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राष्ट्रीय सहारा, 22 जुलाई, 2018
फलदार वृक्षों में अमरूद, जामुन, महुआ, आँवला और अनार के पेड़ खेतों की मेंड़ पर लगाए जा सकते हैं। यह पेड़ पाँच से दस साल में तैयार हो जाएँगे और इसके बाद इसमें हर साल फसल आएगी। अगर किसान के खेतों में खड़ी फसल खराब भी हो गई तो वार्षिक रूप से आने वाली फलों की पैदावार उसके नुकसान की भरपाई कर सकती है। बेल का पेड़ भी खूब फल देता है और चालीस साल तक इसमें फल लगते रहते हैं।
किसान अपनी खाली पड़ी ऐसी भूमि, जिस पर वह रबी या खरीफ फसलों की बुवाई नहीं करते हैं उस पर वृक्ष लगाकर दीर्घावधि में अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों द्वारा वृक्षों में किये गये निवेश को हरित निवेश का नाम दिया है जिसमें काफी कम रकम निवेश करके ज्यादा रिटर्न हासिल किया जा सकता है।देश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान होने के बावजूद आज कृषि फायदे का सौदा नहीं रह गई है। कृषि आय में अनिश्चितता बनी रहने के कारण देश का किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। किसान को यह बात खुद भी नहीं पता होती है कि जो फसल उसने बोई है उससे कितनी आमदनी होगी यहाँ तक कि फसल की लागत निकलेगी भी या नहीं। कृषि क्षेत्र अनिश्चितताओं से भरा क्षेत्र है।
कभी फसल में कीट का प्रकोप होने से फसल खराब हो जाती है तो कभी आँधी, तूफान, अतिवृष्टि, बाढ़ या पाला पड़ने से फसल को नुकसान हो जाता है। इसके चलते किसानों को फसल की लागत निकालना भी मुश्किल होता है। इन्ही सब हालात के मद्देनजर किसान खेती से विमुख हो रहे हैं। जिससे कृषि क्षेत्र का रकबा कम होता जा रहा है और उपज भी कम हो रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़ी नीतियों में भी दोष है। किसानों की उपज को सरकार तो समर्थन मूल्य पर खरीदती है लेकिन निजी क्षेत्र समर्थन मूल्य पर खरीद करने में दिलचस्पी नहीं लेता।
क्या है ग्रीन इनवेस्टमेंट
ग्रीन इनवेस्टमेंट से तात्पर्य ऐसे निवेश से है जिसमें किसान अपनी खाली पड़ी भूमि का इस्तेमाल वृक्षारोपण के लिये करते हैं और लम्बी अवधि में इन वृक्षों से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अगर किन्हीं कारणों से फसल खराब भी हो जाती है तो वृक्षों से मिले मुनाफे से दो-चार बार हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है। वृक्षों में निवेश के लिये किसी प्लांटेशन कम्पनी का सहारा नहीं लेना बल्कि बेकार पड़ी भूमि पर वृक्षारोपण किया जा सकता है। कुछ वृक्ष ऐसे भी होते हैं जो फसल के लिये नुकसानदेह नहीं होते हैं। ऐसे वृक्षों को खेतों की मेंड़ पर भी लगाया जा सकता है।
यह वृक्ष उन किसानों के लिये ज्यादा अच्छे हैं जो अनाज की जगह सब्जियाँ बोने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। बेहतर यही होगा कि किसान अपनी कुछ भूमि वृक्षारोपण के लिये अलग कर दें। क्योंकि अक्सर बड़े वृक्ष लगाने से जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। जमीन अलग करने के बाद इसमें कुछ व्यावसायिक और कुछ फलदार वृक्ष लगाकर वार्षिक और दीर्घावधि में अपनी आय बढ़ाई जा सकती है। यह एक प्रकार से किसान का हरित निवेश है जिसमें कम-से-कम रकम निवेश करके ज्यादा-से-ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है।
कौन से पेड़ फायदेमंद
कई पेड़ ऐसे होते हैं जिनकी लकड़ी का व्यावसायिक इस्तेमाल होता है और इनकी लकड़ी बाजार में काफी महँगी बिकती है। इन्हें कमर्शियल ट्री भी कहते हैं। यह पेड़ 15 से 25 साल में तैयार होते हैं लेकिन बिकते काफी महँगे हैं। इन पेड़ों में सागवन (टीक), शीशम जैसे पेड़ शामिल हैं। मान लीजिए किसी ने सागवन के 50 पेड़ लगा दिये। यह पेड़ 25 से 35 साल में तैयार हो जाएँगे और आमतौर पर एक पेड़ न्यूनतम एक लाख रुपए में बिक जाता है। यानी 50 पेड़ 50 लाख रुपए में बिक सकते हैं। ऐसे में किसान को एकमुश्त 50 लाख रुपए मिल जाएँगे और यह रकम फसलों में बीते वर्षो में हुए सारे नुकसान की भरपाई कर देगी।
वित्तीय सेवाएँ देने वाली कम्पनियों में किया जाने वाला निवेश भी 15 से 25 या 30 साल की अवधि के लिये ही किया जाता है। इसी तरह यूकेलिप्टस का पेड़ आमतौर पर आठ साल में तैयार हो जाता है और एक पेड़ 25 से 40 हजार रुपए तक बिक जाता है। यूकेलिप्टस के पेड़ जमीन से पानी ज्यादा खींचते हैं इसलिये इनको किसी ऐसी जमीन पर लगाना चाहिए जिसका इस्तेमाल सब्जी या अनाज इत्यादि की बुवाई में न किया जा रहा हो। पॉपुलर का पेड़ भी व्यावसायिक दृष्टि से काफी फायदेमंद होता है। इसकी लकड़ी का इस्तेमाल दियासलाई बनाने वाली कम्पनियाँ भी करती हैं। सरकार की तरफ से भी कृषि वानिकी यानी एग्रो फारेस्ट्री को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिये कृषि वानिकी संस्थानों का गठन जनपद या ब्लाक स्तर पर किया गया है जहाँ से वृक्षारोपण के बारे में काफी जानकारी हासिल की जा सकती है।
फलदार वृक्ष से बढ़ाएँ वार्षिक आय
किसान फलदार वृक्ष लगाकर भी अपनी वार्षिक आय में इजाफा कर सकते हैं। फलदार वृक्षों में अमरूद, जामुन, महुआ, आँवला और अनार के पेड़ खेतों की मेंड़ पर लगाए जा सकते हैं। यह पेड़ पाँच से दस साल में तैयार हो जाएँगे और इसके बाद इसमें हर साल फसल आएगी। अगर किसान के खेतों में खड़ी फसल खराब भी हो गई तो वार्षिक रूप से आने वाली फलों की पैदावार उसके नुकसान की भरपाई कर सकती है। बेल का पेड़ भी खूब फल देता है और चालीस साल तक इसमें फल लगते रहते हैं। बेल और उसका रस बेचकर भी किसान अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं। इसके अलावा औषधीय इस्तेमाल में आने वाले फलों के पेड़ों से भी किसान अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं।
ग्रीन इनवेस्टमेंट का लें सहारा
किसानों की हालात सुधारने को सरकार ने कई योजनाएँ चला रखी हैं। इन योजनाओं में फसल बीमा योजना, समर्थन मूल्य में वृद्धि, उर्वरक सब्सिडी जैसी योजनाएँ शामिल हैं लेकिन जानकारी न होने की वजह से इन योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं मिल पाता। किसानों की दयनीय स्थिति को देखते हुए कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वह अपनी माली हालत सुधारने और अपनी आमदनी में इजाफा करने के लिये ग्रीन इनवेस्टमेंट का सहारा लें।
कुछ वृक्ष ऐसे भी होते हैं जो फसल के लिये नुकसानदेह नहीं होते हैं। ऐसे वृक्षों को खेतों की मेंड़ पर भी लगाया जा सकता है। यह वृक्ष उन किसानों के लिये ज्यादा अच्छे हैं जो अनाज की जगह सब्जियाँ बोने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं।