादप फास्फोरस उद्ग्रहण के औसत में 60 प्रतिशत की बढोतरी हुई जबकि न्यून फास्फोरस के साथ उगाए गए पौधों में CO2 का कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं देखा गया (सारणी 3)। इन तीनों प्रजातियों में CO2 एवं फास्फोरस के विभिन्न स्तरों पर औसत फास्फोरस उद्ग्रहण पी.डी.डब्ल्यू-233 में सर्वाधिक था, इसके पश्चात पी.डी.डब्ल्यू-396 का स्थान रहा जबकि राई में यह सबसे कम था। फा.उ.क्ष. को ‘प्रति इकाई फास्फोरस-उद्ग्रहण’ से उत्पन्न इकाई शुष्क पदार्थ’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो CO2 स्तरों से अप्रभावित, न्यून फास्फोरस के अंतर्गत उगाए गए पौधों में अधिक देखी गई (चित्र 1)।

Fig-1जब पौधों को न्यून फास्फोरस के साथ उगाया गया तो aCO2 की तुलना में eCO2 की अनुक्रिया के परिणामस्वरूप फा.उ.क्ष. में 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। पर्याप्त फास्फोरस की तुलना में aCO2 के साथ न्यून फास्फोरस पर उगाए गए पौधों की फा.उ.क्ष. 4 गुना अधिक थी (प्रजातियों के साथ औसत) जबकि समान परिस्थितियों में eCO2 के अंतर्गत यह 6 गुना बढ़ गई। इस बात की संभावना है कि वृद्धि वातावरण बदलने पर पोषण उद्ग्रहण (उद्ग्रहण प्रति इकाई जड़ मात्रा) एवं उपभोग (शुष्क पदार्थ प्रति इकाई पोषण उद्ग्रहण) क्षमताएं काफी अधिक परिवर्तित हो जाती है। असीमित फास्फोरस आपूर्ति एवं eCO2 के अंतर्गत उगाए गए पौधों के जड़ एवं प्ररोह, दोनों ऊतकों में फास्फोरस अंश अधिक पाया गया। कॉनरॉय एवं सहयोगी (9) ने अधिक CO2 एवं फास्फोरस आपूर्ति के बढ़ते स्तरों की अनुक्रिया के परिणामस्वरूप यूकेलिप्टस ग्रेंडिस की पौध द्वारा फास्फोरस उद्ग्रहण में बढ़ोतरी सूचित की है।

eCO2 के अंतर्गत गेहूँ में फास्फोरस की क्रांतिक सान्द्रता में बढ़ोतरी हुई जबकि नाइट्रोजन की क्रांतिक सान्द्रता कम हो गई। इससे ज्ञात होता है कि प्रकाशसंश्लेषी कार्बन अपचयन चक्र के माध्यम से कार्बन के प्रचुर प्रवाह को सामर्थ्य प्रदान कर अधिकतम प्ररोह वृद्धि हेतु अधिक फास्फोरस की आवश्यकता होती है। ये परिणाम इस ओर इंगित करते हैं कि फास्फोरस सान्द्रता, जिसका आज उपयोग संबंधी स्तर एवं फॉस्फेटिक उर्वरक प्रबंधन के संबंध में किया गया है, वातावरणीय (CO2) बढ़ने के साथ ही उसके पुनः मूल्यांकन की आवश्यकता हो सकती है। फा.उ.क्ष. में बढोतरी न्यून फास्फोरस आपूर्ति के अंतर्गत सम्पूर्ण पादप फास्फोरस सान्द्रताओं के बजाय eCO2 पर शुष्क पदार्थ उत्पादन में बढ़ोतरी से संबंधित है। इमाई एवं अदाची ने धान में बढ़ते फास्फोरस स्तरों के साथ फा.उ.क्ष. में कमी सूचित की है जबकि eCO2 से इसमें 26 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई।

जड़ के आकारिकीय गुणों के संदर्भ में प्रति पौधा पार्श्विक जड़ उत्पन्न होने की संख्या, प्रजातियों CO2 एवं फास्फोरस स्तरों द्वारा महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित हुई जबकि CO2 बढ़ाने का जड़ लम्बाई, पार्श्विक जड़ घनत्व एवं जड़ सतह क्षेत्रफल पर कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं देखा गया। फास्फोरस उपचार से अप्रभावित eCO2 के अंतर्गत उगाई गई राई ने अधिक संख्या में प्राथमिक जड़ें उत्पन्न की (चित्र 2ए) पी.बी.डब्ल्यू-396 अथवा पी.डी.डब्ल्यू-233 पर प्रति पौधा प्राथमिक जड़ों की संख्या की दृष्टि से CO2 प्रवर्धन या फास्फोरस बढ़ाने का सांख्यिकीय रूप से कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं था। परिवेशी CO2 की तुलना में eCO2 के अंतर्गत प्रति पौधा पार्श्व जड़ों की औसत संख्या तथा पी स्तर अधिक पाए गए (चित्र 2बी)। पर्याप्त फास्फोरस की अपेक्षा न्यून फास्फोरस उपचार के अंतर्गत दोनों CO2 स्तरों पर पार्श्व जड़ों का उत्पादन अधिक था। दोनों फास्फोरस स्तरों पर पार्श्व जड़ घनत्व अर्थात प्राथमिक जड़ की प्रति इकाई पर पार्श्व जड़ों की संख्या में महत्त्वपूर्ण अंतर देखा गया जबकि CO2 का प्रभाव महत्त्वपूर्ण नहीं था (चित्र 2सी)। पर्याप्त फास्फोरस पर उगाए गए पौधों की तुलना में न्यून फास्फोरस के साथ उगाए गए पौधों ने 13 प्रतिशत अधिक पार्श्व जड़ घनत्व का उत्पादन किया।

CO2 स्तर से अप्रभावित पर्याप्त फास्फोरस की अपेक्षा न्यून फास्फोरस पर उगाए गए राई के पौधों के पार्श्व जड़ घनत्व में 2 गुना बढ़ोतरी देखी गई। प्रायः न्यून फास्फोरस पर जड़ सतह क्षेत्रफल बढ़ता है और ऐसा ही इस अध्ययन में सभी प्रजातियों में देखा गया किंतु CO2 प्रवर्धन का कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा (चित्र 2डी)। वैसे विभिन्न प्रजातियों और CO2 के बीच पारस्परिक क्रियात्मक प्रभाव महत्त्वपूर्ण था जो दर्शाता है कि CO2 के प्रति प्रजातियों में अनुक्रिया होती है। न्यून फास्फोरस पर aCO2 की तुलना में राई ने eCO2 के साथ अनुक्रिया के परिणामस्वरूप उल्लेखनीय रूप से अधिक जड़ सतह क्षेत्र का उत्पादन किया।

Fig-2जड़ संबंधी आकारिकीय गुण यथा, उनके उत्पन्न होने का ढंग (विशेष व्यवस्था में) एवं शाखित होना परिणाम घनत्व तथा मूल रोमों की लम्बाई का मृदा से पोषक तत्वों के उद्ग्रहण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। जड़ों के चारों ओर के वातावरण में कोई भी बदलाव जैसे कि किसी पोषक तत्व के कम होने या CO2 में परिवर्तन होने पर जड़ों की वृद्धि एवं विकास भी परिवर्तित हो जाते हैं क्योंकि जड़ घनत्व में बढ़ोत्तरी हो जाती है और पार्श्व जड़े अधिक संख्या में निकल आती हैं। गेहूँ एवं राई के पौधों ने न्यून फास्फोरस के साथ उगाने पर aCO2 की तुलना में eCO2 के अंतर्गत अधिक संख्या में पार्श्व जड़े प्रति पौधा उत्पन्न की तथा जड़ लम्बाई एवं जड़ सतह क्षेत्रफल भी अधिक था। गेहूँ के पौधों में फास्फोरस प्रतिबल के अंतर्गत जड़ सतह क्षेत्र, आयतन एवं मूलरोमों की लम्बाई में बढोतरी की सूचना पहले से उपलब्ध है।

फास्फोरस की कमी के अंतर्गत जड़ सतह क्षेत्र में बढ़ोतरी का कारण महीन मूलरोमों की उत्पत्ति से मूलरोम घनत्व का बढ़ना है क्योंकि मूलरोम ही फास्फोरस उद्ग्रहण में सक्रिय रूप से लगे रहते हैं। प्रायोर एवं सहयोगी ने देखा कि फास्फोरस उर्वरण रहित मृदा उगाए गए कपास के पौधों में CO2 प्रवर्धन के कारण 55 एवं 122 प्रतिशत के बीच अधिक जड़ मात्रा उत्पन्न हुई किन्तु CO2 एवं फास्फोरस पारस्परिक क्रिया का पार्श्व जड़ों पर कोई महत्त्वपूर्ण प्रभाव नहीं देखा गया। वैसे हमारे इस अध्ययन में राई ने प्राथमिक जड़ की प्रति इकाई दोगुना पार्श्व जड़ें उत्पन्न कर न्यून फास्फोरस के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित की। उच्च CO2 के अंतर्गत जड़ों की बनावट में होने वाले इन परिवर्तनों तथा उसके पी उद्ग्रहण पर होने वाले प्रभाव की पुष्टि एवं स्थापना हेतु इस दिशा में और अधिक शोध कार्य होना चाहिए।

निष्कर्ष


इस अध्ययन के परिणामों से सुझाव मिलता है कि सीमित फास्फोरस आपूर्ति के कारण वृद्धि में कुल मिलाकर कमी को उच्च CO2 द्वारा आंशिक रूप से दूर किया जा सकता है। प्रस्तुत अध्ययन से इस बात को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है कि खाद्यान्न फसलों की उच्च CO2 के अंतर्गत कैसी अनुक्रिया की संभावना है तथा यह बढ़ती CO2 परिस्थितियों में अनाजों की फास्फोरस उपलब्धता के विषय में जानकारी देना है। CO2 तथा फास्फोरस पारस्परिक क्रिया के अंतर्गत पादप वृद्धि के कार्यिकीय पहलू एक आधार उपलब्ध कराते हैं जिसका आगे चलकर जलवायु परिवर्तन के अंतर्गत फास्फोरस उद्ग्रहण के जैव रासयानिक एवं आण्विक पहलुओं को ज्ञात करने में उपयोग हो सकता है।

आभार


इस कार्य हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के इन हाउस प्रोजेक्ट आई.ए.आर.आई.: पी.पी.एच.: 09:01 (2) से धनराशि प्राप्त हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा कनिष्ठ अनुसंधान अध्येतावृत्ति के रूप में के.के.डी. को प्रदत्त आर्थिक सहयोग का आभार व्यक्त किया जाता है।

संदर्भ


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सम्पर्क


रेणू पाण्डेय, कृष्ण कांत दूबे, रेणू सिंह, लक्ष्मी एस, अरूण कुमार एवं वनीता जैन, Renu Pandey, Krishna Kant Dubey, Renu Singh, Lekshmi S, Arun Kumar & Vanita Jain
पादप कार्यिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110012, Division of Plant Physiology, Indian Agricultural Research Institute, New Delhi 110012