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हिंडन के इस मामले में भी ट्रिब्यूनल ने 16 अप्रैल, 2012 को फिलहाल मिट्टी भराव पर रोक लगा दी है। अभी डाली जा चुकी मिट्टी..बनाई जा चुकी भरवा सड़क को हटाकर खंभों पर निर्माण का निर्णय कराना बाकी है। कहना न होगा कि लंबी लड़ाई के बाद मिले इस स्थगनादेश ने हारी बाजी पलट दी है। इससे हिंडन की निर्मलता और अविरलता की शांत पड़ चुकी लड़ाई में एक बार फिर नई जान फूंक दी है। हिंडन के दुष्प्रभावित कई गांव अपने-अपने स्तर पर यदाकदा गुहार लगाने का काम तो 90 के दशक से ही करते रहे हैं।
हिंडन की जय! - उसकी गाड़ी के बोर्ड पर कुछ कलर स्कैच हैं। एक डिब्बी में घुली हुई नील और कूची। जहां उसे अनुकूलता दिखती है, वह गाड़ी रोक यही तीन शब्द टांक देता है। नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के नोटिस बोर्ड पर पन्ना टांकते मैने पकड़ लिया। उसका नाम विक्रांत है। विक्रांत शर्मा-एडवोकेट! सुंदर सजीला नौजवान। कम उम्र में भी अनुभव की सफेदी उसके बालों पर दिखती है। विक्रांत की इसी प्रतिबद्धता ने हिंडन की एक हारी बाजी को जीत के रास्ते पर दो कदम आगे बढ़ा दिया है। हिंडन उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी में शुमार है। सहारनपुर की कालीवाला पहाड़ियों से चलकर ग्रेटर नोएडा के तिलवारा गांव के दक्षिण में यमुना से मिलने वाली इस धारा की लंबाई 606 किमी है। इस दौरान इसमें जल से ज्यादा मिलने वाले नाले और कृष्णी-काली- नागदेवी, धमोला और पांवधोई नदियों के जरिए आ रहा मल ही दिखाई पड़ता है। चीनी, शराब, पेपर के अलावा कई अन्य खतरनाक उद्योग इसे पहले से ही जहरीला बना चुके हैं। गाजियाबाद जिले के मोहननगर से मेरठ के लिए बना बाईपास नदी के फैलाव को रोक चुका है। बहुत संभव है कि यह नदी की भूमि पर अतिक्रमण कर ही बनाया गया हो। अब हिंडन पर आया ताजा संकट इसके प्रवाह को बाधित करने का है।
सरकारी वकील के मुताबिक उक्त परियोजना का निर्माण 2010 में ही शुरू कर दिया गया था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों के मुताबिक उसके समक्ष मामला निर्माण शुरू के एक साल के भीतर प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए था। किंतु ट्रिब्यूनल के समक्ष यह मामला (संख्या. ओ ए - 37 / 2011) 16 मार्च, 2012 को आया। बावजूद इसके विलम्ब के जायज कारणों को देखते हुए ग्रीन ट्रिब्यूनल के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस ए.एस. नायडू और विशेषज्ञ सदस्य प्रो. आर. नागेन्द्रन ने मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार किया। विक्रांत द्वारा दो वर्षों से किए जा रहे संघर्ष को ट्रिब्यूनल ने एक तरह से मान्यता ही दी है।

दरअसल हिंडन के दुष्प्रभावित कई गांव अपने-अपने स्तर पर यदाकदा गुहार लगाने का काम तो 90 के दशक से ही करते रहे हैं। किंतु 2004 में पहली बार जलपुरुष राजेंद्र सिंह की प्रेरणा से स्थानीय कार्यकर्ताओं की पहल पर हिंडन यात्रा के माध्यम से समग्र प्रयास शुरू किया था। एडवोकेट विक्रांत उसी यात्रा की एक खोज थे। 2005 में यहां डॉ. कृष्णपाल सिंह के नेतृत्व में हिंडन जलबिरादरी का गठन कर बाकायदा हिंडन प्रदूषण मुक्ति अभियान की शुरूआत की गई। कार्यकर्ताओं को बायो मॉनीटीरिंग के अलावा प्रदूषण जांच व सर्वेक्षण के लिए प्रो. सिद्दिकी और लोकविज्ञान संस्थान, देहरादून द्वारा प्रशिक्षित भी किया गया। प्रो. एस प्रकाश, एम. एम. एच. कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. बी.बी. सिंह, पूर्व डीएसपी डॉ. सत्यदेव शर्मा, गांधी शांति प्रतिष्ठान-नई दिल्ली के रमेश शर्मा समेत कई स्थानीय गणमान्यों ने अहम् भूमिका भी निभाई थी। काली-कृष्णी नदी के आंदोलन इसी अभियान की देन हैं। ननौता (सहारनपुर) के गांव भनेड़ा खेमचंद को जहरीले पानी से मुक्ति का संघर्ष करने की शक्ति व सहयोग इसी अभियान का हिस्सा था। इसी अभियान ने उसे कृष्णी के जहर से राहत दिलाई। उस अभियान के बाद सरकारें चेती भीं। किंतु एक समय के बाद वह अभियान परदे के पीछे चला गया और उसमें जुड़े कार्यकर्ता भी। किंतु विक्रांत के मन में हिंडन की कसक हमेशा ही जिंदा रही। इसी का नतीजा है कि वह आज भी हिंडन के बेटा है। मां हरनन्दी के अस्तित्व के लिए पागलपन की हद तक प्रतिबद्ध संतान!! दुआ कीजिए कि विक्रांत की प्रतिबद्धता विजयी हो और करैहड़ावासी किसी बाढ़ में डूबने से बच जायें; साथ ही हिंडन की सांस भी।
हिंडन नदी पर बन रहा तटबंध, जिससे उसके मूल प्रवाह में प्रभाव हो रहा था






