शायद ही अपने बहाव के 14 किमी के बाद कोई ऐसी जगह होगी जहाँ यमुना पर संकट खड़ा ना हो। कालिन्दी पर्वत के ग्लेशियर से निकलने वाली यमुना हनुमान चट्टी तक ही शुद्ध रूप में अविरल बहती है। जैसे यह राना चट्टी की ओर बढ़ती है वैसे ही विशालकाय होटल व अन्य व्यावसायिक धन्धों के कारण यमुना का पानी संकट का सामना करता हुआ आगे बढ़ता है। सवाल इस बात का है कि जब गंगा की तरह यमुना भी पवित्र नदी है, विश्व विख्यात है तो यमुना संरक्षण के लिये क्यों नहीं कोई कदम हम उठा पा रहे हैं, जिसका खामियाजा आने वाले दिनों में हम ही भुगतेंगे।
यमुना का पानी कम होने के साथ-साथ प्रदूषित हो रहा है, कालिन्दी ग्लेशियर पूर्णरूप से सूख चुका है। फिर भी हमें कोई चिन्ता हो, जो दूर-दूर तलक दिखाई नहीं दे रहा है। उदाहरण सामने हैं कि 1980-84 के दौरान लोहारी-व्यासी व लखवाड़ बाँध बनने जा रहा था। जिस पर तत्काल 80 प्रतिशत काम हो भी गया था। पर्यावरण की अनदेखी और राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वता के कारण इन बाँधों का काम थम गया। अब 2014 के आस-पास इन बाँधों पर फिर से निर्माण कार्य आरम्भ हो चुका है।
सोचनीय पहलू है कि जो बाँध 80 के दशक में लगभग हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता रखते हों और 2014 आते-आते इनकी क्षमता आधे से भी कम हो, ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि यमुना का पानी बहुत ही सिकुड़ गया है। यमनोत्री से लेकर विकासनगर तक लगभग 160 किमी यमुना का स्वरूप हालांकि दिखाई ही देता है। मगर विकासनगर के बाद 70 किमी आगे सहारनपुर में यमुना नदी का स्वरूप नाले में तब्दील हो जाता है।
यमुना पर शोध करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना ट्रीटमेंट के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गन्दगी को सीधे नदी में उड़ेल देना है। लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा जो कि यमुना किनारे लगे कारखाने उड़ेल रहे हैं।
आज यमुना का हाल घर में पड़ी बूढ़ी माँ की तरह हो गया है जिसे हम प्यार तो करते हैं, उसका लाभ भी उठाते हैं, लेकिन उसकी चिन्ता नहीं करते। यमुना का आधार धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक है। इस नदी का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसलिये यमुना को प्रदूषण मुक्त कर उसकी गरिमा लौटाने की मुहिम के लिये जनभागीदारी की दरकार है।
उल्लेखनीय हो कि यमुना नदी कालिन्दी पर्वत के ग्लेशियर से निकलती है जो गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। मौजूदा समय में यह नदी गंगा नदी से भी ज्यादा प्रदूषित है। भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना को गंगा के साथ रखा जाता है। जिस तरह गंगा नदी का सांस्कृतिक इतिहास है उसी प्रकार यमुना नदी का भी सांस्कृतिक इतिहास है।
सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र की तो यमुना एकमात्र महत्त्वपूर्ण नदी है। यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, व इसकी दीर्घकालीन परम्परा की प्रेरक और यहाँ की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है। जिस प्रकार ब्रज क्षेत्र में कृष्ण का स्थान है उसी प्रकार ब्रज में यमुना का स्थान है। आज उसी नदी यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है एवं दिल्ली से नाले में तब्दील होकर नदी मर रही है।
दिल्ली पहुँचते-पहुँचते यमुना को देखकर खुद शर्मिंदगी महसूस होती है। पर हम तो यह कहते थकते नहीं हैं कि हम तो उस देश के वासी है जहाँ गंगा-जमुनी संस्कृति है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज में यमुना की बदहाली का विकराल रूप गंगा के बेटे के सामने है कि गंगा की बहन यमुना यहाँ पर जिन्दगी और मौत के बीच झूल रही हैं। अर्थात बजीराबाद से ही यमुना नदी दिल्ली में प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है। इसके आगे तो कह सकते हैं कि यमुना नदी यमुना रूपी नाले में तब्दील हो जाती है। चौंकाने वाला दृश्य है कि वजीराबाद के एक ओर यमुना का पानी एकदम साफ और दूसरी तरफ एक दम काला, इसी जगह से नदी का सारा पानी दिल्ली द्वारा उठा लिया जाता है और जल शोधन संयंत्र के लिये भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरू हो जाती है।
यमुना को दिल्ली के 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ हो ही नहीं रहा है। यह सब यमुना की बहन गंगा के बेटे के सामने हो रहा है।
ज्ञात हो कि यमुना नदी 1029 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से चम्बल तक के सात सौ किलोमीटर के दायरे में यमुना सर्वाधिक प्रदूषित है। सहारनपुर, दिल्ली, आगरा और मथुरा में यमुना मर-मर के जी रही है। चम्बल पहुँच कर यमुना नदी को जीवनदान मिल जाता है।
यमुना एक्शन प्लान के दो चरणों में करोड़ों रुपया बहाने के बाद भी यमुना अपने स्वरूप में नहीं लौट पाई है। इसका सीधा मतलब है कि जो किया गया था सो समय पर और सही तरीके से क्रियान्वित हुआ ही नहीं है। इधर गंगा के बेटे ने सरकार गठन के बाद गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये नमामि गंगे योजना का गठन किया। परन्तु गंगा की बहन यमुना की हालत उन्हें इसलिये नहीं दिखाई दी कि वह तो यमुना यानि मौसी के पास ही रहता है।
गंगा के बेटे का ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामी गंगे’ को तीन साल होने आये हैं। लेकिन न तो नदियों का प्रदूषण कम हुआ है और ना ही नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए गए हैं। कचरा और सीवेज परिशोधन के लिये कोई नई तकनीक की व्यवस्था की नहीं गई है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यमुना पर हो रहे विकासीय योजनागत संकट की बात करनी ही गलत साबित होगी। दिलचस्प यह है कि गंगा के बेटे यानि मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही नमामि गंगे योजना का लाभ गंगा को खुद नहीं मिल रहा है तो यमुना कैसे साफ होगी।
जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री ने गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये 2018 तक का समय माँगा है। इतने सालों में गंगा और यमुना साफ नहीं हो पाई और साल 2018 भी समाप्ति पर है। केन्द्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती की बनाई हुई योजना (जिसमें यमुना भी शामिल है) पर अमल होता तो शायद नदियों की अविरलता और स्वच्छता पर कुछ कदम आगे बढ़ते। और ब्रज को वही पुरानी यमुना वापस मिल जाती।
वृन्दावन और मथुरा में उमा भारती ने नमामि गंगे के तहत कुछ प्रोजेक्ट लांच किये, लेकिन उनके परिणाम भी सिफर हो गए। जिसमें वृन्दावन के नगरपालिका क्रिकेट मैदान में नमामि गंगे परियोजना और हाइब्रिड-एन्यूटी मॉडल के अन्तर्गत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भी शुभारम्भ किया गया था। नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स के अन्तर्गत मथुरा और वृन्दावन के सोलह घाटों पर काम भी शुरू हो गया था।
अलबत्ता यमुना के हालत जस-के-तस हैं। उमा भारती के अनुसार उन्होंने यमुना के लिये जो प्लान किया है उसमें दिल्ली से गन्दा पानी अब मथुरा में नहीं आ पाएगा। नमामि गंगे प्रोजेक्ट में दिल्ली से आने वाला गंदा पानी ट्रीट होकर मथुरा की यमुना नदी में शुद्ध होकर आएगा। इस हेतु दिल्ली में भी कई प्रोजेक्ट्स को पहले ही लांच किया जा चुका है। इसके अलावा उमा भारती ने दिल्ली में यमुना को हाइब्रिड एन्यूटी पर ले जाकर पूरी-की-पूरी यमुना और उसके घाटों को ठीक करने की बात कही थी।
यही नहीं अगले चरण में आगरा की यमुना नदी को भी इस योजना का हिस्सा बनाने की बात की गई थी। उत्तराखण्ड से लेकर केन्द्र तक भाजपानीत सरकार है। उमा भारती के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी गंगा और यमुना से खासा लगाव है। अब देखने वाली बात होगी कि आने वाले सालों में गंगा और यमुना को स्वच्छ, निर्मल और अविरल बनाने में कितनी कामयाबी हासिल होती है।
यमुना का पानी कम होने के साथ-साथ प्रदूषित हो रहा है, कालिन्दी ग्लेशियर पूर्णरूप से सूख चुका है। फिर भी हमें कोई चिन्ता हो, जो दूर-दूर तलक दिखाई नहीं दे रहा है। उदाहरण सामने हैं कि 1980-84 के दौरान लोहारी-व्यासी व लखवाड़ बाँध बनने जा रहा था। जिस पर तत्काल 80 प्रतिशत काम हो भी गया था। पर्यावरण की अनदेखी और राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वता के कारण इन बाँधों का काम थम गया। अब 2014 के आस-पास इन बाँधों पर फिर से निर्माण कार्य आरम्भ हो चुका है।
सोचनीय पहलू है कि जो बाँध 80 के दशक में लगभग हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता रखते हों और 2014 आते-आते इनकी क्षमता आधे से भी कम हो, ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि यमुना का पानी बहुत ही सिकुड़ गया है। यमनोत्री से लेकर विकासनगर तक लगभग 160 किमी यमुना का स्वरूप हालांकि दिखाई ही देता है। मगर विकासनगर के बाद 70 किमी आगे सहारनपुर में यमुना नदी का स्वरूप नाले में तब्दील हो जाता है।
यमुना पर शोध करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना ट्रीटमेंट के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गन्दगी को सीधे नदी में उड़ेल देना है। लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा जो कि यमुना किनारे लगे कारखाने उड़ेल रहे हैं।
आज यमुना का हाल घर में पड़ी बूढ़ी माँ की तरह हो गया है जिसे हम प्यार तो करते हैं, उसका लाभ भी उठाते हैं, लेकिन उसकी चिन्ता नहीं करते। यमुना का आधार धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक है। इस नदी का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसलिये यमुना को प्रदूषण मुक्त कर उसकी गरिमा लौटाने की मुहिम के लिये जनभागीदारी की दरकार है।
उल्लेखनीय हो कि यमुना नदी कालिन्दी पर्वत के ग्लेशियर से निकलती है जो गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। मौजूदा समय में यह नदी गंगा नदी से भी ज्यादा प्रदूषित है। भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना को गंगा के साथ रखा जाता है। जिस तरह गंगा नदी का सांस्कृतिक इतिहास है उसी प्रकार यमुना नदी का भी सांस्कृतिक इतिहास है।
सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र की तो यमुना एकमात्र महत्त्वपूर्ण नदी है। यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, व इसकी दीर्घकालीन परम्परा की प्रेरक और यहाँ की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है। जिस प्रकार ब्रज क्षेत्र में कृष्ण का स्थान है उसी प्रकार ब्रज में यमुना का स्थान है। आज उसी नदी यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है एवं दिल्ली से नाले में तब्दील होकर नदी मर रही है।
दिल्ली पहुँचते-पहुँचते यमुना को देखकर खुद शर्मिंदगी महसूस होती है। पर हम तो यह कहते थकते नहीं हैं कि हम तो उस देश के वासी है जहाँ गंगा-जमुनी संस्कृति है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज में यमुना की बदहाली का विकराल रूप गंगा के बेटे के सामने है कि गंगा की बहन यमुना यहाँ पर जिन्दगी और मौत के बीच झूल रही हैं। अर्थात बजीराबाद से ही यमुना नदी दिल्ली में प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है। इसके आगे तो कह सकते हैं कि यमुना नदी यमुना रूपी नाले में तब्दील हो जाती है। चौंकाने वाला दृश्य है कि वजीराबाद के एक ओर यमुना का पानी एकदम साफ और दूसरी तरफ एक दम काला, इसी जगह से नदी का सारा पानी दिल्ली द्वारा उठा लिया जाता है और जल शोधन संयंत्र के लिये भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरू हो जाती है।
यमुना को दिल्ली के 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ हो ही नहीं रहा है। यह सब यमुना की बहन गंगा के बेटे के सामने हो रहा है।
ज्ञात हो कि यमुना नदी 1029 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से चम्बल तक के सात सौ किलोमीटर के दायरे में यमुना सर्वाधिक प्रदूषित है। सहारनपुर, दिल्ली, आगरा और मथुरा में यमुना मर-मर के जी रही है। चम्बल पहुँच कर यमुना नदी को जीवनदान मिल जाता है।
यमुना एक्शन प्लान के दो चरणों में करोड़ों रुपया बहाने के बाद भी यमुना अपने स्वरूप में नहीं लौट पाई है। इसका सीधा मतलब है कि जो किया गया था सो समय पर और सही तरीके से क्रियान्वित हुआ ही नहीं है। इधर गंगा के बेटे ने सरकार गठन के बाद गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये नमामि गंगे योजना का गठन किया। परन्तु गंगा की बहन यमुना की हालत उन्हें इसलिये नहीं दिखाई दी कि वह तो यमुना यानि मौसी के पास ही रहता है।
गंगा के बेटे का ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामी गंगे’ को तीन साल होने आये हैं। लेकिन न तो नदियों का प्रदूषण कम हुआ है और ना ही नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए गए हैं। कचरा और सीवेज परिशोधन के लिये कोई नई तकनीक की व्यवस्था की नहीं गई है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यमुना पर हो रहे विकासीय योजनागत संकट की बात करनी ही गलत साबित होगी। दिलचस्प यह है कि गंगा के बेटे यानि मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही नमामि गंगे योजना का लाभ गंगा को खुद नहीं मिल रहा है तो यमुना कैसे साफ होगी।
जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री ने गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये 2018 तक का समय माँगा है। इतने सालों में गंगा और यमुना साफ नहीं हो पाई और साल 2018 भी समाप्ति पर है। केन्द्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती की बनाई हुई योजना (जिसमें यमुना भी शामिल है) पर अमल होता तो शायद नदियों की अविरलता और स्वच्छता पर कुछ कदम आगे बढ़ते। और ब्रज को वही पुरानी यमुना वापस मिल जाती।
वृन्दावन और मथुरा में उमा भारती ने नमामि गंगे के तहत कुछ प्रोजेक्ट लांच किये, लेकिन उनके परिणाम भी सिफर हो गए। जिसमें वृन्दावन के नगरपालिका क्रिकेट मैदान में नमामि गंगे परियोजना और हाइब्रिड-एन्यूटी मॉडल के अन्तर्गत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भी शुभारम्भ किया गया था। नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स के अन्तर्गत मथुरा और वृन्दावन के सोलह घाटों पर काम भी शुरू हो गया था।
अलबत्ता यमुना के हालत जस-के-तस हैं। उमा भारती के अनुसार उन्होंने यमुना के लिये जो प्लान किया है उसमें दिल्ली से गन्दा पानी अब मथुरा में नहीं आ पाएगा। नमामि गंगे प्रोजेक्ट में दिल्ली से आने वाला गंदा पानी ट्रीट होकर मथुरा की यमुना नदी में शुद्ध होकर आएगा। इस हेतु दिल्ली में भी कई प्रोजेक्ट्स को पहले ही लांच किया जा चुका है। इसके अलावा उमा भारती ने दिल्ली में यमुना को हाइब्रिड एन्यूटी पर ले जाकर पूरी-की-पूरी यमुना और उसके घाटों को ठीक करने की बात कही थी।
यही नहीं अगले चरण में आगरा की यमुना नदी को भी इस योजना का हिस्सा बनाने की बात की गई थी। उत्तराखण्ड से लेकर केन्द्र तक भाजपानीत सरकार है। उमा भारती के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी गंगा और यमुना से खासा लगाव है। अब देखने वाली बात होगी कि आने वाले सालों में गंगा और यमुना को स्वच्छ, निर्मल और अविरल बनाने में कितनी कामयाबी हासिल होती है।