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काव्य संचय- (कविता नदी)
पानी में अचानक एक अजीब-सी आकृति निकली
और डूब गई
दशाश्वमेध घाट से कोई सौ मीटर दूर
जब कोई इसके लिए तैयार नहीं होता
वे बचे-खुचे परिवार
देशकाल की संधियों को छेड़ते हैं
उन्हें बचपन से बनारस में देखा है
कैलीफॉर्निया के नमकीन पानी में
उन्हें करीब से छूने के बरसों पहले
और बाद में भी
और अब उन्हें ब्रह्मपुत्र में देखा
सुना है सिंधु के ग्रम हिस्सों में उनकी सघन बस्तियां थीं
और कभी पूर्वी बंगाल की नदियों में
रोजाना उनके किस्से सुने जाते
बाढ़ के दिनों लोगों ने
उन्हें राप्ती जैसी सहायक नदियों में भी देखा
पता नहीं क्यों इन्हें शिशुमार, शिशुमार, शिंशुक और सूंस कहा गया
जबकि इन्होंने कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाई
आम तौर पर मित्रवत
सतह पर इनकी गति और आकृति से
इन्हें शिशुवत् या मजाक में शीशमार या चंचुमार कहा जा सकता
पर या तो इनसे डरा गया
या इनके सरल स्वभाव के कारण
हम इन पर अकारण आक्रामक हुए
यह निरंतर मनुष्य के करीब आई
और पिटी
और इस नदी में तो बुरी तरह मार पड़ी इस अभागी जलबछिया पर
जो विपरीत इतिहास, प्रदूषण और हिंसा के बाद भी
कुदरती जिद की तरह अड़ी रही बनारस और पटना के बीच
सिंधु-सांग्पो भूसंधि पर उनका होना समझ में आता है
लेकिन गंगा किसी समुद्र का विघटित स्वरूप हो
यह समझना कुछ मुश्किल है
ऐसे तो फिर दुनिया की सभी नदियां
प्राचीन समुद्रों का विघटित स्वरूप है
फिर सभी नदियों में कभी डॉलफिन रही होगी
क्या ये भटकते परिवार
धारा के विरुद्ध समुद्र से गंगा में आए
या ये आदिगंगावासी थे
और नमकीन पानी पार करके ब्रह्मपुत्र तक पहुंचे
हजारों सालों से यह कुटुंब
इस भूभाग में
और संभवतः मीठे पानी में रहता आया है
ऋग्वेद अगर इसी भूभाग की स्मृति है
तो ऋग्वेद में इनका जिक्र है
सिटेशिया जंतुवर्ग कुदरती तौर पर शीतसमुद्रों में घनीभूत रहा
फिर उनके भतीजे क्या कर रहे हैं पटना और बनारस के बीच
जबकि उनके पास नमकीन और ठंडे पानियों में जाने की संभावनाएं रहीं
प्रोटीन या आयोडीन की कमी रही या और कोई बात
क्यों इनकी गति और ऊर्जा में कमी आती गई
और क्या बात रही
कि ये धीरे-धीरे दृष्टीहीन होती चली गई
और इतने लंबे समय तक इतनी बड़ी कीमत
लगातार चुकाते रहने के बाद भी
कैसे ये डॉलफिन
मीठे और गर्म पानी में जमी रहीं
और जिनके पास सभी संभावनाएं थी
कि वे मनुष्य का अध्ययन करतीं
वे ऐसी स्थिति में आ गई
कि मनुष्य के पास अवकाश नहीं है
उनके बारे में सोचने का।
और डूब गई
दशाश्वमेध घाट से कोई सौ मीटर दूर
जब कोई इसके लिए तैयार नहीं होता
वे बचे-खुचे परिवार
देशकाल की संधियों को छेड़ते हैं
उन्हें बचपन से बनारस में देखा है
कैलीफॉर्निया के नमकीन पानी में
उन्हें करीब से छूने के बरसों पहले
और बाद में भी
और अब उन्हें ब्रह्मपुत्र में देखा
सुना है सिंधु के ग्रम हिस्सों में उनकी सघन बस्तियां थीं
और कभी पूर्वी बंगाल की नदियों में
रोजाना उनके किस्से सुने जाते
बाढ़ के दिनों लोगों ने
उन्हें राप्ती जैसी सहायक नदियों में भी देखा
पता नहीं क्यों इन्हें शिशुमार, शिशुमार, शिंशुक और सूंस कहा गया
जबकि इन्होंने कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाई
आम तौर पर मित्रवत
सतह पर इनकी गति और आकृति से
इन्हें शिशुवत् या मजाक में शीशमार या चंचुमार कहा जा सकता
पर या तो इनसे डरा गया
या इनके सरल स्वभाव के कारण
हम इन पर अकारण आक्रामक हुए
यह निरंतर मनुष्य के करीब आई
और पिटी
और इस नदी में तो बुरी तरह मार पड़ी इस अभागी जलबछिया पर
जो विपरीत इतिहास, प्रदूषण और हिंसा के बाद भी
कुदरती जिद की तरह अड़ी रही बनारस और पटना के बीच
सिंधु-सांग्पो भूसंधि पर उनका होना समझ में आता है
लेकिन गंगा किसी समुद्र का विघटित स्वरूप हो
यह समझना कुछ मुश्किल है
ऐसे तो फिर दुनिया की सभी नदियां
प्राचीन समुद्रों का विघटित स्वरूप है
फिर सभी नदियों में कभी डॉलफिन रही होगी
क्या ये भटकते परिवार
धारा के विरुद्ध समुद्र से गंगा में आए
या ये आदिगंगावासी थे
और नमकीन पानी पार करके ब्रह्मपुत्र तक पहुंचे
हजारों सालों से यह कुटुंब
इस भूभाग में
और संभवतः मीठे पानी में रहता आया है
ऋग्वेद अगर इसी भूभाग की स्मृति है
तो ऋग्वेद में इनका जिक्र है
सिटेशिया जंतुवर्ग कुदरती तौर पर शीतसमुद्रों में घनीभूत रहा
फिर उनके भतीजे क्या कर रहे हैं पटना और बनारस के बीच
जबकि उनके पास नमकीन और ठंडे पानियों में जाने की संभावनाएं रहीं
प्रोटीन या आयोडीन की कमी रही या और कोई बात
क्यों इनकी गति और ऊर्जा में कमी आती गई
और क्या बात रही
कि ये धीरे-धीरे दृष्टीहीन होती चली गई
और इतने लंबे समय तक इतनी बड़ी कीमत
लगातार चुकाते रहने के बाद भी
कैसे ये डॉलफिन
मीठे और गर्म पानी में जमी रहीं
और जिनके पास सभी संभावनाएं थी
कि वे मनुष्य का अध्ययन करतीं
वे ऐसी स्थिति में आ गई
कि मनुष्य के पास अवकाश नहीं है
उनके बारे में सोचने का।