अनावश्यक और हानिकारक वस्तुओं को हटा देने और मिटा देने की हिन्दूधर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा गया है और इस दृष्टिकोण को क्रियात्मक रूप देने के लिए होली का त्यौहार बनाया गया है । रास्तों में फैले हुए कांटे, शूल, झाड़ झंखाड़, मनुष्य समाज की कठिनाइयों को बढ़ाते हैं, रास्ते चलने वालों को कष्ट देते हैं, ऐसे तत्वों को ज्यों को त्यों नहीं पड़ा रहने दिया जा सकता, उनकी ओर से न आँख चुराई जा सकती है और न उपेक्षा की जा सकती है ।
इसलिए हर वर्ष होली पर लोग मिल जुलकर रास्तों में पड़े हुए कँटीले अनावश्यक झाड़ों को बटोरते हैं और उन्हें जलाते हुए उत्सव का आनन्द मनाते हैं । इसी प्रकार नाली, गड्ढे, कीचड़, धूल, कचरा आदि की सफाई करके जमी हुई गन्दगी को हटाते हैं । गली मुहल्लों के कोने-कोने को छान डाला जाता है कि कहीं गन्दगी छिपी हुई तो नहीं पड़ी है, जहाँ होता है वहाँ से उसे हटाकर दूर कर देते हैं ।
होली मायने जमी हुई गन्दगी को दूर करो
होली के त्यौहार का छिपा हुआ संदेश यह है कि जमी हुई गन्दगी को दूर करो, रास्ते में बिछे हुए कष्टदायक तत्वों को हटाओ । बाहर की गली मुहल्लों की गन्दगी को साफ करके स्वच्छता और शुद्धता का वातावरण उत्पन्न करना आवश्यक है अन्यथा क्षेत्र में ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ यह गंदगी विकृत रूप धारण करके चेचक आदि बीमारियों को और भी अधिक बढ़ावा दे सकती है । सफाई का यह बाहरी दृष्टिकोण हुआ भीतरी सफाई करना, मानसिक दोष र्दुगुणों को हटाना भी इस प्रकार आवश्यक है अन्यथा अनेक मार्गों के असंख्य प्रकार के अनिष्ट होने की सम्भावना है ।
रास्ते में काँटे आते रहने का नियम प्रकृति प्रदत्त है । यदि काँटे सामने न आवें, विघ्न-बाधाओं का अस्तित्व न रहे तो मनुष्य की जागरूकता, क्रियाशीलता, चैतन्यता और विचारकता नष्ट हो जायेगी, रगड़ में वह शक्ति है कि हथियार को तेज बनाती है, यदि हथियार घिसा न जाये तो वह कुन्द हो जायेगा और जंग लगकर कुछ समय बाद वह निकम्मा बन जायेगा । मनुष्य जीवन में रगड़ और संघर्ष की बड़ी भारी आवश्यकता है अन्यथा जीवित रहते हुए भी मृत अवस्था के दृश्य देखने पड़ेगें ।
जो जातियाँ अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विकृत्तियों को संघर्षपूर्वक हटाती रहती हैं, वे जीवित रहती हैं और जो भाग्य भरोसे शुतुर मुर्ग की तरह बालू में मुँह गाढ़कर निश्चित एवं निष्क्रिय बनती हैं, वे गरीबी, गुलामी, बीमारी, बेइज्जती आदि के दुःख भोगती हुई नष्ट हो जाती हैं ।
हिन्दू धर्म जीवित और पुरुषार्थी जाति का धर्म है । उसका हर एक त्यौहार जागरूकता ओर क्रियाशीलता का सन्देश देता रहता है । होली का सन्देश यह है कि भीतरी और बाहरी गन्दगी को ढूँढ़-ढूँढ़कर साफ कर डालें और चतुर्मर्खी पवित्रता की स्थापना करें एवं मानसिक सामाजिक राजनैतिक विकृत विकारों के कंटक जो रास्ते में बिछे हुए हैं उन्हें सब मिल जुलकर ढूँढ़-ढूँढ़कर लावें और उनमें आग लगाकर उत्सव मनावें । होली मनाने का यही सच्चा तरीका है । अश्लील अपशब्द बकना, कीचड़, मिट्टी मनुष्यों पर फेंकना यह तो पशुता का चिन्ह एवं असभ्यता है इससे तो दूर ही रहना चाहिए ।
साभार – अखिल विश्व गायत्री परिवार
अखिल विश्व गायत्री परिवार : हरिद्वार के सप्त सरोवर क्षेत्र में ऋषिकेश रोड पर स्टेशन से ६ कि.मी. दूर महर्षि विश्वामित्र की तपःस्थली पर युगऋषि परम पूज्य आचार्य पं.श्रीराम शर्मा एवं वंदनीया भगवती देवी शर्मा की प्रचण्ड तप-साधना से अनुप्राणित विशाल, दर्शनीय, जीवंत तीर्थ से अनुप्राणित एक विचार परिवार
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