11 अक्टूबर से हिमालय नीति राष्ट्रीय अभियान
हिमालय विकास की अलग नीति को लेकर लंबे समय से मांग उठती रही है। उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष श्री सुरेश भाई की पहल पर इस बाबत लोगों से व्यापक संवाद कर वर्ष 2011-12 में ही हिमालयी लोकनीति का दस्तावेज तैयार कर लिया था। शुक्र है कि अब यह बहस परवान चढने लगी है कि हिमालयी राज्यों के विकास के मानक और मॉडल, मैदानी इलाकों से भिन्न होना चाहिए।
दरअसल, पिछले 30-35 वर्षों में हिमालय की भूगर्भिक संरचना के साथ जिस तरह का अविवेकपूर्ण, आक्रामक विकास योजनाओं का संचालन किया गया है, उसने हिमालय की कमर तोड़ दी है। बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, जलवायु परिवर्तन की घटनाएं मानवजनित विकास के कारण हैं। पर्यटन और पर्यावरण जितने बड़े शब्द है, उसकी गंभीरता को भुला देने वाली घटनाओं ने ही हिमालय में आपदा की स्थिति पैदा की है।
उत्तराखंड में 16-17 जून 2013 की आपदा में एक साथ दस हजार से अधिक लोगों का मरना मानवजनित विकास के कारण है। इसी तरह 6-7 सितम्बर, 2014 को जम्मू-कश्मीर में आई प्रलयंकारी आपदा के बारे में कहा जा रहा हैं। इस प्रकार की घटनाएं पिछले 20 वर्षों में लगभग 24 बार हो चुकी है। भूकंप भी लगातार आ ही रहे हैं। हिमालयी समझ की अनदेखी महंगी पड़ रही है। इन आपदाओं ने हिमालयी विकास नीति की मांग की सार्थकता स्वतः सिद्ध कर दी है।
हिमालय के साथी चाहते हैं कि नई सरकार के सामने हिमालय नीति के विषय को मजबूती से रखा जाए। हिमालय सेवा संघ, सर्व सेवा संघ और उत्तराखंड मंडल ने अपनी मांग को आवाज देने के लिए गंगोत्री से गंगा सागर तक निकलने का तय कर लिया है।
यह राष्ट्रीय हिमालय नीति अभियान ऐसे मौके पर शुरू की जा रही हैं, जब ’नमामि गंगे’ सरकार की प्राथमिकता पर है। गंगा को बचाना है, तो वह हिमालय को बचाए बगैर नहीं हो सकता। हिमालय गंगा का मायका है। अतः गंगा और उसके मायके को समझना और समझाना भी इस अभियान का एक लक्ष्य रहेगा।
गढ़वाल विश्वविद्यालय, कुमाऊं विश्वविद्यालय, वन अनुसंधान संस्थान देहरादून, वॉडिया भूगर्भ विज्ञान संस्थान, आईआईटी रूड़की, गोविन्द बल्लभ पंत एवं हिमालय पर्यावरण विकास संस्थान ने हिमालय को समझने की जो कोशिश की है, उसे लोगों तक ले जाना जरूरी है।
11 अक्टूबर, 2014 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती है। यह अभियान, इस शुभ दिन को गंगोत्री से शुरु होकर उत्तरकाशी, नई टिहरी, श्रीनगर देवप्रयाग, ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार, गढ़ मुक्तेश्वर, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, इलाहाबाद, मिर्जापुर, वाराणसी, पटना, गाजीपुर, बोधगया, बक्सर, सोनपुर गांव, नालन्दा, राजगृह, मोकमा घाट, भागलपुर, गौर, मुर्शिदाबाद, नॉडिया, कृष्णा नगर, हुगली, कोलकोता, सुन्दरबन, (गंगा सागर) तक जाएगा।
इस अभियान को तीन चरणों में किया जा रहा है। प्रथम चरण- गंगोत्री से हरिद्धार, दूसरा चरण- गढ़मुक्तेश्वर से इलाहाबाद तथा तीसरा चरण- वाराणसी से गंगा सागर तक होगा।
विवरण, सहयोग व संपर्क के लिए संलग्नक देखें।
प्रथम चरण कार्यक्रम
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क्र.सं.
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स्थान
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दिनांक
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01
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गंगोत्री
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11 अक्टूबर, 2014
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02
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उत्तरकाशी
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12 अक्टूबर, 2014
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03
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नई टिहरी
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19 अक्टूबर, 2014
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04
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श्रीनगर
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20 अक्टूबर, 2014
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05
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देवप्रयाग
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21 अक्टूबर, 2014
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06
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ऋषिकेश
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21 अक्टूबर, 2014
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07
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हरिद्वार
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22 अक्टूबर, 2014
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नोट- द्वितीय एवं तृतीय कार्यक्रम की तिथि प्रथम चरण की समाप्ति के बाद दी जाएगी।
(अरुण तिवारी 9868793799, 011-22043335)
कार्यक्रम का पूरा विवरण देखने के लिए अटैचमेंट देखें।