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मातृ सदन, 16 फरवरी 2012
दिनांक 15 फरवरी को गंगा के किनारे-किनारे कनखल स्थित मातृ सदन से भूपतवाला तक गंगा सेवा अभियानम् के तहत लोग विज्ञान संस्थन देहरादून के वैज्ञानिक दल ने गंगा में मिलने वाले गंदे नालों एवं नालियों का अवलोकन किया, जिसमें यह पाया गया की कुछ को छोड़ कर बाकी बड़े नालों की सीवर लाइन से जोड़ कर पंपिंग स्टेशन द्वारा जगजीतपुर स्थित ट्रीटमेंट में शोधित किया जाता है। निरीक्षण के दौरान स्थानीय लोगों से पूछताछ करने पर यह पता चला कि इन नालों से कभी-कभी अभी गंदा पानी गंगा में गिरता है।
लालताराव पुल के पास एक बड़ा नाला सीधे तौर पर जिसका प्रवाह 120 ली. प्रति सेकंड है गंगा में मिल रहा है। ठीक इसी प्रकार भूपतवाला क्षेत्र का गंदा पानी लाने वाले कि टैपिंग अच्छी होने के बावजूद, नाले से पानी गंगा में मिल रहा है। ध्यान से अवलोकन करने पर यह पता चला कि इसमें से अधिकतम पानी नाले के साथ चल रहे पानी के पाइप के टूटे होने से निकल रहा है। इसी तरह साफ पानी लगभग पूरे निरिक्षित क्षेत्र में से बहता हुआ गंगा में मिलता दिखाई दिया।
एक अन्य बड़ा नाला कनखल एवं जगजीतपुर क्षेत्र का गंदा पानी लाकर गंगा में मातृ सदन के पास मिलता है। इस नाले का प्रभाव स्पष्ट रूप से गंगा की तलछट में पाये जाने वाले जीवों पर दिखा। नाला मिलने के ऊपर जहां गंगा के तलछट में पाये जाने वाले 6 प्रजातियाँ मिली वहीं नाले के मिलने के तुरंत बाद इन प्रजातियों में कमी दिखी और यह मात्र 3 तक ही सिमट कर रह गई। सर्वे किए गए क्षेत्र में कुछ छोटी-छोटी नालियाँ दिखीं जो कुछ एक घरों से लेकर होटल, धर्मशालाओं तथा आश्रमों का गंदा जल गंगा में ले जाती मिली। कई जगहों पर गगा के किनारे ठोस कचरे के ढेर मिले जिन्हें देख कर यह लगा कि सीवर लाइन कि सफाई के बाद यह कचरा गंगा के किनारे फेंक दिया गया है।
इसी प्रकार एक एस्कैप चैनल जो कनखल क्षेत्र में बहती है में आनंदमयीपुरम कालोनी हजारी बाग से कचरा तथा छोटी-छोटी नालियाँ मिलती हैं यह बाद में नील धारा में जाकर मिल जाती हैं।
नालियाँ जो गंगा में मिल रही हैं-
1. पंचायती अखाड़े के पास
2. गोखल विला, गंगा सदन, रमा भवन, जय भारत सदन, सिद्ध आश्रम, भारतीय संस्कृत विद्यालय के पास की नालियाँ
3. सेठी हाउस के पास की नाली
4. आर्य समाज मंदिर एवं सेवा समिति भवन के पास की नाली
(नोटः सभी आंकणे 10-11 फरवरी 2012, जैव ऑक्सीजन मांग के परीक्षण में 3-5 दिन की आवश्यकता होती है)
सारणी के अ भाग के अनुसार गंगा की जैव ऑक्सीजन मांग हरिद्वार के ऊपर 6.8 मिग्रा. प्रति ली. पाई गई जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा D श्रेणी की नदी के लिए होता है तथा यह जैव ऑक्सीजन मांग हरिद्वार के नीचे 44.7 मिग्रा. प्रति ली. हो गई जो अत्यधिक सीवेज मिलने के कारण हो सकता है।
घुलित लवणों की मात्रा औसतन 200 मिग्रा. प्रति ली. पाई गई परन्तु हरकी पौड़ी में इसकी मात्रा 201 मिग्रा. प्रति ली. पाई गई जो संभवतः पीएच बढ़ने के कारण तलछटीकरण प्रक्रिया के द्वारा हुआ होगा। हरिद्वार के ऊपर घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 6.8 मिग्रा. प्रति ली. जो हरकी पौड़ी में घटकर 6.6 मिग्रा. प्रति ली. हो गई जो संभवतः नहाने आदि कार्यं से हुआ होगा तथा घुलित आक्सीजन कि मात्रा जगजीतपुर के नीचे 4.3 मिग्रा. प्रति ली. रह गई जो एसटीपी द्वारा निकलने वाले अधिक जैव ऑक्सीजन मांग वाले गंदे पानी के मिलने से हुआ प्रतीत होता है।
सारणी के ब भाग के अनुसार यह पता चलता है कि जगजीतपुर स्थित शोधन प्रणाली से निकलने वाले जल कि जैव आक्सीजन मांग 68 मिग्रा. प्रति ली. तथा मलिनता 200 एनटीयू है जो केद्रीय प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा निर्धारित जैव ऑक्सीजन मांग 30 मिग्रा. प्रति ली. तथा मलिनता 100 एनटीयू से कहीं ज्यादा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शोधन प्रक्रिया सही ढंग से नहीं हो रही है।
सारणी स के अनुसार अध्ययन किए गए 6 नालों में से दो नालों के अलावा अन्य नालों में घुलित लवणों कि मात्रा 400-600 माइक्रो एमएचओ/सेमी. पाई गई, दो नालों वाल्मीकी बस्ती ऋषिकुल तथा प्रेमनगर नालों में घुलित लवणों कि मात्रा 1267 तथा 827 माइक्रो एमएचओ/सेमी. मिली जिससे यह प्रतीत होता है कि इन नालों में कुल अवजल औद्योगिक इकाइयों से भी मिल रहा हो (जिसे बाद में पता लगाया जाएगा)। सारणी में दर्शाये गए 6 नालों में से ऊपर के तीन नालों में सीवेज कि मात्रा कम दिखी तथा नीचे के तीन अन्य नालों में पूर्ण रूप से सीवेज की मात्रा अधिक दिखी।
लालताराव पुल के पास एक बड़ा नाला सीधे तौर पर जिसका प्रवाह 120 ली. प्रति सेकंड है गंगा में मिल रहा है। ठीक इसी प्रकार भूपतवाला क्षेत्र का गंदा पानी लाने वाले कि टैपिंग अच्छी होने के बावजूद, नाले से पानी गंगा में मिल रहा है। ध्यान से अवलोकन करने पर यह पता चला कि इसमें से अधिकतम पानी नाले के साथ चल रहे पानी के पाइप के टूटे होने से निकल रहा है। इसी तरह साफ पानी लगभग पूरे निरिक्षित क्षेत्र में से बहता हुआ गंगा में मिलता दिखाई दिया।
एक अन्य बड़ा नाला कनखल एवं जगजीतपुर क्षेत्र का गंदा पानी लाकर गंगा में मातृ सदन के पास मिलता है। इस नाले का प्रभाव स्पष्ट रूप से गंगा की तलछट में पाये जाने वाले जीवों पर दिखा। नाला मिलने के ऊपर जहां गंगा के तलछट में पाये जाने वाले 6 प्रजातियाँ मिली वहीं नाले के मिलने के तुरंत बाद इन प्रजातियों में कमी दिखी और यह मात्र 3 तक ही सिमट कर रह गई। सर्वे किए गए क्षेत्र में कुछ छोटी-छोटी नालियाँ दिखीं जो कुछ एक घरों से लेकर होटल, धर्मशालाओं तथा आश्रमों का गंदा जल गंगा में ले जाती मिली। कई जगहों पर गगा के किनारे ठोस कचरे के ढेर मिले जिन्हें देख कर यह लगा कि सीवर लाइन कि सफाई के बाद यह कचरा गंगा के किनारे फेंक दिया गया है।
इसी प्रकार एक एस्कैप चैनल जो कनखल क्षेत्र में बहती है में आनंदमयीपुरम कालोनी हजारी बाग से कचरा तथा छोटी-छोटी नालियाँ मिलती हैं यह बाद में नील धारा में जाकर मिल जाती हैं।
नालियाँ जो गंगा में मिल रही हैं-
1. पंचायती अखाड़े के पास
2. गोखल विला, गंगा सदन, रमा भवन, जय भारत सदन, सिद्ध आश्रम, भारतीय संस्कृत विद्यालय के पास की नालियाँ
3. सेठी हाउस के पास की नाली
4. आर्य समाज मंदिर एवं सेवा समिति भवन के पास की नाली
लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून के मातृ सदन स्थित कैंप द्वारा गंगा एवं नालों का परीक्षणः
(नोटः सभी आंकणे 10-11 फरवरी 2012, जैव ऑक्सीजन मांग के परीक्षण में 3-5 दिन की आवश्यकता होती है)
सारणी के अ भाग के अनुसार गंगा की जैव ऑक्सीजन मांग हरिद्वार के ऊपर 6.8 मिग्रा. प्रति ली. पाई गई जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा D श्रेणी की नदी के लिए होता है तथा यह जैव ऑक्सीजन मांग हरिद्वार के नीचे 44.7 मिग्रा. प्रति ली. हो गई जो अत्यधिक सीवेज मिलने के कारण हो सकता है।
घुलित लवणों की मात्रा औसतन 200 मिग्रा. प्रति ली. पाई गई परन्तु हरकी पौड़ी में इसकी मात्रा 201 मिग्रा. प्रति ली. पाई गई जो संभवतः पीएच बढ़ने के कारण तलछटीकरण प्रक्रिया के द्वारा हुआ होगा। हरिद्वार के ऊपर घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 6.8 मिग्रा. प्रति ली. जो हरकी पौड़ी में घटकर 6.6 मिग्रा. प्रति ली. हो गई जो संभवतः नहाने आदि कार्यं से हुआ होगा तथा घुलित आक्सीजन कि मात्रा जगजीतपुर के नीचे 4.3 मिग्रा. प्रति ली. रह गई जो एसटीपी द्वारा निकलने वाले अधिक जैव ऑक्सीजन मांग वाले गंदे पानी के मिलने से हुआ प्रतीत होता है।
सारणी के ब भाग के अनुसार यह पता चलता है कि जगजीतपुर स्थित शोधन प्रणाली से निकलने वाले जल कि जैव आक्सीजन मांग 68 मिग्रा. प्रति ली. तथा मलिनता 200 एनटीयू है जो केद्रीय प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा निर्धारित जैव ऑक्सीजन मांग 30 मिग्रा. प्रति ली. तथा मलिनता 100 एनटीयू से कहीं ज्यादा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शोधन प्रक्रिया सही ढंग से नहीं हो रही है।
सारणी स के अनुसार अध्ययन किए गए 6 नालों में से दो नालों के अलावा अन्य नालों में घुलित लवणों कि मात्रा 400-600 माइक्रो एमएचओ/सेमी. पाई गई, दो नालों वाल्मीकी बस्ती ऋषिकुल तथा प्रेमनगर नालों में घुलित लवणों कि मात्रा 1267 तथा 827 माइक्रो एमएचओ/सेमी. मिली जिससे यह प्रतीत होता है कि इन नालों में कुल अवजल औद्योगिक इकाइयों से भी मिल रहा हो (जिसे बाद में पता लगाया जाएगा)। सारणी में दर्शाये गए 6 नालों में से ऊपर के तीन नालों में सीवेज कि मात्रा कम दिखी तथा नीचे के तीन अन्य नालों में पूर्ण रूप से सीवेज की मात्रा अधिक दिखी।
सारणी : गंगा तथा उनमें मिलने वाले गंदे नालों के परीक्षण परिणाम
| अम्लता इंगितक pH | घुलित लवण EC (Micro mho/cm) | घुलित ऑक्सीजन DO (mg/l) | जैव ऑक्सीजन मांग BOD (mg/l) | मलिनता Turbidity (NTU) |
(अ) गंगा की जल गुणवत्ता | |||||
हरिद्वार के ऊपर गंगा जी | 8.1 | 283 | 6.8 | 8.1 | 2 |
गंगा जी हरकी पौड़ी में | 8.39 | 201 | 6.6 | 9.9 | 20 |
नील धारा में गंगा जी | 7.91 | 275 | 5.3 | 14.5 | 5 |
गंगा जी जगजीतपुर के नीचे | 7.71 | 274 | 4.3 | 44.7 | 15 |
(ब) जगजीतपुर स्थित शोधन प्रणाली | |||||
सीवेज ट्रीटमेंट का बहाव | 7.5 | 642 | | 68 | 200 |
(स) गंगा में मिलने वाले नाले | |||||
भूपतवाला नाला | 7.6 | 442 | | 14.3 | 25 |
होटल रेस्ट इन के पास का नाला | 7.5 | 570 | | 23.1 | 20 |
किराली तथा ढग्गा धर्मशाला के मध्य का नाला | 7.6 | 545 | | 29.3 | 40 |
ललिताराव पुल के समीप का नाला | 7.7 | 417 | | 163 | 75 |
बाल्मीकी बस्ती ऋषिकुल के पास का नाला | 7.4 | 1267 | | 167.6 | 70 |
प्रेमनगर का नाला | 7.2 | 827 | | 142.8 | 70 |