लेखक
किसी नदी का तल कितना गहरा अथवा उथला होगा, यह तय करने का काम उसके उद्गम और समुद्र से उसके संगम स्थल की ऊंचाई के बीच के अंतर का काम है। इसी तरह नदी मार्ग में घुमाव, संगम या अवरोध उत्पन्न करने का काम प्रकृति का है। अतः इस बाबत् श्री अनुपम मिश्र जी के नदी जोड़ संबधी बयान से प्रेरणा लेते हुए कहा जाना चाहिए कि श्रीमान नितिन गडकरी जी गंगाजी को गहरा करने व नए बैराज निर्माण के चक्कर में न ही पड़ें, तो अच्छा है।
यह कहने का साहस पर्यावरण की पढ़ाई पढ़ आए मुख्यमंत्री टीपू भले ही न जुटा पाए हों, किंतु जनता दल यूनाइटेड के एक सांसद ने यह साहस दिखा दिया है।
सांसद अली अनवर गंगा को मां भले न कहते हों, लेकिन उन्होने जता दिया है कि उन्हे गंगा व उसके लोगों की चिंता औरों से ज्यादा है। अली अनवर नेे गंगा पर नए बैराज न बनाने की मांग पेश कर दी है। फरक्का बांध के अनुभव को सामने रखते हुए उन्होंने आपत्ति जताई है कि बैराजों के बनने से बाढ़, कटान और मछलियों पर संकट गहराएगा।
गौरतलब है कि इससे पहले कांग्रेसी नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी गंगा मसले पर सरकार को चेता चुके हैं। पूर्व अनुभवों से सबक लेने की सलाह कई प्रसिद्ध नदी विशेषज्ञों ने दी ही है। राजीव गांधी वाटरशेड मिशन के सलाहकार रहे श्री कृष्ण गोपाल व्यास ने बैराजों को गंगा के लिए पूरी तरह अहितकर बताते हुए नदी विज्ञान के कई सिद्धांतों को सामने रखा है।
प्रो. यू. के. चौधरी ने तो गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना बनाने वाली सात आई आई टी की साझा टीम के समन्वयक श्री विनोद तारे के समक्ष 54 प्रश्नों की लंबी फेहरिस्त पेश करते हुए सरकार को सौंपी योजना पर ही सवाल उठा दिया है। प्रो चौधरी आई आई टी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के पूर्व अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय के अंतर्गत स्थापित गंगा शोध केन्द्र के संस्थापक रहे हैं।
हालांकि गंगा पुनरुद्धार को लेकर संबंधित मंत्रालय ने अभी तक अपनी योजना को पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किया है। किंतु इसे लेकर जिस प्रस्ताव को अब तक सर्वाधिक प्रचारित व महिमामंडित किया गया, वह इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 किलोमीटर लंबा गंगा जलमार्ग ही है। इसके लिए छह वर्ष की अवधि, 4200 करोड़ रुपए का खर्च, 1500 टन वजन के जहाज ढोने लायक क्षमता बनाने के लिए गंगा की पांच मीटर गहराई तक खुदाई और प्रत्येक 100 किलोमीटर पर एक बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। काम को अंजाम देने के लिए बनारस में मिनी प्रधानमंत्री कार्यालय स्थापित करने के प्रस्ताव को हरी झंडी मिल चुकी है।
गौर कीजिए, हर 100 किलोमीटर पर एक बैराज का मतलब है कि गंगा पर 162 नए बैराज बनेंगे। इसका यह भी मतलब है कि बैराज कहां बने, इसका कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया। इसका एक मतलब यह है कि गंगा पुनरोद्धार के योजनाकारों को गंगा की अविरलता से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होेंने इतनी बड़ी संख्या मेें बैराज से होने वाले नुकसान का भी कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है। उन्हें सिर्फ यह मालूम है कि जल परिवहन, सड़क परिवहन की तुलना में सस्ता पड़ेगा।
यदि हम बैराज व गंगा को गहरा करने के दुष्प्रभावों का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय नफा-नुकसान जोड़ें, तो पता चल जाएगा कि गंगा जलमार्ग का प्रस्ताव कितना सस्ता पड़ेगा, कितना मंहगा?
दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस प्रधानमंत्री ने गंगा की निर्मलता-अविरलता हासिल करने को लेकर भारत की जनता को सबसे ज्यादा भरोसा दिलाया, उन्हीं श्री मोदी के नेतृत्व में गंगा की अविरलता पर सबसे ज्यादा बाधाएं खड़ी करने के इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है।
जिस साध्वी ने गंगा को सबसे ज्यादा बार माई कहा होगा,उन्हीं उमाजी के मंत्री रहते हुए गंगा से सबसे ज्यादा कमाई करने का प्रस्ताव सामने लाया गया है। प्रश्न उठना चाहिए कि गंगा माई है कि कमाई? माई से कमाई का इतना लालच क्यों?
दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस प्रधानमंत्री ने गंगा की निर्मलता-अविरलता हासिल करने को लेकर भारत की जनता को सबसे ज्यादा भरोसा दिलाया, उन्हीं श्री मोदी के नेतृत्व में गंगा की अविरलता पर सबसे ज्यादा बाधाएं खड़ी करने के इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। जिस साध्वी ने गंगा को सबसे ज्यादा बार माई कहा होगा,उन्हीं उमाजी के मंत्री रहते हुए गंगा से सबसे ज्यादा कमाई करने का प्रस्ताव सामने लाया गया है। प्रश्न उठना चाहिए कि गंगा माई है कि कमाई? माई से कमाई का इतना लालच क्यों?याद करने की बात है कि दिसम्बर, 2012 में लोकसभा में गंगा पर चर्चा के दौरान राजद नेता लालू यादव ने आपत्ति जताई थी कि फरक्का बैराज के कारण प्रवाह के विरुद्ध समुद्र से चलकर पटना पहुंचने वाली मछलियों पर संकट गहराया है। जैव विविधता वैज्ञानिकों की दृष्टि से इस संकट का गहरा महत्व है।
इस संकट के दुष्प्रभाव को समझने के लिए यह समझना होगा कि गंगा सिर्फ एक बहता पानी नहीं है। नदी का एक काम गाद को ले जाकर समुद्र तक पहुंचाना भी है। नदी जलग्रहण क्षेत्र में रेत, गाद, तलछट के अलावा कुछ खास जीवों व वनस्पतियों की मौजूदगी गंगाजल की गुणवत्ता के लिए बेहद जरूरी है।
गंगा जलमार्ग को लेकर नितिन गडकरी जी कई मंचों पर अपनी पीठ ठोक चुके हैं। उन्होंने इस परियोजना को चार वर्ष में ही पूरा करने की इच्छा जाहिर की है। उन्हें समझाने के लिए हिंदी वाटर पोर्टल पर मौजूद श्री कृष्ण गोपाल व्यास जी का लेख पर्याप्त है। अतः मैं इस लेख में बैराज बनने के दुष्प्रभाव व नदी विज्ञान समझाने की हिमाकत यहां नहीं करुंगा। किंतु इतना जरूर लिखना चाहूंगा कि बैराज के कारण गाद के जमा होने से गंगा की जलग्रहण क्षमता घटेगी। इससे जलवायु परिवर्तन के कारणों में गंगा का नकारात्मक योगदान बढ़ेगा।
गांव के गांव कटकर गंगा में समा जाने की आशंका सत्य होगी। दो बाढ़ के बीच का अंतराल घटेगा यानी बाढ़ जल्दी-जल्दी आएगी।अभी बाढ़ अगली फसल में सोना बरसाती है, तब बीमारियां फैलाएगी।
1853-54 में ईस्ट इंडिया रेललाइन को दामोदर की बाढ़ से बचाने के लिए बने बर्दवान में तटबंध बनने के बाद बर्दवान में अकाल, तंगी व बीमारियां आम हो गईं। फरक्का बैराज बनने से पहले हुगली जिला में मलेरिया नहीं था, उसके बाद ज्यादा टिकी बाढ़ मलेरिया का स्थाई घर हो गई।
1862 से 1872 के बीच हुगली जिले की आबादी घटकर दो तिहाई रह गई। बैराज जैसे कृत्रिम कारणों से इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक कई नए इलाके एक नई तरह की बाढ़, बीमारी व कचरे की चपेट में आएंगे। सरकार ने संकेत दे दिया हैं। वे परिवार नियोजन के इस तरीके को अपनाने की तैयारी रखें।
यह सही है कि गंगा जलमार्ग, श्री नरेद्र मोदी का एजेंडा नहीं है। यह किसी कारपोरेट विशेष का एजेंडा है। जिसे श्री गडकरी आगे बढ़ा रहे हैं। किसी कपंनी का हित साधने के चक्कर में आखिरकार कोई सरकार यह कैसे भूल सकती है कि नदी तल को कृत्रिम रूप से गहरा करना पूरी तरह अवैज्ञानिक व बुरा काम है।
गंगा को कोई कितनी बार गहरा करेगा? एक बार गहरा करने के बाद अगली बारिश में फिर वे सभी स्थान गाद से भरे होंगे। क्या सरकार उन्हें फिर गहरा करने का ठेका देगी? इस तरह तो यह अनवरत् बर्बादी और खर्च का कार्य हो जाने वाला है। क्या भारत को यह स्वीकार्य है? यदि नहीं, तो जरूरी है कि इलाहाबाद से हल्दिया की जनता और जनप्रतिनिधि सांसद अनवर अली की आपत्ति का मतलब समझें।
सांसद अनवर अली को भी यह समझना होगा कि जो काम बैराज गंगा में करेंगे, कमोबेश वही काम बिहार में नदी जोड़ के प्रस्तावों को मंजूर कर जनता दल युनाइटेड की प्रदेश सरकार भी कर रही है। आपत्ति की जरूरत वहां भी है। क्या वह करेंगे?
यह कहने का साहस पर्यावरण की पढ़ाई पढ़ आए मुख्यमंत्री टीपू भले ही न जुटा पाए हों, किंतु जनता दल यूनाइटेड के एक सांसद ने यह साहस दिखा दिया है।
सांसद अली अनवर गंगा को मां भले न कहते हों, लेकिन उन्होने जता दिया है कि उन्हे गंगा व उसके लोगों की चिंता औरों से ज्यादा है। अली अनवर नेे गंगा पर नए बैराज न बनाने की मांग पेश कर दी है। फरक्का बांध के अनुभव को सामने रखते हुए उन्होंने आपत्ति जताई है कि बैराजों के बनने से बाढ़, कटान और मछलियों पर संकट गहराएगा।
गौरतलब है कि इससे पहले कांग्रेसी नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी गंगा मसले पर सरकार को चेता चुके हैं। पूर्व अनुभवों से सबक लेने की सलाह कई प्रसिद्ध नदी विशेषज्ञों ने दी ही है। राजीव गांधी वाटरशेड मिशन के सलाहकार रहे श्री कृष्ण गोपाल व्यास ने बैराजों को गंगा के लिए पूरी तरह अहितकर बताते हुए नदी विज्ञान के कई सिद्धांतों को सामने रखा है।
प्रो. यू. के. चौधरी ने तो गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना बनाने वाली सात आई आई टी की साझा टीम के समन्वयक श्री विनोद तारे के समक्ष 54 प्रश्नों की लंबी फेहरिस्त पेश करते हुए सरकार को सौंपी योजना पर ही सवाल उठा दिया है। प्रो चौधरी आई आई टी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के पूर्व अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय के अंतर्गत स्थापित गंगा शोध केन्द्र के संस्थापक रहे हैं।
हालांकि गंगा पुनरुद्धार को लेकर संबंधित मंत्रालय ने अभी तक अपनी योजना को पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किया है। किंतु इसे लेकर जिस प्रस्ताव को अब तक सर्वाधिक प्रचारित व महिमामंडित किया गया, वह इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 किलोमीटर लंबा गंगा जलमार्ग ही है। इसके लिए छह वर्ष की अवधि, 4200 करोड़ रुपए का खर्च, 1500 टन वजन के जहाज ढोने लायक क्षमता बनाने के लिए गंगा की पांच मीटर गहराई तक खुदाई और प्रत्येक 100 किलोमीटर पर एक बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। काम को अंजाम देने के लिए बनारस में मिनी प्रधानमंत्री कार्यालय स्थापित करने के प्रस्ताव को हरी झंडी मिल चुकी है।
गौर कीजिए, हर 100 किलोमीटर पर एक बैराज का मतलब है कि गंगा पर 162 नए बैराज बनेंगे। इसका यह भी मतलब है कि बैराज कहां बने, इसका कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया। इसका एक मतलब यह है कि गंगा पुनरोद्धार के योजनाकारों को गंगा की अविरलता से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होेंने इतनी बड़ी संख्या मेें बैराज से होने वाले नुकसान का भी कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है। उन्हें सिर्फ यह मालूम है कि जल परिवहन, सड़क परिवहन की तुलना में सस्ता पड़ेगा।
यदि हम बैराज व गंगा को गहरा करने के दुष्प्रभावों का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय नफा-नुकसान जोड़ें, तो पता चल जाएगा कि गंगा जलमार्ग का प्रस्ताव कितना सस्ता पड़ेगा, कितना मंहगा?
दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस प्रधानमंत्री ने गंगा की निर्मलता-अविरलता हासिल करने को लेकर भारत की जनता को सबसे ज्यादा भरोसा दिलाया, उन्हीं श्री मोदी के नेतृत्व में गंगा की अविरलता पर सबसे ज्यादा बाधाएं खड़ी करने के इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है।
जिस साध्वी ने गंगा को सबसे ज्यादा बार माई कहा होगा,उन्हीं उमाजी के मंत्री रहते हुए गंगा से सबसे ज्यादा कमाई करने का प्रस्ताव सामने लाया गया है। प्रश्न उठना चाहिए कि गंगा माई है कि कमाई? माई से कमाई का इतना लालच क्यों?
दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस प्रधानमंत्री ने गंगा की निर्मलता-अविरलता हासिल करने को लेकर भारत की जनता को सबसे ज्यादा भरोसा दिलाया, उन्हीं श्री मोदी के नेतृत्व में गंगा की अविरलता पर सबसे ज्यादा बाधाएं खड़ी करने के इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। जिस साध्वी ने गंगा को सबसे ज्यादा बार माई कहा होगा,उन्हीं उमाजी के मंत्री रहते हुए गंगा से सबसे ज्यादा कमाई करने का प्रस्ताव सामने लाया गया है। प्रश्न उठना चाहिए कि गंगा माई है कि कमाई? माई से कमाई का इतना लालच क्यों?याद करने की बात है कि दिसम्बर, 2012 में लोकसभा में गंगा पर चर्चा के दौरान राजद नेता लालू यादव ने आपत्ति जताई थी कि फरक्का बैराज के कारण प्रवाह के विरुद्ध समुद्र से चलकर पटना पहुंचने वाली मछलियों पर संकट गहराया है। जैव विविधता वैज्ञानिकों की दृष्टि से इस संकट का गहरा महत्व है।
इस संकट के दुष्प्रभाव को समझने के लिए यह समझना होगा कि गंगा सिर्फ एक बहता पानी नहीं है। नदी का एक काम गाद को ले जाकर समुद्र तक पहुंचाना भी है। नदी जलग्रहण क्षेत्र में रेत, गाद, तलछट के अलावा कुछ खास जीवों व वनस्पतियों की मौजूदगी गंगाजल की गुणवत्ता के लिए बेहद जरूरी है।
गंगा जलमार्ग को लेकर नितिन गडकरी जी कई मंचों पर अपनी पीठ ठोक चुके हैं। उन्होंने इस परियोजना को चार वर्ष में ही पूरा करने की इच्छा जाहिर की है। उन्हें समझाने के लिए हिंदी वाटर पोर्टल पर मौजूद श्री कृष्ण गोपाल व्यास जी का लेख पर्याप्त है। अतः मैं इस लेख में बैराज बनने के दुष्प्रभाव व नदी विज्ञान समझाने की हिमाकत यहां नहीं करुंगा। किंतु इतना जरूर लिखना चाहूंगा कि बैराज के कारण गाद के जमा होने से गंगा की जलग्रहण क्षमता घटेगी। इससे जलवायु परिवर्तन के कारणों में गंगा का नकारात्मक योगदान बढ़ेगा।
गांव के गांव कटकर गंगा में समा जाने की आशंका सत्य होगी। दो बाढ़ के बीच का अंतराल घटेगा यानी बाढ़ जल्दी-जल्दी आएगी।अभी बाढ़ अगली फसल में सोना बरसाती है, तब बीमारियां फैलाएगी।
1853-54 में ईस्ट इंडिया रेललाइन को दामोदर की बाढ़ से बचाने के लिए बने बर्दवान में तटबंध बनने के बाद बर्दवान में अकाल, तंगी व बीमारियां आम हो गईं। फरक्का बैराज बनने से पहले हुगली जिला में मलेरिया नहीं था, उसके बाद ज्यादा टिकी बाढ़ मलेरिया का स्थाई घर हो गई।
1862 से 1872 के बीच हुगली जिले की आबादी घटकर दो तिहाई रह गई। बैराज जैसे कृत्रिम कारणों से इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक कई नए इलाके एक नई तरह की बाढ़, बीमारी व कचरे की चपेट में आएंगे। सरकार ने संकेत दे दिया हैं। वे परिवार नियोजन के इस तरीके को अपनाने की तैयारी रखें।
यह सही है कि गंगा जलमार्ग, श्री नरेद्र मोदी का एजेंडा नहीं है। यह किसी कारपोरेट विशेष का एजेंडा है। जिसे श्री गडकरी आगे बढ़ा रहे हैं। किसी कपंनी का हित साधने के चक्कर में आखिरकार कोई सरकार यह कैसे भूल सकती है कि नदी तल को कृत्रिम रूप से गहरा करना पूरी तरह अवैज्ञानिक व बुरा काम है।
गंगा को कोई कितनी बार गहरा करेगा? एक बार गहरा करने के बाद अगली बारिश में फिर वे सभी स्थान गाद से भरे होंगे। क्या सरकार उन्हें फिर गहरा करने का ठेका देगी? इस तरह तो यह अनवरत् बर्बादी और खर्च का कार्य हो जाने वाला है। क्या भारत को यह स्वीकार्य है? यदि नहीं, तो जरूरी है कि इलाहाबाद से हल्दिया की जनता और जनप्रतिनिधि सांसद अनवर अली की आपत्ति का मतलब समझें।
सांसद अनवर अली को भी यह समझना होगा कि जो काम बैराज गंगा में करेंगे, कमोबेश वही काम बिहार में नदी जोड़ के प्रस्तावों को मंजूर कर जनता दल युनाइटेड की प्रदेश सरकार भी कर रही है। आपत्ति की जरूरत वहां भी है। क्या वह करेंगे?