गंगा महिमा

Submitted by admin on Fri, 09/06/2013 - 11:50
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काव्य संचय- (कविता नदी)
(1)
भसम रमी है अंग रंग, रंग्यो अंग ही के,
संग माँहि भूत-प्रेत राखिबै की मति है।।
जहर जम्यो कंठ कठि मैं कोपीन कसी,
घाली मुंड माल उर औघड़ की गति है।.
सेवत मसान नैन तीन कौ विकट्ट रूप,
बैल असवारी करै अजुंबी सुरति है।।
कहत ‘बालेन्द्र’ ऐसे अंग सती रमतीं न,
जो पै देखि लेतीं नाहिं गंग लहरति है।।

(2)
पेखि रतिराज के कुकाज दोस रोष आन,
संकरसरूप यों भयंकर सों ह्वै रह्यो।।
कहत ‘बालेंद्र’ तव मदन कहन हित,
लोचन त्रिलोचन को तीसरी उध्वै रह्यो।
अगिनि प्रचंड बाढ़ि लागिगै छपाकर,
वै, सातो द्वीप नव खंड हाहाकार ह्वै रह्यो।।
बरनि बुझावन को जरनि जुरावन कों,
गंग हिम नीर जटा जूटन सों च्वै रह्यो।।

सन् 1932