गंगा के संरक्षण को लेकर केन्द्र सरकार की नीति और प्रधानमंत्री के रवैये से नाराज चल रहे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन आज तीसरे दिन भी जारी है। स्वामी जी ने 22 जून को हरिद्वार के मातृसदन में आमरण अनशन की शुरुआत की थी। उन्होंने गंगा के पुनरुद्धार के लिये अपने प्राण की आहूति देने का संकल्प भी लिया है।
अनशन के तीसरे दिन में प्रवेश कर जाने के बाद भी अभी तक स्थानीय प्रशासन या केन्द्र सरकार की तरफ से किसी ने स्वामी जी से सम्पर्क नहीं किया है। मातृ सदन से जुड़े स्वामी दयानन्द जी ने बताया कि अनशन के शुरू होने से अब तक प्रशासन की तरफ से अब तक किसी ने कोई सम्पर्क नहीं किया है।
गौरतलब है कि गंगा में पानी की लगातार हो रही कमी और नदी के पानी में बढ़ रहे प्रदूषण पर ध्यान आकर्षित करते हुए स्वामी जी ने प्रधानमंत्री को 24 फरवरी, 2018 को उत्तरकाशी से खुला पत्र लिखा था। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने प्रधानमंत्री को गंगा और उसकी सहायक नदियों पर प्रस्तावित सभी पनबिजली परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने की माँग की थी और ऐसा न किये जाने की परिस्थिति में संसद में चर्चा कराने और मत विभाजन के आधार पर निर्णय लेने की बात भी कही थी।
इस पत्र में उन्होंने अलकनंदा पर प्रस्तावित विष्णुगढ़-पीपलकोठी, मन्दाकिनी पर प्रस्तावित फाटा व्यूंग और सिगोली-भटवारी जलविद्युत परियोजनाओं का विशेष तौर पर जिक्र किया था। इसके अलावा उन्होंने न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय समिति द्वारा प्रस्तावित ‘गंगा संरक्षण विधेयक’ को संसद द्वारा नहीं पास किये जाने पर भी उन्होंने पत्र में अपनी नाराजगी जाहिर की थी और ‘गंगा भक्त परिषद’ के गठन की भी माँग उठाया था। लेकिन इस पत्र के लिखे जाने के 105 दिन गुजर जाने के बाद भी जब प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय की तरफ से जब इस सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं लिया गया तो स्वामी जी ने जून 13 को भी उन्हें एक और पत्र लिखा। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने अपने द्वारा उठाई गयी माँगों के न पूरा होने पर 22 जून से आमरण अनशन कर गंगा नदी के लिये अपना शरीर त्याग देने का संकल्प लिया। इस पत्र में भी उन्होंने ऊपर वर्णित माँगों के साथ गंगा नदी और खासकर संगम क्षेत्र में वन कटान और खनन पर पूर्ण प्रतिबन्ध की माँग भी उठाया है।
स्वामी जी के अनशन का समर्थन ‘आईआईटीयन्स फॉर होली गंगा’ नामक संस्था ने भी किया है। आईआईटीयन्स द्वारा बनाई गयी इस संस्था में पूर्ववर्ती छात्रों के साथ वहाँ के शिक्षक और छात्र शामिल हैं। इन्होंने भी केन्द्र सरकार से गंगा पर चल रही सभी जलविद्युत परियोजनाओं को बन्द करने के साथ ही आईआईटी कंसोर्टियम द्वारा की गयी सिफारशों को भी लागू करने की माँग उठाई है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में देश के सात आईआईटी से चयनित लोगों का एक कंसोर्टियम बनाया था जिसका उद्देश्य गंगा नदी बेसिन के लिए पर्यावरण प्रबन्ध योजना का निर्माण करना था। लेकिन कंसोर्टियम द्वारा दिए गए सुझावों को सरकार ने अभी तक लागू नहीं किया है। इन सुझावों में सबसे अधिक बल गोमुख से ऋषिकेश तक गंगा नदी के प्रवाह को सुनिश्चित करने पर दिया गया था।
86 वर्षीय स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद (जी डी अग्रवाल) आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर रह चुके हैं। इसके अलावा ये राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव भी रह चुके हैं। ये हमेशा गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण और पानी की कमी से सम्बन्धित मुद्दे उठाते रहे हैं। इसके पूर्व भी इन्होंने गंगा नदी पर बाँध बनाये जाने के विरोध में 2012 में आमरण अनशन किया था। गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिलाने में भी इन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन्हें गंगा पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।
स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र को पढ़ने के लिये अटैचमेंट देखें।
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