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जल चेतना, जनवरी 2016
रक्त के अवयव श्वेत रूधिरकण, लाल रूधिरकण, प्लेटलेट, प्लाज्मा, हीमोग्लोबिन, पॉलीमोर्फ, लिम्फोसाइट, इओसीनोफिल, मोनासाइट, बेसोफिल, आज मानवीय शरीर धारण किये हैं।
ये सब अपने रंगक्रमानुसार एक समूह में अपनी प्रभुता प्रदर्शन हेतु बीच में वृद्धजन के साथ जुलूस बनाये नगर के बाहरी राजमार्ग से नगर में प्रवेश करते हुए-
सब एक साथ-
जय जय बाबा रूधिर देव की जय।
जय जय बाबा रूधिर देव की जय।
हीमोग्लोबिन (बाबा से)- बाबा, हम सब नगर में प्रवेश करने जा रहे हैं, हम लोग सभी नगरजनों को अपनी महिमा बतलाकर, मानवों को विविध रोगों से सावधान रहने का उपदेश भी देंगे।
प्लाज्मा- हाँ हाँ दादा वैसे हमारा आभास तो सभी जीव-जन्तु हैं लेकिन इनमें मानव सबसे अधिक पीड़ित और संकटग्रस्त है उसकी भलाई का काम हम जरूर करेंगे।
सब मिलकर एक साथ - सर्वशक्तिमान बाबा रूधिर देव की जय, बाबा रूधिर देव की जय।
मार्ग में जय जयकार बोलता यह जुलूस नगर के प्रवेश द्वार पर पहुँचता है यहाँ एक ओर जल से भरा एक जलाशय दिखाई देता है। जैसे ही जुलूस जलाशय के पास पहुँचता है तो एक मानवीय आकृति जलाशय के बीच से धीरे-धीरे ऊपर उठती है और जल से ऊपर आकर यह छाया कृति जुलूस को सम्बोधित कर कहती है-
कौन लोग? तुम शोर मचाते,
भीड़ लगाकर शहर में आते।
अचानक आवाज सुनकर जुलूस ठहर जाता है और आगे बढ़कर मोनोसाइट (जलाकृति को सम्बोधित कर) कहता है-
शाही सवारी रोकने वाला
तू है कौन? पूछने वाला
हमको तू आँखें दिखलाता
खुद बतला तू कौन कहाता?
जलाकृति बोलती है-
सुनो व्यर्थ मत गुस्सा खाओ,
बात करो थोड़ा रुक जाओ।
मैं अपना परिचय कहता हूँ।
सारी सृष्टि में मैं रहता हूँ।
जन्तु वनस्पति जीवन दाता,
मैं ‘अमृत’ रस ‘जल’ कहलाता।
सब जीवों में अंश हमारा,
जानिये ‘पानी’ नाम हमारा।।
ब्लड प्लेटलेट्स-
आया बड़ा तू जीवन दाता,
करता बहस जबान चलाता।
अपने मुँह अपने गुण गाता,
अपनी महिमा आप सुनाता।।
प्लाज्मा-
गंदी नाली में रहने वाला,
दस्तरोग हैजा फैलाता।
नाली में मच्छर उपजाता,
मलेरिया जिनसे आ जाता।।
पानी-
चुप रह बक बक करने वाला,
मैं न किसी से डरने वाला।
व्यर्थ शान में तना हुआ तू,
मुझसे ही है बना हुआ तू।।
लिम्फोसाइट-
(सुन पानी)
घुलें धातुयें तेरे अन्दर,
हृदय कैंसर रोग बनाती।
झड़ें बाल पीड़ित हो मानव,
चर्मरोग गठिया उपजाती।।
तंत्रिका तंत्र ध्वस्त हो जाता,
सारा बदन विषाक्त बनाती।।
सीसा यदि तुझमें घुल जाता,
उल्टी आये रक्त घट जाता।।
पानी सीसे में पी जाये।
अल्पमृत्यु मानव मर जाता।।
पानी-
नहीं नहीं गुस्सा मत खाओ।
मुझको दोषी मत ठहराओ।।
पॉलीमोर्फ-
अपने मुँह अपने गुण गाते।
और कहो किस काम में आते?
पानी-
(सब लोगों से) तो सुनो-
खून प्लाज्मा नर में बनाता,
तत्व विषैले तन से हटाता।
तापमान को नियमित करके,
मैं पाचन को सुगम बनाता।।
सत्तर प्रतिशत मानव तन में,
रहूँ तनाव थकान मिटाता।
मुझको पान प्रातः जो करते,
उनके तन से कब्ज हटाता।।
बेसोफिल-
चुप रह बदबूदार विषैला,
रहता है तू हरदम मैला।
अब न महिमा अपनी बताना,
रूधिर देव को न पहचाना।।
पानी-
नहीं हूँ मैला मैं मलहीन
।बिना गंध का मैं रंगहीन।।
स्वच्छ मुझे जीवाणु बनाते।
मेरे अंदर पाये जाते।।
पर जब कचड़ा जल में आता,
जल का यह जीवाणु मर जाता।
तब न स्वच्छ जल रह पाता हूँ,
बदबू से जब भर जाता हूँ।।
और सुनिये-
जीवों का जीवन जल जानो।
मानव के मन माफिक मानो।।
रक्त देवता-
अच्छा चलो शहर में जायें,
मानव जन से न्याय करायें।
कौन बड़ा है पता चलेगा,
कोई तेरा नाम न लेगा।।
पानी-
रूधिर देव यह उचित विचार।
नगर चलो हम हैं तैयार।।
(नगर में प्रवेश करते हैं कुछ मानवों से भेंट होती है) :-
मानवजन- हे श्रीमान, कौन सब लोग?
देव पुरुष सब जानने योग्य।।
पानी- हे मानवजन ध्यान से सुनिये।
रूधिर देव यह दर्शन करिये।।
मानव (पानी की ओर संकेत कर)-
पर, आप कौन है मूर्ति महान?
लगते ज्ञानी जन विद्वान।।
पानी-हम पानी जीवों के प्राण।
पानी हम जीवों की शान।।
हम दोनों में हुई तकरार।
कौन बड़ा यह करो विचार।।
सुनो मनुष्यों- हम दोनों में बड़ा हैकौन।
आप बताये रहें न मौन।।
मानव- बस बस वरुण देव जल ‘पानी’
सार धरा के तुम हम जानी
सुनना कुछ न सोचना होगा।
जल अनिवार्य मानना होगा।।
हो जल जीवन के वरदान।
आप प्रकृति की देन महान।।
केवल पानी में यह गुण है,
रखे धरा को हरा भरा।
जीव वनस्पति का जीवन जल,
जीवित जल से है वसुन्धरा।।
जल न होगा तो फिर बोलो,
कैसे भू पर वृक्ष उगेंगे?
बिना वृक्ष धरती पर मानव
प्राणवायु फिर कहाँ से लेंगे?
हे वरुण देव कुछ आप बताओ।
मानव को संदेश पढ़ाओ।।
पानी- (मानवों के लिये)- पालन करेंमेरे वचनों का, तो संदेश सुनाता हूँ।
मानव का मैं परम हितैषी, हित कीबात बताता हूँ।।
लो सुनो- आज का मानव भटक रहा है,
निजी स्वार्थ में अटक रहा है।
मनमानी मानव जन करते,
कचड़ा जलस्रोतों में भरते।
कुछ जन करते जल बर्बाद,
उनको भविष्य न अपना याद।।
इसीलिये मानव से कहना,
कोई न मुझे प्रदूषित करना।
जीवित रखना अगली पीढ़ी,
बूँद-बूँद जल बचा के रखना।।
जय जल देव जै जै वरुण देव कहते हुए सब जाते हैं। (परदा गिरता है)
जागो वरना पछताओगे
सृष्टि समूची धारण करती,
इसीलिये मैं माँ कहलाती।
सारी सृष्टि मुझी से जीवित,
अन्न उपजाती जल पिलवाती।।
अंदर ऊपर जल धारण कर,
अपने तन पर वृक्ष उगाती।
सभी जानते नाम हमारा,
वसुन्धरा मैं ही कहलाती।।
गौतम बुद्ध यहाँ आये थे,
यहीं अशोक ने जन्म लिया।
पीड़ित होती मानवता को,
सत्य अहिंसा संदेश दिया।।
अब मुझ पर संकट आया है,
वायु और जल बहुत प्रदूषित।
मानव ही यह करने वाला,
मानवता को करे कलंकित।।
वायु प्रदूषित करने वाले,
पॉलीथिनें खूब जलाते।
फैक्टरियों के जल में अम्ल,
बहा-बहा नदियों में लाते।।
वृक्ष कटे जल नहीं मिलेगा,
कहीं न हरियाली पाओगे।
सबके आगे धरती रोती,
जागो वरना पछताओगे।।
सम्पर्क करें:
चन्द्रप्रकाश शर्मा पटसारिया
(पूर्व, प्राचार्य), बेरबाला मोहल्ला इन्दरगढ़, जिला दतिया (मध्य प्रदेश) पिन- 475675, फोन नं. 9893678267