गंगा तप की राह चला सन्यासी सानंद

Submitted by RuralWater on Sun, 03/06/2016 - 11:04


स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - आठवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :

.स्वरूपानंद जी की प्रेरणा से इस बीच हमने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा कि कुम्भ से पहले कुछ कार्य हो जाना चाहिए।

 

प्रवाह की माँग, खेती का ख्याल


जनवरी-फरवरी में प्रयाग में गंगा प्रवाह 530 घन मीटर प्रति सेकेण्ड होता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि माघ मेले में प्राकृतिक प्रवाह का आधा हो; यह 265 घन मीटर प्रति सेकेण्ड हुआ। हमने नवम्बर तक 250 घन मीटर प्रति सेकेण्ड के प्रवाह की माँग की। हमने कहा कि यह निरन्तर हो। निगरानी के लिये मॉनिटरिंग कमेटी हो; ताकि नापा जा सके। कमेटी में हमारा प्रतिनिधि भी हो।

यह एक दिसम्बर से शुरू हो जाये। इसके लिये नहरों में प्रवाह कम करना होगा। हमने सजेस्ट किया कि हरिद्वार से निकलने वाली नहर में 20 प्रतिशत की कमी करनी होगी। किसानों को इसकी पूर्व सूचना दी जाये। उन्हें सूचित किया जाये कि नहरों में इतना पानी कम आएगा; ताकि वह नवम्बर में बोई जाने वाली फसल तद्नुसार बोएँ।

इस पत्र में बाँधों का कोई जिक्र नहीं था। हम यह भी जानते थे कि बाँधों के निर्णय से तत्काल कोई प्रभाव नहीं होता। हम व्यावहारिक पक्ष को लेकर चल रहे थे। हम चाहते थे कि खेती भी तद्नुसार बने। यदि दीवाली में खेत बोएँगेे, तो कम पानी; दिसम्बर-जनवरी में बोएँ, तो और कम पानी लगाएँ; बाकी जल संरक्षण करें। हमारा विश्वास है कि यदि हम सूचित करेंगे, तो हमारी धर्मप्राण जनता स्वयं ध्यान देगी। सम्भव यह भी है कि इससे उसे लाभ हो और वह आगे कम पानी में खेती का ख्याल करे।

 

संस्कार सम्पादन वैभव कथा


12 जुलाई को हम कलकत्ता चले गए। मैंने मनुस्मृति पढ़ी; नारद स्मृति पढ़ी। पढ़कर आश्चर्य हुआ कि उसमें इण्डियन पैनल कोड की तरह दण्ड संहिता है; विशेषकर आर्थिक अपराध के बारे में। कर्मचारी कैसे हों? ‘तर्क संग्रह’ - न्याय दर्शन का प्रारम्भिक है; वह पढ़ा। गंगा जी के बारे में व्यवस्था आदि.. सितम्बर चातुर्मास के बाद बनारस लौट आये।

मुझे कलकत्ता रहते हुए अनुभव हुआ कि हमारे धार्मिक संस्कार कितने वैभवपूर्ण हैं; किस प्रकार दक्षिणा चढ़ती है। दर्शन देने में ज्यादा समय जाता है। चरण छुए, भेंट चढ़ाई; हो गया दर्शन। स्वरूपानंद जी, अविमुक्तेश्वरानंद जी तो भेंट को हाथ नहीं लगाते। शिष्य ही भेंट समेटता रहता है। भोजन के लिये जाते, तो पादुका पूजन। भोजन करते तो अकेले नहीं, 20-25 जाते। सभी को दक्षिणा मिलती। मैं सबसे जूनियर था। मुझे 51 हजार मिला। भक्त अर्पण करते हैं। चातुर्मास समाप्त हुआ, तो मैंने देखा कि एक महिला ने तो एक करोड़ अर्पण किया।

यह मेरा पहला अनुभव था। मैं कारपोरेट सेक्टर में रहा हूँ। सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) में भी साबका पड़ता था। लेकिन इतनी बड़ी राशि का कैश ट्रांजेक्शन (नकद लेन-देन) पहली बार देखा। मैंने सोचा कि यह कैसे सरकार का विरोध कर सकते हैं? कोई भी अधिकारी इन पर कार्रवाई कर सकता है। इससे लगा कि प्रशासन और धार्मिक सन्तों में कितना बड़ा आपसी रिश्ता है!

 

धर्माचार्य समर्थ, पर जोर कहीं और


खैर, लौटकर मैं और अविमुक्तेश्वरानंद जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश से मिले। अविमुक्तेश्वरानंद जी काशी विश्वनाथ मन्दिर के प्रमुख पुजारी व एक अन्य को ले गए थे। वे चाहते थे कि विश्वनाथ मन्दिर का सरकारी प्रबन्धक किसे रखा जाये, उसकी सिफारिश हो जाये। दूसरा व्यक्ति भी एक सिफारिश के लिये ही गया था।

मुझे तो कम मौका था। न शिवपाल (सिंचाई मंत्री) वहाँ थे और न कोई अधिकारी वहाँ था। अखिलेश ने कहा कि यह सब तो सीपीसीबी करता है। इसे तो हाईकोर्ट..कुल मिलाकर दो जो गए, उनकी सिफारिश हुई। गंगा पर कोई बैठक नहीं हुई। वह बाहर तक छोड़ने आये थे। सब नाटक था।

इससे मेरे मन में एक बात तो साफ हुई कि धर्माचार्य, करा तो सब सकते हैं, किन्तु धर्माचार्यों का जोर दूसरी सिफारिशों पर रहता है। अखिलेश कह रहे थे कि कुम्भ में कितनी जगह चाहिए? बताइए, अभी फोन करता हूँ। मैं देख पा रहा था कि जोर इस पर था कि वासुदेवानंद और माधवाश्रम के शिविर बाहर हों, बाकी चतुष्पथ में हों। यही बात होती रही। जितना जोर इस पर था, गंगाजी पर नहीं।

 

अनुपयोगी रहा ट्रायल का गढ़


मुझे लगा कि मुझे और जोर देना पड़ेगा। मैं चाहता था कि स्वरूपानंद जी घोषणा कर दें कि यदि दिसम्बर तक पर्याप्त प्रवाह व गुणवत्ता न मिले, तो वह कुम्भ में नहीं जाएँगे। मैं यह भी चाहता था कि कार्तिक पूर्णिमा को गढ़मुक्तेश्वर के मेले में एक ट्रायल हो जाये। लक्सर नाला, सौलानी नदी, छुइया नाला, बगट नदी आदि का प्रदूषण आता है। हरिद्वार नहर, बिजनौर नहर आदि निकलती है। राजेन्द्र सिंह जी से भी चर्चा हुई। उनका भी शिविर लगना था, उन्होंने भी सिर्फ अधूरेपन से बात की। दूसरी बात शौच को लेकर थी।

आईआईटी, कानपुर ने गंगा सेवा अभियानम के लिये ग्रीन मोबाइल टॉयलेट डिजाइन किया था। सन्यास लेने से पहले मैने ‘गुरू गंगा एन्वायरोटेक ट्रस्ट’ बना लिया था। डिजाइन का खर्च, ट्रस्ट ने दिया। हम चाहते थे कि वह यदि गढ़ में सफल रहता है, तो कुम्भ में एक हजार शौचालय उतार सकेंगे। ट्रायल के लिये उसे राजेन्द्र सिंह जी की बैठक में रखा गया। वहाँ लोग कम थे; सो, उपयोग नहीं हुआ। सरकार ने भी कोई गौर नहीं किया, तो वह बात वहीं रह गई; जबकि ऐसे काम सरकार ही कर सकती है। मैंने सोचा कि यह संसद के बगैर नहीं हो सकता।

 

संसद को सुनाने की तैयारी


सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस चन्द्रशेखर, जस्टिस गिरधर मालवीय, ए. के. गुप्ता, एडवोकेट एम. सी. मेहता मिले। वैज्ञानिकों में परितोष त्यागी, प्रो. यू. के. चौधरी और मैं; हम यू.पी. टूरिज्म के होटल में रुके। हमने तीन दिन बैठकर..रात-दिन लगकर एक ड्रॉफ्ट बनाया।

परिप्रेक्ष्य यही था; क्योंकि जनवरी में कुम्भ शुरू होना था और सरकार व स्वरूपानंद जी पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उत्तर प्रदेश सरकार के कदम भी हिन्दू और गंगा विरोधी थे। क्या कुंभ का धर्म-आस्था से कोई मतलब नहीं? प्रवाह के बारे में कोई कदम नहीं; कोई मानक की बात नहीं; सिर्फ कहा कि प्रदूषण नियंत्रण करेंगे।...

 

गंगा तप का निर्णय


दिसम्बर, 2012 तक जो प्रयास था, मैं रचनात्मक मानता हूँ। मुझे नहीं लग रहा था कि आन्दोलन होगा। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी का पूरा समर्थन था। किन्तु स्वरूपानंद जी बिल्कुल अलग दिख रहे थे। कई बार अविमुक्तेश्वरानंद जी विवश दिखते थे। वह कहते थे कि स्वरूपानंद जी की बात सरकार सुनती है, हमारी नहीं। उसी पीरियड में चतुष्पथ छोड़ने की बात कहकर स्वरूपानंद जी इलाहाबाद से लौट गए थे। मैंने भी कहा कि गंगा को प्रवाह नहीं, गुणवत्ता नहीं, तो मैं भी कुम्भ में नहीं जाऊँगा।

अविमुक्तेश्वरानंद जी ने कहा - ‘नहीं, तुम्हें चलना है।’
मैंने कहा - ‘मैं अनशन करुँगा।’
गुरुजी ने कहा - ‘हम सन्यासी हैं। हम अभियान चला सकते हैं, आन्दोलन नहीं।’
उन्होंने तपस्या सुझाया। संस्कृत में बताया कि चाहे पार्वती का तप हो या अमरत्व के लिये रावण का, तप ही अन्तिम विकल्प है। उन्होंने इस तपस्या का स्वरूप भी सुझाया:

1. एक मास तक कुम्भ में रहते हुए फलाहार;
2. अगले एक मास तक मातृसदन-हरिद्वार में रहते हुए जलाहार;
3. तत्पश्चात होली से बनारस में जलत्याग।

तय हुआ कि 31 दिसम्बर तक न हुआ, तो तपस्या शुरू कर देंगे। तपस्या संकल्प की शुरुआत गंगासागर से करने की बात कही। इसके बारे में उन्होंने स्वरूपानंद जी से भी बात की। पाँच तपस्वी तय किये गए: मैं, अविमुक्तेश्वरानंद जी, राजेन्द्र सिंह, 25 वर्षीय ब्रह्मचारी कृष्णप्रियम और गंगा प्रेमी भिक्षु।

एक समय पर एक ही को तप पर बैठना था। तय हुआ कि एक तपस्वी के प्राण जाने पर दूसरे और दूसरे के प्राण जाने पर तीसरा तप पर बैठेगा।

 

आन्दोलित हुआ बनारस, दिल्ली लाये गए सानंद


मकर संक्रान्ति, 2012 में शुरू हुआ। प्रयाग और मातृसदन के तप समय में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं हुई। उत्तराखण्ड में छोटी-मोटी बातें होती रहीं, किन्तु बनारस में तो आन्दोलन हो गया। मेरी बॉडी में कीटोन बढ़ गया है; यह कहकर 12 मार्च, 2012 को डिवीजनल अस्पताल में ले गए। रात को बीएचयू अस्पताल ले गए। हवाई एम्बुलेंस से अगले दिन एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली) पहुँचा दिया।

संवाद जारी...

अगले सप्ताह दिनांक 13 मार्च, 2016 दिन रविवार को पढ़िए स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला का नौवाँ कथन।

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फोन : 9868793799

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