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नवोदय टाइम्स, 19 जनवरी 2015
अतिक्रमण का शिकार बना जोहड़
वेस्ट दिल्ली, 18 जनवरी (ब्यूरो) : कभी ग्रामीण क्षेत्रों की पहचान माने जाने वाले जोहड़ वर्तमान में अपने वजूद को खोने के कगार पर है। कोर्ट से भी इन जोहड़ों के संरक्षण के लिए दिशा-निर्देश जारी किया जा चुका है। लेकिन राजनीतिक कारणों से अब तक संरक्षण की दिशा में कोई कदम उठाया नहीं गया है। स्थानीय लोगों ने भी इस बाबत दर्जनों बार सम्बन्धित विभाग और जनप्रतिनिधियों को सूचित किया लेकिन मामले पर किसी प्रकार की कोई सुनवाई नहीं हुई।
नाले में तब्दील तो कहीं अतिक्रमण का शिकार
पश्चिमी दिल्ली के अन्तर्गत आने वाले लगभग 150 गाँवों में इतनी ही संख्या में जोहड़ मौजूद हैं। लेकिन प्रशासन की बेरूखी के कारण इन सभी जोहड़ों का अस्तित्व खतरे में पड़ा हुआ है।
किराड़ी, निजामपुर, मुण्डका, घेवरा, बवाना, बक्करवाला आदि तमाम गाँवों में ऐतिहासिक महत्व रखने वाले सभी जोहड़ों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। इन सभी जोहड़ों में साफ पानी की जगह अब गन्दे पानी ने इस कदर ले ली है कि इसे देखकर अन्दाजा लगाना मुश्किल पड़ जाता है कि ये जोहड़ है या फिर नाला। कहीं पर पूरी तरह से ही जोहड़ सूख चुका है तो कहीं पर नाले में तब्दील हो चुका है। जहाँ कहीं पर पानी बचा भी है तो, वहाँ पर घासें निकल आई है। इसके अलावा कुछ जोहड़ों पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जा भी जमाया हुआ है।
संरक्षण के नाम पर खानापूर्ति
कोर्ट से जारी निर्देशों के बाद कुछ गाँवों में जोहड़ संरक्षण की प्रक्रिया को अमलीजामा पहनाया भी गया तो सिर्फ खानापूर्ति के लिए। उदाहरण स्वरूप किराड़ी, निजामपुर जैसे गाँवों में जोहड़ों को सहेजने के लिए सीमेण्टेड चारदीवारी तो करा दी गई लेकिन तत्पश्चात् इसकी सुध नहीं ली गई। जिसके कारण इनकी हालत पहले से भी बदतर होती जा रही है।