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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की पत्रिका 'जल चेतना', जुलाई 2013
नदी निश्चल बहती है
इसका अर्थ
यह तो नहीं कि वह कुछ नहीं कहती।
बहुत कुछ कहती है तब
जब जानलेवा गरमी में
प्यास से बदहाल
हम निहारते हैं उसे।
स्वाद लेते हैं उसके
ममतामयी शीतल नीर का।
वह कहती है तब भी
जब हम चखते हैं
उसके अमृत से सिंचित
पेड़ के मीठे सुस्वादु फल को।
चलाना हो कल-कारखाने
या विपुल विद्युत उत्पादन
सब संभव उसके जल से।
स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ
जीवन मरण की
समस्त क्रियाएं
संपन्न उसके जल से।
आदमी लेता ही लेता है
देता बहुत कम
देता भी है तो ढिंढोरा पीटकर
यही उसकी पहचान है।
सचमुच नदी हर हाल में
मनुष्य से महान है।
सम्पर्क
डॉ. सेवा नन्दवाल, 98 डी के-1, स्कीम 74-सी, विजय नगर, इन्दौर-452010, मो. - 9685254053