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चंबल घाटी से जुड़ी यमुना नदी की घाटियां अपने आप में बहुत कुछ समेंटे हुए हैं जो हमारे लिए बेहद अहम माने जाते हैं ऐसे में अगर कोई कहे कि कश्मीर जैसे गुलमर्ग और सोनमर्ग जैसे चारागाह यमुना नदी के किनारे देखने को मिल जाएंगे तो इसे बहुत बड़ी बात मानी ही जाएगी।
कश्मीर में बर्फ से लदी पहाड़ियों के बीच हरे-भरे चारागाह देख मन बाग-बाग हो उठता है। जिन्होंने सोनमर्ग व गुलमर्ग के चारागाह केवल तस्वीरों में देखे वे यमुना के बीहड़ में बने चारागाह देखने आ सकते हैं। यह चारागाह सोनमर्ग व गुलमर्ग की तरह विशाल भूभाग में तो नहीं फैले हैं पर ये किसी से कम नहीं। यहां जगह-जगह फूटे जलस्रोत और हरी घास किसी मानव की देन नहीं बल्कि प्रकृति का अनमोल खजाना है। इसको पर्यटन केंद्र की शक्ल दी जा सकती है, कारण इस चारागाह से महज एक किमी. पर बसा आसई गांव ऐतिहासिक स्थल है, जहां 10वीं व 11वीं शताब्दी के दौरान मूर्तिकला के बड़े केंद्र के रूप में विख्यात रहा। यहां प्रतिमाओं के अवशेष आज भी घर-घर में सुरक्षित हैं। जिस बीहड़ में पानी की तलाश में ग्रामीण दूर-दूर तक भटकते हैं उसी बीहड़ में यहां फूटे जलस्रोतों से निकलते पानी का बंध बना उसे तालाब की शक्ल किसी और ने नहीं ग्रामीणों ने दी है।

जिला मनरेगा निगरानी समिति के अध्यक्ष आशुतोष दीक्षित बताते हैं कि आसई प्रागैतिहासिक स्थल है। इस क्षेत्र को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।
गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग रामदीन सिंह बताते हैं कि उसके बाबा और पिता इन जलस्रोतों व हरे-भरे मैदानों के बारे में बताते थे। यहां पर मूर्तिकला का बड़ा केंद्र रहा है। इसके अवशेष आज भी आसई में खंडित प्रतिमाओं के जरिए मिलते हैं। चारागाह की जो घास है वह मखमली के साथ दूब मिली हुई है। चारागाह में घास के अलावा कोई खरपतवार नहीं होता। यमुना के बीहड़ में इस चारागाह को बीहड़ के पर्यटन के रूप में विकासित किया जा सकता है।

