Source
जनसत्ता, 13 अप्रैल 2012
इटावा, 12 अप्रैल। इटावा में सारस पक्षियों पर संकट मंडरा रहा है। यहां खासी संख्या में पाए जाने वाले सारस पर बिजली के तारों से खतरा है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगी विद्युत लाइन इनके लिए काल बन गई है। करीब तीन महीने के दौरान एक दर्जन से अधिक सारसों की मौत हो चुकी है। जिससे ग्रामीण चिंतित है। करंट लगने से दो सारस की मौत हो जाने के बाद वन विभाग ने उनका पोस्टमार्टम कराया। सारस की मौत की घटनाएं इटावा जिले के भरथना, उसराहार और सिविल लाइन इलाकों में घटी है। इटावा जिले में वैसे तो सारस हमेशा ही खासी संख्या में पाए जाते हैं। लेकिन सारसों की मौत ने ग्रामीणों की चिंता बढ़ा दी है।
जब कभी भी देहात में सारस की मौत करंट लगने से होती है, तो वन विभाग के कर्मी उसे उटा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देते हैं। लेकिन कभी-कभी वन कर्मियों के मौके पर पहुंचने से पहले मरे हुए सारसों को कुत्ते खा जाते हैं। वन्य जीवों के हितों में काम कर रही संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि अमूमन भ्रमण के दौरान इस तरह की खबरें मिलती रहती हैं कि बिजली के तारों में फंस कर सारस पक्षी की मौत हो गई है। जब इस तरह के मामले के सामने आते हैं, तो जाहिर है तकलीफ होती है। लेकिन इस संकट से उबरने के लिए कोई इंतजाम नहीं होते हैं जिससे सारसों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सके।
लोगों का मत है कि सारस के झुंड जब पानी की तलाश में नीचे उतरते हैं, तो आसपास बिजली के तारों की चपेट में आने से मौत के मुंह में समा जाते हैं। ऐसे में इन सारसों को बचाने का कोई उपाय समझ में नहीं आता है। इसी वजह से महीने में दो तीन सारस हर माह मरते जाते हैं। पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. ए.के. सक्सेना का कहना है कि जब कभी भी मरे हुए सारस का परीक्षण करने का मौका मिला है, तो देखा गया है कि सारस के अंदरुनी अंग करंट लगने से बुरी तरह जल गए हैं। वन क्षेत्राधिकारी वीके सिंह का कहना है कि वैसे तो पूरे इलाके में वन विभाग की ओर से सरकारी और गैर सरकारी लोगों की टीम है। लेकिन पक्षियों को बिजली के तारों की ओर जाने से रोक पानी संभव नहीं।
जब कभी भी देहात में सारस की मौत करंट लगने से होती है, तो वन विभाग के कर्मी उसे उटा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देते हैं। लेकिन कभी-कभी वन कर्मियों के मौके पर पहुंचने से पहले मरे हुए सारसों को कुत्ते खा जाते हैं। वन्य जीवों के हितों में काम कर रही संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि अमूमन भ्रमण के दौरान इस तरह की खबरें मिलती रहती हैं कि बिजली के तारों में फंस कर सारस पक्षी की मौत हो गई है। जब इस तरह के मामले के सामने आते हैं, तो जाहिर है तकलीफ होती है। लेकिन इस संकट से उबरने के लिए कोई इंतजाम नहीं होते हैं जिससे सारसों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सके।
लोगों का मत है कि सारस के झुंड जब पानी की तलाश में नीचे उतरते हैं, तो आसपास बिजली के तारों की चपेट में आने से मौत के मुंह में समा जाते हैं। ऐसे में इन सारसों को बचाने का कोई उपाय समझ में नहीं आता है। इसी वजह से महीने में दो तीन सारस हर माह मरते जाते हैं। पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. ए.के. सक्सेना का कहना है कि जब कभी भी मरे हुए सारस का परीक्षण करने का मौका मिला है, तो देखा गया है कि सारस के अंदरुनी अंग करंट लगने से बुरी तरह जल गए हैं। वन क्षेत्राधिकारी वीके सिंह का कहना है कि वैसे तो पूरे इलाके में वन विभाग की ओर से सरकारी और गैर सरकारी लोगों की टीम है। लेकिन पक्षियों को बिजली के तारों की ओर जाने से रोक पानी संभव नहीं।