यद्यपि पिछले दशक में अतिसार एवं उदर-रोगों के कारण होने वाली मौतों में कमी हुई है, तथापि अनुमानतः 33 लाख बच्चों की अब भी इन रोगों के कारण मृत्यु हो जाती है (विश्व में प्रति दस सेकेंड में लगभग एक बच्चे की मृत्यु होती है) अध्ययनों के अनुसार सुरक्षित जल एवं आवश्यक स्वच्छता के द्वारा अतिसार एवं उदर रोगों में 25 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। जल संबंधी रोग मनुष्य की अस्वस्थता एवं मृत्यु का एक मात्र बड़ा कारण है। मुख्यतः संक्रमण एवं परजीवी रोग ही गरीबों को पीड़ित करते हैं। ये रोग मुख्यतः चार प्रकार के हैं-
1. फेको-ओरल संक्रमण:-
जो मुख्यतः अतिसार का कारण है और जिसमें हैजा, मोतीझरा और पेचिश सम्मिलित हैं। ये रोग मुख्यतः दूषित जल अथवा अस्वच्छता के कारण फैलते हैं। जल-आपूर्ति द्वारा स्वास्थ्य लाभ का 90 प्रतिशत इस समूह के प्रभाव के कारण हो सकता है।
2. त्वचा एवं नेत्र संक्रमण :-
चर्म एवं नेत्र संक्रमण रोगों का मुख्य कारण अस्वच्छता एवं प्रदूषित जल है। जैसे नेत्रों में रोहें रोग, जो कि अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। वह अस्वच्छता से ही संबंधित है।
3. अनेक कृमि जनक संक्रमण :-
विशेषकर शिस्टोसोमाएसिस (बिल्हार्जिया) जो कि मल द्वारा प्रदूषित एवं घोंघों द्वारा बाधित जल में पैदल चल कर जाने से हो जाते हैं।
4. जल में उत्पन्न होने वाले कीटों द्वारा संक्रमण :-
जैसे मच्छरों द्वारा फैलाए जाने वाले रोग।
सुरक्षित पेयजल के प्रावधान का संबंध परिमाण व गुणवत्ता दोनों से है। पानी के दूषित नहीं होने पर भी अत्यंत न्यून प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर, घरेलू जल-आपूर्ति को सुरक्षित नहीं बना सकता। अतिसार संबंधी रोगों में कमी पानी की गुणवत्ता के कारण नहीं वरन् इसकी उपलब्धता के कारण हुई।
पीने हेतु प्रयुक्त जल रोगाणु रहित होना चाहिए और उसमें स्वास्थ्य हेतु महत्वपूर्ण कार्बनिक तथा अकार्बनिक तत्व बहुत अधिक मात्रा में नहीं होने चाहिए। आर.जी.डी.डब्ल्यू. एम. (R.G.D.W.M.) द्वारा सुरक्षित पेयजल हेतु स्थापित मानदंड परिशिष्ट 3 की सारिणी 3.1 में दिए गए हैं।
1. मांग एवं पूर्ति
बढ़ती हुई जनसंख्या एवं शहरीकरण के साथ-साथ आने वाले वर्षों में पेयजल की मांग के निरंतर बढ़ते रहने का अनुमान है। राजस्थान सरकार समिति द्वारा बनाए गए अनुमान सारिणी 3.2 में दिए गए हैं।
सारिणी- 3.2 : राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की मांग
जिला | जनसंख्या वृद्धि दर (%) | आपूर्ति की दर लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन | जनसंख्या (ग्रामीण) –वर्ष |
|
| वार्षिक पेयजल की मांग |
|
|
|
| 1991 | 1996 | 2001 | 1996 | 2001 |
अजमेर | 24.78 | 40 | 1025632 | 1145682 | 1992629 | 16.727 | 29.092 |
अलवर | 26.74 | 40 | 1976293 | 2224888 | 4023393 | 32.483 | 58.742 |
बांसवाड़ा | 28.26 | 40 | 1066406 | 1207725 | 2250071 | 17.633 | 32.851 |
बाड़मेर | 26.49 | 70 | 1291056 | 1452022 | 2612845 | 37.099 | 66.758 |
भरतपुर | 24.78 | 40 | 1330781 | 4086548 | 2585482 | 21.704 | 37.748 |
भीलवाड़ा | 14.28 | 40 | 1281984 | 1370464 | 1913345 | 20.009 | 27.935 |
बीकानेर | 42.12 | 70 | 729998 | 870260 | 2095498 | 22.235 | 53.540 |
बूंदी | 25.29 | 40 | 636504 | 712458 | 1251844 | 10.402 | 18.277 |
चित्तौड़गढ़ | 17.05 | 40 | 1252563 | 1355144 | 2008694 | 19.785 | 29.327 |
चूरू | 31.43 | 70 | 1097172 | 1257830 | 2490911 | 32.183 | 63.643 |
धौलपुर | 25.15 | 40 | 620654 | 694328 | 1216584 | 10.137 | 17.762 |
डूंगरपूर | 26.93 | 40 | 810732 | 913397 | 1657945 | 13.336 | 24.206 |
गंगानगर | 28.48 | 70 | 2070665 | 2347078 | 4391536 | 59.968 | 112.204 |
जयपुर | 30.69 | 40 | 2855912 | 3264621 | 6371952 | 47.663 | 93.030 |
जैसलमेर | 38.43 | 70 | 290917 | 342282 | 771720 | 8.745 | 19.717 |
जालौर | 27.59 | 70 | 1059355 | 1196602 | 2200348 | 30.573 | 56.219 |
झालावाड़ | 16.23 | 40 | 806008 | 868957 | 1265593 | 12.687 | 18.478 |
झुन्झनू | 30.93 | 70 | 1257377 | 1438749 | 2822169 | 36.760 | 72.106 |
जोधपुर | 27.67 | 70 | 1388933 | 1569371 | 2890333 | 40.097 | 73.848 |
कोटा | 24.04 | 40 | 1290996 | 1437824 | 2463827 | 20.992 | 35.972 |
नागौर | 29.50 | 70 | 1802174 | 2050839 | 3913867 | 52.399 | 99.999 |
पाली | 11.86 | 70 | 1163085 | 1230124 | 16227931 | 31.430 | 41.594 |
सवाई माधोपुर | 25.73 | 40 | 1671972 | 1874772 | 3323118 | 27.372 | 48.518 |
सीकर | 32.51 | 70 | 1455393 | 1675346 | 3386306 | 42.805 | 86.520 |
सिरोही | 18.29 | 40 | 526447 | 572570 | 871362 | 8.360 | 12.722 |
टोंक | 22.63 | 40 | 784586 | 868838 | 1446874 | 12.685 | 21.124 |
उदयपुर | 19.65 | 40 | 2395282 | 2620071 | 4102936 | 38.253 | 59.903 |
कुल | 33938877 | 38048793 | 67949115 | 724.476 | 1311.835 |
सतही और भूजल दोनों ही पीने के काम आते हैं। भूजल अनेक दृष्टियों से श्रेष्ठ होता है क्योंकि रेतीली मिट्टी स्वयं ही छानने का एक प्रभावशाली माध्यम है। भूजल के प्रयोग के लाभ निम्नलिखित हैं-
1. इसके रोग उत्पादक जीवाणुओं रहित होने की संभावना होती है।
2. सामान्यतः इसको पीने व घरेलू कार्यों में उपयोग करने हेतु किसी की उपचार की आवश्कता नहीं पड़ती है।
3. शुष्क मौसम में भी इसकी आपूर्ति की संभावना रहती है।
इससे होने वाले प्रतिकूल प्रभाव है
1. इसमें खनिज पदार्थों जैसे कैल्शियम व मैग्नीशियम के लवणों का आधिक्य होता है, जो पानी को खारा बना देता है और वह पीने योग्य नहीं रहता।
2. जल के वितरण हेतु पंप अथवा किसी अन्य व्यवस्था की आवश्यकता होती है। आज के परिप्रेक्ष्य में भूजल पीने के पानी का मुख्य स्रोत है।
भूजल पर अत्यधिक दबाव है। जल स्तर तेजी से घट रहा है और इसकी गुणवत्ता भी कम होती जा रही है। समस्या को समझते हुए राजस्थान सरकार सतही जल परियोजनाओं को प्रोत्साहित कर रही है। (सारिणी 3.3)
सारिणी 3.3 : स्वीकृत की गई सतही जल स्रोत योजनाएं
क्र.सं. | योजनाएं | राशि (रु. करोड़) |
1. | जयपुर बीसलपुर योजना | 1100.00 |
2. | भरतपुर व धौलपुर के लिए चंबल से जलापूर्ति की योजना | 166.00 |
3. | राजीव गांधी लिफ्ट सप्लाई योजना- फेज 2 | 104.00 |
4. | जवाई जोधपुर पाइप लाइन योजना | 153.00 |
5. | नसीराबाद फ्लोराइड नियंत्रण एवं लवणीयता नियंत्रण योजना | 61.03 |
6. | जोधपुर की औग योजना | 45.70 |
7. | बीसलपुर की विजयनगर गुलाबपुरा जलापूर्ति योजना | 44.00 |
8. | पाली के लिए लवणता एवं फ्लोराइड नियंत्रण योजना | 31.33 |
9. | चूरू बिसाउ योजना | 109.05 |
कुल | 1824.61 |
2. सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था हेतु सरकार के प्रयास
भारत सरकार ने सुरक्षित पेयजल के प्रावधान को सुनिश्चित करने हेतु एक संगठन स्थापित किया है। वर्तमान में राजीव गांधी पेयजल मिशन के नाम से पहचानी जाने वाली यह मुख्य समिति है जो राजकीय निकायों द्वारा प्रयुक्त नीतियों का निर्धारण एवं उनके क्रियान्वन की रूप रेखा का निर्माण करती है। राजीव गांधी पेयजल मिशन द्वारा स्वीकृत रणनीति के मुख्य घटक है :-
1. सुरक्षित पेयजल हेतु मार्क II व मार्क III हैंडपंपों का प्रावधान।
2. पेयजल आपूर्ति हेतु नल-तंत्र स्थापित करना।
इन साधनों को स्थापित करने का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों तक पेयजल पहुंचाना है। इससे प्रशासनिक आँकड़ों में समस्याग्रस्त गाँवों की संख्या में तेजी से कमी आई है, फिर भी यह प्रयास अनेक समस्याओं से प्रभावित हैं। ये समस्याएं हैं:-
1. एक राजस्व गांव में अनेक बस्तियाँ अथवा ढ़ाणियाँ हो सकती हैं। मुख्य बस्ती अथवा गांव में सुरक्षित पेयजल का स्रोत उपलब्ध होने पर भी यह संभव है कि इन छोटी बस्तियों अथवा ढ़ाणियों में ऐसा एक भी स्रोत नहीं हो।
2. हैंडपंपों के यांत्रिक भागों की नियमित देखभाल की आवश्यकता है, जबकि स्थानीय मिस्त्रियों को प्रशिक्षित करने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं, तब भी यह समस्या बनी हुई है।
3. जैसे-जैसे भूजल स्तर गिरता जा रहा है, वैसे-वैसे हैंडपंप अप्रभावी होते जा रहे हैं। भूजल के अंधाधुंध दोहन से जलस्तर तेजी से गिरता जा रहा है।
4. लोहे, फ्लोराइड अथवा आर्सेनिक के आधिक्य के कारण पानी में रासायनिक प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है और वह पीने योग्य नहीं रहता।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति का वर्तमान स्तर
ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति के वर्तमान स्तर का आकलन सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग (पी.एच.ई.डी.) द्वारा उपलब्ध सन् 1999 के आंकड़ों के माध्यम से किया गया है।
(अ) जल आपूर्ति क्षेत्र
पी.एच.ई.डी. की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत दिसंबर 1999 तक जल आपूर्ति का लाभ प्राप्त होने वाले गाँवों की संख्या सारिणी 3.4 में दी गई है। कुल 37,889 गाँवों में से 23,143 में हैंडपंप हैं जो यह इंगित करता है कि राजस्थान में पेयजल का मुख्य स्रोत हैंडपंप हैं।
पी.एच.ई.डी. के अनुसार अधिकतर गांवों के किसी न किसी योजना के द्वारा लाभान्वित किया जा रहा है।
सारिणी – 3.4 : ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति
गाँवों/ढ़ाणियों की संख्या | 37998 |
योजनाओं द्वारा अभिग्रहित गांव | - |
पाईप एवं टैंक | 3192 |
हैंडपंप | 23143 |
क्षेत्रीय योजनाएं | 9077 |
परंपरागत या जवाहर जल योजनाएं | 1862 |
डिग्गी एवं अन्य | 282 |
कुल | 37556 |
(ब) समस्याग्रस्त आवासीय क्षेत्र
जिन गाँवों में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत पेयजल आपूर्ति हो रही है वहां भी अपर्याप्त आपूर्ति एवं जल की गुणवत्ता की समस्या हो सकती है। इसके अतिरिक्त गाँवों में स्थित छोटी बस्तियों व ढ़ाणियों की बात की जाए तो अनेक आबाद क्षेत्र समस्याग्रस्त है। निम्न सारिणी 3.5 में गाँवों के अतिरिक्त अन्य आवासीय क्षेत्र में जल- आपूर्ति व्यवस्था के स्तर का विवरण दिया गया है। इसके अनुसार सन् 2000 में लगभग 9 प्रतिशत बस्तियों में जल आपूर्ति व्यवस्था करना शेष है।
सारिणी 3.5 : ढ़ाणियों में जल-आपूर्ति व्यवस्था का स्तर
आवास | कुल | आंशिक/पूर्णतःया जल आपूर्ति वाले गांव | जल आपूर्ति हेतु शेष गांव |
मुख्य | 37889 | 37560 | 329 |
अन्य | 56057 | 48522 | 7535 |
कुल | 93946 | 86082 | 7864 |
4. पेयजल समस्याएं
गाँवों की जल आपूर्ति में दो प्रमुख समस्याएं अपर्याप्त मात्रा तथा रासायनिक प्रदूषण है। परिशिष्ट 4 सारिणी 3.6 में ग्रामीण आवासीय क्षेत्रों में आपूर्ति का स्तर प्रदर्शित किया गया है। परिशिष्ट 5 की सारिणी 3.7 में जल के रासायनिक प्रदूषण से ग्रस्त गाँवों का विवरण दिया गया है।
5. पेयजल व्यवस्था हेतु उत्तरदायी एजेंसियां
अनेक सार्वजनिक एजेंसियों को पेयजल व्यवस्था के विभिन्न पक्षों का कार्य सौंपा गया है। राज्य भूजल विभाग (एस.जी.डब्ल्यू.डी.) तथा जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग (पी.एच.ई.डी.) भूजल के प्रत्यक्ष प्रभारी हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड की भी राज्य में एक क्षेत्रीय इकाई है। जबकि केंद्रीय भूजल विभाग (सी.जी.डब्ल्यू.बी) तथा भूजल विभाग (जी.डब्ल्यू.डी.) मुख्यतः जलस्तर में परिवर्तन के प्रबोधन एवं आंकड़े एकत्रित करने से संबंधित हैं तथा कुछ हद तक जल की गुणवत्ता का भी ध्यान रखते हैं। पी.एच.ई.डी. एक शासकीय विभाग हैं। स्थानीय पंचायतें कभी-कभी हैंडपंपों के मरम्मत एवं देखभाल का कार्य कर लेती है तथा पारंपरिक जल स्रोत के प्रबंधन हेतु उत्तरदायी है। टैंकर, ट्रकों द्वारा ग्रामीण जल आपूर्ति की व्यवस्था जिलाधीश द्वारा की जाती है। ग्रीष्म ऋतु में जब जल के अन्य स्रोत अपर्याप्त रहते हैं तब यह व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। पी.एच.ई.डी. द्वारा अधिकांश निवेश पाइप तथा पंपों के द्वारा जल आपूर्ति हेतु किया जाता है। भूजल अर्थव्यवस्था में जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (जे.बी.बी.एन.एल.) पूर्व में जो राजस्थान स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (आर.एस.ई.बी.) के नाम से जाना जाता था, भूजल पंप करने में प्रयुक्त विद्युत की आपूर्ति सस्ती दर पर कर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि जो.वी.वी.एन.एल. भूजल के सामाजिक परिस्थिति पर अपनी विद्युत आपूर्ति एवं मूल्य नीति की भूमिका और प्रभाव से अनभिज्ञ हैं। इसके अतिरिक्त जे.वी.वी.एन.एल. तथा जी.डब्ल्यू.डी. के मध्य बहुत कम सामंजस्य हैं। जी.डब्ल्यू.डी. का सापेक्ष महत्व सीमित है तथा उसके कार्य-संचालन का गठन भी संकुचित है। वास्तव में, जल प्रबंधन एवं विकास की उभरती हुई समस्याओं का समाधान प्रभावशाली ढंग से करने हेतु वांछित ससांधन एवं सामर्थ्य किसी भी एजेंसी के पास नहीं है।
सिंचाई विभाग सतही जल का प्रत्यक्ष प्रभारी है। यह विभाग सतही जल का आवंटन एवं वितरण करता है। मानसून के समाप्त हो जाने पर विभाग विभिन्न भागों में वृष्टिपात का आंकलन करता है और विभिन्न कार्यों जैसे पीने एवं सिंचाई हेतु जल आवंटित करता है। सभी बांध व नहरे सिंचाई विभाग के अधीन है। इसी विभाग द्वारा सतही जल के उपयोग, आवंटन तथा उपलब्धता के आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रादेशिक जल नीति भी सिंचाई विभाग द्वारा प्रतिपादित की गई है। वर्षा के परिमाण विषयक आँकड़े, मौसम विभाग द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। कृषि विभाग राज्य में कृषि संबंधी गतिविधियों का ध्यान रखता है। इस विभाग में जल संरक्षण की अनेक योजनाओं ड्रीप (बूंद-बूंद) तथा स्प्रिंकलर (फव्वारे) द्वारा सिंचाई को प्रोत्साहित किया है। तथा इन योजनाओं पर आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है।
पेयजल प्रबंधन में कार्यरत मुख्य संस्थाओं एवं उनकी भूमिका का विवरण निम्न सारिणी 3.8 में दिया गया है।
सारिणी 3.8 पेयजल प्रबंधन हेतु उत्तरदायी सार्वजनिक अभिकरण (एजेंसी)
अभिकरण | भूमिका |
सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग | पेयजल व्यवस्था हेतु मुख्य रूप से उत्तरदायी विभाग। पेयजल योजनाओं का निर्माण करने एवं उनके अनुरक्षण हेतु कार्यकारी विभाग |
सिंचाई विभाग | सतही जल हेतु उत्तरदायी विभाग। संपूर्ण सतही जल आवंटन एवं वितरण सिंचाई विभाग द्वारा किया जाता है। |
पंचायत समितियां | हैंडपंपों का अनुरक्षण (रखरखाव) का उत्तरदायित्व। यह दायित्व संपूर्ण ग्रीष्म ऋतु में पी.एच.ई.डी. को स्थानान्तरित कर दिया जाता है। |
जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड | पेयजल एवं सिंचाई में प्रयुक्त जल को पंप करने हेतु विद्युत ऊर्जा उपलब्ध कराता है। |
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग | राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों हेतु जल प्रबंधन गतिविधियों को संचालित करता है। |