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जल चेतना तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2013
जल पर जीवन निर्भर करता,
जल नहीं तो मन है डरता।
है आधार यह कई काम का,
निपटाता काम यह सुबह-शाम का।
कपड़े धोना, नहाना, पीना,
इससे तर रहता है सीना।
इस पर टिकी हुई है खेती,
जल से धरती फसल है देती।
पैदा नहीं होता जब पड़ता सूखा,
मानव तब रहता है भूखा।
जल संचय से होता मंगल,
हरे-भरे रहते हैं जंगल।
पैदा होते हैं फल-फूल,
धरती में नहीं उड़ती धूल।
जो जन वर्षाती जल रोके,
नहीं मिलेंगे उनको धोखे।
‘जल’
जीवन का आधार है जल,
हर पल रखें उसे निर्मल।
बिन जल के जीवन नहीं होता,
मानव के पापों को धोता।
शाक, तरकारी, अन्न और फल,
तब मिलते जब होता जल।
मानव हो या पशु-पक्षी,
सब इस निर्मल जल के भक्षी।
जल यदि हो जाएगा गन्दा,
फिर नहीं बच पाएगा बन्दा।
देह बनेगी रोगों का घर,
हैजा, मलेरिया और कहीं ज्वर।
निर्मलता का ध्यान रखें सब,
लाभ मिलेंगे हम सबको तब।
दूर रखें हर तरफ का मैला,
चाहे हो वह पाॅलीथीन थैला।
‘जलाभाव’
गाड़-गदेरे-कुएँ-धारे,
सूख चुके हैं यहाँ के सारे।
हैण्डपम्प से आस जगी है,
थोड़ी-थोड़ी प्यास लगी है।
नल भी पड़ गए पूरे सूखे,
धूल जम गई हो गए रुखे।
मुल्क हमारा है नदियों का,
इनसे नाता है सदियों का।
लेकिन काम कम हैं ये आती,
हर पल बहकर नीचे जाती।
नदियों का जलस्तर घट गया,
बालू-रेत से तट भर गया।
बर्फ का दर्शन कठिन हो गया,
लगता इन्द्रदेव सो गया।
कहीं टैंकर से मिलता पानी,
यह बन गई अब नई कहानी।
‘वर्षा रानी’
वर्षा रानी धन्य तुम, टिके तुम्हीं पर देश,
रहती नहीं हो सदासम, बदलती रहती भेष।
कभी बरसती मूसलधार, और कभी मध्यम रूप,
कभी वर्षा के संग मिली, रहती गुनगुनी धूप।
चलती है बौछार कभी, मानव रहता दंग,
कागज पत्तर धूल सभी, उड़ता हवा के संग।
रुक-रुक कर आती कभी, धरती पर वर्षा रानी,
और कभी ओले संग, गिरता तड़-तड़ पानी।
होती वर्षा ऋतु जब, नदियों में आती बाढ़,
जो सूखी रहती पहले, ओ अतर हो जाती है गाड़।
डाॅ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ग्राम/पो.-पुजार गाँव (चन्द्रवदनी)
वाया-हिण्डोला खाल
जिला-टिहरी गढ़वाल- 249122
उत्तराखण्ड