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नेशनल दुनिया 20 जनवरी 2015
गंगा सफाई अभियान को चलते हुए 30 साल का एक लम्बा समय व्यतीत हो चुका है लेकिन आज भी गंगा की स्थिति जस-की-तस बनी हुई है। प्रदूषण के स्तर पर तो गंगा की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। इसी को देखते हुए को देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर से केन्द्र सरकार से पूछा है कि गंगा की सफाई इसी कार्यकाल में होगी या फिर अगले? यह कोई पहली दफा नहीं है कि कोर्ट ने गंगा सफाई के मसले पर केन्द्र सरकार के प्रति अपने तेवर तल्ख किए हों। पिछले छह माह के भीतर न्यायालय गंगा सफाई के मामले में 5 बार सरकार को फटकार लगा चुकी है।
नरेन्द्र मोदी ने गंगा को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था और सत्ता में आने के बाद आनन-फानन में इसके लिए एक अलग मंत्रालय का गठन भी किया। 2014-15 के आम बजट में मोदी सरकार ने गंगा नदी के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने की घोषणा की है। गंगा को परिवहन का माध्यम बनाने के लिए मोदी सरकार ने बजट में 4200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। इसके अतिरिक्त नमामि गंगे विशेष परियोजना के लिए 2037 करोड़ रुपए अलग से आवंटित किया गया है।
इन सबके बावजूद भी गंगा की सफाई के प्रति अभी तक कोई गम्भीर कदम नहीं उठाया गया। गंगा मात्र एक नदी ही नहीं बल्कि भारतीय जनमानस की आस्था, आध्यात्मिकता की प्रतीक भी है। भारतीय संस्कृति के उद्भव की गाथा से लेकर आज तक असंख्य वर्षों में घटित हुए सभी बदलावों की साक्षी है।
भारत की बहुसंख्य जनता के जीवन के अभिन्न अंग के रूप में गंगा जन्म, विवाह आदि से लेकर मृत्युपर्यन्त सभी प्रमुख संस्कारों से जुड़ी हुई है। यहाँ तक कि देहावसान के पश्चात् भी पितरों की अतृप्त आत्माओं को इसी के माध्यम से तर्पण-अर्पण किया जाता है। हमारे खेतों की सिंचाई से लेकर भूमिगत जलस्तर तथा उर्वरता बनाए रखना, हमें दाना-पानी से लेकर यातायात तक मुहैया कराना व हमारे इहलोक से लेकर परलोक तक की सुधि लेकर उसे सुधारने का सारा बोझ अनगिनत बरसों से इसी पुण्यसलिला के पावन कंधों पर रहा है।
रोजाना लगभग 25 से 30 लाख लोग गंगा में स्नान करते हैं। गंगा का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है और यहीं पर इसकी स्थिति सबसे दयनीय भी है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से गंगा पर दबाव बढ़ गया, जिसके कारण नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ता गया और इसका जल आचमन की तो छोड़िए स्नान योग्य भी नहीं रहा।
नरेन्द्र मोदी ने गंगा को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था और सत्ता में आने के बाद आनन-फानन में इसके लिए एक अलग मंत्रालय का गठन भी किया। 2014-15 के आम बजट में मोदी सरकार ने गंगा नदी के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने की घोषणा की है। गंगा को परिवहन का माध्यम बनाने के लिए मोदी सरकार ने बजट में 4200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। इसके अतिरिक्त नमामि गंगे विशेष परियोजना के लिए 2037 करोड़ रुपए अलग से आवंटित किया गया है।
इन सबके बावजूद भी गंगा की सफाई के प्रति अभी तक कोई गम्भीर कदम नहीं उठाया गया। गंगा मात्र एक नदी ही नहीं बल्कि भारतीय जनमानस की आस्था, आध्यात्मिकता की प्रतीक भी है। भारतीय संस्कृति के उद्भव की गाथा से लेकर आज तक असंख्य वर्षों में घटित हुए सभी बदलावों की साक्षी है।
भारत की बहुसंख्य जनता के जीवन के अभिन्न अंग के रूप में गंगा जन्म, विवाह आदि से लेकर मृत्युपर्यन्त सभी प्रमुख संस्कारों से जुड़ी हुई है। यहाँ तक कि देहावसान के पश्चात् भी पितरों की अतृप्त आत्माओं को इसी के माध्यम से तर्पण-अर्पण किया जाता है। हमारे खेतों की सिंचाई से लेकर भूमिगत जलस्तर तथा उर्वरता बनाए रखना, हमें दाना-पानी से लेकर यातायात तक मुहैया कराना व हमारे इहलोक से लेकर परलोक तक की सुधि लेकर उसे सुधारने का सारा बोझ अनगिनत बरसों से इसी पुण्यसलिला के पावन कंधों पर रहा है।
रोजाना लगभग 25 से 30 लाख लोग गंगा में स्नान करते हैं। गंगा का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है और यहीं पर इसकी स्थिति सबसे दयनीय भी है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से गंगा पर दबाव बढ़ गया, जिसके कारण नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ता गया और इसका जल आचमन की तो छोड़िए स्नान योग्य भी नहीं रहा।