सुबह की नदी

Submitted by admin on Fri, 09/06/2013 - 11:55
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काव्य संचय- (कविता नदी)
जी, हाँ,
सुबह हुई है,
पानी की देह में सूरज उगा है,
नदी का जीवन
जानदार हुआ है,
पत्थर चाटना
अब उसे अपने लिए
स्वीकार हुआ है,
तट का तोड़ना
अब दूसरों के लिए
दरकार हुआ है।