अन्ना हजारे आज ग्राम विकास के आदर्श पुरूष है। देश के समाजसेवियों एवं प्रत्येक नौजवान के लिए के लिए भी प्रेरणा के स्रोत हैं, जो ग्राम विकास हेतु उन्मुख है एवं अपने गांव का विकास चाहते है। अन्ना हजारे जी का जीवन समाज सेवा में समर्पित है। एक जवानी में देश के सीमा पर अपनी सेवा देने के बाद अपने गांव रालेगण सिद्धि में उन्होंने विकास की जो धारा प्रवाहित की है। वह संपूर्ण देशवासियों के लिए अनुकरणीय है।
(नशबंदी, नशाबंदी, चरायबंदी, कुल्हाड़ीबंदी एवं श्रमदान) जिसने समूचे गांव एकसुत्र मे पिरोते हुए गांव के संपूर्ण विकास में बेहतरणीय योगदान दिया । 1. नशबंदी- अन्ना जी ने बढ़ती आबादी और उनसे जनित समस्याओं के बारे में लोगों को आगाह किया एवं नशबंदी के महत्ता की जानकारी प्रसारित कर जनसंख्या को नियंत्रित करने का सफल प्रयास किया।
2. नशाबंदी- अन्ना जी के गांव में पहले नशाखोरी का बड़ा प्रचलन था नशे में कमाई का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीणों का खर्च हो जाता था। लोग महाजनों के चंगुल में थे और कर्जा लेकर दारू पीते थे और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था दारू की अनेक भट्टियां गांव में थी उनको बंद कराया। आज की तारीख में वहां नशाखोरी नहीं है।
3. चरायबंदी- लगातार चरायबंदी के कारण जमीनें बंजर हुई जा रही थी। बढ़ती जनसंख्या के लिए कृषियोग्य जमीन को बढ़ाने हेतु यह आवश्यक था कि गाय, बैलों, बकरियों को बांधकर बाड़े में चारा खिलाया जाए। हरे चारे का उत्पादन किया जाए। इन सारी जरूरतों को देखते हुए उन्होंने गांव के लोगों को संगठित कर चरायबंदी का नियम गांव में लागु करवाया।
4. कुल्हाड़ीबंदी- पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित करते है धरती हरी-भरी दिखती है। हमारी रोजमर्रा के विभिन्न जरूरतों को पुरा करती है। अन्ना जी ने संपूर्ण गांव के लोगों के साथ मिलकर पेड़ों के महत्व के बारे में जनसाधारण को अवगत कराया एवं हर आदमी पेड़ लगाए इस बात पर जोर दिया, पेड़ों की कटाई न हो लोग उनकी रक्षा करें। परिणामतः गांव के लोगों में पर्यावरण के प्रति सचेतना का जागरण हुआ। आज पुरा गांव हरे-भरे वृक्षों से ढंका है।
5. श्रमदान- अन्ना जी एक महान सामाजिक उत्प्रेरक है उन्होंने श्रमदान के महत्व के बारे लोगों को बताया एवं उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर वर्षाजल को संरक्षित करने पर जोर दिया। बेकार बहने वाले जल को भंडारित कर गावं के जलस्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिसके परिणामस्वरूप गांव के लोगों द्वारा अनेक तालाब, पोखरों का निर्माण श्रमदान के द्वारा किया गया। जिसके परिणामतः गांव में खेती का विकास हुआ एवं जहां एक फसल के पानी हेतु लोग तरसते थे वहां आज लोग सालों भर खेतीबाड़ी करते है। गांव के दलितों के खेतो में गांव के अगड़े वर्ग के लोगों ने दो सालों तक लगातार हल जोतकर कर्जा चुकाने में मदद की। श्रमदान की नीति से गांव में जातिगत विषमता को दूर कर एकता और भाईचारा स्थापित करने का सफल प्रयास किया गया है।
हमारी प्राचीन सभ्यता का विकास भी नदी घाटियों में हुआ था इनके साक्ष्य उपलब्घ है अधिकतर गांवों का निवास स्थल जल स्रोतों के आसपास था हमारे देश के अनेक शहर इसके उदाहरण है, जो नदियों के किनारे पर बसे हुए हैं। कालान्तर में शहरीकरण एवं अधिक विकास की लालसा ने जलसंग्रहण के भाव को ताक पर रखकर अत्यधिक अवशोषित कर दोहन की नीति पर ध्यान देना प्रारंभ किया परिणामतः हम वर्षाजल के भंडारण की तकनीकों से दूर हो गए। आज हालात ये है कि हमारा गांव समाज सुखे की मार झेल रहा है। इन सब के अलावा वहां के लोगों को ग्रामसभा के महत्व के बारे समझाया जिसमें गांव के लोगों को ग्रामसभा द्वारा गांव के सभी महत्वपूर्ण फैसलों को करने पर लोगों में चेतना विकसित की साथ ही विभिन्न फैसलों में गांव के सभी वर्गों के लोगों को शामिल करने की आवश्यकता पर जागरूकता का संचार किया। गांव के फैसले गांव में निपट जाए इस पर ध्यान केंद्रित किया। अन्ना जी का गांव आज एक विकसित गांव है।
गांव के विद्यालयों में आधुनिक शिक्षा, खेलकुद, नृत्य, संगीत के अलावा विभिन्न प्रकार के पारंपरिक कलाओं में प्रवीण होने की शिक्षा दी जाती है। रालेगणसिद्धि में बौद्धिक क्षमता के अनुसार विद्यालय बने हैं, इनमें भी परिणाम शत-प्रतिशत आते हैं। लड़के एवं लड़कियों की शिक्षा में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। गांव के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे इसके लिए गांव के महिलाओं को एक वर्ष की ट्रेनिंग दी गई है। जो अपने गांव के साथ-साथ विभिन्न गांवों के आरोग्य का भार संभालती हैं।
पशुओं के नस्ल सुधार पर जोर देकर संकरित किस्म के नए नस्लों का विकास किया गया है। जिनके फलस्वरूप गांव में दुग्ध का उत्पादन बढ़ा है आज की तारीख में गांव से हजारों लीटर दूध, दूध संग्रह केंद्रों के माध्यम से विभिन्न स्थानीय बाजारों में पहुंचाया जाता है। जिससे ग्रामीणों के आय में भारी इजाफा हुआ है। एवं गांव में कुपोषण घटा है। महिलाओं के बचत बैंक की स्थापना की गई है। गांव में अनेक महिला स्वयं सहायता समूहों का निर्माण किया गया है इन समूहों से जुड़कर महिलाएं विभिन्न आयसृजक गतिविधियों के द्वारा अपने जीवनस्तर में सुधार ला रही है। इनमें नियमित बैठक एवं नियमित बचत कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है।
अन्ना हजारे जी कहना है कि खेतीबाड़ी के साथ-साथ हमें अपने बागवानी पर ध्यान देने की जरूरत है। अलग-अलग जगहों पर फलदार वृक्षों के रोपण द्वारा हम अपनी आमदनी में इजाफा करने के साथ-साथ बंजर मिट्टी की उर्वरा क्षमता का विकास कर सकते हैं। आम, पपीते एवं लीची की खेती एक किसान आराम से अपनी बगीचे में कर सकता है।
हम लोग झारखंड के परिदृश्य में देखे तो, झारखंड पठारी क्षेत्र है, इसे प्रकृति का वरदान प्राप्त है यहां बाढ़ एवं सुखा का प्रकोप देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले कम पड़ता है। खनिज संपदा के मामले में यह राज्य देश में महत्वपूर्ण रखता है। यहां की अधिकांश जनता खेतीबाड़ी एवं मजदूरी कर अपना जीवन निर्वाह कर रही है।
राज्य के बनने 14 सालों के दौरान गरीबी उन्मूलन की अनेक रणनीतियां बनी अनेक विकासात्मक योजनों का क्रियान्वयन किया गया, जिनके फलस्वरूप लोगों की उत्पादक क्षमता का विकास करने का सफल प्रयास किया गया है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो अभी भी पलायन, बेरोजगारी, भुखमरी, स्वास्थ्य, एवं शिक्षा के मामले में राज्य पिछड़ा हुआ है।
सरकारी योजनाओं का प्रभावी रूप से लागू किए जाने एवं संपूर्ण ग्राम विकास का विस्तृत खाका तैयार करने पर व्यापक शोध एवं विचार विमर्श किए जाने कि आवश्यकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है किः- हम अपने राज्य में अन्ना हजारे जी के सिद्धांत नहीं लागू कर सकते क्या? झारखंड का हर गांव रांलेगांव सिद्धि क्यों नही बन सकता? हमलोग पलायन को क्यों नहीं रोक सकतें? वर्षाजल का भंडारण क्यों नहीं कर सकते? इतनी बड़ी ग्रामीण आबादी का उचित प्रबंधन क्यों नही कर सकते?
कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है पठारी क्षेत्र की अधिकता के कारण यहां का वर्षा का बहकर नदी नालों के माध्यम से बहकर बेकार हो जाता है। झारखंड में औसतन 1200-1400 मिली की बारिश होती है। लेकिन भौगोलिक संरचना की विविधता व जन जागरूकता के अभाव कारण के कारण वर्षाजल का सही भंडारण कर पाने के चलते यहां कृषि की स्थिति अत्यंत दयनीय बनी हुई है।
कृषि योग्य भूमि की अधिकता रहने के बावजूद कृषि उत्पादोें के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। मसलन आलू जैसे नित्य व्यवहृत फसलों के पश्चिम बंगाल एवं बिहार उत्तर प्रदेश पर आश्रित रहना पड़ता है। जिन फसलों में अधिक जल की आवश्यकता होती है। वे हमारे राज्य ही में उत्पादित हो इसके लिए आवश्यक है कि हमारे पास पर्याप्त जल भंडार हो। गांवों में हमारे पुरखों ने जल संग्रहण की व्यवस्था ठोस प्रकार से की थी, हम लोग एक संतुलित व्यवस्था में थे, साथ ही बड़े जलस्रोतों का निर्माण इस ढंग से था कि जल का भंडारण और संग्रहण ग्राम के अंतर्गत क्षेत्र में ही हो जाया करता था राज्य के अनेक स्थानों में प्राचीन ताल, तलैए देखने से तो यही प्रतीत होता है।
हमारी प्राचीन सभ्यता का विकास भी नदी घाटियों में हुआ था इनके साक्ष्य उपलब्घ है अधिकतर गांवों का निवास स्थल जल स्रोतों के आसपास था हमारे देश के अनेक शहर इसके उदाहरण है, जो नदियों के किनारे पर बसे हुए हैं। कालान्तर में शहरीकरण एवं अधिक विकास की लालसा ने जलसंग्रहण के भाव को ताक पर रखकर अत्यधिक अवशोषित कर दोहन की नीति पर ध्यान देना प्रारंभ किया परिणामतः हम वर्षाजल के भंडारण की तकनीकों से दूर हो गए। आज हालात ये है कि हमारा गांव समाज सुखे की मार झेल रहा है।
जरूरत है कि हमारे पुराने जलभंडारण नीतियों को ईमानदारीपूर्वक अपनाने की ताकि सूखे की मार को दूर कर गांव को पुनः सुखी संपन्न बनाने की दिशा मेें सफल कोशिश की जा सके। आजादी के बाद से ही सूखे एवं पर्याप्त जल की उपलब्धता को प्राप्त करने की दिशा में अनेक उपाय एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया गया लेकिन वर्तमान समय तक कोई ठोस हल निकालने सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। इसमें असफल होने के कारणों में चाहे जो कारण रहे। परन्तु आज के परिदृश्य में बढ़ती आबादी को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए जरूरी है कि सरकारी कार्यक्रम एवं जनभागीदारी को बढ़ाने वाले समग्र उपायों पर जोर दिया जाए।
झारखंड के गांवों में संपूर्ण विकास की अवधारणा जल की सुरक्षा एवं उपलब्धता पर ही निर्भर करती है। गांव के लोगों का विकास खेती एवं उनकी जिविका के विकास पर ही निर्भर है। खेती कार्य में पर्याप्त जल की उपलब्धता पर उत्पादन निर्भर है। जलस्रोतों के का सार्वजनिकीकरण न होना एक बड़ी समस्या है।
अधिकतर किसान समुदाय जल स्रोतों के मुद्दे पर संघर्षमान होते है। पारिवारिक जमीनी झगड़े में जल स्रोतों की दुगर्ति एवं नष्ट होना सामाजिक वैमनस्यता एवं प्रकृति के प्रति अनादर भाव को प्रदर्शित करता है। सरकारी कार्यक्रमों से निर्मित जलस्रोतों में खेती कम व्यवस्था की अनियमितता ही दिखती है। आज के समय में राज्य में किसानी प्रवृति विनष्ट होती देखी जा रही है।
जीविका के लिए अन्य राज्यों में पलायन चितंनीय विषय है। जरूरत है कि सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में जलछालन विचार को समाहित किया जाए। जलछाजन एक वैचारिक परिवर्तन लाने वाला जनोपयोगी कार्यक्रम है। एक ग्रामीण जो खेतीबारी करता है, वह हमेशा एक फसल पर निर्भर रहे तो उसकी गरीबी कभी भी दूर नहीं हो सकती।
प्रत्येक किसान भूमि को स्वरोजगाार हेतु इस प्रकार व्यवस्थित करे कि उसमें पशुपालन, अनाज उत्पादन, सब्जी उत्पादन, बागवानी, मछलीपालन, मुर्गी, बत्तखपालन इत्यादि समग्र रूप से बेहतर रूप से क्रियान्वित किया जा सके एवं ग्रामीण समाज आर्थिक समाजिक एवं नैतिक रूप से सशक्त हो सके। इस विचार को मुर्त रूप देने के लिए के लिए आवश्यक है कि समग्र रूप से जनभागीदारी एवं समान विचारधारा को बढ़ावा देते हुए सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में कार्य करें।
वर्तमान समय में झारखंड राज्य जलछाजन मिशन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में जल की कमी दूर करने, बहते जल को रोकने एवं मिट्टी कटाव को रोकने मिश्रित खेती बागवानी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जलछाजन कार्यक्रम का संचालन प्रत्येक जिले में किया जा रहा है। इसमें आधुनिक तकनीक की मदद से सही स्थान में उपयुक्त गतिविधि क्रियान्वित की जा रही है। इसमें वेब आधारित मॉनीटीरिंग की सुविधा भी है। जिससे कार्यों के निरीक्षण आदि में काफी सुविधा हो गई है।
अनगड़ा के सोनाहातु में पर्वत के प्राकृतिक जलस्रोत को गांव के विकास में प्रयुक्त कर रामकिशन मिशन राज्य ने मिसाल कायम की है। इसी प्रकार देवघर में ड्रम चेकडैम जैसी कम खर्च वाली टेक्नोलॉजी के प्रयोग से नई आशा का संचार हो रहा है। एवं किसान लाभान्वित हो रहे हैं। मॉडल कार्य अनेक जगहों पर किए जा रहे हैं।
जरूरत इस बात की है कि संपूर्ण झारखंड में इस तरह कार्य एवं नए जलसंरक्षण विचार एवं भंडारण के तकनीकों को बढ़ावा मिले एवं मनरेगा, सिंचाई आदर्श ग्राम योजनाओं में जलछाजन अप्रोच को ईमानदारीपूर्वक शामिल किया जाए। ताकि संपूर्ण ग्राम विकास के लक्ष्य को हासिल करने की राह अग्रसर हो।
अन्ना हजारे जी के पांच सिद्धांत
(नशबंदी, नशाबंदी, चरायबंदी, कुल्हाड़ीबंदी एवं श्रमदान) जिसने समूचे गांव एकसुत्र मे पिरोते हुए गांव के संपूर्ण विकास में बेहतरणीय योगदान दिया । 1. नशबंदी- अन्ना जी ने बढ़ती आबादी और उनसे जनित समस्याओं के बारे में लोगों को आगाह किया एवं नशबंदी के महत्ता की जानकारी प्रसारित कर जनसंख्या को नियंत्रित करने का सफल प्रयास किया।
2. नशाबंदी- अन्ना जी के गांव में पहले नशाखोरी का बड़ा प्रचलन था नशे में कमाई का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीणों का खर्च हो जाता था। लोग महाजनों के चंगुल में थे और कर्जा लेकर दारू पीते थे और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था दारू की अनेक भट्टियां गांव में थी उनको बंद कराया। आज की तारीख में वहां नशाखोरी नहीं है।
3. चरायबंदी- लगातार चरायबंदी के कारण जमीनें बंजर हुई जा रही थी। बढ़ती जनसंख्या के लिए कृषियोग्य जमीन को बढ़ाने हेतु यह आवश्यक था कि गाय, बैलों, बकरियों को बांधकर बाड़े में चारा खिलाया जाए। हरे चारे का उत्पादन किया जाए। इन सारी जरूरतों को देखते हुए उन्होंने गांव के लोगों को संगठित कर चरायबंदी का नियम गांव में लागु करवाया।
4. कुल्हाड़ीबंदी- पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित करते है धरती हरी-भरी दिखती है। हमारी रोजमर्रा के विभिन्न जरूरतों को पुरा करती है। अन्ना जी ने संपूर्ण गांव के लोगों के साथ मिलकर पेड़ों के महत्व के बारे में जनसाधारण को अवगत कराया एवं हर आदमी पेड़ लगाए इस बात पर जोर दिया, पेड़ों की कटाई न हो लोग उनकी रक्षा करें। परिणामतः गांव के लोगों में पर्यावरण के प्रति सचेतना का जागरण हुआ। आज पुरा गांव हरे-भरे वृक्षों से ढंका है।
5. श्रमदान- अन्ना जी एक महान सामाजिक उत्प्रेरक है उन्होंने श्रमदान के महत्व के बारे लोगों को बताया एवं उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर वर्षाजल को संरक्षित करने पर जोर दिया। बेकार बहने वाले जल को भंडारित कर गावं के जलस्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिसके परिणामस्वरूप गांव के लोगों द्वारा अनेक तालाब, पोखरों का निर्माण श्रमदान के द्वारा किया गया। जिसके परिणामतः गांव में खेती का विकास हुआ एवं जहां एक फसल के पानी हेतु लोग तरसते थे वहां आज लोग सालों भर खेतीबाड़ी करते है। गांव के दलितों के खेतो में गांव के अगड़े वर्ग के लोगों ने दो सालों तक लगातार हल जोतकर कर्जा चुकाने में मदद की। श्रमदान की नीति से गांव में जातिगत विषमता को दूर कर एकता और भाईचारा स्थापित करने का सफल प्रयास किया गया है।
हमारी प्राचीन सभ्यता का विकास भी नदी घाटियों में हुआ था इनके साक्ष्य उपलब्घ है अधिकतर गांवों का निवास स्थल जल स्रोतों के आसपास था हमारे देश के अनेक शहर इसके उदाहरण है, जो नदियों के किनारे पर बसे हुए हैं। कालान्तर में शहरीकरण एवं अधिक विकास की लालसा ने जलसंग्रहण के भाव को ताक पर रखकर अत्यधिक अवशोषित कर दोहन की नीति पर ध्यान देना प्रारंभ किया परिणामतः हम वर्षाजल के भंडारण की तकनीकों से दूर हो गए। आज हालात ये है कि हमारा गांव समाज सुखे की मार झेल रहा है। इन सब के अलावा वहां के लोगों को ग्रामसभा के महत्व के बारे समझाया जिसमें गांव के लोगों को ग्रामसभा द्वारा गांव के सभी महत्वपूर्ण फैसलों को करने पर लोगों में चेतना विकसित की साथ ही विभिन्न फैसलों में गांव के सभी वर्गों के लोगों को शामिल करने की आवश्यकता पर जागरूकता का संचार किया। गांव के फैसले गांव में निपट जाए इस पर ध्यान केंद्रित किया। अन्ना जी का गांव आज एक विकसित गांव है।
गांव के विद्यालयों में आधुनिक शिक्षा, खेलकुद, नृत्य, संगीत के अलावा विभिन्न प्रकार के पारंपरिक कलाओं में प्रवीण होने की शिक्षा दी जाती है। रालेगणसिद्धि में बौद्धिक क्षमता के अनुसार विद्यालय बने हैं, इनमें भी परिणाम शत-प्रतिशत आते हैं। लड़के एवं लड़कियों की शिक्षा में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। गांव के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे इसके लिए गांव के महिलाओं को एक वर्ष की ट्रेनिंग दी गई है। जो अपने गांव के साथ-साथ विभिन्न गांवों के आरोग्य का भार संभालती हैं।
पशुओं के नस्ल सुधार पर जोर देकर संकरित किस्म के नए नस्लों का विकास किया गया है। जिनके फलस्वरूप गांव में दुग्ध का उत्पादन बढ़ा है आज की तारीख में गांव से हजारों लीटर दूध, दूध संग्रह केंद्रों के माध्यम से विभिन्न स्थानीय बाजारों में पहुंचाया जाता है। जिससे ग्रामीणों के आय में भारी इजाफा हुआ है। एवं गांव में कुपोषण घटा है। महिलाओं के बचत बैंक की स्थापना की गई है। गांव में अनेक महिला स्वयं सहायता समूहों का निर्माण किया गया है इन समूहों से जुड़कर महिलाएं विभिन्न आयसृजक गतिविधियों के द्वारा अपने जीवनस्तर में सुधार ला रही है। इनमें नियमित बैठक एवं नियमित बचत कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है।
अन्ना हजारे जी कहना है कि खेतीबाड़ी के साथ-साथ हमें अपने बागवानी पर ध्यान देने की जरूरत है। अलग-अलग जगहों पर फलदार वृक्षों के रोपण द्वारा हम अपनी आमदनी में इजाफा करने के साथ-साथ बंजर मिट्टी की उर्वरा क्षमता का विकास कर सकते हैं। आम, पपीते एवं लीची की खेती एक किसान आराम से अपनी बगीचे में कर सकता है।
हम लोग झारखंड के परिदृश्य में देखे तो, झारखंड पठारी क्षेत्र है, इसे प्रकृति का वरदान प्राप्त है यहां बाढ़ एवं सुखा का प्रकोप देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले कम पड़ता है। खनिज संपदा के मामले में यह राज्य देश में महत्वपूर्ण रखता है। यहां की अधिकांश जनता खेतीबाड़ी एवं मजदूरी कर अपना जीवन निर्वाह कर रही है।
राज्य के बनने 14 सालों के दौरान गरीबी उन्मूलन की अनेक रणनीतियां बनी अनेक विकासात्मक योजनों का क्रियान्वयन किया गया, जिनके फलस्वरूप लोगों की उत्पादक क्षमता का विकास करने का सफल प्रयास किया गया है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो अभी भी पलायन, बेरोजगारी, भुखमरी, स्वास्थ्य, एवं शिक्षा के मामले में राज्य पिछड़ा हुआ है।
सरकारी योजनाओं का प्रभावी रूप से लागू किए जाने एवं संपूर्ण ग्राम विकास का विस्तृत खाका तैयार करने पर व्यापक शोध एवं विचार विमर्श किए जाने कि आवश्यकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है किः- हम अपने राज्य में अन्ना हजारे जी के सिद्धांत नहीं लागू कर सकते क्या? झारखंड का हर गांव रांलेगांव सिद्धि क्यों नही बन सकता? हमलोग पलायन को क्यों नहीं रोक सकतें? वर्षाजल का भंडारण क्यों नहीं कर सकते? इतनी बड़ी ग्रामीण आबादी का उचित प्रबंधन क्यों नही कर सकते?
कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है पठारी क्षेत्र की अधिकता के कारण यहां का वर्षा का बहकर नदी नालों के माध्यम से बहकर बेकार हो जाता है। झारखंड में औसतन 1200-1400 मिली की बारिश होती है। लेकिन भौगोलिक संरचना की विविधता व जन जागरूकता के अभाव कारण के कारण वर्षाजल का सही भंडारण कर पाने के चलते यहां कृषि की स्थिति अत्यंत दयनीय बनी हुई है।
कृषि योग्य भूमि की अधिकता रहने के बावजूद कृषि उत्पादोें के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। मसलन आलू जैसे नित्य व्यवहृत फसलों के पश्चिम बंगाल एवं बिहार उत्तर प्रदेश पर आश्रित रहना पड़ता है। जिन फसलों में अधिक जल की आवश्यकता होती है। वे हमारे राज्य ही में उत्पादित हो इसके लिए आवश्यक है कि हमारे पास पर्याप्त जल भंडार हो। गांवों में हमारे पुरखों ने जल संग्रहण की व्यवस्था ठोस प्रकार से की थी, हम लोग एक संतुलित व्यवस्था में थे, साथ ही बड़े जलस्रोतों का निर्माण इस ढंग से था कि जल का भंडारण और संग्रहण ग्राम के अंतर्गत क्षेत्र में ही हो जाया करता था राज्य के अनेक स्थानों में प्राचीन ताल, तलैए देखने से तो यही प्रतीत होता है।
हमारी प्राचीन सभ्यता का विकास भी नदी घाटियों में हुआ था इनके साक्ष्य उपलब्घ है अधिकतर गांवों का निवास स्थल जल स्रोतों के आसपास था हमारे देश के अनेक शहर इसके उदाहरण है, जो नदियों के किनारे पर बसे हुए हैं। कालान्तर में शहरीकरण एवं अधिक विकास की लालसा ने जलसंग्रहण के भाव को ताक पर रखकर अत्यधिक अवशोषित कर दोहन की नीति पर ध्यान देना प्रारंभ किया परिणामतः हम वर्षाजल के भंडारण की तकनीकों से दूर हो गए। आज हालात ये है कि हमारा गांव समाज सुखे की मार झेल रहा है।
जरूरत है कि हमारे पुराने जलभंडारण नीतियों को ईमानदारीपूर्वक अपनाने की ताकि सूखे की मार को दूर कर गांव को पुनः सुखी संपन्न बनाने की दिशा मेें सफल कोशिश की जा सके। आजादी के बाद से ही सूखे एवं पर्याप्त जल की उपलब्धता को प्राप्त करने की दिशा में अनेक उपाय एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया गया लेकिन वर्तमान समय तक कोई ठोस हल निकालने सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। इसमें असफल होने के कारणों में चाहे जो कारण रहे। परन्तु आज के परिदृश्य में बढ़ती आबादी को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए जरूरी है कि सरकारी कार्यक्रम एवं जनभागीदारी को बढ़ाने वाले समग्र उपायों पर जोर दिया जाए।
झारखंड के गांवों में संपूर्ण विकास की अवधारणा जल की सुरक्षा एवं उपलब्धता पर ही निर्भर करती है। गांव के लोगों का विकास खेती एवं उनकी जिविका के विकास पर ही निर्भर है। खेती कार्य में पर्याप्त जल की उपलब्धता पर उत्पादन निर्भर है। जलस्रोतों के का सार्वजनिकीकरण न होना एक बड़ी समस्या है।
अधिकतर किसान समुदाय जल स्रोतों के मुद्दे पर संघर्षमान होते है। पारिवारिक जमीनी झगड़े में जल स्रोतों की दुगर्ति एवं नष्ट होना सामाजिक वैमनस्यता एवं प्रकृति के प्रति अनादर भाव को प्रदर्शित करता है। सरकारी कार्यक्रमों से निर्मित जलस्रोतों में खेती कम व्यवस्था की अनियमितता ही दिखती है। आज के समय में राज्य में किसानी प्रवृति विनष्ट होती देखी जा रही है।
जीविका के लिए अन्य राज्यों में पलायन चितंनीय विषय है। जरूरत है कि सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में जलछालन विचार को समाहित किया जाए। जलछाजन एक वैचारिक परिवर्तन लाने वाला जनोपयोगी कार्यक्रम है। एक ग्रामीण जो खेतीबारी करता है, वह हमेशा एक फसल पर निर्भर रहे तो उसकी गरीबी कभी भी दूर नहीं हो सकती।
प्रत्येक किसान भूमि को स्वरोजगाार हेतु इस प्रकार व्यवस्थित करे कि उसमें पशुपालन, अनाज उत्पादन, सब्जी उत्पादन, बागवानी, मछलीपालन, मुर्गी, बत्तखपालन इत्यादि समग्र रूप से बेहतर रूप से क्रियान्वित किया जा सके एवं ग्रामीण समाज आर्थिक समाजिक एवं नैतिक रूप से सशक्त हो सके। इस विचार को मुर्त रूप देने के लिए के लिए आवश्यक है कि समग्र रूप से जनभागीदारी एवं समान विचारधारा को बढ़ावा देते हुए सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में कार्य करें।
वर्तमान समय में झारखंड राज्य जलछाजन मिशन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में जल की कमी दूर करने, बहते जल को रोकने एवं मिट्टी कटाव को रोकने मिश्रित खेती बागवानी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जलछाजन कार्यक्रम का संचालन प्रत्येक जिले में किया जा रहा है। इसमें आधुनिक तकनीक की मदद से सही स्थान में उपयुक्त गतिविधि क्रियान्वित की जा रही है। इसमें वेब आधारित मॉनीटीरिंग की सुविधा भी है। जिससे कार्यों के निरीक्षण आदि में काफी सुविधा हो गई है।
अनगड़ा के सोनाहातु में पर्वत के प्राकृतिक जलस्रोत को गांव के विकास में प्रयुक्त कर रामकिशन मिशन राज्य ने मिसाल कायम की है। इसी प्रकार देवघर में ड्रम चेकडैम जैसी कम खर्च वाली टेक्नोलॉजी के प्रयोग से नई आशा का संचार हो रहा है। एवं किसान लाभान्वित हो रहे हैं। मॉडल कार्य अनेक जगहों पर किए जा रहे हैं।
जरूरत इस बात की है कि संपूर्ण झारखंड में इस तरह कार्य एवं नए जलसंरक्षण विचार एवं भंडारण के तकनीकों को बढ़ावा मिले एवं मनरेगा, सिंचाई आदर्श ग्राम योजनाओं में जलछाजन अप्रोच को ईमानदारीपूर्वक शामिल किया जाए। ताकि संपूर्ण ग्राम विकास के लक्ष्य को हासिल करने की राह अग्रसर हो।