ग्रेफीन कार्बन का एक द्वि-आयामी अपरूप है जिसकी खोज सन् 2004 में हुई थी। ग्रेफीन एक-परमाणु मोटाई की, द्वि-आयामी, विस्तृत, कार्बन परमाणुओं की समतल शीट होती है। ग्रेफीन कार्बन परमाणुओं की समतल, षट्भुजाकार संरचनाएं होती हैं जिनको ऐसा माना जा सकता है कि जैसे त्रि-आयामी ग्रेफाइट क्रिस्टल की एकल परत को उतार लिया गया हो। ग्रेफीन की यह एकल परत संरचना, जो मधुमक्खी के छत्ते जैसी दिखाई पड़ती है, सभी कार्बन-आधारित प्रणालियों का आधार है। हमारी पेंसिल में लगा ग्रेफाइट महज ग्रेफीन की एक के ऊपर एक रखी परतों का ढेर है कार्बन नैनोट्यूब ग्रेफीन की चादरों को लपेट कर बनाई जाती हैं तथा फूलेरिन अणु ग्रेफीन को मोड़ कर बनाए गए नैनोमीटर साइज के गोले हैं।
अपने असामान्य गुणों के कारण ग्रेफीन अनेक क्षेत्रों में विशेषकर इलेक्ट्रॉनिकी में, उपयोग में लाया जा रहा है, जहां इसकी असामान्य रूप से उच्च वैद्युत चालकता बहुत लाभकारी है। अब अन्वेषकों ने इस अद्भुत पदार्थ का एक और उपयोग ढूंढ़ निकाला है। दक्षिण कोरिया में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के पोहांग विश्वविद्यालय के एक वैज्ञानिक दल ने आरजीओ यानी अवकृत ग्रेफीन ऑक्साइड एवं मैग्नेटाइट से बने एक संश्लिष्ट पदार्थ का उपयोग पेय जल में से आर्सेनिक को हटाने में किया है (एसीएस नैनो, 16, जून 2010/do2:10.1021/nn/008897)।
ग्रेफीन कार्बन परमाणुओं की केवल एक-परमाणु मोटाई की चादर होती है जो ऑक्साइड के रूप में भी पाई जाती है। अवकृत ग्रेफीन ऑक्साइड इस पदार्थ की एक ऐसी रासायनिक अवस्था है जिसमें इसने इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लिए होते हैं। अन्वेषकों ने आर्सेनिक युक्त जल में एक मैग्नाइट – आरजीओ संश्लिष्ट छितराया। आरजीओ संश्लिष्ट ने जल से आर्सेनिक को अवशोषित कर लिया और फिर इसको जल से स्थायी चुबंकों का उपयोग करके हटा लिया गया।
आर्सेनिक सर्वाधिक कैन्सरकारी ज्ञात तत्वों में से एक है। एक अरब भाग जल में इसके 10 भाग से अधिक विद्यमान हों तो जल विषैला हो जाता है और भारत के कुछ राज्यों में आर्सेनिक संदूषण काफी व्यापक है। इस तत्त्व से संदूषित पेय जल को पीने से असाध्य रोग और मृत्यु तक हो सकती है। जल में आर्सेनिक मुख्यतः उन आर्सेनिक युक्त प्राकृतिक चट्टानों में से आता है। लेकिन, यह उन क्षेत्रों में भी हो सकता है जहां आर्सेनिक का खनन किया जा रहा हो। वैज्ञानिकों को संदेह है कि बदलती हुई विधियां जैसे कि सिंचाई के लिए नदियों और तालाबों के भूपृष्ठीय जल के स्थान पर भूमिगत जल का अधिक उपयोग भी इसका कारण हो सकता है।
पेयजल से आर्सेनिक को सक्रियित कार्बन का उपयोग करके अथवा मैग्नेटाइट (Fe3O4) नैनोक्रिस्टलों जैसे आयरन ऑक्साइड खनिजों द्वारा अवक्षेपित करके दूर किया जा सकता है। परंतु इस प्रकार के कणों का उपयोग नदियों अथवा अन्य जल प्रवाहों के लिए इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि इनके कण बहुत छोटे होते हैं और इसलिए भी क्योंकि वायु के संपर्क में मैग्नेटाइट तेजी से ऑक्सीकृत हो जाता है। अन्वेषकों ने अब इस समस्या को, आयरन ऑक्साइडों का कार्बन नैनोट्यूबों के साथ संयोजन करके तथा ग्रेफीन ऑक्साईड जैसे ग्रेफीन आधारित पदार्थों का उपयोग करके, हल कर लिया है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के पोहांग विश्वविद्यालय के अन्वेषकों ने अवकृत ग्रेफीन ऑक्साइड आधारित एक नए प्रकार का मैग्नेटाइट सम्मिश्र तैयार किया है। यह संकर पदार्थ जो कमरे के ताप पर परम अनुचुंबकीय होता है, जल के नमूने से 99.9 फीसदी आर्सेनिक को दूर कर सकता है और इसकी मात्रा को एक अरब भाग में एक भाग से कम से स्तर तक ला सकता है। केवल मैग्नेटाइट की तुलना में यह नया सम्मिश्र आर्सेनिक हटाने के लिए बेहतर है क्योंकि मैग्नेटाइट कणों के बीच-बीच में ग्रेफीन की परतों की उपस्थिति से आर्सेनिक अवशोषक स्थलों की संख्या बढ़ जाती है। अवकृत ग्रेफीन ऑक्साइड के कारण मैग्नेटाइट भी अधिक स्थाई हो जाता है जिससे यह सतत प्रवाह प्रणालियों में भी अधिक लंबे समय के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।