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Vimal Bhai
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‘‘माटू जन संगठन’’ खसकर टिहरी बांध प्रभावितों के मुद्दे उठाने के लिए बनाया गया था। टिहरी बांध प्रभावित भागीरथी घाटी में सिरांई गांव के युवकों ने नवंबर 2001 में माटू (मिट्टी के लिए गढ़वाली शब्द) नाम से इसकी स्थापना की। माटू ने प्रभावित गांवों व टिहरी शहर के बीच संवाद स्थापित करने और लोगों को आपस में जोड़ने की कोशिश के साथ विस्थापितों के दर्द को बाहर की दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया व संघर्ष में साथ रहे।
अब माटू जनसंगठन टिहरी बांध पर सरकारी दावों की सच्चाई सामने लाने के साथ भागीरथी, अलकनंदा व गंगा घाटी के अन्य बांधों के क्षेत्रों में पर्यावरण स्वीकृति स्वीकृति के पहले के मुद्दों पर कार्य कर रहा है। इसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि टिहरी बांध विस्थापितों व पर्यावरण विनाश की कहानी फिर न दोहराई जाए।
संगठन की कोशिश है कि उच्चतम न्यायालय में टिहरी परियोजना पर दायर जनहित याचिका से लेकर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय दबाव समूहों को पुनर्वास व पर्यावरण के मुद्दों पर जोड़ा जाए। विभिन्न माध्यमें से पत्रकार, समाजकर्मियों, आंदोलनों, सहमना समूहों को क्षेत्र में चल रही गतिविधियों पर अपडेट करें। संगठन ने स्थानीय नेतृत्व को उभारने के साथ अन्य संगठनों को भी सहयोग दिया है। संगठन की कोशिश है कि ऊर्जा राज्य की होड़ में, छोटे बांधों के धोखे में अपने संसाधन खोते, विस्थापित होते आम उत्तराखण्डी को असलियत से वाकिफ कराएं। संगठन का लक्ष्य है कि उत्तराखण्ड में अब और विस्थापन न हो, और यदि कम संख्या में भी विस्थापन आवश्यक हो तो विस्थापितों को उनका हक मिले। संगठन इन सब मुद्दों पर एक पहाड़ी पुनर्वास नीति के लिए भी प्रयासरत है। संगठन का मानना है कि विस्थापन का अर्थ आजीविका छिनने से है एवं जल, जंगल व जमीन के अधिकार छिनने से है।
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