गंगा की बाढ़

Submitted by admin on Thu, 09/19/2013 - 16:18
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काव्य संचय- (कविता नदी)
सरबस ही बहा ले गई गंगा मैया
बचा नहीं एक भी उपाय।
धान और बाजरा समेत
लहरों में समा गए खेत
टीले परनाव चले दैया रे दैया
पेड़ों पर नदी चढ़ी जाए।
डूब गए निचले खपरैल
रात बहे ‘बंसी’ के बैल
बँसवट पर अटक गई घाट की मड़ैया
डूब गई पंडित की गाय।
पिए गाँव-घर का एहसास
पानी को लगी हुई प्यास
खेतों में मार रहीं लहरें कलैया
लोग करें हाय, हाय,हाय!
भहराई माटी की भीत
जख्मी हो गए लोकगीत
पानी से जूझ रही पागल पुरवैया
हहर-हहर पीपल हहराय।
डूब गए कजली के ठाँव
डूब गई बरगद की छाँव
जहाँ जुड़ा करते थे गांव के कन्हैया
गुमटी में बिकती थी चाय।